Mar 30, 2011

मुस्लिम देशों में तानाशाही के बीच साम्राज्यवादी दखल


अमेरिका की पहचान दुनिया में एक साम्राज्यवादी देश के रूप में स्थापित हो चुकी है, मगर सवाल तो यह है कि  युद्ध छिडऩे या किसी संघर्षपूर्ण स्थिति के उत्पन्न होने से पहले  मुस्लिम देश के तानाशाहों को इस्लाम व दुनिया के मुसलमानों की याद क्यों नहीं आती...

तनवीर जाफरी

कल तक अपनी सैन्य शक्ति तथा समर्थकों के बल पर मज़बूत स्थिति में दिखाई देने वाले गद्दाफी अब किसी भी क्षण सत्ता से बेदखल किए जा सकते हैं। पश्चिमी देशों द्वारा अमेरिका के नेतृत्व में लीबिया के तानाशाह कर्नल मोअमार गद्दाफी को सत्ता से बेदखल किए जाने की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है। नाटो भी लीबिया में लागू उड़ान निषिध क्षेत्र की कमान संभालने को तैयार हो गया है। गठबंधन सेनाओं द्वारा लीबिया की वायुसेना तथा थलसेना की कमर तोड़ी जा चुकी है।

गद्दाफी के एक पुत्र के मारे जाने का समाचार है। स्वयं गद्दाफी के भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। गद्दाफी के ही कथन को माना जाए तो वे स्वयं लीबिया में ही शहीद होने को प्राथमिकता देंगे। अब देखना यह होगा कि सत्ता के अंतिम क्षणों में गद्दाफी का अंत किस प्रकार होता है? क्या वे लीबिया छोड़कर अन्यत्र पनाह लेने के इच्छुक होंगे? यदि हां तो क्या नाटो सेनाएं तथा विद्रोही उन्हें वर्तमान स्थिति में देश छोड़कर जाने की अनुमति देंगे? या फिर वे भी अपने पुत्र की तरह विदेशी सेनाओं का निशाना बन जाएंगे? या उनका हश्र सद्दाम हुसैन जैसा होगा? या फिर वे आत्महत्या करने जैसा अंतिम रास्ता अख्तियार   करेंगे?

बहरहाल, कल तक जिस कर्नल गद्दाफी की लीबिया की सत्ता से बिदाई आसान प्रतीत नहीं हो रही थी, आज वही तानाशाह न केवल अपनी सत्ता के लिए बल्कि अपनी व अपने परिवार की जान व माल की सुरक्षा के विषय में भी अनिश्चित नज़र आ रहा है । इन परिस्थितियों में गद्दाफी ने भी एक बार फिर उसी 'धर्मास्त्र' का प्रयोग किया है, जिसका प्रयोग ओसामा बिन लादेन,  मुल्ला उमर तथा  एमन-अल जवाहिरी जैसे आतंकी से लेकर सद्दाम हुसैन तक  करते रहे हैं.


ऐसे में सवाल यह उठता है कि  युद्ध छिड़ने या किसी संघर्षपूर्ण स्थिति के उत्पन्न होने से पहले  आखिर  इन तानाशाहों को इस्लाम और दुनिया के मुसलमानों की याद क्यों नहीं आती? इसमें कोई दोराय नहीं कि अमेरिका की पहचान दुनिया में एक साम्राज्यवादी देश के रूप में स्थापित हो चुकी है। अमेरिका दुनिया में अपना वर्चस्व कायम रखने की लड़ाई लड़ रहा है। दुनिया में चौधराहट बनाए रखना अमेरिकी विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा है। विश्व का सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता होने के नाते निश्चित रूप से उसे तेल की भी सबसे अधिक ज़रूरत है। यही वजह है कि तेल उत्पादन करने वाले देशों में अमेरिकी दखलअंदाज़ी को प्राय: इसी नज़रिए से देखा भी जाता है।

दुनिया समझती है कि यह लड़ाई किसी तानाशाह को सत्ता से बेदखल करने या विद्रोही जनता का समर्थन करने की नहीं, बल्कि अमुक देश की तेल संपदा पर अमेरिकी नियंत्रण करने की है। परंतु दुनिया के लाख शोर-शराबा करने या वावैला करने के बावजूद अमेरिकी नीतियों में न तो कोई परिवर्तन आता है, न ही अमेरिका की ओर से इन आरोपों के जवाब में कोई ठोस खंडन किया जाता है। गोया अमेरिका ऐसे आरोपों की अनसुनी कर अपनी नीतियों पर आगे बढ़ते रहने में ही भलाई समझता है। ऐसे में उन चंद मुस्लिम नेताओं की इस्लाम पर 'अमेरिकी खतरे' जैसी ललकार स्वयं ही निरर्थक साबित हो जाती है।

ताज़ा उदाहरण लीबिया का ही देखा जाए तो यहां भी उड़ान निषिध क्षेत्र बनाने की हिमायत अरब लीग के सदस्य देशों द्वारा सर्वसम्मति से की गई। विदेशी सेनाओं द्वारा लीबिया पर बमबारी किए जाने का मार्ग अरब लीग के देशों ने ही प्रशस्त किया। और अब संयुक्त अरब अमीरात जैसा अरब देश गठबंधन सेनाओं के साथ मिलकर लीबिया पर बम बरसा रहा है। ऐसे में इस्लाम और ईसाईयत  की बात क्या बेमानी नहीं हो जाती? और इन सबके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि गद्दाफी व सद्दाम हुसैन जैसे तानाशाह उस समय इस्लामपरस्ती को कतई भूल जाते हैं, जब यह लोग सत्ता के नशे में चूर होकर अपने-अपने देशों में मनमानी करने की सभी हदों को पार कर जाते हैं।

जब ये तानाशाह अपनी बेगुनाह और निहत्थे अवाम पर ज़ुल्म ढा रहे होते हैं, उस वक्त उन्हें यह नहीं सूझता कि हम जिन पर ज़ुल्म ढा रहे हैं, वे भी मुसलमान हैं तथा हमारे यह कारनामे इस्लाम विरोधी हैं। यह क्रूर तानाशाह उस समय तो इस्लामी इतिहास के राक्षस प्रवृति के सबसे बदनाम शासक यज़ीद की नुमाईंदगी करते नज़र आते हैं। परंतु जब इन्हें मौत के रूप में अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्, संयुक्त राष्ट्र संघ तथा नाटो जैसे संगठनों के फैसलों का सामना करना होता है तब इन्हें इस्लाम याद आता है। मुस्लिम इत्तेहाद भी, जेहाद भी और  संघर्ष भी।

प्रश्र यह है कि मुस्लिम राष्ट्रों को इन परिस्थितियों से उबरने के लिए आखिर  क्या करना चाहिए? सर्वप्रथम तो तमाम मुस्लिम राष्ट्रों में इस समय मची खलबली का ही पूरी पारदर्शिता तथा वास्तविकता के साथ अध्ययन कर अवाम द्वारा विद्रोह के रूप में लिखी जा रही इबारत को पूरी ईमानदारी से पढऩे की कोशिश की जानी चाहिए। अफगानिस्तान, इराक और लीबिया जैसे देश मुल्ला उमर, सद्दाम और गद्दाफी जैसे सिरफिरे शासकों की गलत व विध्वंसकारी नीतियों के चलते बरबाद हुए हैं। इस वास्तविकता को सभी देशों विशेषकर मुस्लिम जगत को समझना चाहिए। गोया किसी देश में विदेशी सेनाओं अथवा पश्चिमी सेनाओं के नाजायज़ हस्तक्षेप का कारण वहां की अवाम नहीं, बल्कि वहां का सिरफिरा शासक ही देखा गया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संघर्ष की अफवाहों पर पूर्ण विराम लगाने की गरज़ से ही शर्म-अल-शेख में मुस्लिम राष्ट्रों के प्रमुखों को अस्लाम-अलैकुम कहा था तथा मुस्लिम देशों को साथ लेकर चलने का आह्वान किया था। परंतु तब से लेकर अब तक मुस्लिम राष्ट्रों में सुधारवाद की कोई बयार चलती तो हरगिज़ नहीं दिखाई दी। हां विद्रोह, क्रांति तथा बगा़वत के बिगुल कई देशों में बजते ज़रूर दिखाई दे रहे हैं।

कारण कि सत्ताधीश मुस्लिम तानाशाह कहीं ज़ालिम हैं तो कहीं निष्क्रिय। कहीं अकर्मण्यता का प्रतीक हैं तो किसी के राज में भुखमरी, बेरोज़गारी और गरीबी ने अपने पांव पसार लिए हैं। कोई अपने व्यक्तिगत धन या संपत्ति के संग्रह में जुटा है तो किसी को अपनी खाऩदानी विरासत के रूप में अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने या हस्तांतरित करने की फिक्र है। कोई शासक जनता की आवाज़ को चुप कराने के लिए ज़ुल्म व अत्याचार के किसी भी उपाय को अपनाने से नहीं कतराता तो कई ऐसे हैं जिन्हें अपने देश के विकास, प्रगति या अर्थव्यवस्था में कोई दिलचस्पी नहीं।

ऐसे में जनविद्रोह का उठना भी स्वाभाविक है तथा विदेशी सेनाओं द्वारा उस जनविद्रोह का लाभ उठाना भी स्वाभाविक है।




लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.उनसे tanveerjafari1@gmail.कॉम पर संपर्क किया जा सकता है.





 

ठगों का स्वर्ग बनता इंटरनेट


शादी का प्रस्ताव  देते हुए एक महिला लिखती है,'मेरा करोड़ों डॉलर बैंक में है,मैं यह धनराशि आपके खाते में स्थानान्तरित करना चाहती हूं। अत:आप मुझे अपना नाम,पता,खाता व अपने बैंक का स्विफ्ट  कोड भेजिए...

निर्मल रानी

ठगों द्वारा अत्याधुनिक वैज्ञानिक तकनीक  इंटरनेट का सहारा लिया जा रहा है. ठगी का शिकार भी उन्हीं को बनाया जा रहा है जो कंप्यूटर और इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। अपने शिकार को ठगने के लिए वे मात्र प्रलोभन को ही अपने धंधे का मुख्य  आधार बनाते हैं। जाहिर है कि  लालच का शिकार होना या किसी प्रलोभन में आना केवल गरीबों का ही काम नहीं,किसी पैसे वाले व्यक्ति को शायद धन की कुछ ज्य़ादा ही आवश्यकता होती है। इसी सूत्र पर अमल करते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ठगों का  यह विशाल नेटवर्क लगभग पूरी दुनिया में छा चुका है।


दान लीजिये : ठगी के अनेक रूप

पहले  यह  काला  धंधा  मुख्य रूप से दक्षिण  अफ़्रीकी  देशों से संचालित हो  रहा था,परंतु अब इन्होंने  दुनिया के लगभग सभी देशों में अपने जाल फैला दिए हैं। यह इंटरनेट ठग गूगल अथवा याहू या किन्ही  अन्य सर्च साइट्स के माध्यम से या फिर किसी अन्य तरीके  से विश्व के तमाम लोगों के ई-मेल पते इकट्ठा करते हैं।

वे बाकायदा अपने पूरे नाम,टेलीफोन नंबर व पते के साथ-साथ किसी भी ई-मेल पर अपना भारी भरकम परिचय देते हुए प्रलोभन वाले मेल भेजते हैं। उदाहरण के तौर पर आपको  उनका  यह संदेश आ सकता है, 'बधाई हो, आप जैकपॉट का पुरस्कार जीते हैं। यह लॉटरी इन्टरनेट प्रयोग करने वाले ई-मेल खाताधारको के मध्य आयोजित की गई थी। इसमें आपको 14लाख डॉलर  पुरस्कार  निकला है। कृपया इसे ग्रहण करने के लिए अमुक ई-मेल पर संपर्क करें.'

जाहिर है इस मेल को प्राप्त करने वाला व्यक्ति बड़ी खामोशी के साथ एक  कदम आग बढ़ाते हुए ठगों द्वारा भेजे गए उनके ई-मेल पते पर संपर्क साधता है। मात्र 24घंटों के भीतर ही आपको उस ठग का उत्तर भी मिल जाएगा। उसका उत्तर होता है, 'हां मैं बैरिस्टर अमुक हूं तथा आप वास्तव में लॉटरी के विजेता हैं। आपको बधाई।'

उसके बाद वह तथाकथित बैरिस्टर आपसे आपका नाम, पूरा पता, व्यवसाय, टेलीफोन नम्बर, बैंक अकाऊंट नम्बर तथा आपके  बैंक  स्विफट कोड नं आदि जानकारी मांगता है।  इसके बाद यदि आपने उनके द्वारा मांगी गई सभी सूचनाएं उपलब्ध करवा दीं, फिर न तो वे दोबारा आपसे संपर्क साधेंगे, न ही आपके  किसी अगले ई-मेल का जवाब देंगे। यह ठग इलेक्ट्रोनिक उपायों का प्रयोग कर किसी भी प्रकार से आपके खाते से पैसे निकालने का  भरसक  प्रयास करने में जुट जाते हैं। और किसी न किसी शिकार  व्यक्ति के  बैंक  खाते से पैसे निकालने में कामयाब हो जाते हैं।

लॉटरी निकलने की  सूचना देने के अतिरिक्त और भी तरीके से ई-मेल ठगों का यह नेटवर्क पूरी दुनिया में ई-मेल धारकों को भेजता रहता है। जैसे किसी ठग द्वारा यह सूचित किया जाता है कि  अमुक परिवार विमान हादसे में मारा गया है। उस परिवार का क्योंकि कोई वारिस नहीं है तथा यदि आप उसके वारिस बन जाएं तो उसकी  जमा धनराशि यथाशीघ्र आप पा सकते हैं।

कोई महिला शादी का प्रलोभन देते हुए लिखती है,'मेरा करोड़ों डॉलर बैंक में है,मैं यह धनराशि आपके खाते में स्थानान्तरित करना चाहती हूं। अत:आप मुझे अपना नाम,पता,खाता व अपने बैंक का स्विफट कोड आदि भेजिए।' कई ठग तो सीधे तौर पर यही लिख देते हैं,  मैं अमुक बैंक में गुप्त दस्तावेज डील करने वाले विभाग में अधिकारी हूं। मेरे एक जानकार व्यक्ति की  मृत्यु हो गई है। उनका करोड़ों डॉलर मेरे ही बैंक में जमा है। यदि आप इस धनराशि को लेने में रुचि रखते हैं तो अपना और अपने बैंक अकाऊंट का विस्तृत ब्यौरा यथाशीघ्र भेजें ताकि  मैं यह धनराशि आपके  खाते में स्थानान्तरित कर सकूँ.'

तैब्लो : हैकिंग  का उस्ताद   
अपने आपको चीन का बताने वाले एक ठग ने भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने की  तो हद ही कर दी। उसने स्वयं को कैंसर  का मरीज बताते हुए यह लिखा, वह चीन का एक नामी-गिरामी उद्योगपति है। चूंकि वह अपने जीवन की  अन्तिम सांसें ले रहा है अत: वह चाहता है की  उसकी  नकद धनराशि  का एक बड़ा हिस्सा गरीब व बेसहारा लोगों में बांट दिया जाए। फिर उस तथाकथित उद्योगपति ने इस काम के लिए सहयोग मांगते हुए अपने तथाकथित बैरिस्टर का ई-मेल पता दे दिया। उधर उस तथाकथित बैरिस्टर ने अन्य ठगों की भांति विस्तृत पता तथा बैंक खाते का विस्तार मांगना शुरु कर दिया।

एक अफ़्रीकी ठग ने तो किसी झूठ-सच में पडऩे तथा निरर्थक कहानी सुनाने से बचते हुए अपनी बात कहने का एक अनूठा तरीका अपनाया। उसने ई-मेल द्वारा सीधे यह सूचित किया आपके नाम का फंड जो  बारह करोड़ रुपए है,मेरे बैंक में जमा है। कृपया अपना बैंक अकाऊंट नंबर तथा बैंक स्विफट कोड भेजें ताकि आपकी यह धनराशि आपके खाते में अविलम्ब स्थानान्तरित कर दी जाए।

कुछ ठग तो धार्मिक  व जातिगत भावनाओं को भी जगाने का प्रयास अपने इस ठग व्यवसाय में करते हैं। परन्तु भारतीय संस्कृति की स पूर्ण जानकारी न होने की वजह से उन्हें बारीकी से परखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि आपका नाम संजय चौधरी है तो जाहिर है आपने अपना ई-मेल भी लगभग संजय चौधरी के नाम से या इससे मिलता जुलता ही बनाया होगा। यह अंतर्राष्ट्रीय ठग चौधरी शब्द को तो यह समझ कर चुन लेते हैं कि हो न हो, यह किसी व्यक्ति का सरनेम ही होगा।

ठगानन्द जी आपके ई-मेल पर जो संदेश भेजते हैं उसमें लगभग यह लिखा होता है कि 'कार एक्सीडेंट में अथवा विमान हादसे में अथवा किसी समुद्री जहाज के डूबने में फलां देश का एक परिवार मारा गया। उसका मुखिया राबर्ट चौधरी था। चूंकि आप संजय चौधरी हैं अत:आप राबर्ट चौधरी के भाई के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करते हुए उसके खाते में जमा 22 करोड़ डॉलर की नक़द धनराशि प्राप्त कर सकते हैं।'

यहां यह ठग चौधरी शब्द का तो बड़ी आसानी से महज इसलिए प्रयोग कर लेता है क्योंकि वह उसे सरनेम ही समझता है, परन्तु संजय के स्थान पर दूसरे भारतीय शब्द का अभाव होने के चलते उसे राबर्ट नाम का सहारा लेना पड़ता है। इन ठगों द्वारा दिए जाने वाले इन सभी प्रलोभन में जो कहानी तथा अनुबन्ध उल्लिखित किया जाता है उसमें बाकायदा 30 अथवा 40 या 50 प्रतिशत का उनका अपना हिस्सा भी बताया जाता है ताकि कोई भी व्यक्ति अचानक यह न समझ बैठे कि अमुक व्यक्ति को मेरे ही साथ इतनी हमदर्दी आखिर क्योंकर है?

इंटरनेट के माध्यम से तरह-तरह की योजनाएं बताकर ठगी करना, गन्दे व अशलील ई-मेल भेजना, किसी का ई-मेल हैक करना,वायरस भेजना दूसरों को डराना-धमकाना तथा आतंकवाद संबंधी गतिविधियों की सूचनाओं का गैर कानूनी आदान-प्रदान व अवैध रूप से गुप्त दस्तावेजों का हस्तान्तरण करना भी इसी कंप्यूटर माध्यम से हो रहा है।

जहां हमें कंप्यूटर के  तमाम सकारात्मक व लाभप्रद पहलुओं को स्वीकार करना तथा उन्हें अपने प्रयोग में लाना है वहीं इससे होने वाले नुकसान व दुष्परिणामों से भी पूरी तरह चौकस व सचेत रहने की जरूरत है। इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त होने वाले किसी भी अंजान व्यक्ति के किसी भी लालचपूर्ण प्रस्ताव को पढऩे में समय गंवाने के बजाए ऐसे मेल को डिलीट कर देना ही ठगी से बचने का सबसे सुरक्षित उपाय है।



लेखिका उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ हैं और सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर भी  लिखती हैं. इनसे nirmalrani@gmail.com  पर संपर्क किया जा सकता है.