Feb 13, 2017

मोदी सरकार ने प्रचार में खर्च किए 11 अरब

ग्रेटर नोएडा के आरटीआई एक्टिविस्‍ट रामवीर तंवर को सूचना कानून अधिकार के तहत आयोग ने बताया कि केंद्र सरकार ने मात्र सवा दो साल में प्रचार पर 11 अरब रुपए खर्च कर दिए।

गौरतलब है कि 29 अगस्त 2016 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से सूचना के अधिकार के जरिए आरटीआई एक्टिविस्‍ट रामवीर तंवर ने पूछा था कि केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार बनाने से लेकर अगस्‍त 2016 तक विज्ञापन पर कितना सरकारी पैसा खर्च किया है। तब उन्हें आयोग ने सिलसिलेवार तरीके से अलग—अलग मद के खर्च का ब्योरा दिया था। ध्यान रहे कि यह आंकड़ा 7 महीने पहले का है, जिसे औसतन भी देखा जाए तो अब 15 अरब से उपर जा चुका होगा।

देखिए, गरीबों और किसानों की सरकार का दंभ भरने वाली भाजपा ने किस माध्यम में प्रचार के लिए कितने करोड़ रूपये खर्च किए...

एसएमएस – 2014-  9.07 करोड़, 2015- 5.15 करोड़, अगस्त 2016- 3.86 करोड़

इंटरनेट - 2014-6. 61 करोड़, 2015-14.13 करोड़, अगस्त 2016-1.99 करोड़

ब्राॅडकास्ट -2014-64. 39 करोड़, 2015-94.54 करोड़ , अगस्त 2016-40.63 करोड़

कम्‍युनिटी रेडियो-2014 -88.40 लाख, 2015-2.27 करोड़, अगस्त 2016-81.45 लाख

डिजिटल सिनेमा -2014 -77 करोड़, 2015-1.06 अरब, अगस्त 2016-6.23 करोड़

टेलीकास्ट-  2014-2.36 अरब, 2015-2.45 अरब, अगस्त 2016-38.71 करोड़

प्राॅडक्शन -2014-8.20 करोड़, 2015-13.90 करोड़, अगस्त 2016-1.29 करोड़

साल के अनुसार सालाना खर्च

    2014- एक जून 2014 से 31 मार्च 2015 तक करीब 448 करोड़ रुपए खर्च
    2015- 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 तक 542 करोड़ रुपए खर्च
    2016- 1 अप्रैल 2016 से 31 अगस्‍त 2016 तक 120 करोड़ रुपए खर्च

यूपी में चुनावी खर्चे का हिसाब और ईमानदारी की बिसात

​कुल सीटें 403.

हर सीट पर औसत प्रत्याशियों की संख्या 17 से 20.

इनमें से जीतने के लिए लड़ते हैं कम से कम 5.

जीतने के लिए लड़ने वाले प्रत्याशियों में प्रति प्रत्याशी औसत खर्च 2 करोड़ यानी 10 करोड़ लगाकर लड़ते हैं 5 प्रत्याशी.

शेष 10 से 15 प्रत्याशी निपट लेते हैं 5 करोड़ में.

यानी कुल मिलाकर एक विधानसभा में सभी प्रत्याशियों ने मिलकर खर्च किया 15 करोड़. 15 करोड़ को 403 सीटों से गुणा करते हैं तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का खर्च सिर्फ प्रत्याशियों के लिए 6045 करोड़ बैठता है. पर विधानसभा पहुंचा एक और मंत्री बना औसत 60 में से एक. विधानसभा त्रिशंकु हो गयी, तो फिर मातम ही सहारा। राष्ट्रपति शासन लग गया तो चौतरफा नुकसान. यानी रिस्क बहुत बड़ा और लाभ के खेल में सिर्फ कोई एक शामिल.

तीन बार विधायक और दो बार मंत्री रह चुके नेता ने जब चुनावी खर्चे का हिसाब सिलसिलेवार सुना दिया तो आखिर मुझसे पूछा, ''क्या यह खर्चा किसी को ईमानदार रहने देगा. अगर आप कह रहे हैं कि हम लूट का प्रतिनिधित्व करते हैं तो क्या कोई एक विधायक 5 साल में 15 करोड़ लूट पाता है? नहीं न। फिर फायदे में कौन रहा नेता या नेता को बनाने वाले.'' 

मंत्री आगे बोले, ''भारत में नेता बनाया जाता है, कोई नेता बनता नहीं है. आसपास के लोग आपको लाभ लायक समझते हैं, वही नेता बनाते हैं नहीं तो बहारकर फेंक देते हैं. राहुल गांधी नेता​गिरी नहीं करना चाहते, उनको शउर भी नहीं पर लट्ठ लेकर उनसे नेतागिरी करवाई जा रही है, क्योंकि करवाने वाले जानते हैं वह लाभ लायक हैं. रही बात ईमानदारी से चुनाव लड़ने की तो पूरे प्रदेश में सामान्य सीट पर कोई एक प्रत्याशी बताइए जो करोड़पति न हो और मुकाबले में हो। सिर्फ एक सीट पर.'' 

मंत्री आखिर में बोले, ''चुनाव में ईमानदारी की बात करना भी एक बाजार है. बेईमानी से वसूली का बाजार। क्या नाम बताउं, मेरे एक मित्र हैं. उनसे मैंने राजनीति का पाठ पढ़ा. वह भी चुनाव लड़े, पर कभी जीते नहीं. एक बार संयोग से मैं और वो दोनों एक ही विधानसभा से खड़े हुए. हम दोनों उस बार हार गए, पर एक राज की बात कहूं, मैंने अपना वोट उन्हीं को दिया था।''