गांव में पहले भी हो चुकी एक दलित की हत्या
नरेंद्र देव सिंह की रिपोर्ट
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के करडिय़ा गांव में एक दलित को सवर्ण जाति के एक व्यक्ति ने चक्की छू लेने की सजा उसकी गर्दन काट के दी। मामला सुर्खियों में आ गया। राष्टï्रीय मीडिया ने भी इसे जोर शोर से प्रसारित किया लेकिन अभी भी इस गांव के असली सच सामने नहीं आये हैं।
सोहन राम की पत्नी से बात करते बामसेफ के सदस्य |
असल में हुआ क्या था
सोहन राम 5 अक्टूबर को कुंदन सिंह भंडारी की चक्की में गेहूं पिसाने गया था। एक स्कूल टीचर ललित कर्नाटक ने सोहन राम द्वारा चक्की छू लिये जाने पर उसे अपवित्र करने की बात कह कर उस पर जातिसूचक गालियों के साथ चिल्लाने लगा। ललित ने कहा, 'तूने नवरात्र में चक्की को अपवित्र कर दिया।' और इसी बात पर तैश में आकर ललित ने सोहन की दराती से गर्दन काट कर हत्या कर दी।
केस वापस लेने का दबाव
करड़िया का दौरा कर लौटे बामसेफ से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता मनोज कुमार आर्या ने बताया कि पीडि़त परिवार ही नहीं बल्कि यहां रहने वाले अन्य दलित परिवार भी भय में ही जी रहे हैं। कई बार पीडि़त परिवार को केस वापस लेने की धमकी दी गयी है। सबसे अमानवीय पहलू यह सामने आया कि सोहन की हत्या के बाद से चार दिन तक उस परिवार में कोई भी सामान्य जाति का व्यक्ति संवेदना व्यक्त करने के नाम पर झांकने तक नहीं आया।
मनोज आर्या के मुताबिक, 'जब कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा इस घर में पहुंचे तब उस गांव के प्रधान ने पहली बार दलित परिवार के घर में कदम रखने की जहमत उठायी।'
मृतक सोहन की गर्भवती पत्नी बीना देवी कहती हैं, 'पति की हत्या के बाद परिवार को केस वापस करने की धमकी दी गयी।' बीना रोते हुए कहती हैं, 'सोहन के मरने पर मेरे घर वाले आए थे और कह रहे थे कि इस गांव के दलितों में जितना खौफ है वो कहीं और नहीं देखा।' आरोपी ललित अपनी भाभी की हत्या के मामले में भी अभियुक्त रह चुका है।
हत्या का एफआईआर 15 साल बाद भी नहीं
मृतक सोहन के परिवार के एक रिश्तेदार की भी हत्या हो चुकी है। ग्रामीणों ने बताया कि सोहन के रिश्तेदार इसी गांव में रहते थे और उसकी भी हत्या पन्द्रह साल पहले सवर्ण जाति के लोगों ने कर दी थी। इस मामले की आज तक एफआईआर तक दर्ज नहीं हुयी है। ऐसा बिलकुल नहीं है कि जातिवाद की ये नृशंस घटना इस गांव में हाल फिलहाल की घटना है। यह यहां का चलन है और ये हत्या उसकी पराकाष्ठा।
पंद्रह परिवार के पास दो नाली जमीन
यहां शादी ब्याहों के निमंत्रण में सवर्णों और दलितों में दूरी रहती है। अंर्तजातिय विवाह तो सोचना भी पाप है। यहां दलितों के पन्द्रह परिवार के पास केवल दो नाली (लगभग आधा बीघा) जमीन है। ये लोग सवर्णों की जमीन पर ही मजदूरी करते हैं। यहां रहने वाले दलितों का साफ कहना है कि उन्हें दिन भर मजदूरी के बाद भी कभी पचास तो कभी सौ रूपये ही थमा दिये जाते हैं। जहां तक पुलिस व्यवस्था की बात है तो वो कितनी लचर या कहें सवर्णों की गोद में बैठी है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि इस परिवार को सुरक्षा दिये जाने का दावे पुलिस महकमा कर रहा है लेकिन पुलिस तभी आती है जब कोई नेता उस घर तक जाता है। इस गांव में लगभग जितने परिवार सवर्णों के हैं उतने ही परिवार दलितों के भी हैं। मतलब संख्याबल में दलित कम नहीं हैं लेकिन सदियों से किये जा रहे जाति प्रथा के जुल्मों ने इन्हें इतना खोखला कर दिया है कि लोग सही से मुंह तक नहीं खोल पा रहे हैं।
सीएम की मदद की हकीकत
सीएम हरीश रावत ने यहां आकर पीडि़त परिवार को 12 लाख 62 हजार रूपये की मदद देने की घोषणा की। लेकिन इसमें से 5 लाख 62 हजार रूपये समाज कल्याण विभाग इस तरह के मामले में ही पहले से ही देता है। सरकार ने इस रकम को भी सीएम की मदद में जोड़ लिया।
सोहन राम 5 अक्टूबर को कुंदन सिंह भंडारी की चक्की में गेहूं पिसाने गया था। एक स्कूल टीचर ललित कर्नाटक ने सोहन राम द्वारा चक्की छू लिये जाने पर उसे अपवित्र करने की बात कह कर उस पर जातिसूचक गालियों के साथ चिल्लाने लगा। ललित ने कहा, 'तूने नवरात्र में चक्की को अपवित्र कर दिया।' और इसी बात पर तैश में आकर ललित ने सोहन की दराती से गर्दन काट कर हत्या कर दी।
केस वापस लेने का दबाव
करड़िया का दौरा कर लौटे बामसेफ से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता मनोज कुमार आर्या ने बताया कि पीडि़त परिवार ही नहीं बल्कि यहां रहने वाले अन्य दलित परिवार भी भय में ही जी रहे हैं। कई बार पीडि़त परिवार को केस वापस लेने की धमकी दी गयी है। सबसे अमानवीय पहलू यह सामने आया कि सोहन की हत्या के बाद से चार दिन तक उस परिवार में कोई भी सामान्य जाति का व्यक्ति संवेदना व्यक्त करने के नाम पर झांकने तक नहीं आया।
मनोज आर्या के मुताबिक, 'जब कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा इस घर में पहुंचे तब उस गांव के प्रधान ने पहली बार दलित परिवार के घर में कदम रखने की जहमत उठायी।'
मृतक सोहन की गर्भवती पत्नी बीना देवी कहती हैं, 'पति की हत्या के बाद परिवार को केस वापस करने की धमकी दी गयी।' बीना रोते हुए कहती हैं, 'सोहन के मरने पर मेरे घर वाले आए थे और कह रहे थे कि इस गांव के दलितों में जितना खौफ है वो कहीं और नहीं देखा।' आरोपी ललित अपनी भाभी की हत्या के मामले में भी अभियुक्त रह चुका है।
हत्या का एफआईआर 15 साल बाद भी नहीं
मृतक सोहन के परिवार के एक रिश्तेदार की भी हत्या हो चुकी है। ग्रामीणों ने बताया कि सोहन के रिश्तेदार इसी गांव में रहते थे और उसकी भी हत्या पन्द्रह साल पहले सवर्ण जाति के लोगों ने कर दी थी। इस मामले की आज तक एफआईआर तक दर्ज नहीं हुयी है। ऐसा बिलकुल नहीं है कि जातिवाद की ये नृशंस घटना इस गांव में हाल फिलहाल की घटना है। यह यहां का चलन है और ये हत्या उसकी पराकाष्ठा।
पंद्रह परिवार के पास दो नाली जमीन
यहां शादी ब्याहों के निमंत्रण में सवर्णों और दलितों में दूरी रहती है। अंर्तजातिय विवाह तो सोचना भी पाप है। यहां दलितों के पन्द्रह परिवार के पास केवल दो नाली (लगभग आधा बीघा) जमीन है। ये लोग सवर्णों की जमीन पर ही मजदूरी करते हैं। यहां रहने वाले दलितों का साफ कहना है कि उन्हें दिन भर मजदूरी के बाद भी कभी पचास तो कभी सौ रूपये ही थमा दिये जाते हैं। जहां तक पुलिस व्यवस्था की बात है तो वो कितनी लचर या कहें सवर्णों की गोद में बैठी है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि इस परिवार को सुरक्षा दिये जाने का दावे पुलिस महकमा कर रहा है लेकिन पुलिस तभी आती है जब कोई नेता उस घर तक जाता है। इस गांव में लगभग जितने परिवार सवर्णों के हैं उतने ही परिवार दलितों के भी हैं। मतलब संख्याबल में दलित कम नहीं हैं लेकिन सदियों से किये जा रहे जाति प्रथा के जुल्मों ने इन्हें इतना खोखला कर दिया है कि लोग सही से मुंह तक नहीं खोल पा रहे हैं।
सीएम की मदद की हकीकत
सीएम हरीश रावत ने यहां आकर पीडि़त परिवार को 12 लाख 62 हजार रूपये की मदद देने की घोषणा की। लेकिन इसमें से 5 लाख 62 हजार रूपये समाज कल्याण विभाग इस तरह के मामले में ही पहले से ही देता है। सरकार ने इस रकम को भी सीएम की मदद में जोड़ लिया।