Jun 3, 2011

मायावती के खिलाफ एकजुट हुआ मोर्चा


लखनउ के झूलेलाल पार्क में 3 मई को जन संघर्ष मोर्चा की ओर से आयोजित आज रैली में किसान नेताओं ने उत्तर प्रदेश की जनता से अपील किया कि मायावती तथा कांग्रेस के झांसे में न आयें। उनके खेल को बेनकाब करें और 1894 के काले कानून को रद्द कराने की मुहिम में शामिल हों । जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘कांग्रेस- भाजपा, सपा-बसपा की कॉरपोरेटपरस्त राजनीति के खिलाफ कम्युनिस्ट धारा, किसान आंदोलन, मुस्लिम संगठन और सामाजिक न्याय, नागरिक आंदोलन की तमाम ताकतें जनवादी राजनीतिक विकल्प के लिए एक मंच पर आयी। हमें उम्मीद है कि यह रैली में प्रदेश में जनपक्षधर राजनीतिक विकल्प की जरूरत को पूरा करने का केन्द्र बनेगी। 

रैली की अध्यक्षता करते हुए वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इलियास आजमी ने कहा कि कांग्रेस, सपा, बसपा एक दूसरे की विकल्प नहीं, बल्कि पूरक हैं। भाजपा का तो मात्र एक ही काम है, हमारे देश की गंगा-जमुनी तहजीब को बिगाड़ना और दंगा-फसाद की जमीन पर खड़े होकर राजनीति करना है। इसलिए इन दलों से अलग राजनीतिक विकल्प वक्त की जरूरत है। राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मंत्री कौशल किशोर ने कहा कि प्रदेश में बन रहा यह नया राजनीतिक विकल्प विकास और लोकतंत्र की गारंटी देगा।

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष ऋषिपाल अम्बावता के मुताबिक 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को रद्द किया जाए और ’जनहित’ की ठोस व्याख्या की जाए, ताकि उसके नाम पर उपजाऊ, कृषि भूमि के गैर कृषि कार्यों के लिए हस्तानांतरण पर रोक लग सके। इसके लिए नयी राष्ट्रीय भूमि उपयोग नीति की घोषणा की जाए। इन सवालों पर तमाम किसान संगठनों के साथ मिलकर मानसून सत्र में संसद मार्च करने का उन्होंने ऐलान किया। 

लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघु ठाकुर ने कहा कि देश का विकास तभी हो सकता है जब कृषि के विकास को केन्द्र में लाया जाए। उन्होंने उत्तर प्रदेश में विकल्प के लिए जारी इस मुहिम में पूरे तौर पर साथ रहने की बात कही।

भ्रष्टाचार विरोधी राष्ट्रव्यापी आंदोलन के साथ जोरदार एकजुटता व्यक्त करते हुए रैली में लिए गए राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि आय से अधिक सम्पत्ति के मामलों में मुलायम सिंह तथा मायावती को बचाने के लिए जिस तरह मनमोहन सरकार सीबीआई का दुरूपयोग कर रही है, यह रैली उसकी कड़ी निन्दा करती है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई द्वारा इस मामले में बार-बार बयान बदलने पर हैरानी जाहिर कर कठोर टिप्पणियां कीं। यह अनायास नहीं है कि हर नाजुक मौके पर मुलायम और मायावती केन्द्र सरकार के बचाव में खडे नजर आते है।

इसमें लिए गये राजनीतिक प्रस्ताव में प्रदेश में लोकतांत्रिक अधिकारों पर हो रहे हमले पर गहरी चिन्ता व्यक्त की गयी। भट्टा पारसोल के किसानों से लेकर गोरखपुर में आंदोलनरत मजदूरों समेत जनता के सभी तबकों के न्यायपूर्ण संघर्षों पर बर्बर दमन ढाया जा रहा है। मायावती सरकार ने पूरे प्रदेश में धारा 144 लगा रखी है, हिटलरी फरमान जारी करके धरना, प्रदर्शन, आमसभा, रैली जैसी लोकतांत्रिक कारवाइयों के लिए भी सरकार द्वारा बॉन्ड भरवाया जा रहा है। आंदोलन के नेताओं के सर पर अपराधियों की तरह इनाम घोषित किया जा रहा है। आसमान छूती महंगाई, विशेषकर पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में अंधाधंुध बढ़ोत्तरी के लिए मनमोहन सरकार की कड़ी आलोचना की गयी।

रैली में प्रदेश में अति पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों-वनवासियों के सामाजिक न्याय के अधिकार की गारंटी के लिए सरकार से मांग की गयी कि अति पिछड़े हिन्दुओं और पिछड़े मुसलमानों के आरक्षण कोटे को अलग किया जाए। दलित अल्पसंख्यकों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए। कोल, मुसहर, राजभर जातियों को आदिवासी का दर्जा दिया जाए और गोड़, खरवार जैसी आदिवासी का दर्जा पायी जातियों के लिए चुनाव में सीट आरक्षित की जाए।   

पर्यावरण कानूनों का खुला उल्लंधन कर प्रदेश के मिर्जापुर-सोनभद्र, इलाहाबाद, बुदेलखण्ड अंचल में किए जा रहे अवैध खनन और प्राकृतिक संसाधनों की लूट, जिसमें मायावती जी के नजदीकी सिपहसालार शामिल है, पर भी गहरी चिन्ता व्यक्त की गयी। सोनभद्र में अनेक मासूम बच्चों की जहरीला पानी पीकर मौत हुयी है। यह पूरा क्षेत्र डार्क जोन में आता है, बावजूद इसके चुनार से लेकर सोनभद्र तक जेपी समूह ने बिजली बनाने के लिए जमीन से पानी निकालकर जल संकट को और भी बढ़ा दिया है। गोरखपुर अंचल में हर साल हजारों लोग मस्तिष्क ज्वर और ऐसी ही अन्य बीमारियों से मर रहे हैं, लेकिन सरकार लोगों की जिदंगी बचा पाने में विफल है। रैली में मांग की गयी कि प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर रोक लगाई जाये।

इस रैली को जन संघर्ष मोर्चा के महाराष्ट्र प्रभारी ललित रूनवाल, किसान मंच के उपाध्यक्ष हृदय नारायण शुक्ल, समाजवादी जनता पार्टी के प्रदेश्ज्ञ अध्यक्ष प्रताप नारायण सिंह, इंकलाब पार्टी आफ इंडिया के मोहम्मद इकबाल, मुस्लिम मजलिस के युसुफ हबीब, पूर्व सांसद अखिलेश सिंह, जसमो प्रदेश प्रवक्ता अनिल सिंह, पूर्व आई. जी. एस आर दारापुरी, नागरिक आंदोलन के शोएब, पीडीएफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अफजाल, सोशलिस्ट पार्टी (लोहिया) के रामसहारे, आदिवासी वनवासी महासभा के गुलाब चंद गोड, लाल बहादुर सिंह, पारख महासंघ के उपाध्यक्ष उपेन्द्र सिंह रावत, तिलकधारी बिन्द ने सम्बोधित किया और संचालन जसमों केन्द्रीय प्रवक्ता दिनकर कपूर ने किया।            
                                                                          

                                                                          

हा हुसैन हम न हुए



अशोक चक्रधर




—चौं रे चम्पू! इत्ती देर ते गुम्मा सौ बैठौ ऐ, कभी उदास है जाय, कभी मुस्काय, चक्कर का ऐ?

—चचा, एक पत्रिका-संपादक से सुबह-सुबह फोन पर तथ्याधारित बात हो रही थी, पर अचानक उन्होंने आवेश में आकर, ‘करना है जो कर लो’, कहा और फोन काट दिया।

—तेरे खिलाफ छापौ का कछू?—हां चचा! पिछले कुछ सालों से मेरी निन्दा के बिना उनकी पत्रिका पूरी नहीं होती। मैं जिन क्षेत्रों में जो भी कार्य कर रहा हूं,उनके साथ हास्य-कवि होने पर भी मुझे गर्व है,लेकिन वे हास्य-कवि का इस्तेमाल गाली की तरह करते हैं। इस बार उन्होंने तुम्हारे चम्पू और उसके परिवार के बारे में बड़ा ही नकारात्मक और तथ्यविहीन लेख छाप दिया।
 
अपमानबोध पर उदासी छा जाती है और उनके अधकचरे ज्ञान और व्यक्तिगत दुराग्रहों की ईर्ष्याजन्य भावनाओं पर हंसी आती है। माना कि इस भूमण्डलीकरण के बाद तनाव दुनियाभर के लिए एक अपरिहार्य अंगरखा है,लेकिन ज़िन्दा रहने की मजबूरी में अंग-प्रत्यंग का हंसना भी अनिवार्य बना रखा है। हमारी कॉलोनी में सुबह-सुबह पार्क में योग की कक्षाएं चलती हैं। लाउडस्पीकर पर बेसुरे प्रवचन होते हैं। चिंतन-मुक्त और निर्विकार होने की सलाह दी.


हत्यारों की सजा के इंतज़ार में परिजन

हौसला बुलंद पुलिस ने 21 अगस्त 2002 को बीजपुर थाना क्षेत्र के महुली के जंगल में दो युवकों को पुनः नक्सली बताकर मार दिया। इसमें एक चपकी निवासी महेश्वर गोड़ था,जिसका लड़का बसंत चार माह पूर्व करहिया मुठभेड़ में मारा गया था... अंतिम किस्त

विजय विनीत

अप्रैल 2002 में सोनभद्र के बीजपुर थाना क्षेत्र के करहिया गॉंव में पुलिस ने ठीक भवानीपुर की तर्ज पर चार युवकों को गोली मार दी। इनमें से बसंत,राजू और सुरेश नामक युवक की ही शिनाख्त हुई जो चपकी गॉंव के थे। बाद में सुरेश जिन्दा निकला। आज वह अपने गाँव में है। इस मुठभेड़ में मारे गये अन्य दो लड़के कहां के थे, आज तक पता नहीं चल पाया है।

नक्सली होने के आरोप में  पुलिस  मुठभेड़ के शिकार
अगस्त 2002में तो पुलिस ने मानवता और कानून की सारी हदें तोड़ दी। पन्नूगंज थाना क्षेत्र के केतार गॉंव का  मदन कुशवाहा, चोपन थाना क्षेत्र के कन्हौरा गॉंव अपने ससुराल गया हुआ था। वहां से अपनी पत्नी को लेकर चोपन बाजार आया, फिर बस पकडकर राबर्ट्सगंज के लिए चला। चोपन सोन नदी का पुल पार करते ही पुलिस ने उसे उसकी पत्नी के सामने बस से उतार लिया। फिर राबर्ट्सगंज कोतवाली पुलिस ने उसे भी मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया।

इस मामले को तत्कालीन विधायक परमेश्वर दयाल ने विधानसभा में उठाया,लेकिन दोषी पुलिस वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। मुठभेड़ों में दलित और निर्दोष युवकों के मारे जाने पर सवाल उठते रहे,मगर सोनभद्र पुलिस की कार्यप्रणाली में जरा भी परिवर्तन नहीं आया। पुलिस एक-एक कर घटनाओं को अंजाम देती रही।

हौसला बुलंद पुलिस ने 21 अगस्त 2002 को बीजपुर थाना क्षेत्र के महुली के जंगल में दो युवकों को पुनः नक्सली बताकर मार दिया। इसमें एक चपकी निवासी महेश्वर गोड़ था, जिसका लड़का बसंत चार माह पूर्व करहिया मुठभेड़ में मारा गया था। इसी बीच कुछ युवक चन्दौली और मीजपुर जिलों में भी मारे गये। इस मामले को राष्ट्रीय वन जन श्रमजीवी मंच,भाकपा (माले) के ने जोर-शोर से उठाया। इस मुद्दे पर भी कैमूर क्षेत्र मज़दूर महिला किसान संघर्ष समिति एवं राष्ट्रीय वन जन श्रमजीवी मंच द्वारा सन् 2002 दिसम्बर में दो दिवसीय मानवाधिकार सम्मेलन के तहत जन सुनवाई की गई। जिसमे देश के जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।

जनसुनवाई में फर्जी मुठभेड़ में मारे गये लोगों के परिजन,पोटा कानून के तहत निरुद्ध बेगुनाह दलित-आदिवासी और भूमि विवाद से सम्बन्धित दलित आदिवासियों ने अपने वक्तव्य प्रस्तुत किये। इस सम्मेलन के बाद 2003में बसपा सरकार के सत्तासीन होते ही तमाम 42 पोटा कानून के केसों  को वापिस ले लिया गया। मानवाधिकार संगठनों के लगातार आवाज़ उठाने पर भी मानवाधिकार हनन के मामले थमे नहीं।

नौ  मार्च 2003 को राबर्ट्सगंज कोतवाली पुलिस ने कुसुम्हा गॉंव निवासी श्यामबिहारी और गोइठहरी गॉंव निवासी कान्ता को परसौना गॉंव के जंगल में घाघर नदी के किनारे मार गिराया। पुलिस का कहना था कि यह दोनों नक्सली भवानीपुर घटना की बरसी मनाने के लिए किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की फ़िराक में थे। मारे गये श्यामबिहारी के परिजनों ने जब आवाज़ उठायी तो उसके 11 वर्षीय भाई ओमप्रकाश पर पोटा समेत कई मामले लाद दिये गये। उसके चाचा हनुमान, चचेरे भाई विपिन और  9 वर्षीय सुशील को पुलिस अभिलेखों में हार्डकोर नक्सली बना दिया गया।

उसके बाद ये सभी नामजद लोग अपना घरबार  छोड़कर फरार हो गये। 2007में विपिन के भी मुठभेड़ में मारे जाने का दावा पुलिस ने किया। हनुमान, ओमप्रकाश जमानत पर रिहा हैं। नवम्बर 2003 में सुकृत पुलिस चौकी क्षेत्र के चहलवा के जंगल में जगलाल उर्फ गौरी नामक युवक को मारा गया। अक्टूबर 2005 में नौगढ़ में अशोक कोल को मारा गया। 23 अप्रैल 2005 को चोपन थाना क्षेत्र के भरहरी गॉव के जंगल में सूरज कोल और रामवृक्ष कोल को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया।

फर्जी  मुठभेड़  में  मारा गया कमलेश चौधरी
जिन पुलिसवालों पर निर्दोष युवकों की हत्या के आरोप लगे था, उनके कंधे पर एक-एक स्टार बढ़ा दिये गये। कथित मुठभेड़ों को सबसे बड़ी सफलता मानकर महकमे में विजयमल यादव, गोरख यादव, रामप्रगट यादव को इन्स्पेक्टर बना दिया। कुछ सिपाहियों का भी ओहदा बढ़ा दिया गया। इसी तरह मई 2006में माची थाना क्षेत्र के महुली गॉंव में जयप्रकाश धांगर,नवम्बर 2008 में शत्रुघ्न और  9 नवम्बर 2009 को चोपन थाना क्षेत्र में डेढ़ लाख के इनामी कमलेश चौधरी को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया। जबकि कमलेश चौधरी को झारखंड  पुलिस ने सोनभद्र पुलिस को सौंप दिया था जिसको सूबे के एक आला अफसर ने स्वयं स्वीकारा,लेकिन उस पर केस चलाने से पहले ही उसे मार दिया गया।

इस मुठभेड़ पर भी तमाम मानवाधिकार संगठनों ने सवाल खड़े कर दिये हैं। अब जबकि रनटोला मुठभेड़ काण्ड में 14 पुलिसकर्मियों को सजा हो चुकी है, तो एक बार फिर इलाके में हुई सभी मुठभेड़ों की नये सिरे से जॉंच कराने की आवाजें उठने लगी हैं। सवाल उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश सरकार 50 से भी ऊपर दलित एवं आदिवासी युवकों के मारे जाने की जॉंच कराकर उनके परिवार के लोगों के ऑसू पोछने का काम करेगी?

इन सब मामलों की पड़ताल करने से एक बात तो साफ़-साफ़ समझ में आती है कि राज्यों द्वारा सुनियोजित तरीके से हिंसा फैलायी जाती है, नहीं तो महाराष्ट्र में एनकाउन्टर गुरू प्रदीप शर्मा और सोनभद्र में एनकाउन्टर विशेषज्ञ कई दरोगाओं की तैनाती क्यों की जाती? देश में इसी दौरान पुलिस का असली घिनौना चेहरा डीजीपी राठौड़, प्रदीप शर्मा, एनकाउन्टर  गुरू या फिर रनटोला काण्ड में सज़ा पाने वाले 14 पुलिसकर्मियों  के रूप में खुलकर सामने आया है।

 

विजय विनीत उन पत्रकारों में हैं,जो थानों पर नित्य घुटने टेकती पत्रकारिता के मुकाबले विवेक को जीवित रखने और सच को सामने लाने की चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी निभाते हैं.
  



 
किस्त 1 - फर्जी मुठभेड़ के 14 बहादुरों को आजीवन कारावास
किस्त 2 - और दलित बध का सिलसिला कभी नहीं थमा
 किस्त ३-  ऐसी मुठभेड़ें तो चलती रहेंगी !