दादी को भी खाना नहीं मिलता। मां खाना बनाकर पहले दादा, भाई-बहनों को खिलाती फिर दादी, मुझे और अपने को परोसती थी। हमेशा मां और दादी के खाते-खाते खाना कम हो जाता ...
अजय प्रकाश
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के नारायणपुर गांव में मजदूर परिवार से ताल्लुक रखने वाली 30 वर्षीय उर्मिला की भूख से मौत गयी। उर्मिला की मौत नये अनाज के आवक और किसानों की समृद्धि के लिए 14 जनवरी को मनाये जाने वाले पर्व ‘मकर सक्रांति’की रात हुई। करीब एक महीने पहले से लगातार खाने के अभाव के चलते उर्मिला का शरीर फूलता चला गया था और वह बीमार रहने लगी थी। उर्मिला की सास जो खुद भी मरने के कगार पर हैं कहती हैं, ‘अरे हमार पतोहिया खइला बिना मर गयील।’ ग्रामीणों के मुताबिक जिस रात उर्मिला की मौत हुई उस रात भी घर में खाना नहीं पका था।
परिवार के मुखिया और उर्मिला के ससुर दर्शन विश्वकर्मा जिनकी उम्र करीब 70 वर्ष है, गांव में लोहार का काम करते हैं। खेती के औजारों के लिए आधुनिकतम मशीनों के बढ़े इस्तेमाल के बाद इन दिनों उनकी दैनिक आमदनी दस रूपये भी रोजाना नहीं हो पाती है। पांच बच्चों की मां उर्मिला के पति,घर की माली हालत से निपटने के लिए गुजरात के सूरत शहर काम की तलाश में कुछ महीने पहले ही गये थे। साथ में 12 वर्षीय अपने विकलांग बेटे को भी ले गये थे जिससे गांव में खाने का खर्चा कम आये और विकलांग बेटा भी उनकी कमाई का जरिया बने।
तीन बरस के दो जुड़वा बच्चों समेत कुल चार बच्चों के साथ उर्मिला गांव में ही रह रही थी। रहने के लिए एक खपड़ैल का कमरा होने की वजह से उर्मिला के ससुर दर्शन और उनकी पत्नी मड़ई में रहते थे। मड़ई के एक हिस्से में गाय बंधती है, दूसरे तरफ औजार बनाने की भट्ठी है और वहीं पर दर्शन और उनकी पत्नी भी सोते हैं।
खुरपी-हंसुआ बना-पीटकर जो पैसे दर्शन को मिलते थे उससे बहू का इलाज कराते थे। दवा और भूख की भरपायी के चक्रव्यूह में दर्शन विश्वकर्मा की 17 कट्ठा जमीन बंधक हो गयी है है और वे सूदखारों के कर्जदार भी हैं।
उर्मिला की सबसे बड़ी बेटी 11वर्षीय कविता मां के मरने के बाद तीन छोटे भाई बहनों को संभाल रही है। गांव के सरकारी माध्यमिक स्कूल के छठी कक्षा में पढ़ने वाली कविता को जिंदगी की जरूरतों ने कैसे एक मां के एहसास से भर दिया है, उसका एक अहसास कविता से हुई बातचीत में उभरकर आता है...
आपका क्या नाम है?
कविता.
लोग आपके घर पर क्यों जुटे हैं?
मेरी मां मर गयी है ...
आपकी मां कैसे मर गयी?
रात को सोये-सोये।
आपलोग रात में क्या खाना खाकर सोये थे?
पीसान (आटा) नहीं था इसलिए अइला (चूल्हा) नहीं जला था। बगल में जो घर है, वही लायी (मकर सक्रांति पर मुरमुरे के बनने वाले लड्डू) दे गयी थी उसी को खाकर हमलोग सो गये थे।
लायी कौन-कौन खाया था?
मैं और मेरे छोट भाई-बहन।
मां को क्यों नहीं दिया?
दे रही थी,लेकिन वह नहीं खायी। कह रही थी मुंह चल नहीं रहा है। मां रात को बार-बार रो और कराह रही थी।
कुछ बोल भी रही थी?
रात में ये सब (छोटे भाई-बहन) रो रह थे तो कह रही थी ‘चुप हो जा, चुप हो जा।’ काली माई, शिव भगवान का नाम ले रही थी। बार-बार कह रही थी-‘भगवान हमरे लइकन के बल दीहअ (ईश्वर मेरे बच्चों को बल देना)।’
आपसे भी कुछ कहा?
कह रही थी-ठीक से रहना और पापा आयेंगे तो कहना यहीं रहें। यह भी बोली कि इन सब को देखना। फिर हमको नींद आ गयी।
मां के मरने के बारे में कैसे पता चला?
कमरे में मां और हम चार भाई-बहन ही सोये थे। छोटा वाला भाई तेज-तेज रोने लगा तो मैं जगी। मुझे लगा मां अभी सो ही रही है इसलिए मैं उसे जगाने लगी। बहुत देर जगाती रही, पर मां उठी नहीं। फिर मैं दादी को बुला के लायी। दादी भी जगायीं और फिर दादी जोर-जोर से रोने लगीं, तब हमलोग भी रोने लगे। उसके बाद सब कहने लगे कि वह (कविता की मां उर्मिला) मर गयी।
अभी जो घर में अनाज दिख रहा है, वह कहां से आया है?
मां के मरने के बाद एक आदमी दे गया है।
इससे पहले घर में अनाज नहीं था?
नहीं। सिर्फ कल जो लाई लोग दिये हैं वही था ।
सरकारी राशन की दुकान से गल्ला नहीं मिलता?
गल्ला उसी को मिलता है जिसके पास कार्ड होता है। दादा से एक आदमी कह गया है कार्ड अब जल्दी बन जायेगा।
घर में कितने दिन से खाना नहीं था?
जबसे ज्यादा ठंडा पड़ने लगा है तबसे एक ही टाइम खाते थे। पहले आलू खत्म हुआ फिर आटा भी।
एक टाइम खाकर रह जाते थे?
मैं भाई-बहनों को लेकर स्कूल चली जाती थी तो वहां दोपहर का खाना कभी-कभी खा लेते थे। कभी दूसरे लोग गांव वाले भी खिला देते थे। इसलिए घर में एक ही टाइम खाना बनता था।
खाना क्या बनता था?
कभी भात तो कभी रोटी। अभी खेत में साग हुआ है तो रोज साग बनता था। वह भी ठण्ड ज्यादा पड़ने लगी तो स्वेटर या साल नहीं था कि खेत में जाकर साग खोटें (तोड़े)।
रात में सोते थे तो ओढ़ने के लिए क्या था?
एक कंबल।
एक ही कंबल में सभी लोग?
हां। दादी के पास तो वह भी नहीं था। वह चट्ट (बोरा) ओढ़ती हैं। अब तो दादी का शरीर भी मां की तरह ही सूज (फूल) गया है।
दादी भी बीमार हैं तो खाना कौन बनाता था?
मैं ही बनाती थी। दादी से तो कुछ होता ही नहीं। उसको भी खाना नहीं मिलता। पहले मां जब कम बीमार थी तो खाना बनाकर पहले दादा, भाई-बहनों को खिलाने के बाद दादी मुझे और अपने को परोसती थी। हमेशा मां और दादी के खाते-खाते खाना कम हो जाता था। दादी से भी कम खाना मां खाती थी। इसलिए मां का पेट नहीं भरता था और वह खाये बिना ही मर गयी। और मरने के दिन लाई भी नहीं खायी।