मंगर-शनिचर की दूसरी वार्ता आपके सामने है। यह वार्ता हर मंगर-शनिचर को आपके बीच होगी...किस्त - 2
आप कहते हैं कि भू, नि और बा के रहते भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा और फिर भी सबको भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं। का कहीं से कन्फ्यूज हैं...
गजराज
हाल में बीते चंद्रग्रहण की पूर्व संध्या पर मंगर-शनिचर बनारस पहुंचे। मुफ्त की ट्रेन मिल गयी तो वे एक दिन पहले ही चल दिये और अस्सी घाट पर पड़ गये। गंगा को संयोग से साफ और भरपूर पानी से भरा देख दुन्नों में खुशी की लहरी समा गयी और वे छपाक से छलांग लगा डाले। घंटे भर गंगा में आनंद लेने के बाद बाहर निकले तो मंगर ने कहा, ‘अबे शनिचर, भोजन का इंतजाम दिमाग में तो हो गया।’
शनिचर- ज्यादा भाववादी न बनो बच्चा, बात सीधी कहो?
मंगर- उ तुलसी घाट के बगल में पीली और गुलाबी कोठी तुम्हें दिखायी पड़ रही है, वह संकट मोचन के महंथ की है, जो अपने ही जिले का है। चलो ट्राई मारते हैं, मामला बन जायेगा।
दुन्नों सटासट कपड़ा धारण किये और यह सोचकर बढ़ने लगे कि समय से पेट भर जाये,फिर घाट की सीढ़ियों पर नींद अच्छी आये। मंगर ने कहा भी, ‘कदम तेज धरो शनिचर, जल्दी से पेट में अन्न भरकर तत्काल प्रभाव से यहां पलट आना है और कल पूरा दिन बनारस भ्रमण का आनंद लेना है।’
तभी अचानक मंगर बोला -‘अबे ई देखो का हो रहा है!’ मंगर ने शनिचर से उचक कर कहा और दोनों उस ओर चल पड़े। सीढ़ियों पर चढ़ते और पढ़ते जा रहे थे -भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हों, लोकपाल बिल लागू हो,कालाधन के खिलाफ...। बैनर पर छपी इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद दोनों उस तरफ बढ़े,जहां एक दढ़ियल-छड़ियल (चेहरे पर दाढ़ी और बदन छड़ की तरह) नौजवान कुछ लोगों को समझाने की कोशिश में लगा था।
मंगर-शनिचर को दढ़ियल-छड़ियल (दछ)की ओर आते देख उन लोगों ने दछ को इशारा कर कहा, ‘अब 'इन्हें भी समझाओ भैया।’
दछ -हां साथी,हम उन्हें भी समझायेंगे। आप उसकी चिंता न करें,पहले आप तो समझ लें कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को आगे ले जाते हुए व्यवस्था परिवर्तन में कैसे बदलना है। आपलोग अपना मोबाइल और पता लिख दें। हम लोगों के साथी आपसे मिलकर बताएँगे कि कैसे अन्ना हजारे और रामदेव की नकली लड़ाई से बाहर निकल क्रांतिकारी विकल्प तलाशना है।
समझने वाले ‘दछ’ के कहे अनुसार कुछ करते, उससे पहले ही मंगर-शनिचर ‘दछ’ से सटकर खड़े हो गये और उनके हाथ में पड़े परचों को काबिल निगाहों से निहारने लगे। इस सीन को ‘दछ’ ताड़ गये और वे संयत ढंग से उन दोनों की तरफ मुखातिब हुए।
‘दछ’ को अपनी ओर मुखातिब होते देख मंगर ने कहा, ‘अरे देखिये, वो लोग भगे जा रहे हैं।’
दछ- हमलोग किसी को पकड़ते नहीं हैं। पकड़ती और जकड़ती तो यह व्यवस्था है, जो सबको गुलाम बनाकर अधिकारों के प्रति जागरूक होने से रोकती है। हमलोग सिर्फ लोगों को अपने साथ खड़ा होने के लिए कहते हैं।
‘दछ’ के इतना बोलने पर मंगर उन्हें रोक के बोला, ‘हम लोग तो अभी आपके साथ ही खड़े हैं, लेकिन वो लोग तो चले गये जिन्हें आप पहले से यहां खड़ा किये थे। देश भर में लोग आपके साथ क्या इसी तरह खड़े हो रहे हैं?’
दछ- देखिये हमने आपसे पहले ही कहा कि यह एक व्यापक संघर्ष है, जिसमें लोग आते-जाते रहते हैं। हो सकता है आप सुनकर चलते बनें, तो फिर हम अगले से अपनी बात कहेंगे।
शनिचर- यानी आप हमारे गांव के पंडितों की तरह कथा बांचते रहते हैं, चाहे गाय सुने या गोबर ?
दछ- इसे आप जैसे लोग कथा कहते हैं और हम जैसे क्रांतिकारी फैसलाकून लड़ाई की तैयारी। भूमंडलीकरण, निजीकरण और बाजारीकरण के रहते हुए भ्रष्टाचार कभी नहीं खत्म हो सकता।
मंगर-फिर तो आप ठग निकले। आप कहते हैं कि भू, नि और बा के रहते भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा और फिर भी सबको भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा भी कर रहे हैं। का कहीं से कन्फ्यूज हो रहे हैं..। आखिर पहले भू, नि और बा को ही खत्म क्यों नहीं कर लेते।
दछ- मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के जनवादी छात्र संगठन से आया हूं और मैं वहां पीएचडी कर रहा हूं। वहां पर हम लोगों का कई विश्वविद्यालयों में व्यापक संघर्श चल रहा है और हजारों की संख्या में छात्र हमसे इस आंदोलन में जुड़ रहे हैं।
शनिचर- यह काम आप कब से कर रहे हैं, आपको कितनी आमदनी हो जाती है ?
दछ- आप दोनों कैसे सवाल कर रहे हैं। कुछ संगठन आदि की समझ है या नहीं। कभी गांव-देहात देखा है कि वहां गरीबों की क्या स्थिति है। अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के बारे में कुछ जानते हैं। कमेटी कहती है कि देश की अस्सी फीसदी जनता बीस रुपये में रोज गुजारा करती है। शिक्षा के बाजारीकरण के कारण इंजीनियरिंग,मेडिकल कॉलेजों की शिक्षा बड़े बाप के बेटों की बपौती बन गयी है। गरीबों को पढ़ने की सुविधा नहीं है,ईलाज नहीं है। इसलिए भगत सिंह के सपनों का भारत बनाने के लिए वैसे युवाओं की आवष्यकता है, जिनके रगों में पानी नहीं खून हो।
शनिचर-देश में ज्यादातर लोगों के पास खाने का पैसा ही नहीं है तो खून वाले युवा मिलेंगे कैसे? उसके लिए तो आपलोगों को सेठियों के लौंडों को पोटना पड़ेगा।
मंगर को लगा कि षनिचर कुछ हॉर्ड टॉक में उलझ रहा तो उसने सौम्य एहसास के साथ कहा- लेकिन बीस रुपये वाले इंजीनियरिंग-मेडिकल में कैसे पढ़ेंगे?
दछ-अब आपने सही सवाल पूछा है। हमारी लड़ाई है कि शिक्षा का समाजवाद हो। निजीकरण के कारण फीस भरना गरीब के बस का नहीं रह गया है।
शनिचर-लेकिन फीस की बात तो बाद में है। पहला सवाल तो है कि जो बीस रुपया कमायेगा वह बेटे-बेटियों को अपने मंडल जैसे गोरखपुर आदि में कैसे भेजेगा। काहे कि उससे पहले कोई मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं है जिले में। और आप कह रहे हैं कि देश की अस्सी प्रतिशत आबादी बीस रुपया रोजाना कमाती है। यानी साफ है कि देश की अस्सी फीसदी आबादी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा संस्थानों में नहीं भेज सकती,चाहे वह प्राइवेट हों या सरकारी। अगर मैं आपकी बात ठीक से समझ पा रहा हूं तो आप समाज के बीस फीसदी लोगों के लिए लड़ रहे हैं और व्यापक एकता बना रहे हैं।
दछ- उफ...दरअसल आप जैसों लोगों को समझाना मुश्किल होता है,जो सिर्फ बात के लिए बात करते हैं और लुंपेन सर्वहारा होते हैं। हम लोग क्रांतिकारी समाज के निर्माण के लिए लड़ रहे हैं और बीस फीसदी को उखाड़ कर अस्सी फीसदी की सत्ता बनाने के लिए।
इतना कहने के साथ ‘दछ’ गुस्से में जान पड़े और वे दूसरे झुंड को समझाने चल पड़े। इधर मंगर-शनिचर ‘व्यापक’, ‘संघर्श’, 'खड़ा', 'लड़ाई', ‘खिलाफ’ ' भू-नि-बा' और सबसे दिलचस्प ‘लुंपेन सर्वहारा’ का विश्लेशण करते हुए तेज सीढ़ियां चढ़ने लगे ...।