इलाहाबाद रेल मंडल के अंतर्गत होने वाले उपरोक्त दोनों ही हादसे इसलिए और भी अधिक चौंकाने वाले हैं क्योंकि इलाहाबाद रेल मंडल,रेल ट्रैक के रख रखाव के मामले मे कई बार अन्य रेल मंडलों में सबसे अग्रणी रह चुका है...
निर्मल रानी
मात्र 48घंटे के भीतर तीन रेल दुर्घटनाएं घटित होने के बाद रेल यात्रियों को लेकर बड़े सवाल उठ खड़े हुए हैं. पहली घटना 7 जुलाई को देर रात उस समय घटी जबकि छपरा-मथुरा एक्सप्रेस ट्रेन ने इटावा के समीप एक फाटक रहित रेलवे क्रासिंग पर एक खचाखच भरी यात्री बस को रौंद डाला। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार रेलगाड़ी इस यात्री बस को आधा किलोमीटर दूर तक-अपने साथ खींच कर ले गई। नतीजतन 37बस यात्री दुर्घटना में मारे गए जबकि अनेक बस यात्री बुरी तरह ज़ख्मी हो गए। हादसे के दूसरे दिन गोवाहाटी-पुरी एक्सपे्रस पटरी से उतरकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
इस हादसे में आतंकवादी कार्रवाई होने का भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है। और इस दुर्घटना के मात्र कुछ ही घंटों बाद हावड़ा-कालका मेल इलाहाबाद रेल संभाग के अंतर्गत पडऩे वाले मलवां रेलवे स्टेशन के पास एक बड़े हादसे का शिकार हो गई। तीव्र गति से जा रही कालका मेल के 14 डिब्बे अचानक रेल पटरी से नीचे उतर गए और काफी दूर तक रगड़ते हुए चले गए। इस दर्दनाक हादसे में 80 लोगों के मारे जाने का समाचार है, जबकि 100 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे हैं।
ग़ौरतलब है कि इलाहाबाद रेल मंडल के अंतर्गत होने वाले उपरोक्त दोनों ही हादसे इसलिए और भी अधिक चौंकाने वाले हैं क्योंकि इलाहाबाद रेल मंडल,रेल ट्रैक के रख रखाव के मामले मे कई बार अन्य रेल मंडलों में सबसे अग्रणी रह चुका है। बेशक आज भारतीय रेल, शताब्दी, दूरंतो,संपर्क क्रांति तथा स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस जैसी कई तीव्रगामी रेल गाडिय़ों से आने रास्ता है.दिल्ली से हावड़ा तथा दिल्ली से मुंबई आने जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस रेलगाडिय़ों में से दिल्ली-हावड़ा-दिल्ली राजधानी मेल इसी इलाहाबाद मंडल के रेल ट्रैक को अपनी तीव्रगति से पार करती थी, परंतु इस प्रकार का हादसा इस ट्रैक पर कभी सुनने को नहीं मिला था.
रेल हादसों के बाद तो रेल सुरक्षा विभाग को ऐसे उपाय करने चाहिए कि भविष्य में इस प्रकार के हादसे पेश न आएं परंतु इसके बजाए लगभग प्रत्येक हादसे के बाद यही देखा जाता है कि रेल विभाग के कर्मचारी तथा इसके अंतर्गत् आने वाले अलग-अलग सेक्शन के लोग एक-दूसरे पर जि़म्मेदारियां मढऩे का काम करने लग जाते हैं।
बेशक रेल विभाग, रेल डिब्बों,माल गाडिय़ों के डिब्बों तथा रेल इंजन के रखरखाव की व्यवस्था करता है। परंतु लंबी दूरी पर चलने वाली रेलगाडिय़ों के रैक की मशीनी व तकनीकी देखभाल के लिए तथा उसकी गड़बडिय़ों की जांच करने हेतु रास्ते में कोई व्यवस्था नहीं की जाती। सिवाए इसके कि कहीं-कहीं स्टेशन पर ट्रेन के ब्रेक शू केवल नज़रों से चैक किये जाते हैं अथवा वैक्यूम पाईप या बिजली या पानी जैसी आपूर्ति के बाधित होने संबंधी शिकायतें दूर की जाती हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक दो डिब्बों के जोड़ तथा कमानी व व्हील एक्सेल आदि की जांच पड़ताल की कोई व्यवस्था स्टेशन पर नहीं होती। लंबी रेलगाड़ी होने के नाते बोगियों में अथवा डिब्बों के नीचे होने वाली गैर ज़रूरी आवाज़ की भी जानकारी ड्राईवर अथवा गार्ड को चलती गाड़ी में नहीं मिल पाती।
उदाहरण के तौर पर यदि कोई तेज़ रफ्तार ट्रेन किसी एक स्टेशन से छूटकर अगले निर्धारित स्टेशन पर पहुंचने के लिए अपना सफर तय करती है उस दौरान इस यात्रा के बीच के किसी ऐसे रेलवे स्टेशन पर उस समय जांच की जानी चाहिए जबकि वह अपनी निर्धारित तीव्र गति से स्टेशन को पार कर रही हो। उस समय तेज़ रफ्तार से आने वाली इस ट्रेन के दोनों ओर तैनात कुशल तकनीशियन द्वारा दूर से आ रही रेलगाड़ी की चाल उसकी लहर व उसके नीचे से निकलने वाली अवांछित आवाज़ों तथा ईंजन व गार्ड के मध्य के सभी डिब्बों के बीच के झटकों व उनके परस्पर खिंचाव आदि पर पैनी नज़र रखनी चाहिए।
साथ ही साथ जिस ट्रैक से वह तीव्र गति ट्रेन गुज़र रही हो उस पर भी पूरी चौकस नज़र रखी जानी चाहिए और यदि इस रेल के गुज़र जाने पर यह कुशल रेल तकनीशियन यह महसूस करते हैं कि इस रेलगाड़ी में कुछ तकनीकी खराबी होने का संदेह है तो इसकी सूचना अगले उस स्टेशन को दे देनी चाहिए जहां अमुक रेलगाड़ी को रुकना है। इतना ही नहीं बल्कि कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि ट्रेन के प्लेटफार्म पर पहुंचने व रुकने से पहले ही रेल तकनीशियन उस प्लेटफार्म पर पहुंच जाएं जहां वह ट्रेन रुकने वाली है। फाल्ट के संबंध में ट्रेन ड्राईवर को भी अवश्य बता देना चाहिए।
लाखों कलपुर्जे तथा हज़ारों टन वज़न लेकर दौडऩे वाली यह रेलगाड़ी जहां यात्रियों को उनकी मंजि़लों तक पहुंचाती है तथा पूरे देश में लगभग सभी प्रकार की मानव की ज़रूरतों संबंधी सामग्रियां इधर-उधर पहुंचाती है वहीं यह व्यवस्था पूरी ईमानदारी,समर्पण,चौकसी,पूरी जि़म्मेदारी,भरपूर कौशल तथा उच्च श्रेणी के निरंतर तकनीकी रखरखाव की भी मोहताज है। लिहाज़ा यदि भारतीय रेल को विश्व स्तरीय रेल का तमगा देना ही है तो सुरक्षा व्यवस्था जैसे सबसे ज़रूरी मानदंडों पर भी इसे विश्वस्तरीय ही बनाना होगा।