(इस रचना के सभी पात्र और घटनाएँ काल्पनिक है इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से समानता मात्र संयोग है )
हिमांशु कुमार
एक राज्य था पच्चीसगढ़. उसका मुखिया था दमन सिंह. सेनापति का नाम था विधिभंजन. विधिभंजन राजा का मुंहलगा और अतिप्रिय था. वह राजा की खुशी के लिए राज्य के सुचारू संचालन हेतु बनाये गए सारे नियमों को तोड़ देता था. इसलिए राजा उसे बहुत पसंद करता था. एक बार राजा के दरबार में कुछ परदेसी व्यापारी आये.उन्होंने राजा को कीमती रत्न और माणिक भेंट किये और कहा की महाराज आपके राज्य के जंगलों में मिटटी के नीचे कुछ मूल्यवान धातुएं हैं.
अगर आप की कृपादृष्टी हो जाए तो हम लोग वो धातुएं खोद लेंगे और बदले में आपको कर भी दे देंगे. राजा ने उन व्यापारियों को ऐसा करने की अनुमति दे दी. व्यापारी अपने यन्त्र आदि लेकर जब धातुएं खोदने जंगल में पहुंचे तो देखा की जंगल में धातुओं के ऊपर तो जंगली लोग रहते हैं. विदेशी व्यापारियों ने राजा से कहा की क्या हम अपने देश से सेना लाकर इन जंगलियों को मार सकते हैं? राजा ने कहा कि नहीं इससे प्रजा में असंतोष फ़ैल जाएगा इसलिए आपका यह कार्य हमारी सेनाये कर देंगी. राजा ने सेनापति विधिभंजन को बुलाया और कहा की राज्य की सेना लेकर वन में जाओ और इन व्यापारियों के सुगम व्यवसाय हेतु वन में रहने वाले जंगलियों को उन धातुओं के ऊपर से हटा दो.
वैसे भी ये जंगली हमें ना तो कर देते हैं ना ये हमारी तरह सभ्य हैं.इनकी भाषा भी हमारे दरबार में कोई नहीं जानता. इन लोगों के साथ बातचीत भी करना मुश्किल है. इसलिए इन्हें इस राज्य से बाहर खदेड़ दो.सेनापति विधिभंजन ने अपनी सेनाओं की एक टुकड़ी को इन जंगलियों को वहां से खदेड़ने के लिए भेजा. जंगलियों ने अपनी शिकार करने की तकनीकों का प्रयोग करके सेनापति की सेना की टुकड़ी को मार गिराया.इस पर राजा ने क्रुद्ध होकर सेनापति को पूरी सेना लेकर इन जंगलियों के सफाए के लिए भेज दिया.
वैसे भी ये जंगली हमें ना तो कर देते हैं ना ये हमारी तरह सभ्य हैं.इनकी भाषा भी हमारे दरबार में कोई नहीं जानता. इन लोगों के साथ बातचीत भी करना मुश्किल है. इसलिए इन्हें इस राज्य से बाहर खदेड़ दो.सेनापति विधिभंजन ने अपनी सेनाओं की एक टुकड़ी को इन जंगलियों को वहां से खदेड़ने के लिए भेजा. जंगलियों ने अपनी शिकार करने की तकनीकों का प्रयोग करके सेनापति की सेना की टुकड़ी को मार गिराया.इस पर राजा ने क्रुद्ध होकर सेनापति को पूरी सेना लेकर इन जंगलियों के सफाए के लिए भेज दिया.
विधिभंजन स्वयं तो राजधानी में ही बैठा रहा और सैनिकों को जंगल में भेज दिया.सैनिकों ने कुछ जंगली युवकों को घेर कर पकड़ लिया और उनसे कहा की देखो तुमने हमारी सेना के कुछ सैनिकों को मार डाला है हम चाहें तो तुम्हें तत्काल मार सकते हैं, लेकिन अगर तुम हमारी मदद करोगे तो हम तुम्हें स्वर्ण मुद्राएँ भी देंगे.इसके अतिरिक्त तुम जंगलियों को लूट पाट कर जितना चाहो धन एकत्र कर लेना. जो भी तुम्हारे कृत्यों का विरोध करे उसका अथवा तुम जिसका चाहो वध भी कर सकोगे. राज्य तुम्हे इसके लिए कोई दंड नहीं देगा.
राज्य का दंड विधान तुम्हारे किसी भी अपराध पर लागू नही होगा. इसके उपरांत इन जंगली युवकों की मदद से विधिभंजन के सैनिको ने जंगलियों पर जोरदार हमला बोल दिया.राजा की सेना ने जंगलवासियों की झोपडीयों और बस्तियों में आग लगाना उनकी महिलाओं की अस्मत लूटना और और उनके घर का माल असबाब लूटना प्रारम्भ कर दिया.सैनिकों के इन अत्याचारों से बचने के लिए अनेकों जंगली लोगों ने अपनी बस्तियां छोड़ कर घने वनों में शरण ले ली. कुछ जंगली युवकों ने सैनिकों से लुटे हुए अस्त्र शस्त्रों की मदद से एक अपनी सशस्त्र टुकड़ी भी बना ली और घात लगा कर राजा के सैनिकों पर हमला करने लगे.
राजा ने एक कुटिल चाल खेली उसने नगर में रहने वाले नागरिकों से कहा की वन में रहने वाले ये जंगली लोग बगावत पर उतर आये हैं और स्वयं राजा बनने का सपना देख रहे हैं, इसलिए कोई भी सभ्य व्यक्ति इन वनों की तरफ नहीं जायेगा तथा इन जंगलियों के पक्ष में एक भी शब्द नहीं बोलेगा, अन्यथा ऐसे व्यक्ति को राजद्रोह का दंड मिलेगा. राज्य में एक एक वैद्य भी रहता था. उसका नाम था गजानन जेन. उसने इन जंगलियों और राजा के सैनिकों के बीच होने वाले युद्ध के विषय में सत्य जानने का निश्चय किया.वो अपने कुछ मित्रों के साथ राजा को सूचित किये बिना वन में गया. वहां उसने जंगलवासियों की जली हुई बस्तियां देखीं. उसने कुछ जंगलियों से बात भी की.
जंगलियों ने उस वैद्य को अपने ऊपर हुए अत्याचारों के विषय में बताया.वैद्य ने नगर में लौट कर एक बड़ी सभा बुलाई.उस सभा में वैद्य ने राजा को जंगलियों की दुर्दशा के लिए उत्तरदायी बताया और सेना को वनों में से वापिस बुलाने की मांग रखी. सभा में व्यापारियों के अनुचर और राजा के गुप्तचर भी उपस्थित थे.उन्होंने दरबार में जाकर राजा के कान भरे की ये वैद्य जंगली बागियों के साथ मिल कर आप का राज्य छीनने का षड़यंत्र कर रहा है.राजा ने तुरंत वैद्य को कारागार में डालने का आदेश दिया और उसे राजद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास का दंड दे दिया.
राजा का एक मंत्री था जिसका नाम था सनकी राम भंवर. उसका एक लम्पट पुत्र था. विदेशी व्यापारियों ने मंत्री व उसके पुत्र को स्वर्ण मुद्राओं और युवा कन्याओं के संसर्ग का प्रलोभन दिया. मंत्री और उसका पुत्र विदेशी व्यापारियों के व्यवसाय हेतु जंगलियो की भूमि कुटिल रीती से व्यापारियों के लिए षड़यंत्रपूर्वक हडपने लगा.मंत्री के पुत्र की इन गतिविधियों के विषय में सेनापति को सूचना मिली. सेनापति मन ही मन इस मंत्री के प्रति शत्रुता रखता था. उसे अपने पुराने शत्रु पर वार करने का अच्छा अवसर मिल गया.उसने अपने ही कुछ अनुचरों से कह कर मंत्री के पुत्र के विरुद्ध एक दंडनीय अपराध करने का प्रकरण बना कर मंत्री के उस पुत्र को कारागार में डालने का उपक्रम करने लगा.
मंत्री सनकी राम भंवर भी अति शक्तिशाली था .उसकी पहचान नाकपुर नगर में स्थित राजा के धर्मगुरु के आश्रम के पुरोहितों से भी थी.राजा के इस धर्मगुरु के आश्रम का नाम था "राजकीय सशत्र सेवक संघ". धर्मगुरु को जब अपने प्रिय शिष्य मंत्री सनकी राम भंवर के मुसीबत में पड़ने के विषय में पता चला तो तो उसने तत्काल राजा को सेनापती को पद से हटाने के लिए आदेश दिया. राजा सेनापती को हटाने का निर्णय लेने में भयभीत था,क्योंकि सेनापती को राजा की समस्त अनैतिक गतिविधियों की जानकारी थी.इसलिए राजा नहीं चाहता था की सेनापती राज्य छोड़ कर जाए. इसलिए राजा ने सेनापती को उसके पद से तो हटाया परन्तु उसे एक दूसरे लाभदायक पद पर नियुक्त कर दिया. ...क्रमश.
दंतेवाडा स्थित वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख और सामाजिक कार्यकर्त्ता हिमांशु कुमार का संघर्ष,बदलाव और सुधार की गुंजाईश चाहने वालों के लिए एक मिसाल है.