महिला अपहरण की तरह ही बलात्कार व अन्य महिला हिंसा की घटनाएं भी महिला सशक्तिकरण में बड़ी बाधा है...
डा. गीतांजलि वर्मा
महिला सशक्तिकरण और समानता व महिलाओं के सामाजिक कल्याण के लिए देश में अनेक योजनाएं व कानून है,लेकिन इसके बावजूद भी महिला सशक्तिकरण में आज भी सबसे बड़ी बाधा महिला हिंसा बनी हुई है। हालाँकि घरेलू महिला हिंसा अधिनियम बनने, राष्ट्रीय महिला आयोग, राज्य महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं के विकास के बाद महिला हिंसा,उत्पीड़न की सुनवाई के लिए विभिन्न मंच तो बने हैं लेकिन महिला हिंसा में कमी नहीं आयी है।
बीसवी शताब्दी में महिलाओं की समानता को लेकर कुछ जागृति आने लगी थी और सभी महत्वपूर्ण पक्षों को स्वीकार करना पड़ा था कि महिला-पुरुष बराबर हैं . जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रत्येक नागरिक के सम्मान और समानता की स्पष्ट व्याख्या भी की ,मगर हम सिर्फ महिलाओं के हुए अपहरण के अपराध पर ही केन्द्रीत रहें तो, यही आंकड़े बेहद डरावने लगते हैं।
देश भर में हुई महिलाओं के अपहरण की 21726वारदातें उत्तर प्रदेश की है। नेशनल क्राइम रिकोर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)की ताजा रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार का नंबर आता है। यह आंकड़े तो सिर्फ वे हैं जो थानों में दर्ज होते हैं। ऐसे बहुत से गुमनाम मामले भी है जो थाने की चैखट पर ही दम तोड़ देते हैं।
डेढ़ माह पूर्व जारी हुई राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट क्राइम इन इंडिया 2009के अनुसार 21726 अपहरणों में 5078 उत्तर प्रदेश के ही है, जो लगभग कुल संख्या का बीस फीसदी है। दूसरे स्थान पर राजस्थान प्रदेश में महिलाओं के अपहरण की संख्या 2310 है। पश्चिम बंगाल में 2187 है। असम में 2092, बिहार में 1986 और आन्ध्रप्रदेश में 1526 महिलाओं का अपहरण किया गया।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने देश के 70बड़े शहरों में हुए महिलाओं के अपहरण के अपराधों की समीक्षा की,जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ महिलाओं के अपहरण के 79 मामले दर्ज हैं, कानपुर में 227, आगरा में 127 व लखनऊ में 239 महिलाओं के अपहरण के मामले दर्ज है। देश की राजधानी दिल्ली में 1379 महिलाओं के अपहरण के मामले दर्ज है।
बीसवी शताब्दी में महिलाओं की समानता को लेकर कुछ जागृति आने लगी थी और सभी महत्वपूर्ण पक्षों को स्वीकार करना पड़ा था कि महिला-पुरुष बराबर हैं . जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रत्येक नागरिक के सम्मान और समानता की स्पष्ट व्याख्या भी की ,मगर हम सिर्फ महिलाओं के हुए अपहरण के अपराध पर ही केन्द्रीत रहें तो, यही आंकड़े बेहद डरावने लगते हैं।
देश भर में हुई महिलाओं के अपहरण की 21726वारदातें उत्तर प्रदेश की है। नेशनल क्राइम रिकोर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)की ताजा रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार का नंबर आता है। यह आंकड़े तो सिर्फ वे हैं जो थानों में दर्ज होते हैं। ऐसे बहुत से गुमनाम मामले भी है जो थाने की चैखट पर ही दम तोड़ देते हैं।
डेढ़ माह पूर्व जारी हुई राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट क्राइम इन इंडिया 2009के अनुसार 21726 अपहरणों में 5078 उत्तर प्रदेश के ही है, जो लगभग कुल संख्या का बीस फीसदी है। दूसरे स्थान पर राजस्थान प्रदेश में महिलाओं के अपहरण की संख्या 2310 है। पश्चिम बंगाल में 2187 है। असम में 2092, बिहार में 1986 और आन्ध्रप्रदेश में 1526 महिलाओं का अपहरण किया गया।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने देश के 70बड़े शहरों में हुए महिलाओं के अपहरण के अपराधों की समीक्षा की,जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ महिलाओं के अपहरण के 79 मामले दर्ज हैं, कानपुर में 227, आगरा में 127 व लखनऊ में 239 महिलाओं के अपहरण के मामले दर्ज है। देश की राजधानी दिल्ली में 1379 महिलाओं के अपहरण के मामले दर्ज है।
महिला अपहरण की तरह ही बलात्कार व अन्य महिला हिंसा की घटनाएं भी महिला सशक्तिकरण में बड़ी बाधा है। बलात्कार के आरोप में तो सजा का प्रतिशत मात्र 4.5ही है। पुरुष समाज की महिलाओं के प्रति हिंसा और अपराध की प्रवृत्ति से समाज का वातावरण भी प्रदूषित होता है। पुरुष वर्ग अपनी सत्ता और पुरुषवादी मानसिकता के कारण विभिन्न तरह की महिला हिंसा को जन्म देता है,जिससे सशक्तिकरण के मार्ग में अवरोध पैदा होता है।
महिलाएं आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है, लेकिन उनके प्रति हिंसा, उनके विकास, आत्म विश्वास में डर पैदा कर रहा है। महिला को शोषण से मुक्ति के लिए समाज के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी सख्ती से आगे आना होगा। क्योंकि महिला हिंसा और उसकी सशक्तिकरण में ये बाधाएं सीधा-सीधा मानव अधिकारों का भी उल्लंघन है।
अधिकतर काफी मामलों में यह भी देखा जाता है कि महिला हिंसा को जन्म पुरुष समाज केवल इसीलिए दे जाता है कि वो उसे पुरुषों की तुलना में निम्न दर्जे का मानता है। महिलाओं को अपने मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए समाज में कानून व हौसलों के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा लेती रहनी होगी।
महिलाएं आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है, लेकिन उनके प्रति हिंसा, उनके विकास, आत्म विश्वास में डर पैदा कर रहा है। महिला को शोषण से मुक्ति के लिए समाज के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी सख्ती से आगे आना होगा। क्योंकि महिला हिंसा और उसकी सशक्तिकरण में ये बाधाएं सीधा-सीधा मानव अधिकारों का भी उल्लंघन है।
अधिकतर काफी मामलों में यह भी देखा जाता है कि महिला हिंसा को जन्म पुरुष समाज केवल इसीलिए दे जाता है कि वो उसे पुरुषों की तुलना में निम्न दर्जे का मानता है। महिलाओं को अपने मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए समाज में कानून व हौसलों के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा लेती रहनी होगी।