ये तस्वीर आज के दैनिक भास्कर में छपी है जो झारखंड के गढ़वा जिले के एसडीओ दफ्तर के सामने कल ली गयी थी। जमीन पर औंधे मुंह पड़ी 80 वर्षीय यह बुढ़िया पिछले 15 दिनोँ से एक कंबल के लिए एसडीओ दफ्तर आ रही थी। लेकिन एसडीओ 15 दिनों में कंबल नहीं जुटा सके और यह बुढ़िया कल एसडीओ दफ्तर के सामने ही मर गयी।
तो आप अपनी सुविधा के लिए इस मरी पड़ी गरीब बुढ़िया को भारत माता कह सकते हैं।
लेकिन मैं इसे गौ माता भी नहीं कह सकता, क्योंकि अभी हमारे देश में हिन्दू ह्रदय इतना कमजोर नहीं हुआ है कि गौ माता का यह हश्र हो।
यह हमारी महान संस्कृति का सूचक है कि गौ हत्या करने वालों की हम गर्व से हत्या कर देते हैं पर इस बुढ़िया की हत्या करने वाले अधिकारियों को हम साहब ही कहेंगे।
आखिर लोकतान्त्रिक भी यही होता है?