Mar 8, 2017

तो इसलिए मान लेंगे सैफुल्ला को आतंकी !

दिल्ली में या दूसरे राज्यों में कश्मीरी होने के आरोप में जो लोग सुरक्षा बलों द्वारा मारे जाते हैं, उनके अंतिम संस्कार भी पुलिस खुद ही करती है। परिवार डर, असुरक्षा के कारण लाश ले जाने नहीं आता या गरीबी इतनी होती है कि उनके लिए संभव नहीं हो पाता...
 
अजय प्रकाश

आतंकी होने के आरोप में मारे गए सैफुल्ला की लाश नहीं स्वीकारने को लेकर जो लोग उसके पिता को बधाई दे रहे हैं, उनलोगों को एक गरीब पिता की मुश्किल भी समझनी चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि उनकी मंशा और पिता की आत्मस्वीरोक्ति के बीच अल्पसंख्यक होने की मजबूरी और गरीबी की एक गहरी रेखा है, जो दिखने में हिंदू—मुसलमान के लिए एक जैसी लगती है पर फर्क इतना बड़ा है कि उस खाई को आजादी का 70 साल भी नहीं पाट पाया है।

बधाई देने वालों की निगाह में सैफुल्ला के पिता ने बेटे की लाश लेने से मना कर वह काम किया है जो मुसलमानों को लेकर इस देश का 'हिंदू विवेक' सोचता है। ​​बधाई देने वालों को लग रहा है कि मोदी युग में ऐसा पहली बार हुआ है। आतंक के आरोप में मारे गए किसी बेटे के खिलाफ एक बाप ने उस तरह से पहली सोचा है, जैसा इस देश का 'सामूहिक विवेक' सोचता है, जैसा मीडिया सोचती है। 
 
हालांकि पहले भी कई बार और कश्मीर में दर्जनों बार परिवारों ने लाश लेने से मना कर दिया है। दिल्ली में या दूसरे राज्यों में कश्मीरी होने के आरोप में जो लोग सुरक्षा बलों द्वारा मारे जाते हैं, उनके अंतिम संस्कार भी पुलिस खुद ही करती है। परिवार डर, असुरक्षा के कारण लाश ले जाने नहीं आता या गरीबी इतनी होती है कि उनके लिए संभव नहीं हो पाता।

बहरहाल 'सामूहिक विवेक' यानी 'हिंदू विवेक' चाहता है कि आतंकवाद या देशद्रोह के जैसे मामलों में अगर कोई सैफुल्ला टाइप नाम उभरे तो उसे तत्काल ठोक दिया जाए, पत्थरों से कुचल दिया जाए या सरेआम चौराहों पर जला दिया जाए। यह उनके लिए न्याय का सबसे वाजिब तरीका है। उसके लिए अदालत, पुलिस, मानवाधिकार, तफ्शीस के सभी दरवाजे बंद कर दिए जाएं। यहां तक कि उसके अपने घर के भी।

और इस बार यही हुआ कि सैफुल्ला के पिता और भाई ने कहा कि एक आतंकी का शव हम नहीं लेंगे। एक गरीब पिता ने घर का दरवाजा भी बंद कर दिया है। आरोपी बेटे को आतंकी मान लिया, न्याय, बहस और संदेह के सभी दरवाजे पिता ने भी ठीक वैसे ही बंद कर दिए जैसे यह बहशी और सांप्रदायिक समाज चाहता है। लेकिन सवाल बड़ा है कि क्या सच में एक पिता ऐसा हो सकता है, क्या सच में कोई बाप अपनी इच्छा से पुलिस, मीडिया और सुरक्षाबलों की भाषा बोल सकता है?

दूसरी तरफ 'सामूहिक विवेक' समझौता ट्रेन बम धमाकों में 67 लोगों की हत्या के आरोपी असीमानंद को लेकर स्वीकार ही नहीं कर पाता कि वह भी आतंकी हो सकते हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह मानते हैं कि हिंदू कभी आतंकी हो ही नहीं सकता। संयोग से यह बयान राजनाथ सिंह ने असीमानंद की गिरफ्तारी के मौके पर ही दिया था। आज असीमानंद को अदालत ने कई मामलों में से एक मामले में बरी कर दिया है।

आपने कहीं कोई चर्चा देखी, कोई सवाल बनते देखा, जबकि असीमानंद ने एक मीडिया रिपोर्ट में बड़ी साफ स्वीकार किया था कि आरएसएस मुखिया मोहन भागवत के आदेश पर समझौता एक्सप्रेस बम धमाकों को असीमानंद और उनके साथियों ने अंजाम दिया था।

और तो और भोपाल में बीजेपी के 11 सदस्य आइएसआइ के एजेंट होने के आरोप में गिरफ्तार किए गए, उन पर कोई 'सामूहिक विवेक' की ओर से बौखलाहट देख रहे हैं। भूचाल ला देने वाली कोई बात आपको नजर आ रही है। कोई कह रहा है कि दामाद क्यों पाल रहे हो, गोली क्यों नहीं मार देते। चौराहों पर लटकाने के लिए कोई प्रदर्शन हो रहे हैं, भक्तों की भीड़ इस मामले में पत्रकारों को ट्रोल कर रही है।

याद होगा कि मीडिया ने बाटला हाउस इनकाउंटर मामले में संजरपुर के एक सपा नेता के बेटे सैफ को गिरफ्तार किया था और वह बाद कई अन्य मामलों में गिरफ्तार हुआ। उसकी गिरफ्तारी के बाद समाजवादी पार्टी को आतंकी पार्टी कहा जाने लगा था, सपा को आतंकियों की नर्सरी तक कहा था संघ और मीडिया ने। पर यहां वह शब्दावली क्यों बदल जाती है? कौन सी ताकत है जो हिंदू आतंक के आरोपियों को लेकर बसंत और मुस्लिम आतंक के आरोपियों के लिए जेठ हो जाती है।

अब बात सैफुल्ला और उसके पिता की।

अगर उसके पिता की ही माने तो सैफुल्ला नल्ला था। मतलब बिना काम का। दो महीने पहले सैफुल्ला घर से मारपीट कर बाहर निकला। परिवार के सामने परिवार पालने की दस मुश्किलें हैं। ऐसे में नल्ले बेटे की लाश लेकर नया झंझट जीवन में कौन बाप मोल लेना चाहेगा। अगर पिता होने के नाते सोच भी ले तो दूसरे भाई चढ़ बैठेंगे, खबरदार जो नल्ले के नाम पर घर को तबाह किया तो। वहीं रिश्तेदारों ने आतंकवाद मामलों में पड़े परिवार वालों की दुर्दशा के पुराने अनुभवों को सुनाया होगा वैसे में किस बाप की हिम्मत होगी जो मरे हुए बेटे के चक्कर में जिंदा लोगों की कब्र खुदवाए।