Aug 16, 2010

सांसदों ने कहा, नहीं चलता परिवार


देश कि कुल आबादी में छह साल से कम   के करीब ५० प्रतिशत बच्चे कुपोषित  हैं,४० करोड़ आबादी  गरीबी रेखा के नीचे है और  और सांसद हैं कि जनता की मेहनत  की कमाई डकारने के बाद भी दरिद्रता का रोना रो रहे हैं.  

जयप्रताप


चौंकिये नहीं,यह सच्चाई है। आज हमारे देश के सांसद कितने गरीब हैं इसका अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि दिन रात जनता के दुख दर्द में शामिल होने के बावजूद इनकी सेलरी मात्र 16,000रुपये ही है। यह अलग बात है कि वह जनता के बीच जाते हैं या नहीं?

वे आम जनता के प्रतिनिधि हैं. इनके करोड़ों के फ्लैट और दो चार महंगी गाडिय़ां, ड्राइवर का वेतन, नौकर-चाकर आदि का खर्चा,क्या 16हजार रुपये में पूरा हो सकता है। यह तो रहा सामान्य खर्चा,बाकी फाइवस्टार होटलों का खर्चा आखिर कहां से आयेगा?कमीशन और अन्य बैक फुट से हुई कमाई करोड़ों अरबों में होती है। लेकिन फिर भी वेतन तो वेतन होता है।हमारे सांसदों का दर्द है   है कि एक सेक्रेटरी का वेतन 80हजार रुपये है और सांसद का मात्र सोलह।

आखिर सेक्रेटरी का काम ही क्या होता है। वह दिन रात किताबें ही तो पढ़ कर आया है। और बैठे-बैठे लेखा-जोखा करता है। कुल मिला कर थोड़ा बहुत देश के हित में काम कर जाता है। जबकि हमारे सांसद तो करोड़ों रुपये खर्च करके चुनाव जीतते हैं और जनता के प्रतिनिधि  माने जाते हैं।  आखिर इस पाप के प्रायश्चित के लिए  पैसों की भी जरूरत तो होती है। इसलिए अब इनकी तनख्वाह पचास हजार रुपये  होने का प्रस्ताव है,लेकिन उतने में भी इन बेचारों का पेट भरने वाला नहीं है। अब इन्हें पांच गुना और चाहिए।

सेलरी के अलावा सांसदों को संसद सत्र के दौरान या हाऊस की कमेटियों की मीटिंग के दौरान हर रोज के हिसाब से 1000रुपये भत्ता मिलता है जिसे दोगुना किया जाने कि मांग है. इसके अलावा संसदीय क्षेत्र का मासिक भत्ता भी 20 हजार से बढ़ाकर 40 हजार करने की मांग कर रहे हैं। ऑफिस भत्ता  के तौर पर भी सांसदों को 20 हजार रुपये मिल रहे हैं लेकिन  इसे भी बढ़ाने का प्रस्ताव है।

अन्य सुविधाओं के तहत सांसद अपनी पत्नी या किसी दूसरे रिश्तेदार के साथ साल में 34 हवाई यात्रा कर सकते हैं। उन्हें किसी भी ट्रेन में किसी भी समय एसी फस्र्ट क्लास में पत्नी समेत यात्रा करने का पास भी मिलता है। इसके अलावा उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान मुफ्त में आवास सुविधा भी मिलती है।

रहा सवाल उनका जिनके ये नेताहैं तो, उन मेहनतकशों का तो  फर्ज ही है कि वे अपने और अपने बीबी बच्चों के पेट पर पट्टी बांध कर देश को आगे बढ़ाने में मदद करें। उन्हें वेतन मजदूरी बढ़ाने की चिंता करने की जरूरत ही क्या हैलेकिन यह सब बातें हमारे सांसदों पर लागू नहीं होतीं। क्योंकि वे बेचारे तो हमारे प्रतिनिधि हैं और हमारा यह फर्ज बनता है कि हम अपना खून पसीना बहाकर उनका ख्याल रखें। इसके लिए अगर हमें भूखे भी रहना पड़े तो गलत नहीं। एक बार हमारे एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था कि देश को आगे बढ़ाने के लिए यदि जनता को अपनी पेट पर पट्टी भी बांधनी पड़े तो उसमें जनता को पीछे नहीं हटना चाहिए। लेकिन यह बात सिर्फ गरीब जनता पर लागू होती है, जनप्रतिनिधि पर नहीं।
वाह मेरे प्यारे गरीब सांसदों,हम आपके दुख दर्द को समझते हैं. आप हमारे भले के लिए  अमेरिका, रूस, चीन, जापान आदि पूरे विश्व में कुछ घंटों में भ्रमण कर आते हैं और लोग हैं कि गांव से 20 किलोमीटर की दूरी पर बसे शहर में जाने के लिए हजार बार सोचते हैं।  उनके पास  किराये के लिए 20 रुपये बस का किराया नहीं होता, इस बारे में सोचते हैं सांसद साहब. 

आपके पर्यावरणविद हो सकता है कहें कि किराया नहीं है,साइकिल तो है। लेकिन साइकिल चलाने के लिए भी तो शरीर में ताकत होनी चाहिए। ताकत आयेगी कहां से?तो आपके डॉक्टर कहेंगे कि हरी सब्जी खाओ,दूध पियो और ताकतवर फल खाओ।

जनाब जरा सोचिए! इस महंगाई में फल खाना तो दूर देश की 70 प्रतिशत जनता नमक और मिर्च के साथ भी रोटी नहीं खा सकती। मिर्च भी अब 50 से 60 रुपये किलो है। रहा सवाल आटे का तो वह भी पांच किलो का पैकेट का दाम अब 105रुपये हो गया है। उसके शरीर में ताकत कहां से आयेगी। वह साइकिल कैसे चला सकता है। 

बेचारे सांसद अपनी सेलरी तो बढ़वाना चाहते हैं, लेकिन फैक्ट्री कारखानों में 14 से 18 सौ रुपये में दिन रात खटने वाले मेहनतकशों के बारे में सोचने का इनके पास फुर्सत नहीं है। और सोचें भी क्यों? इन्हें जनता से क्या लेना देना है। वे तो इनकी नजर में बस नाली के कीड़े हैं। जिसे जब चाहो कीटनाशक दवाओं की तरह कानूनी डंडे का छिड़काव करके बाहर कर दें। कहे कि जनता तो हर पांच साल पर याद आती है।