मैं मानता हूं कि यह सिर्फ पत्रकारिता की सामाजिक संरचना के कारण है कि 5 चरणों में मैदान से बाहर रही बीजेपी को सिर्फ एक फेज यानि छठे चरण में टक्कर में आने पर पत्रकार बीजेपी की सरकार बना देते हैं.....
वहीं 5 चरणों में टक्कर में रही बीएसपी की गिनती को लेकर 'अच्छा...ऐसा...कहीं दिख तो नहीं रहीं...लग ही नहीं रहा... मायावती लड़ भी रहीं...खत्म हो गयीं मैडम...बस चमारों की पार्टी रह गयी', जैसे जुमले उछालते हैं।
इसलिए जब तक पत्रकारिता की सामाजिक संरचना संतुलित नहीं होती, तब तक हारी हुई पार्टियों के पक्ष में माहौल बनाकर अंतिम तौर पर जिताने की कोशिश होगी। उतनी ही कोशिश जितनी मोदी जी पिछले दो दिनों से कर रहे हैं। मोदी जी को भरोसा नहीं कि बनारस की सभी आठ सीटों पर भाजपा जीत पाएगी। आरएसएस और बूथ कार्यकर्ताओं ने आज 6 बजे की आखिरी रिपोर्ट में हां तो कहा है, पर भरोसे के साथ नहीं।
ऐसे में भक्त पत्रकारों की बड़ी संख्या आज और कल 'विस्पर कैंपेन' करेगी। 'विस्पर कैंपेन' भाजपा का सबसे आजमाया नुस्खा है जो वह पिछले कई दिनों से बनारस में बड़े स्तर पर कर रही है। इससे पहले भाजपा ने 2014 चुनाव में विस्पर कैंपेन में लगभग 1 लाख से अधिक लोगों का उतारा था और वह लोग भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में कामयाब रहे। इस बार भी विधानसभाओं में वह बूथ कार्यकर्ताओं के साथ लगाए गए हैं।
अब आप देखिए कि आप खुद कैसे और कब—कब विस्पर कैंपेन का हिस्सा बने हैं या बनाए गए हैं या ऐसे लोगों से टकराए हैं।
विस्पर कैंपेन में अलग—अलग राज्यों के युवा होते हैं, जिनमें कुछ पत्रकार, कुछ पत्रकारनुमा कार्यकर्ता, समर्थक और कुछ सर्वे कंपनियों के लोग होते हैं। अलग राज्यों के इसलिए रखे जाते हैं जिससे स्थानीय लोग उन पर भरोसा कर सकें और खुद को कनविंस महसूस कर सकें कि बाहर वाला भी ऐसा कह रहा है।
एक टीम 5 या 7 लोगों की हो सकती है। यह लोग चौक—चौराहों, चाय—पान की दुकानों, कॉलेजों—विश्वविद्यालयों और ट्रेनों—बसों में भेजे जाते हैं। ये लोग हो रही बहस में या अपनी तरफ से बहस छेड़कर, बताते हैं कि पूरे इलाके में भाजपा का माहौल है। हालांकि यह प्रयोग कुछ और पार्टियां भी कर रही हैं पर भाजपा को इसमें महारत है।