वामपंथी गर्भगृह में पिछले फरवरी में जो युवा तुर्क कन्हैया कुमार पैदा हुए थे, वे अपना 'राजनीतिक बचपना' इन दिनों कहां गुजार रहे हैं, कोई बताएगा? दरअसल यूपी वाले उनको याद कर रहे हैं ...
इस बार मुझे यूपी में उनके बंधु—बांधव मिले थे। बताए कि सीपीएम, सीपीआई, सीपीआईएमएल और अन्य वामपंथी मिलाकर 50 से अधिक सीटों पर पर लड़ रहे हैं? पर कहीं अपेक्षित भीड़ नहीं जुट पा रही, वे लोग 403 में से किसी एक विधानसभा में भी दूसरे—तीसरे स्थान पर नहीं हैं। उम्मीदवारों और उनके समर्थकों के मुताबिक चुनावों में जिस तरह पैसे का जोर बढ़ा है उसके कारण मामूली माहौल भी नहीं बन पा रहा. उतना भी नहीं जिससे क्षेत्र के जनता हमें याद रख सके कि वामपंथी चुनाव लड़ रहे हैं.
पूर्वी उत्तर प्रदेश में मिले वामपंथी समर्थकों को लग रहा है कि उन्हें इस बार 2017 के विधानसभा में जो वोट मिलेगा, वह 2012 विधानसभा से भी नीचे चला जायेगा। उनका कहना है कि दिल्ली, पटना, इलाहाबाद और देश के दूसरे हिस्सों से आने वाले छात्र संगठनों के नौजवान भी नहीं पहुंच रहे, नाटक वाली टीम भी नहीं आई, जिनको देखने के लिए ही सही थोड़ी भीड़ पहले जुट जाया करती है.
उम्मीदवारों और उनके समर्थकों का कहना है, अब तो एक ही आसरा है कन्हैया कुमार। जेएनयू वाला कन्हैया कुमार। अगर वह किसी उम्मीदवार के प्रचार में आ जाए तो भीड़ जुट जाए और हमलोगों की भी चर्चा अखबारों, टीवी में हो जाए, माहौल बन जाए। हमलोग कार्यकर्ताओं के चाय—पानी का पैसा नहीं जुट पा रहा फिर अखबार—मीडिया वालों को पैसा देकर कहां से खबर छपवाएं। इसलिए आप हमारा यह संदेश कन्हैया कुमार को पहुंचा दीजिएगा कि वह एक—दो यूपी जनसभाएं कर दें।
मैंने पूछा, 'लेकिन कन्हैया कुमार तो पार्टी महासचिव नहीं हैं, कोई नामित नेता भी नहीं है. आपलोग लिबरेशन, सीपीआई और सीपीएम के महासचिवों दीपंकर भट्टाचार्य, सुधाकर रेड्डी और सीताराम येचुरी को क्यों नहीं बुलाते, वे लोग भी भीड़ जुटा सकते हैं. क्या ये लोग आपलोगों के इस चुनाव में प्रचारक नहीं हैं?'
मेरे इस सवाल पर कोई मुकम्मल जवाब नहीं आया, अलबत्ता किसी ने दबे स्वर में कहा, ' बुलाने का किराया-भाड़ा भी बेकार जायेगा। वैसे ई सुधाकर रेड्डी कौन पार्टी के हैं।'
आखिर में एक कार्यकर्ता ने कहा, 'सुने हैं कि कॉमरेड कन्हैया कुमार अपनी पीएचडी पूरी कर रहे हैं। उनसे एक बात कह दीजिएगा कि पार्टी पीएचडी से नहीं वोट से चलती है, जनसमर्थन जनता के बीच जाने से मिलता है, चाय की प्याली में तूफान पैदा करने से नहीं।'
गौरतलब है कि जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार पिछले दिनों तब चर्चा में आए थे जब उनकी किताब 'बिहार से तिहाड़ तक' आई थी और खबर थी कि किताब से उन्हें लाखों की रॉयल्टी मिली है।