बिन लादेन का मारा जाना जहां वैश्विक आतंकवाद के खातमे की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है, वहीं उसकी पाकिस्तान में बरामदगी ने और इसके बाद अमेरिकी सेना का पाकिस्तान को विश्वास में लिए बिना उसे मार गिराने की घटना ने कई पेचीदा सवाल खड़े कर दिए हैं...
तनवीर जाफरी
अमेरिकी सैनिकों द्वारा चलाए गए ‘आप्रेशन जेरोनियो’ नामक एक कमांडो आप्रेशन में गत् 2 मई की रात को दुनिया का सबसे बड़ा खूंखार आतंकवादी तथा अलक़ायदा संस्थापक एवं प्रमुख ओसामा बिन लाडेन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से सटे हुए कस्बे एबटाबाद में मारा गया। हो सकता है कि अमेरिका के विरूद्ध लाडेन द्वारा स्वघोषित जेहाद के अंतर्गत हुई इस अति आधुनिक कमांडो कार्रवाई ने लाडेन को उसकी मनचाही मंजि़ल अर्थात् ‘जन्नत ‘तक संभवत: पहुंचा ही दिया हो। हालांकि लाडेन की तलाश गत् एक दशक से अफग़ानिस्तान तथा पाक-अफगान सीमावर्ती क्षेत्रों में की जा रही थी ।
ओसामा बिन लादेन की हवेली को देखते पाकिस्तानी बच्चे |
परंतु इस बात का भरपूर संदेह भी जताया जा रहा था कि अपने बिगड़ते स्वास्थय के चलते, हो न हो ओसामा बिन लाडेन किसी न किसी सुरक्षित स्थान पर छुपा हुआ है जहां उसे झाडिय़ों, गुफाओं व पहाडिय़ों की तकलीफ से दूर रखकर उसके इलाज व सुख-सुविधाओं का भी प्रबंध किया गया है। और लाडेन की मौजूदगी को लेकर चलने वाली दुनिया के संदेह की सुई बार-बार सिर्फ पकिस्तान पर ही जा टिकती थी। कुछ समय पूर्व यह खबर भी आई थी कि लाडेन का क्वेटा के सैन्य अस्पताल में इलाज कराया गया है। यह खबर तो बार-बार आ ही रही थी कि वह अस्वस्थ है उसका गुर्दा खराब है तथा वह डायलिसिस पर रखे जाने के दौर से गुज़र रहा है। ज़ाहिर है ऐसे मरीज़ के लिए अंधेरी गुफाओं में जा कर रहना, छुपना तथा वहां बैठकर अपने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी मिशन को संचालित करना कतई संभव नहीं था।
और आखिरकार अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए को लाडेन के ठिकाने का पुख्ता पता चल ही गया। नतीजतन अमेरिका के विशेष नेवी सील कमांडो दस्ते ने पाक राजधानी इस्लामाबाद से मात्र 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित एबटाबाद कस्बे के एक आलीशान तथा अति सुरक्षित मकान से उसे ढूंढ निकाला। लाडेन की पनाहगाह बनी यह कोठी पकिस्तान सैन्य अकादमी से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इतने संवेदनशील तथा अति सुरक्षित क्षेत्र में लाडेन की मौजूदगी के बाद पाकिस्तान सरकार, पाक सेना तथा पाकिस्तानी खुिफया एजेंसी आई एस.आई सभी संदेह के घेरे में आ गए हैं।
पाकिस्तान के पास अब अपने बचाव के लिए बग़लें झांकने के सिवा कोई चारा शेष नहीं रह गया है। अपनी झेंप मिटाने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी अपने युरोपीय देशों के दौरे के दौरान यह कहते फिरे कि लाडेन की पकिस्तान में मौजूदगी का पता न चल पाना केवल पाकिस्तान ही नहीं बल्कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया की ख़ुफ़िया ऐजेंसियों की नाकामी है। ज़रा सोचिए पाक प्रधानमंत्री का यह बयान कितना तर्कपूर्ण है? उधर आई एस आई के एक अधिकारी ने अपनी खिसियाहट मिटाते हुए यह तर्क दिया कि ‘5 वर्ष पूर्व जब इस भवन का निर्माण हुआ था उस समय इस बात का संदेह हुआ था कि इसमें अबु फराज़-अल-लीबी नाम का एक अलकायदा नेता वहां रह रहा है। इस सूचना के आधार पर पाक सुरक्षा एजेंसियों ने इस भवन में छापेमारी भी की थी। परंतु वह सूचना निराधार निकली और उसी समय से यह भवन आईएसआई के रडार से हट गया। और इसी बड़ी चूक की शर्मिंदगी पाकिस्तान को चुकानी पड़ रही है।’
बहरहाल बिन लाडेन का मारा जाना जहां वैश्विक आतंकवाद के खातमे की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है, वहीं लाडेन की पाकिस्तान में बरामदगी ने तथा इसके पश्चात अमेरिकी सेना द्वारा पाकिस्तान को विश्वास में लिए बिना उसे मार गिराने की घटना ने कई पेचीदा सवाल खड़े कर दिए हैं। कहना गलत नहीं होगा कि लाडेन के मारे जाने से जितना बड़ा झटका अलकायदा व उसके शेष नेताओं को लगा होगा उससे भी बड़ा झटका पाकिस्तान को सिर्फ इस बात की जवाबदेही के लिए लग रहा है कि लाडेन गत् पांच वर्षों से भी अधिक समय से पाकिस्तान में कैसे संरक्षण पा रहा था?
जब-जब पाकिस्तान में लादेन की मौजूदगी की बात की जाती उसी समय पूरी मुस्तैदी के साथ कभी पाक प्रधानमंत्री तो कभी गृहमंत्री,कभी आईएसआई तो कभी सैन्य अधिकारी यह कहकर अपना पल्ला झाडऩे की कोशिश करते कि लाडेन पाकिस्तान में नहीं है। और पाकिस्तान द्वारा बोले जाने वाले इसी झूठ की आड़ में बिन लाडेन पाकिस्तान में राजधानी इस्लामाबाद के समीप पाक सैन्य अकादमी की नाक के नीचे बैठकर पूरी दुनिया में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देता रहा तथा दुनिया के हज़ारों बेगुनाहों को आतंकी हमलों का निशाना बनाकर मानवता तथा मानवाधिकारों की सरेआम धज्जियां उड़ाता रहा।
परंतु मानवता के इस सबसे बड़े दुश्मन का हश्र तो एक दिन यही होना था,जो हुआ। अमेरिका द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध की घोषणा में अपने ‘खास सहयोगी’ देश पाकिस्तान को विश्वास में लिए बिना तथा पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों,सेना तथा सैन्य रडारों को भनक लगे बिना चार विशेष सैन्य हैलीकॉप्टरों ने अफगानिस्तान के एक यू एस मिलट्री बेस से उड़ान भरी तथा एबटाबाद पहुंच कर 40 मिनट के कमांडो आप्रेशन में लाडेन को मार गिराया तथा उसे अपने साथ अफगानिस्तान ले आए। यहां उसका डीएनए टेस्ट कर तथा यह सुनिश्चित कर कि यह लाश लाडेन की ही है, उसे समुद्र में किसी अज्ञात स्थान पर ले जाया गया जहां उसे कथित रूप से इस्लामी रीति-रिवाजों के साथ जल समाधि दे दी गई।
पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा इस प्रकार राजधानी इस्लामाबाद के करीब आकर इतना बड़ा आप्रेशन अकेले करना तथा उसे इसकी सूचना तक न देना बहुत नागवार गुज़रा। अब पाक सरकार यह कह रही है कि भविष्य में अमेरिका सहित किसी भी देश को इस प्रकार पाकिस्तान की सीमाओं का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यहां यह भी काबिलेगौर है कि अमेरिका ने बेशक इस्लामाबाद के निकट तक जाने का साहस पहली बार क्यों न दिखाया हो परंतु इसके पूर्व भी अमेरिका दर्जनों बार पाक-अफगान सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तानी धरती पर अपना सैन्य आपे्रशन कर चुका है। खासतौर पर अमेरिकी चालक रहित विमान ड्रोन तो कई बार पाक सीमा के भीतर बमबारी कर चुके हैं।
उधर आप्रेशन जेरोनियो को लेकर अमेरिकी एटॉर्नी जनरल एरिक होल्डर का यही कहना है कि ओसामा बिन लाडेन पर निशाना साधना पूरी तरह वैध था क्योंकि यह आप्रेशन राष्ट्र की आत्मरक्षा के लिए किया गया था। उनके अनुसार लाडेन शीघ्र ही वहां से भी भागने की तैयारी में था। पाकिस्तान को विश्वास में न लेने के विषय पर अमेरिकी सूत्रों का कहना है कि इस कमांडो कार्रवाई की जानकारी पाकिस्तान से सांझा करने से लाडेन हाथ से निकल सकता था इसलिए सर्वोच्च स्तर पर गोपनीयता बरती गई। अमेरिका लादेन को जि़दा या मुर्दा पकडऩे के लिए इस हद तक गंभीर व आमादा था कि उसने कमांडो कार्रवाई के दौरान संभावित पाकिस्तानी सैन्य हस्तक्षेप से निपटने के भी पूरे उपाय कर लिए थे।
बहरहाल पाकिस्तान गत् एक दशक से इसी आतंकवाद को पालने-पोसने,इसे संरक्षण देने तथा आतंकी विचारधाराओं को परवान चढ़ाने को लेकर पूरी दुनिया में बार-बार शर्मिंदा व बदनाम होता जा रहा है। पाकिस्तान से लाडेन की बरामदगी ने तो अब पाकिस्तान को कहीं का भी नहीं छोड़ा है। अब पाकिस्तान का वह तर्क दुनिया के गले से नहीं उतर पा रहा है कि ‘पाकिस्तान स्वयं दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार है’। अब तो यह तर्क पाकिस्तान के लिए रक्षात्मक नहीं बल्कि नकारात्मक सोच पैदा करता है।
चूंकि प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी लाडेन की हत्या के बाद एक बार फिर पेरिस में बड़ी बेबसी के साथ यह दोहरा चुके हैं कि पाकिस्तान में फैले आतंकवाद से निपटना अकेले पाकिस्तान के बस की बात नहीं है। उन्होंने इस के खातमे के लिए पूरी दुनिया से सहयोग की अपील भी की है। लिहाज़ा उनके अपने ही इसी वक्तव्य के परिपेक्ष्य में अब तो पाकिस्तान को अपनी सरहद और संप्रभुता की बात भी कम से कम तब तक किनारे रख देनी चाहिए जब तक कि भारत व अमेरिका जैसे देशों के सहयोग से वह अपनी सीमाओं के भीतर लगभग पूरे देश में फैले आतंकी ठिकानों,प्रशिक्षण शिविरों तथा इनकी पनाहगाहों को समाप्त न कर ले।
लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.उनसे tanveerjafari1@gmail.कॉम पर संपर्क किया जा सकता है.