May 5, 2011

लादेन की ह्त्या और ओबामा का झूठ


पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं जब अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए अमेरिका पर लादेन के फर्जी वीडिओ और ऑडियो जारी करने के आरोप लगे हैं.कहा तो यह भी जा रहा है कि बिन लादेन की मृत्यु दिसंबर 2001 में ही दोनों किडनी फेल होने के कारण हो गयी थी...

पीयूष पन्त

अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की मानें तो खूंखारआतंकवादी ओसामा बिन लादेन मारा गया. एक मई की रात 11:35 पर राष्ट्रपति भवन से जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कुछ ऐसा ही कहा- "आज रात मैं अमेरिकावासिओं और पूरी दुनिया से कह सकता हूँ कि अमेरिका ने एक अभियान के तहत हजारों बेगुनाह पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के हत्यारे और अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन की ह्त्या कर दी है." 9/11 की चर्चा करते हुए ओबामा ने बहुत कुछ कहा, केवल सच को छोड़कर.
अमेरिका का कॉर्पोरेट मीडिया भी इस झूट को सच के रूप में पेश करने की मुहिम में लग गया. ऐसे में भला हमारा कॉर्पोरेटी मीडिया कैसे पीछे रहता.यहाँ भी होड़ मच गयी बिन लादेन के मारे जाने की खबर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की और इस अभियान को अमेरिका की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करने की. यानी 'कव्वा कान ले उड़ा' वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी.

विभिन्न  खबरिया चैनलों मे चर्चा में मशगूल तथाकथित जानकार ओबामा के सच को ही अंतिम सच मानकर अपनी ऊर्जा जाया कर रहे थे.किसी को भी इतनी समझ नहीं थी कि इस तथाकथित सच के पीछे छुपे झूठ को उजागर करने का प्रयास भी करे.जबकि अमेरिका द्वारा लादेन की ह्त्या के अभियान से सम्बंधित पेश किये जा रहे अनेक तथ्य विश्वसनीयता के पैमाने पर खरे नहीं उतर रहे थे. विंस्टन चर्चिल ने सही ही कहा था-'जब तक सच को खुद को उजागर करने का मौक़ा मिलता है, झूठ आधी दुनिया की सैर कर आता है.' हो सकता है ओबामा के झूठ की भी कलई जल्दी ही खुल जाये.

अगर खोजी दृष्टि के साथ हम इस पूरे अमेरिकी अभियान की पड़ताल करें तो साफ़ होने लगेगा कि दाल में कुछ काला ज़रूर है. लग तो ऐसा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से दोस्ती करने का एक फायदा तो अवश्य हुआ है. झूठ को सच के रूप में पेश करने की कृष्ण की छल आधारित उस राजनीति का गुर उनके हाथ लग गया है, जिसके चलते कौरवों की संभावित जीत हार में तब्दील हो गयी थी. यानी 'अश्वत्थामा हतो, नरो या कुंजरो' की गर्जना.
सबसे पहला सवाल यह है कि क्या मारा गया तथाकथित व्यक्ति बिन लादेन था भी या नहीं, क्योंकि अमेरिकी प्रशासन द्वारा मृत लादेन की एक भी तस्वीर अभी तक रिलीज़ नहीं की गयी है.जबकि सद्दाम को पकडे जाने से लेकर ट्रायल और फिर उसकी फांसी की सैकड़ों तस्वीरें तुरंत जारी कर दी गयी थीं. एक तस्वीर ज़रूर नेट और भारतीय चैनलों पर दिखाई जा रही थी, जो बिलकुल फर्जी लग रही थी. बाद में स्पष्टीकरण भी आया कि वो फर्जी ही थी.
पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं जब अपनीस्वार्थ पूर्ति के लिए अमेरिका पर लादेन के फर्जी वीडिओ और ऑडियो जारी करने के आरोप लगे हैं.कहा तो यह भी जा रहा है कि बिन लादेन की मृत्यु दिसंबर 2001 में ही दोनों किडनी फेल होने के कारण हो गयी थी. जुलाई 2001 में किडनी के इलाज के लिए वो दुबई के अमेरिकी सेना के हॉस्पिटल मे भी भरती हुआ था. जहां उससे मिलने स्थानीय सीआईए एजेंट भी आया था, क्योंकि बिन लादेन अमेरिका के लिए ऐसी धरोहर था जिसका इस्तेमाल वो अपने हिसाब से कर सकता था. ऐसा कहना है 9/11 पर गहन शोध कर कई पुस्तक लिख चुके अमेरिकी लेखक डेविड रे ग्रिफिन का अपनी पुस्तक 'ओसामा बिन लादेन : मृत या जीवित' में. शायद यही कारण रहा कि सउदी अरब ने ओबामा द्वारा मृत घोषित किये गए लादेन के शरीर को लेने से मना कर दिया.

ग्रिफिन अपनी पुस्तक में लादेन के 2001 में ही मर जाने के अन्य साक्ष्य भी पेश करते हैं जैसे-

  • 13 दिसंबर 2001 के बाद अमेरिकी प्रशासन द्वारा लादेन के संदेशों को intercept करना बंद कर दिया गया.
  • पाकिस्तान के एक प्रमुख अख़बार में छपी रिपोर्ट में कहा गया था कि एक प्रमुख तालिबानी अधिकारी ने रिपोर्टर को बताया कि वह 26 दिसंबर 2001 को लादेन की शव यात्रा में शामिल हुआ था.
  • वाकई लादेन किडनी की बीमारी के चलते बहुत परेशान था. सितम्बर 2001 में सीबीएस न्यूज़ एंकर डैन राठेर ने बताया कि 10सितम्बर 2001को बिन लादेन पाकिस्तान के शहर रावलपिंडी के अस्पताल में भरती था.
  • जुलाई 2002 में सीएनएन ने खबर दी कि उसी साल फरवरी में लादेन के सुरक्षाकर्मी पकडे गए. उसने यह भी बताया किजानकारी देने वालों का मानना है कि लादेन के सुरक्षाकर्मियों के पकडे जाने का मतलब है कि लादेन मारा जा चुका है.

अगर मान भी लिया जाए कि ओसामा ज़िंदा था तो भी क्या ओबामा 1मई की रात सच बोल रहे थे?ज़रा इस पर गौर करें कि जब ओबामा अपने भाषण में कह रहे थे कि लादेन आज रात पकिस्तान में एक पहाडी में बने अपने घर में मारा गया, उसी समय अन्य मीडिया नेटवर्क से जुड़े विभिन्न रिपोर्टर अपने स्त्रोतों का हवाला देते हुए ओबामा को ग़लत साबित करते हुए बता रहे थे कि बिन लादेन हफ्ते भर पहले ही इस्लामाबाद के पास गोलीबारी में मारा गया था और तभी डीएनए परीक्षण के लिए उसके शरीर से सेम्पल ले लिया गया था.ख़बरों का ये टकराव काफी है सरकारी व्यक्तव्य पर शंका ज़ाहिर करने के लिए.

शंका इस बात को लेकर भी पैदा हो रही है कि ओबामा को बिन लादेन कि याद अचानक कैसे आ गयी? वर्ष 2008 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान चली बहसों में ओबामा ने पहली बार लादेन का ज़िक्र करते हुए कहा था कि लादेन को पकड़ना या मार डालना हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिकता होनी चाहिए.अपनी जीत के बाद दिए पहले टीवी साक्षाक्तार में भी यह बात दोहराते हुए कहा था कि लादेन को पकड़ना या मार डालना अल काएदा को मिटा देने के लिए ज़रूरी है.लेकिन इसके बाद उनके भाषणों मे से लादेन गायब हो गया.

यहाँ तक कि जनवरी 2009के अपने टीवी इंटरव्यू में उन्होंने कह डाला-'बिन लादेन को ज़िंदा पकड़ना या मार डालना अमेरिकी सुरक्षा के हमारे उद्देश्य को हासिल करने के लिए ज़रूरी नहीं है.' अब जबकि नवम्बर 2012 के अपने चुनाव का अभियान ओबामा ने शुरू कर दिया है तो वे 1 मई की रात टीवी पर यह घोषणा करते हुए दिखते हैं,'लादेन को पकड़ना या मार डालना मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता थी और मैंने सीआईए प्रमुख लियोन पनेत्ता को इसे सबसे पहले करने वाला काम बनाने के आदेश जारी किये'. वाह ओबामा महोदय, आप तो बहुत बढ़िया शीर्षासन करते हैं.

दरअसल,ओबामा को ओसामा का जिन्न इसलिए बाहर निकालना पड़ा क्योंकि अमेरिका के बिगड़ते आर्थिक हालात को सुधारने में ओबामा की असफलता के चलते देश में उनकी लोकप्रियता गिरती जा रही है. उनके राजनीतिक विरोधी 2012 के चुनाव में उन्हें शिकस्त देने कि तैयारी में जुटे हैं. उधर अरब देशों में अमेरिकी उपस्थिति और दखलंदाजी तथा आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की रणनीति कजोर पड़ी है. खासकर जनता के विद्रोह के चलते. ऐसे में ओसामा की मौत का फरेब रचकर ही ओबामा अमेरिकी जनता के पास जाने की हिम्मत जुटा सकते हैं,ताकि उनसे कह सकें कि देखो मैंने पिछले चुनाव के दौरान किये वायदे पूरे कर दिए-अफगानिस्तान से सेना वापिस बुला ली, आतंकवाद के सरगना का खात्मा कर 9/11 का बदला ले लिया और पीड़ितों को न्याय दिला दिया

लेकिन क्या वास्तव मे अमेरिकी जनता ओबामा के इसफरेब में उलझ जाएगी या फिर एक बड़े झूठ को छिपाने के लिए बोले जा रहे अनेक झूठों (जैसे मात्र चन्द घंटों में ही डीएनए की प्रक्रिया पूरी करना, समुद्र में दफनाना, लादेन द्वारा महिलाओं को ढाल बनाना, फिर बाद में इस बात से इनकार करना इत्यादि) को उजागर होते देख अचंभित हो ओबामा से सवाल करेगी- 'क्या ओबामा? हमारे साथ इतना बड़ा फरेब?'

तो ओबामा को चिर-परिचित शैली में यही कहना पड़ेगा- 'यस, वी कैन.'


 
विदेशी मामलों के महत्वपूर्ण टिप्पणीकार और सामाजिक आन्दोलन से जुडी 'लोक संवाद' पत्रिका के संपादक.
 
 
 
 

7 comments:

  1. कुछ तकनीकी खराबी के कारण इस लेख को दुबारा पोस्ट करना पड़ा, जिसकी वजह से इस लेख पर आयीं तीन टिप्पणियाँ डिलीट हो गयीं हैं. लेखक और टिप्पणीकर्ता से माफ़ी चाहेंगे.

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  2. जनज्वार से यही उम्मीद थी, हमेशा उलटबासियाँ. कभी अन्ना को लेकर तो कभी ओबामा को लेकर. लगता है इस पोर्टल को कुछ अलग करने की चाहत है जो इसी भरोसे नैयापर चाहता है.

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  3. राम प्रकाश कुंवरThursday, May 05, 2011

    ' अब जबकि नवम्बर 2012 के अपने चुनाव का अभियान ओबामा ने शुरू कर दिया है तो वे 1 मई की रात टीवी पर यह घोषणा करते हुए दिखते हैं,'लादेन को पकड़ना या मार डालना मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता थी और मैंने सीआईए प्रमुख लियोन पनेत्ता को इसे सबसे पहले करने वाला काम बनाने के आदेश जारी किये'. वाह ओबामा महोदय, आप तो बहुत बढ़िया शीर्षासन करते हैं. - बेजोड़ पंक्तियाँ हैं. पीयूष जी दिल खुश हो गया पूरा लेख पढ़कर.

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  4. भाइयों, अब हमे देखना है कि, 'पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिस हिस्से में मैं रहूंगा वहां बिजली संकट के कारण और अपनी पारिवारिक व्यस्तता के कारण इंटरनेट की सुविधा का इस्तेमाल भी नहीं कर पाऊंगा इसलिए जो कुछ लिखना है वह वापस दिल्ली लौटने पर'आनंद जी क्या जवाब देते है.

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  5. Niranjan SinghFriday, May 06, 2011

    अमेरिका के चन्द्र अभियान की तरह ओसामा की स्टोरी में भी काफी झोल है. पन्त जी ने अच्छा लिखा है. मजा आ गया. 'हिन्दू हित' के नाम से की गई टिप्पणी पर कहना चाहूँगा. मुख्यधारा का मीडिया अमीर,ताकतवर,स्वर्ण,पुरुष,हिन्दू आदि के पक्ष में है. न्याय व सच्चाई के पक्ष में नहीं. अन्ना हो या ओबामा पापुलर मीडिया सिर्फ टीआरपी बटोरने के चक्कर में ही रहता है. अमेरिकी तर्ज पर पाकिस्तान में आपरेशन करने की क्षमता का दावा करने वाले अफसरों को बताना चाहिए कि उनको दुर्घटनाग्रस्त मुख्यमंत्री का हेलीकाप्टर ढूँढने तक में इतना वक़्त क्यों लगता है? आखिर यह भी देश की सुरक्षा से जुड़ा सवाल है.

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  6. Niranjan SinghFriday, May 06, 2011

    पाकिस्तान को अमेरिकी हेलीकाप्टर का पता नहीं चला. हमारी एजेंसियां अपने ओझल हेलीकाप्टर को ढूंढ पाने में कई दिन लगाती हैं.

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  7. जनज्वार से यही उम्मीद थी, हमेशा सही समय पर सही मुद्दों पर विचार शील प्रतिक्रिया जाहिर करते है.कभी अन्ना को लेकर कभी ओबामा को लेकर तो कभी नेपाल को लेकर .
    so keep it up

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