Jun 5, 2011

'रौंगटे खड़े करने वाली थी काली रात, कांप उठी मेरी आत्मा'

 
रामलीला मैदान में लोगों पर हुए पुलिस के अत्याचार ने  बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं । अनशन में परिवार बच्चों को लेकर भी आए  थे। पुलिस ने उन बच्चों को भी नहीं बख्शा। बच्चों को घसीट-घसीट कर मारा। यह सब देख मेरी आत्मा कांप उठी...रामदेव  
 
 
नई दिल्ली. बाबा रामदेव ने हरिद्वार में आज यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी पर सीधा निशाना साधा और कहा कि पूरी कार्रवाई उन्हीं के निर्देश पर हुई है। उन्होंने कहा कि आज का दिन वे काला दिवस के रूप में मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि रामलीला मैदान पर शुरु हुआ, उनका अनशन जारी रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह मेरे एनकाउंटर की साजिश थी।  दिल्ली से विशेष विमान से देहरादून  और वहां से वे हरिद्वार स्थित अपने पतंजलि आश्रम पहुंचे, बाबा  पूरी तरह सफेद कपड़ों में थे ।  उन्होंने वहां जमा पत्रकारों से संक्षिप्त चर्चा में कहा कि इस घटना से साफ हो गया है कि सोनिया गांधी को इस देश और देश वासियों से प्यार ही नहीं है।  


बाद में रामदेव ने हरिद्वार में अपनी पत्रकार वार्ता में कहा कि उस काली रात की याद रौंगटे खड़े करने वाली है। - अब तक मैंने लोगों पर हुए पुलिसिया अत्याचार को सिर्फ सुना था। लेकिन जो रामलीला मैदान में लोगों पर पुलिस का अत्याचार हुआ उसने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी। और जिस तरह से मैंने वहां पर दृश्य देखा और मैंने बार-बार पुलिस को मना किया कि आप मां, बहन बेटियों के साथ इस तरह क्यों व्यवहार कर रहे हैं। महिला पुलिस पांच-दस की संख्या में होगी और सशस्त्र पुलिस करीब पांच से दस हजार के बीच। मेरी आंखों के सामने जो उन्होंने जुल्म किए छोटे-छोटे बच्चों पर क्योंकि इस अनशन में परिवार बच्चों को लेकर भी आए हुए थे। पुलिस ने उन बच्चों को भी नहीं बख्शा। बच्चों को घसीट-घसीट कर मारा। यह सब देख मेरी आत्मा कांप उठी.

पहले तो मैं जो षडयंत्र रचे जा रहे थे उनके बारे में ध्यान आकर्षण करना चाहता हूं। पहले हमसे कहा गया कि आप जो चाहते हैं हम वो कर देंगे। हम काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति भी घोषित कर देंगे और उसके लिए बिल भी ले आएंगे। हम काले धन का पता लगाने के लिए उच्च स्तरीय जांच करेंगे।  दूसरी तरफ सरकार हम पर दवाब डाल रही थी कि हम अनशन खत्म कर दें  और वो हमारी मांगे मान लेंगे। तीन तारीख को हमसे मुलाकात भी कि और कहा कि सरकार के चार मंत्रियों ने एयरपोर्ट जाकर काफी आलोचना करवा दी है। हमें होटल में बुलाया जाता है। आयार्य जी पर दवाब डाला जाता है। करीब पांच घंटे तक बैठक चली और अंत में हमे कहा गया कि या तो समझौता देने के लिए तैयार रहो और या फिर सरकार का कोप झेलने के लिए।

कपिल सिब्बल जैसे व्यक्ति ने इतने शातिर दिमाग से और कूटनीतिक चालों से हमारे सामने दो प्रश्न रखे। उसकी योजना तो मुझे गिरफ्तार करके या तो मेरा एनकाउंटर करवाने या गायब करवाने की थी। सारा मीडिया इस बात को जानता है कि जैसे चार तारीख की रात को भारी पुलिस आई थी उसी तरह तीन तारीख को भी होटल के बाहर भारी पुलिस थी। सरकार तो सभी लोगों की जान लेने पर तुली थी।

प्रेस वार्ता में बाबा ने आगे कहा की  मैं महिला के कपड़े पहनकर बैठा हूं। सरकार की पूरी योजना थी कि या तो रामदेव को इस दमन के दौरान मरवा दिया जाए या फिर उसे गायब करवा दिया जाए। मैंने महिला के वस्त्र पहनकर वहां से निकलने की कोशिश की। मैं करीब दो घंटे वहां पर बैठा रहा। जब आंसू गैस के गोलो का प्रभाव थोड़ा कम हुआ तो मैंने निकालने की कोशिश की. मैंन बार-बार कहा है कि मैं मरने से डरता तो यह आंदोलन नहीं करता। लेकिन कायरता से मरना बहादुरी नहीं है।  पुलिस ने मेरे साथ दुर्व्यवाहर किया। मेरे गले में दुपट्टा था और उन्होंने उससे मेरे गले में फंदा लगा दिया। मैंने कहा कि मैं अपराधी नहीं हूं। क्या अन्याय के खिलाफ आवाज उठाकर मैं अपराधी हो गया।

इधर दिल्ली पुलिस ने बाबा के दिल्ली घुसने पर पाबंदी लगा दी है. इसके पहले बाबा रामदेव, अनशन जबरन समाप्त कराए जाने के बाद से रातभर पुलिस की हिरासत में रहे और उन्हें सुबह विशेष विमान से देहरादून भेजा गया। देहरादून से वे सड़क मार्ग से पतंजलि आश्रम पहुंच गए हैं। पुलिस ने उनके दिल्ली में अगले आदेश तक घुसने पर भी पाबंदी लगा दी है। जानकारी के अनुसार कम से कम १५ दिन वे दिल्ली की सीमा में नहीं घुस पाएंगे। 

रामदेव बाबा ने शनिवार 4 जून की सुबह भ्रष्‍टाचार और काले धन के खिलाफ अनशन शुरू किया था। आधी रात के बाद पुलिस रामलीला ग्राउंड के पंडाल में पहुंची और बाबा को उठा कर ले गई। इससे पहले पंडाल में जबरदस्‍त हंगामा हुआ। पंडाल में हजारों लोगों की मौजूदगी के बावजूद आंसू गैस के गोले छोड़े गए, लाठियां चलाई गईं। महिलाओं से धक्‍कामुक्‍की की गई। करीब पांच हजार पुलिसकर्मियों ने शनिवार-रविवार की दरमियानी रात करीब डेढ़ बजे पूरे रामलीला ग्राउंड को घेर लिया था। पुलिस ने पंडाल उखाड़ दिए और मंच पर रखे माइक व अन्य सामान तोड़ने की कोशिश की। बाबा मंच से गिर गए। महिलाओं सहित भारी संख्या में उनके समर्थक सुरक्षा ढाल बनकर खड़े हो गए। पर पुलिस ने सभी को जबरन काबू किया और देर रात 2.30 बजे बाबा को ले गई। प्रशासन ने पंडाल में योग शिविर आयोजित करने की दी गई इजाजत भी रद कर दी।

दिल्‍ली में डटे बाबा के हजारों समर्थक दिल्‍ली छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। आशंका है कि वे जंतर मंतर पर जुट कर पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। इस आशंका के मद्देनजर जंतर मंतर इलाके में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। हरिद्वार, रुड़की सहित उत्‍तराखंड के कुछ जगहों पर भी अलर्ट घोषित कर दिया गया है। रामलीला ग्राउंड को खाली करा कर पुलिस ने अपने कब्‍जे में ले लिया है। इस इलाके के आसपास धारा 144 लगा दी गई है।

दैनिक भास्कर से साभार व संपादित  


पर्यावरण दिवस की आज पूरी हुई खानापूर्ति

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए स्कूल और कालेजों में पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से जोड़ने का निर्देश दिए थे। कोर्ट के आदेश पर पर्यावरण को पाठ्यक्रम में शामिल तो कर लिया गया, लेकिन इससे लोगों में जागरूकता नहीं आई...

राजेंद्र राठौर  

जंगलों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और लगातार बढ़ती जनसंख्या के अलावा बड़े पैमाने पर लग रहे उद्योगों से छत्तीसगढ़ का पर्यावरण असंतुलित होने लगा है। उद्योगों के कारण उपजाऊ भूमि सिमट रही है, वहीं फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं और अपशिष्ट पदार्थो से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। बढते प्रदूषण के कारण धान का कटोरा कहलाने वाले छत्तीसगढ़ के आगामी वर्षों  में राख के कटोरे में तब्दील हो जाये तो  संदेह नहीं ।

छत्तीसगढ़ राज्य में तेजी से पांव पसारते औद्योगिक इकाईयों से यहां प्रदूषण का खतरा दिनों-दिन बढ़ने लगा है। पर्यावरण प्रदूषण से मनुष्य सहित पेड़-पौधे व जीव-जन्तु भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। औद्योगिकीकरण व जनसंख्या में वृद्धि के कारण पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़ के कई जिलों के भूजल स्तर में काफी गिरावट आई है। वहीं रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भी भूमि प्रदूषित हो रही है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले की बात करें तो इस जिले में वर्तमान में 10 से अधिक छोटे-बड़े उद्योग लग चुके है, जिससे आम जनजीवन प्रदूषण की मार झेल रहा है। बावजूद इसके राज्य सरकार ने यहां पावर प्लांट लगाने उद्योगपतियों द्वार खोल दिए हैं।

पिछले तीन वर्षो में अकेले जांजगीर-चांपा जिले में मुख्यमंत्री ने 40 से अधिक उद्योगपतियों से पावर प्लांट लगाने एमओयू किए है, जिनके चालू होने के बाद इस जिले की क्या दशा होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इधर व्यापक पैमाने पर औद्योगिक इकाईयों की स्थापना से नदियों का अस्तित्व भी संकट में है। औद्योगिक इकाईयां सिंचाई विभाग व सरकार से किए गए अनुबंध से ज्यादा नदी के पानी का उपयोग करती है, जिसके कारण गर्मी शुरू होने से पहले ही कई नदियां सूख जाती है। वहीं कई उद्योगों द्वारा तो नदियों में कैमिकलयुक्त पानी भी छोड़ा जाता है, जिससे नदी किनारे गांव में रहने वालों को बड़ी मुसीबत झेलनी पड़ती है।

आज 5 जून को देश भर में पर्यावरण दिवस के मौके पर एक बार फिर औपचारिकता निभाई जाएगी। एयरकंडीशनर कमरों में बड़े-बड़े नेता, अधिकारी और सामाजिक संगठन के लोग जुटेंगे, घंटों चर्चा करेंगे तथा फोटो खिंचवाकर सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित कराएंगे। दूसरे दिन लोगों को समाचार पत्रों व टीवी चैनलों से पता चलेगा कि कुछ लोगों को देश व जनजीवन की चिंता है, जिन्होंने पर्यावरण को सुरक्षित रखने घंटों सिर खपाया है। क्या वास्तव में इस तरह की औपचारिकता निभाना सही है? हमारे पास शुध्द पेयजल का अभाव है, सांस लेने के लिए शुध्द हवा कम पड़ने लगी है। जंगल कटते जा रहे हैं, जल के स्रोत नष्ट हो रहे हैं, वनों के लिए आवश्यक वन्य प्राणी भी लुप्त होते जा रहे हैं।

आज छत्तीसगढ़ में पर्यावरण सबसे ज्यादा चर्चित मुद्दा है। हम जब पर्यावरण की बात करते हैं तो धरती, पानी, नदियाँ, वृक्ष, जंगल आदि सभी की चिन्ता उसमें शामिल होती है। पर्यावरण की यह चिन्ता पर्यावरण से लगाव से नहीं, मनुष्य के अपने अस्तित्व के खत्म हो जाने के भय से उपजी है। आजकल पर्यावरण की इसी चिन्ता से कुछ नए नए दिवस निकल आए हैं। किसी दिन पृथ्वी दिवस है तो कभी जल दिवस और कोई पर्यावरण दिवस। पिछले दो-तीन दशकों मे हमनें तरह-तरह के दिवस मनाने शुरू किए हैं। पर्यावरण, जल, पृथ्वी, वन, बीज, स्वास्थ्य, भोजन आदि न जाने कितने नए-नए दिवस सरकारी, गैर-सरकारी तौर पर मनाए जाते हैं। मगर विडम्बना यह है कि जिन विषयों पर हमने दिवस मनाने शुरू किए, वे ही संसाधन या चीजें नष्ट होती जा रही हैं।

पर्यावरण के इतिहास पर नजर डाले तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनितिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है। पर्यावरण दिवस का आयोजन 1972 के बाद शुरू हुआ। सबसे पहली बार 5 से 15 जून 1972 को स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम मे मानवी पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन हुआ, जिस में 113 देश शामिल हुए थे। इसी सम्मेलन की स्मृति बनाए रखने कि लिए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस घोषित कर दिया गया। सवाल तो यह है कि पर्यावरण दिवस के इस दिन का हमसे क्या रिश्ता? क्या 1972 के बाद लगातार पर्यावरण दिवस मना लेने से हमारा पर्यावरण ठीक हो रहा है? यह सोचने वाली बात है।

एक अहम बात यह भी है कि बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए स्कूल और कालेजों में पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से जोड़ने का निर्देश दिए थे। कोर्ट के आदेश पर पर्यावरण को पाठ्यक्रम में शामिल तो कर लिया गया, लेकिन इससे भी लोगों में कोई जागरूकता नहीं आई। स्कूल-कालेजों में इस विषय पर वर्ष भर किसी तरह की पढ़ाई नहीं होती, जबकि परीक्षा में सभी को मनचाहे नंबर जरूर मिल जाते हैं। बहरहाल, आज पर्यावरण संतुलन की उपेक्षा जिस तरह से हो रही है, उससे कहीं ऐसा न हो कि एक दिन इस भयंकर भूल का खामियाजा हमें और हमारी भावी पीढ़ी को भुगतना पड़े।



छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार और समसामयिक मसलों पर लगातार लेखन.







पाकिस्तान में मीडिया पर गहराता संकट

विश्वस्तरीय अंग्रेज़ी पत्रिका टाईम मैगज़ीन के एक पत्रकार ने इस बात का सचित्र व सप्रमाण पर्दाफाश किया था कि भारत का मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम कराची में किस स्थान पर और किस आलीशान कोठी में किस शानोशौकत के साथ रह रहा है...

तनवीर जाफरी

वॉल स्ट्रीट जनरल के 38वर्षीय अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल का अपहरण तथा 2002 में उसकी की गई नृशंस हत्या से लेकर अब तक दर्जनों पत्रकार पाकिस्तान में सिर्फ इसी बात का खमियाज़ा भुगत चुके हैं कि उन्होंने अपनी रिपोर्टिंग,आलेख या समीक्षा में पाकिस्तान के ज़मीनी हालात तथा उसकी सच्चाई उजागर करने का साहस आखिर  कैसे किया। ताजा मामला  31 मई को मारे गए  40 वर्षीय पत्रकार सलीम शहज़ाद का है, जो एशिया टाईम्स ऑन लाईन का पाक ब्यूरो प्रमुख थे । सलीम ने  पाकिस्तानी नौसेना तथा अलकायदा के मध्य सांठगांठ होने जैसे नापाक रिश्तों का सप्रमाण पर्दाफाश किया। इस आशय का लेख प्रकाशित होते ही सलीम शहज़ाद को धमकियां मिलने लगीं थीं और अंत में उसका अपहरण कर हत्या कर दी गई।

सलीम की लाश इस्लामाबाद से लगभग दौ सौ किलोमीटर दूर एक सुनसान जगह पर मिली. पाक मीडिया में संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि हो न हो सलीम शहज़ाद की हत्या आईएसआई ने ही कराई है। पाकिस्तान के सत्ताधीश,फौजी हुक्मरान, आईएसआई के अधिकारी यह कतई पसंद नहीं करते कि दुनिया को पाकिस्तान में गहराती चरमपंथ व आतंकवाद की जड़ों का सही-सही अंदाज़ा हो सके। पाक शासक व सैन्य अधिकारी यह भी नहीं चाहते कि दुनिया को इस बात का इल्म हो कि किस प्रकार आईएसआई तथा पाक सेना आतंकियों से गुप्त रूप से सांठगांठ बनाए हुए है। वे कश्मीर सहित पूरे भारत में आईएसआई द्वारा चलाए जा रहे भारत विरोधी आतंकी मिशन का भी भंडाफोड़ नहीं चाहते।

सलीम शहजाद और डेनियल पर्ल : कर्त्तव्य  के लिए  क़ुर्बानी

इतना ही नहीं बल्कि पाक शासक आंतरिक राजनीति अथवा अन्य आंतरिक मामलों को लेकर भी अपनी आलोचना मीडिया के माध्यम से सुनने के आदी नहीं हैं। याद कीजिए जनरल परवेज़ मुशर्रफ के शासनकाल का वह लगभग अंतिम दौर जबकि उन्होंने पाकिस्तान के मशहूर टीवी चैनल जियो टीवी को अपना एक साक्षात्कार दिया था। इस साक्षात्कार में मुशर्रफ ने कुछ अंश प्रसारित न करने की संपादक हामिद मीर को हिदायत दी थी। परंतु हामिद मीर ने अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता का दायित्व निभाते हुए मुशर्रफ का असंपादित साक्षात्कार प्रसारित किया। जैसे ही साक्षात्कार के विवादित अंश टीवी पर प्रसारित होना शुरु हुए उसी समय परवेज़ मुशर्रफ के सरकारी गुंडों ने जियो टी वी के दफ्तर में घुसकर भारी तोड़-फोड़ कर डाली।

मीडिया की आज़ादी का गला घोंटने का यह प्रयास पाकिस्तान के किसी सामान्य नेता,धर्मगुरु या अधिकारी द्वारा नहीं बल्कि सीधे तौर पर तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष द्वारा किया जा रहा था। यह घटना इस बात का सुबूत है कि पाकिस्तान की सेना,शासन तथा आईएसआई की व्यवस्था से जुड़े लोग अपनी उन सच्चाईयों पर पर्दा डाले रखना चाहते हैं जो वास्तव में पाकिस्तान को रसातल की ओर ले जा रही हैं। और यही सच्चाईयां इस समय न सिर्फ पाकिस्तान के आम नागरिकों के लिए सबसे बड़ा धोखा साबित हो रही हैं बल्कि इन्हीं कारणों से पाकिस्तान को पूरी दुनिया में रुसवा व बदनाम भी होना पड़ रहा है। पाकिस्तान के यही हालात पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किए जाने की कगार पर भी ले जा चुके हैं।

पाकिस्तान में पत्रकारों को डराना-धमकाना, उनका अपहरण करना तथा बेरहमी से पत्रकारों की हत्या करना अब पाकिस्तान के लिए कोई नई बात नहीं रह गई। ठीक उसी तरह जैसे कि पाकिस्तान में आत्मघाती हमले का होना अब कोई विशेष खबर नहीं है। पाकिस्तान में इस समय चारों ओर अराजकता,असुरक्षा तथा आतंकवाद का बोलबाला है। पाक सेना व आईएस आई की आतंकियों से जगज़ाहिर मिलीभगत ने आज आतंकियों के हौसले इतने बुलंद कर दिए हैं कि अब पाक स्थित चरमपंथी तथा अफगानिस्तान की सीमा की ओर से आने वाले तालिबानी व कबाईली आतंकी अब सीधे पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को ही चुनौती देने लगे हैं।


पिछले दिनों कराची में मेहरान नौसैनिक अड्डे पर जिस प्रकार आतंकवादियों ने हमला बोला उसे देखकर कई पाक सैन्य अधिकारियों ने स्वयं इस बात का संदेह ज़ाहिर किया है कि इतनी साहसिक व सुनियोजित आतंकी कार्रवाई करने वाले लोग केवल सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादी ही हो सकते हैं। मेहरान नेवल बेस को आतंकियों से मुक्त कराने के लिए पाकिस्तान की स्पेशल  सर्विसिज़ ग्रुप नेवी अर्थात् एस एस जी एन को पंद्रह घंटों का समय लगा। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान में एसएसजीएन की वही क्षमता व हैसियत है जोकि अमेरिका में यूएस नेवी सील की है। कराची के इस आप्रेशन में आतंकवादी दो लड़ाकू विमानों सहित भारी मात्रा में सैन्य सामग्री को भी नष्ट कर गए।   

मुंबई के 26/11 के चरमपंथी हमलों में भी पाकिस्तान सेना द्वारा प्रशिक्षित एवं सहायता प्राप्त आतंकवादियों के शामिल होने का खुलासा हो चुका है। अब सवाल यह है कि यदि इन्हें पाकिस्तान में प्रशिक्षित नहीं किया गया फिर आिखर इन्हें किसने प्रशिक्षित किया? परंतु पाकिस्तान के शासक व सैन्य अधिकारी यह कतई बर्दाश्त नहीं करते कि कोई शख्स विशेषकर मीडियाकर्मी ऐसी कड़वी सच्चाईयों को उजागर करने का साहस करे। और यदि कोई पत्रकार अपने पेशे के प्रति ईमानदार व समर्पित है तथा उसने ऐसी सच्चाईयों को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की तो उसे अपने इस कर्तव्य तथा साहस का भुगतान किसी भी रूप में करना पड़ सकता है।

आईएसआई तथा पाक सेना अपनी काली करतूतों को मीडिया की नज़रों से किस प्रकार छिपाना चाहती है और यदि उनकी कोई काली करतूत मीडिया ने उजागर कर भी दी तो उस पत्रकार से यह किस प्रकार निपटते हैं इसका भी एक उदाहरण तीन वर्ष पूर्व पाकिस्तान में देखने को मिल चुका है। अमेरिका की विश्वस्तरीय अंग्रेज़ी पत्रिका टाईम मैगज़ीन के एक पत्रकार ने इस बात का सचित्र व सप्रमाण पर्दाफाश किया था कि भारत का मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम कराची में किस स्थान पर और किस आलीशान कोठी में किस शानोशौकत के साथ रह रहा है। इसी पत्रकार ने अपने लेख में यह भी लिखा था कि दाऊद इब्राहिम को पाकिस्तान में किस प्रकार आईएसआई, सैनिकों व पूर्व सैनिकों का संरक्षण मिला हुआ है।

दाऊद इब्राहिम तथा आईएसआई की इस मिलीभगत का भंडाफोड़ करने के तत्काल बाद ही भारत सहित दुनिया के कई देशों में आतंकवाद को पनाह देने वाला पाकिस्तान का असली चेहरा एक बार फिर से बेनकाब हो गया था। आतंकवादियों को पनाह देने के इल्ज़ामों से घिरता जा रहा पाकिस्तान दाऊद इब्राहिम की पाक में मौजूदगी के सुबूत प्रकाशित होने से और भी बौखला गया। आखिरकार  आईएसआई तथा पाक जासूसों ने उस सत्यवादी व कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार का भी अपहरण कर लिया तथा उसे कई दिनों तक भरपूर शारीरिक व मानसिक यातना दी। उसे खूब डराया-धमकाया व प्रताडि़त किया गया तथा उससे एक फर्जी  सुसाईड नोट तक लिखवा लिया गया। आखिरकार  डरा-सहमा वह पत्रकार अपने परिवार सहित पाकिस्तान छोडक़र चला गया तथा अमेरिका में जा बसा।

मीडिया का गला घोंटने के ऐसे तमाम किस्से  पाकिस्तान में सुने जा सकते हैं। लेकिन  मीडिया का गला घोंटने का पाक हुक्मरानों तथा नीति निर्धारकों का यह प्रयास पाकिस्तान और  वहां की जनता को अंधेरे तथा अनिश्चितता के वातावरण की ओर ही ले जा रहा है।  आतंकवादियों को संरक्षण देने तथा इनसे मिलीभगत रखने के ही परिणामस्वरूप ऐबटाबाद जैसी घटना घटित हुई। वास्तव में यदि पाकिस्तान को अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता से प्यार है तथा इसका आदर करना है तो न केवल आतंकवाद व चरमपंथ से अपने रिश्ते खत्म करने होंगे बल्कि ऐसे नेटवर्क का भंडाफोड़ करने वाले पत्रकारों की रिपोर्ट व उनके आलेख का भी आदर व सम्मान करते हुए उस पर कार्रवाई करनी होगी। 



लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.