वे अपने केंद्रीय ‘व्यावसायिक गिरोह’द्वारा नियोजित फैसले को रद्द नहीं कर सकते थे। हमला करने के जो कारण पत्र में दिये गये हैं वह वास्तविक कारण नहीं हैं। वास्तविक कारण कुछ और हैं जिसे बयान करने का सहस दिशा के लोगों में नहीं है...
चक्रपाणि, सचिव- परिवर्तनकामी छात्र संगठन
दिशा छात्र समुदाय द्वारा नियोजित हमले के बाद गोरखपुर के वामपंथी,जनपक्षधर लोगों के नाम तपीश द्वारा जारी पत्र को पढ़कर और अधिक क्षोभ हुआ। कचहरी की भाषा में दिए गए कपोल कल्पित उत्तर ने और भी आहत कर दिया। पत्र की शुरुआत बनावटी विनम्र भाषा में बनावटी विनम्रता के साथ की गयी है। उनका खोखलापन पत्र के दूसरे पैराग्राफ की पांचवीं पंक्ति में ‘हमें इस घटना पर बेहद अफसोस है,हम समझते हैं कि इस घटना को टाला जाना चाहिए था’कहकर अपनी असली मंशा और चरित्र को उजागर कर दिया है। उन्हें हमला तो करना ही था,वे सिर्फ उसे टाल ही सकते थे।
वे अपने केंद्रीय ‘व्यावसायिक गिरोह’द्वारा नियोजित फैसले को रद्द नहीं कर सकते थे। हमला करने के जो कारण पत्र में दिये गये हैं वह वास्तविक कारण नहीं हैं। वास्तविक कारण कुछ और हैं,जिन्हें साफ-साफ दिशा के लोगों में कह पाने का साहस नहीं है। जिसे छुपाने के लिए वे लगातार झूठ पर झूठ गढ़े जा रहे हैं।
मेरी याददाश्त में कभी दिशा से जुड़े लोगों का ‘जनता को संबोधित,जनता की भाषा’में किसी विषय पर लिखा हुआ कोई पर्चा देखने में नहीं आया है जिसे हम किसी को पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकें। फिर उस पर मुहर लगाकर बांटने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। एक ही विश्वविद्यालय में स्वतंत्र रूप् से अपना छात्र संगठन (पछास) संचालित करते हुए हम दूसरे छात्र संगठन का पर्चा वितरित करके अपने संगठन का विस्तार कैसे कर सकते हैं?
अगर हम वैचारिक रूप से और साहित्य के दृष्टिकोण से इतने दयनीय होते तो विश्वविद्यालय में हमारा संगठन (पछास) प्रमुख नहीं होता और दिशा छात्र समुदाय दीवार लेखन और पोस्टर चिपकाने से उबरकर कैंपस में भी अपना वजूद कायम करने में कब का सफल हो गया होता। एक बात और यदि दिशा समुदाय के ऐसे पर्चे होते जो देश,काल, परिस्थितियों के इतने अनुरूप होते और छात्रों से संवाद करने वाले होते जिन्हें हम अपनी पसंदगी के अनुसार अपनी मुहर लगाकर वितरित करने में उत्साह का अनुभव करते तो इससे किसी क्रांतिकारी संगठन को आपत्ति कैसे हो सकती थी और फिर अगर ऐसा हुआ होता तो इसमें मेरे द्वारा ऐसी कौन सी गलती होती, जिसके लिए दिशा के लोगों से क्षमा-याचना करनी पड़ती।
इन्होंने जो तथ्य आप सब के बीच प्रस्तुत किया है उसे पढ़कर कुछ लोगों ने मुझसे यह प्रश्न किया कि दिशा के पर्चे भारी मात्रा में कहां से मिल गये,जिस पर आपने मुहर लगाकर भारी मात्रा में छात्रों के बीच में वितरित किया। और अगर वितरित किया और इतनी बड़ी सार्वजनिक कार्यवाही की तो इसे ‘कम ही’ लोग क्यों जानते हैं क्योंकि यह चोरी की कार्यवाही नहीं हो सकती। इन प्रश्नों का जवाब भी दिशा के लोग ही अपने ‘विराट कल्पना शक्ति’ के बल पर दे पायेंगे।
जहां तक उन्होंने अपने शिकायत की जानकारी स्वदेश कुमार को देने की कही है तो यहां स्पष्ट कर देना जरूरी है कि स्वदेश कुमार परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास) के सदस्य नहीं हैं। बल्कि ‘शशि प्रकाश’ की टीम से जिंदा बच निकलने वाले कुछेक एक व्यक्तियों में हैं जो अपने को बचाये हुए हैं। वर्तमान में स्वदेश कुमार दिशा के स्वामी शशिप्रकाश के संगठन की जगह दूसरे संगठन ‘न्यू सोसलिस्ट एनिसिएटिव’के सक्रिय कार्यकर्ता हैं और उन्होंने दिशा के हमले की निंदा की है।
जहां तक पत्र में यह लिखा गया है कि उनके मात्र चार कार्यकर्ता बातचीत करने के लिए बुलाये थे और हमारा उग्र व्यवहार देखकर उनके मात्र एक कार्यकर्ता ने मारपीट की। आइये! जरा विस्तार से घटनाक्रम को जानें कि आखिर में सच क्या है? इस घटना के करीब 10-15 दिन पहले मेरे पास 7275050105 नंबर से फोन आया। फोन करने वाले ने अपना नाम मुकेश बताया तथा उसने कहा कि वह विश्वविद्यालय का छात्र है। बीए प्रथम वर्ष में पढ़ता है तथा वह भगतसिंह के बारे में जानने का इच्छुक है। उसे ‘नागरिक’, ‘परचम’ पहले परिसर में एक बार मिल चुका है। फिर चाहिए तथा वह ‘पछास’ से जुड़ना चाहता है।
वह फोन जब मेरे पास आया तो मैं उस वक्त देवरिया में ‘क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन’ (क्रालोसं) के साथी वीएम तिवारी के साथ मौजूद था। लिहाजा मैंने मुकेश से गोरखपुर से बाहर होने की बात कहकर बाद में संपर्क करने का समय ले लिया। उससे यह पूछने पर कि उसे मेरा नंबर कहां से मिला तो उसका जवाब था कि कोचिंग में पढ़ने वाले किसी लड़के ने दिया है जिसका नाम वह नहीं जानता। उसने यह बताया कि वह जिस नंबर से बात कर रहा है वह उसका नहीं है। उसके पास अपना कोई नंबर नहीं है। इस नंबर पर संपर्क न करें।
उसने यह बताया कि वह अपने घर कुशीनगर जा रहा है। दो-चार दिन बाद आने के बाद वह खुद संपर्क करेगा। पुनः उसने चार जनवरी को फोन कर बताया कि वह 5जनवरी को सायं पांच बजे गोरखपुर के चार फाटक पर मिलेगा। पांच जनवरी को पुनः उसने फोन कर ४.30बजे शाम को याद दिलाया कि वह पांच बजे फाटक पर आ जायेगा। हमारे द्वारा यह कहने पर कि वह यूनिवर्सिटी के आसपास आ जाये, वहीं मिल लेंगे तो उसने कहा कि नहीं, वह रास्ता भूल जायेगा, शहर में अभी नया है। उसने कहा कि वह चार फाटक पर लाल रंग की रैंजर साईकिल से मिलेगा।
भीड़भाड़ वाली जगह पर बुलाकर उसने अपना वह नंबर बंद कर दिया जिससे उसने फोन किया था। अंधेरा होते देख कुछ देर इंतजार करने के बाद जब मैं वापस आने लगा तो उसने पीसीओ से फोन कर एक निर्जन स्थान पर बुलाया,जहां अंधेरा था। दो लड़के साईकिल से खड़े थे। अभी मैं उनसे यह पूछ ही रहा था कि क्या उनका नाम मुकेश है तब तक दिशा के दो कार्यकर्ता वहां अचानक प्रकट हो गये। मैं उनसे हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ा,तब तक 15-20 की संख्या में उस निर्जन स्थान पर खड़ी एक पुरानी ट्रक के पीछे से इनके कार्यकर्ता प्रकट हुए और बिना किसी संवाद के गाली देते हुए मुझ पर हमला कर दिया। शोर सुनकर उस सुनसान जगह पर कुछ लोगों के पहुंच जाने पर वे वहां से भाग निकले।
इसलिए तपीश का यह कहना कि यह घटना आकस्मिक है,सरासर झूठ है। इस घटना को जनचेतना व्यावसायिक गिरोह के इशारे पर नियोजित और योजनाबद्ध ढंग से अंजाम दिया गया है।