Apr 6, 2011

आवश्यकता है एक अन्ना की ?


अन्ना हजारे जन लोकपाल बिल की बात ऐसे कर रहे हें,जैसे एक कानून पुरे सिस्टम को सुधार देगा.हमारे पास पहले से कानूनों का पहाड़ है,समस्या उसको लागु करवाने वाली मशीनरी  की है...

पंकज चतुर्वेदी

कोई दो दशक पहले वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण ने :कालचक्र: के दिनों में एक बात कही थी  - 'हर कोई चाहता है कि भगत सिंह पैदा हो, लेकिन मेरे घर में नहीं, पडोसी के यहाँ.  मेरे घर तो अम्बानी ही आये.' उस दौर में हवाला पर बवाल था-- लग रहा था कि सार्वजानिक जीवन में सुचिता के दिन आ गए- कई की कुर्सियां गईं, कुछ नए सत्ता के दलाल उभरे.

फिर हालात पहले से भी बदतर हो गए, फिर आया राजा मांडा- वी पी सिंह का दौर- गाँव-गाँव शहर-शहर बोफोर्स तोप के खिलोनेनुमा मॉडल लेकर नेता घूमे- "तख़्त बदला, ताज बदला- बैमानों का राज बदला" या यों कहें कि केवल बेईमान ही बदले . हालात उससे भी अधिक बिगड़ गए.

आरक्षण, साम्प्रदायिकता की मारा-मार ने देश की सियासत की दिशा बदल दी और मंडल और कमंडल के छद्म दिखावे से लोगों को बरगला कर लोगों का सत्ता -आरोहन होने लगा-बात विकास, युवा, अर्थ जैसे विषयों पर आई और दलालों, बिचोलियों की पहुँच संसद तक बढ़ी. आज सांसदों का अधिसंख्यक वर्ग पूंजीपति है और चुनाव जीतना अब धंधा है.

अन्ना हजारे जन लोकपाल बिल की बात ऐसे कर रहे हें,जैसे एक कानून पुरे सिस्टम को सुधार देगा,हमारे पास पहले से कानूनों का पहाड़ है,समस्या उसको लागु करवाने वाली मशीन की है. सीबीआई पर भरोसा है नहीं-पुलिस निकम्मी है.अदालतें अंग्रेजी कानूनों से चल रही हें और न्याय इतना महंगा है कि आम आदमी उससे दूर है. अब तो सुप्रीम कोर्ट पर भी घूस के छींटे हैं. रही बात पत्रकारों की रादिया मामले ने बड़े- बड़ों की लंगोट खोल दी है.

अन्ना की मुहिम को रंग देने वाले वे ही ज्यादा आगे हैं  जिनके नाम २-जी स्पेक्ट्रम में दलाली में आये हैं. उस मुहिम में वे लोग सबसे आगे है जिन्होंने झारखण्ड में घोडा-खरीदी और सरकार बनवाने में अग्रणी भूमिका निभाई.जो येदुरप्पा और कलमाड़ी के भ्रष्टाचार को अलग-अलग चश्मे से देखते हैं.

बात घूम कर शुरू में आती है. हमारा मध्य वर्ग दिखावा  करने में माहिर है.अपनी गाड़ी में खरोंच लग जाने पर सामने वाले के हाथ-पैर तोड़ देता है,अपने बच्चे का नामांकन सरकारी स्कुल की जगह पब्लिक स्कूल  में करवाने के लिए घुस देता है, सिफारिश करवाता है. वह अपने अपार्टमेन्ट में गंदगी साफ़ करने में शर्म महसूस करता है. उसका सामाजिक कार्य भी दिखावा होता है.

अब उसे एक मसीहा मिल गया है. मोमबत्ती बटालियन को मुद्दा मिल गया.  यह तो बताएं कि एक कानून कैसे दुनिया को बदलेगा? आखिर  मुंबई हमले,मालेगांव,हैदराबादऔर समझौता जाँच धमाकों  को लेकर  रामदेव, रविशंकर, अन्ना या किरण बेदी क्यों चुप हैं.

 
उपवास के पीछे का खेल कुछ अलग है?हो सकता है कि कोई आदर्श सोसायटी की जाँच को प्रभावित कर रहा हो? हिन्दू उग्रवाद से लोगों का ध्यान हटा रहा हो? या सत्ता के कोई नए समीकरण बैठा रहा हो? जब मांग में ही दम नहीं है तो उसके परिणाम क्या होंगे?



क्यों बनायेंगे अन्ना हजारे लोकपाल


लोकपाल बिल में वे  सुझाव शामिल करने  चाहिये जो अन्ना हजारे एवं अन्य की ओर रखे गए हैं, लेकिन निर्वाचित प्रतिनिधि कानून बनाने से पहले  समाज के उन लोगों से पूछे,  जिन्हें समाज ने कभी नहीं चुना, यह कैसी उटपटांग   मांग है...


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’


इस बात में कोई शक नहीं है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई जानी चाहिये.  इस मद्देनजर  समाजसेवी अन्ना हजारे और  उनके साथियों की ओर से लोकपाल बिल की कमियों के बारे में कही गयी बातें पूरी तरह से न्यायोचित भी हैं, जिनका हर भारतवासी को समर्थन करना चाहिये.


महाराष्ट्र नवनिर्माण  सेना प्रमुख राज ठाकरे और अन्ना
 बावजूद इसके किसी भी दृष्टि से यह न्यायोचित नहीं है कि-‘सरकार अकेले लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करती है तो यह लोकशाही नहीं,निरंकुशता है’. ऐसा कहकर तो हजारे एवं उनके साथी सरकार की सम्प्रभु शक्ति को ही चुनौती दे रहे हैं. 

हम सभी जानते हैं कि भारत में लोकशाही है और संसद लोकशाही का सर्वोच्च मन्दिर है. इस मन्दिर में जिन्हें भेजा जाता है,वे देश की सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. निर्वाचित सांसदों द्वारा ही संवैधानिक तरीके से सरकार चुनी जाती है. ऐसे में सरकार के निर्णय को ‘निरंकुश’ या ‘अलोकतान्त्रिक’ कहना असंवैधानिक है.

लोकपाल बिल के बहाने लोकतन्त्र एवं संसद को चुनौती देना और गॉंधीवाद का सहारा लेना-नाटकीयता के सिवा कुछ भी नहीं है. यह संविधान का ज्ञान नहीं रखने वाले देश के करोड़ों लोगों की भावनाओं के साथ खुला खिलवाड़ है. यदि सरकार इस प्रकार की प्रवृत्तियों के समक्ष झुक गयी तो आगे चलकर किसी भी बिल को सरकार द्वारा संसद से पारित नहीं करवाया जा सकेगा.

परोक्ष रूप से यह मांग भी की जा रही है कि लोकपाल बिल बनाने में अन्ना हजारे और विदेशों द्वारा सम्मानित लोगों की हिस्सेदारी और भागीदारी होनी चाहिये. आखिर क्यों हो इनकी भागीदारी ? हमें अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों पर विश्‍वास क्यों नहीं है. यदि विश्‍वास नहीं है तो हमने उन्हें चुना ही क्यों? हजारे की यह जिद उचित नहीं कही जा सकती.

यदि सरकार एक बार ऐसे लोगों के आगे झुक गयी तो सरकार को हर कदम पर झुकना होगा. कल को कोई दूसरा अन्ना हजारे जन्तर-मन्तर पर जाकर अनशन करने बैठ जायेगा और कहेगा कि-इस देश का धर्म हिन्दु धर्म होना चाहिये,कोई दूसरा कहेगा कि इस देश से मुसलमानों को बाहर निकालना चाहिये, कोई स्त्री स्वतन्त्रता का विरोधी मनुवादी कहेगा कि महिला आरक्षण बिल को वापस लिया जावे और इस देश में स्त्रियों को केवल चूल्हा चौका ही करना चाहिये,इसी प्रकार से समानता का तार्किक विश्‍लेषण करने वाला कोई अन्य यह मांग करेगा कि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों का आरक्षण समाप्त कर दिया जाना चाहिये. जाहिर है ऐसी सैकड़ों प्रकार की मांग उठाई जा सकती है जिससे आखिरकार अराजकता ही फैलेगी.

इसलिए सरकार को लोकपाल बिल में वे सभी बातें शामिल करनी चाहिये जो हजारे एवं अन्य लोगों की ओर से प्रस्तुत की जा रही है. लेकिन इस प्रकार की मांग ठीक नहीं है कि निर्वाचित प्रतिनिधि कानून बनाने से पूर्व समाज के उन लोगों से पूछें, जिन्हें समाज ने कभी नहीं चुना. यह संविधान और लोकतन्त्र का खुला अपमान है और हमेशा-हमेशा के लिए  संसद की सर्वोच्चता समाप्त करना है.


(जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र 'प्रेसपालिका' के सम्पादक. समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी,गैर-बराबरी के विरुद्ध 1993 से सेवारत.उनसे पर  dr.purushottammeena@yahoo.in संपर्क  किया  जा सकता है.)  


भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्नावतार

  
पता चलता है कि अन्ना मंच पर आ चुके हैं. कल के अन्ना और आज के अन्ना में एक महीन सा फर्क नजर आता है.उनकी चमड़ी का रंग थोड़ा और तांबई हो गया है,लेकिन हौसला और पक्का लग रहा है...

जंतर मंतर डायरी -1

ये अन्ना के आमरण अनशन की पहली सुबह थी. कल से लगातार खट  रहे कैमरे खामोश थे और मीडिया वाले ऊंघ रहे थे.कुछ चाय की चुस्कियों से अपनी थकान मिटाने की कोशिश कर रहे थे.तो कुछ चहलकदमी करके पैरो में सिमट आई एकरसता तोड़ रहे थे.

सूरज आसमान में चढ़ रहा था और जिंदगी फुटपाथ पर उतरने लगी थी. अन्ना के समर्थन में लगे नारों -पोस्टरों को देख लोगबाग पूछे जा रहे थे,जन लोकपाल बिल क्या होता है.उसी में कुछ बताये जा रहे थे कि बाबा भ्रष्टाचार ख़त्म कराने के लिए भूख हड़ताल पर हैं. 

गौरतलब है कि महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले गाँधीवादी कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे जन लोकपाल विधेयक लागु करने के लिए कल से आमरण अनशन पर हैं.उन्हें उम्मीद है कि इस विधेयक के लागु होने से देश से भ्रष्टाचार चला जायेगा.हालाँकि सरकार भी ऐसा ही कोई कानून चाहती है,लेकिन अनशनकारियों का सरकार के मौजूदा लोकपाल विधेयक से ऐतराज है. उनके मुताबिक यह झुनझुना हैं.अन्ना कहते हैं,'हमारी मांग मुताबिक एक ऐसा विधेयक बने जिसमें 50 फीसदी सरकार के और 50फीसदी जनता के लोग हों, जो भ्रष्टाचार मामलों में निर्णय लें और कार्रवाई कर सकें.'

पिछले चौबीस घंटे से जो 129लोग आमरण अनशन पर हैं,उनके चेहरे पर थोड़ी थकान है.अन्ना अभी तक मंच पर नहीं आये थे.मंच के नीचे  कुछ जाने पहचाने चेहरे मिले.कुछ ने गले लगाकर स्वागत किया तो कुछ ने बस एक मीठी मुस्कान का तोहफा दिया. शायद लगा कि हां, सुबह जानदार है. शायद इसी तरह कोई सुबह आएगी जब भ्रष्टाचार की सियाही मिट जाएगी.

दिल्ली के जंतर-मंतर पर अन्ना के अनशन के समर्थन में बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर के बैनर भी मंच के ऊपर लहरा रहा हैं.यहाँ पुलिस की मौजूदगी न के बराबर है,  मानो यूपीए सरकार भी अपरोक्ष रूप से अनशन में शामिल है.

वक्त की सुई थोड़ा और आगे खिसकती है.सूरज थोड़ा और ऊपर चढ़ता है.लोगों की आवक जावक थोड़ी और बढ़ती है और तभी लोग मंच की तरफ भगाने लगते हैं. पता चलता है कि अन्ना मंच पर आ चुके हैं.  कल के अन्ना और आज के अन्ना में एक महीन सा फर्क नजर आता है.उनकी चमड़ी का रंग थोड़ा और तांबई हो गया है, लेकिन हौसला और पक्का लग रहा है.

मंच के पास जाने का हौसला नहीं होता क्योंकि वहां की जगह कैमरों ने छीन ली है. खुद को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहने वाला मीडिया किस तरह अराजक है, ये एक बार फिर स्थापित हुआ. हर कोई अन्ना से कुछ एक्सक्लूसिव चाह रहा था. जबकि इसमें कुछ भी एक्सक्लूसिव हो ही नहीं सकता.

कल जब अन्ना ने् अनशन का ऐलान किया था तब करीब दो हजार लोग जंतर मंतर पर इकट्ठा हुए थे. हर वो आदमी जो किसी भी तरह से इस व्यवस्था के नीचे घुटन महसूस करता है अन्ना के अनशन से राहत महसूल कर रहा है.

बहरहाल मैं अन्ना से बातचीत की इच्छा दबाए अब वापस लौट पड़ा हूँ. रास्ते में वो कुछ भी नहीं मिलता जो जाते वक्त मिला था.न वो हौसला और न ही वो उम्मीद.शायह हर यात्रा का अंत ऐसे ही होता है.तो क्या अन्ना की यात्रा का भी यही अंत होगा...