पता चलता है कि अन्ना मंच पर आ चुके हैं. कल के अन्ना और आज के अन्ना में एक महीन सा फर्क नजर आता है.उनकी चमड़ी का रंग थोड़ा और तांबई हो गया है,लेकिन हौसला और पक्का लग रहा है...
जंतर मंतर डायरी -1
ये अन्ना के आमरण अनशन की पहली सुबह थी. कल से लगातार खट रहे कैमरे खामोश थे और मीडिया वाले ऊंघ रहे थे.कुछ चाय की चुस्कियों से अपनी थकान मिटाने की कोशिश कर रहे थे.तो कुछ चहलकदमी करके पैरो में सिमट आई एकरसता तोड़ रहे थे.
सूरज आसमान में चढ़ रहा था और जिंदगी फुटपाथ पर उतरने लगी थी. अन्ना के समर्थन में लगे नारों -पोस्टरों को देख लोगबाग पूछे जा रहे थे,जन लोकपाल बिल क्या होता है.उसी में कुछ बताये जा रहे थे कि बाबा भ्रष्टाचार ख़त्म कराने के लिए भूख हड़ताल पर हैं.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले गाँधीवादी कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे जन लोकपाल विधेयक लागु करने के लिए कल से आमरण अनशन पर हैं.उन्हें उम्मीद है कि इस विधेयक के लागु होने से देश से भ्रष्टाचार चला जायेगा.हालाँकि सरकार भी ऐसा ही कोई कानून चाहती है,लेकिन अनशनकारियों का सरकार के मौजूदा लोकपाल विधेयक से ऐतराज है. उनके मुताबिक यह झुनझुना हैं.अन्ना कहते हैं,'हमारी मांग मुताबिक एक ऐसा विधेयक बने जिसमें 50 फीसदी सरकार के और 50फीसदी जनता के लोग हों, जो भ्रष्टाचार मामलों में निर्णय लें और कार्रवाई कर सकें.'
पिछले चौबीस घंटे से जो 129लोग आमरण अनशन पर हैं,उनके चेहरे पर थोड़ी थकान है.अन्ना अभी तक मंच पर नहीं आये थे.मंच के नीचे कुछ जाने पहचाने चेहरे मिले.कुछ ने गले लगाकर स्वागत किया तो कुछ ने बस एक मीठी मुस्कान का तोहफा दिया. शायद लगा कि हां, सुबह जानदार है. शायद इसी तरह कोई सुबह आएगी जब भ्रष्टाचार की सियाही मिट जाएगी.
दिल्ली के जंतर-मंतर पर अन्ना के अनशन के समर्थन में बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर के बैनर भी मंच के ऊपर लहरा रहा हैं.यहाँ पुलिस की मौजूदगी न के बराबर है, मानो यूपीए सरकार भी अपरोक्ष रूप से अनशन में शामिल है.
वक्त की सुई थोड़ा और आगे खिसकती है.सूरज थोड़ा और ऊपर चढ़ता है.लोगों की आवक जावक थोड़ी और बढ़ती है और तभी लोग मंच की तरफ भगाने लगते हैं. पता चलता है कि अन्ना मंच पर आ चुके हैं. कल के अन्ना और आज के अन्ना में एक महीन सा फर्क नजर आता है.उनकी चमड़ी का रंग थोड़ा और तांबई हो गया है, लेकिन हौसला और पक्का लग रहा है.
मंच के पास जाने का हौसला नहीं होता क्योंकि वहां की जगह कैमरों ने छीन ली है. खुद को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहने वाला मीडिया किस तरह अराजक है, ये एक बार फिर स्थापित हुआ. हर कोई अन्ना से कुछ एक्सक्लूसिव चाह रहा था. जबकि इसमें कुछ भी एक्सक्लूसिव हो ही नहीं सकता.
कल जब अन्ना ने् अनशन का ऐलान किया था तब करीब दो हजार लोग जंतर मंतर पर इकट्ठा हुए थे. हर वो आदमी जो किसी भी तरह से इस व्यवस्था के नीचे घुटन महसूस करता है अन्ना के अनशन से राहत महसूल कर रहा है.
बहरहाल मैं अन्ना से बातचीत की इच्छा दबाए अब वापस लौट पड़ा हूँ. रास्ते में वो कुछ भी नहीं मिलता जो जाते वक्त मिला था.न वो हौसला और न ही वो उम्मीद.शायह हर यात्रा का अंत ऐसे ही होता है.तो क्या अन्ना की यात्रा का भी यही अंत होगा...
बहरहाल मैं अन्ना से बातचीत की इच्छा दबाए अब वापस लौट पड़ा हूँ. रास्ते में वो कुछ भी नहीं मिलता जो जाते वक्त मिला था.न वो हौसला और न ही वो उम्मीद.शायह हर यात्रा का अंत ऐसे ही होता है.तो क्या अन्ना की यात्रा का भी यही अंत होगा...
No comments:
Post a Comment