समाज में विचाारधाराओं का आपसी पूर्वग्रह इतना बड़ा होता जा रहा है कि हम किसी खबर के सच और झूठ का फैसला तथ्यों के आइने में नहीं बल्कि विचारधाराओं की अंधभक्ति में कर रहे हैं। इस मामले में संघी या वामपंथी कई बार एक जैसे नजर आते हैं। वे तथ्यों को जांचे बिना अपने वैचारिक मान्यताओं को सच बनाकर पेश करने लगते हैं।
आज सुबह से कई वेबसाइट्स पर दैनिक जागरण से जुड़े किसी डिप्टी न्यूज एडिटर डॉक्टर अनिल दीक्षित का पोस्ट यह कहते हुए शेयर हो रहा है कि उसने जेएनयू से गिरफ्तार उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के साथ जेल में बलात्कार के लिए कैदियों को उकसाने वाला पोस्ट लिखा है। तमाम वामपंथी पक्षधर, मुस्लिम इस खबर को चटर—पटर बनाकर तरह—तरह से पेश कर रहे हैं। शेयर करने वालों में कई साइट्स, पत्रकार और बुद्धिजीवी शामिल हैं।
लेकिन इस मामले में सबसे पहले क्या होना चाहिए था। क्या दैनिक जागरण से एक बार नहीं पूछा जाना चाहिए था कि क्या उनका यह पत्रकार है और उस पर संस्थान ने क्या कार्रवाई किया। या अगर सीधे नहीं पूछ सकते थे तो एक बार किसी पत्रकार से ही जान लेते। पर हममें से किसी ने यह नहीं किया। बस मान्यता के आधार पर समझ बना ली कि जागरण का पत्रकार होगा तो संघी ही होगा और ऐसा ही लिख सकता हैै।
जागरण से मिली जानकारी के मुताबिक इस नाम का कोई डिप्टी न्यूज एडिटर उनके संस्थान में नहीं है। और अनिल दीक्षित ने भी प्रोफाइल में 'फॉर्मर डिप्टी न्यूज एडिटर' लिखा है। प्रोफाइल के मुताबिक अनिल दीक्षित पेशे से वकील होने का दावा करते हैं।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही कि यह गलती वामपंथियों के बड़े धड़े से कैसी हुई। क्या वह धीरे—धीरे दक्षिणपंथी मुर्खतवाद के शिकार होते जा रहे हैं और उन्हें भी लगता है कि विचारधारा की मजबूती के लिए फर्जी जानकारियों और पूर्वग्रहग्रस्त तथ्यों का सहारा लिया जाना चाहिए।
या फिर वह एक एनडीटीवी को अपना मानकर बाकी मीडिया को अपना दुश्मन समझ बैठे हैं।
या फिर वह एक एनडीटीवी को अपना मानकर बाकी मीडिया को अपना दुश्मन समझ बैठे हैं।
यहां इस जवाब का कोई मतलब नहीं है कि पहले उसकी प्रोफाइल में दैनिक जागरण ही लिखा था। कल को कोर्इ् अपनी प्रोफाइल पर कुछ भी लिख दे तो आप उसके लिए किसी संस्थान को जिम्मेदार कैसे मान लेंगे और बिना जांचे - परखे गुट बनाके उसको बदनाम करने में जुट जाएंगे।