Oct 18, 2010

इस देश का असली मर्ज क्या है?


उद्योगों और विशाल कारोबारी घरानों के विकास के लिए जहां सरकार की एक दीर्घकालिक रणनीति है,वैसी ही रणनीति लोगों के विकास के लिए वह नहीं अपनाती। लोगों का विकास करने के क्रम में वह अल्पकालिक तरीके अपनाती है-गरीबी दूर करने के उपाय,जैसे कि यह अग्निशमन जैसा कोई काम हो।


कोबाड गांधी

एक देश किससे बनता है?मूलत: अपनी जमीन और अपने लोगों से मिल कर। जाहिर है, देश के विकास का अर्थ इन दो चीजों का विकास होना चाहिए। इन दो तत्वों का विकास नहीं होने या धीमा होने से देश पीछे चला जाता है। इन दो तत्वों में दूसरा,यानी लोग प्राथमिक हैं  लेकिन उनका विकास पर्यावरण की कीमत पर नहीं किया जा सकता। दोनों को समानांतर तरीके से,करीबी अंतरसंबंध कायम रखते हुए विकसित होना चाहिए, और ऐसा संभव है।

जब मैं लोगों की बात करता हूं,तो मेरा आशय देश के विशाल मानव संसाधन से होता है। हम कुछ लोगों के विकास की नहीं,बल्कि विशाल बहुसंख्य आबादी की कामना करते हैं क्योंकि यही वह तबका है जिससे मिल कर हमारा देश वास्तव में बनता है। उन्हीं का विकास भारत का विकास है।

जब मैं जमीन की बात करता हूं,तो सामान्य तौर पर देश के कुल प्राकृतिक संसाधनों से मेरा आशय होता है- जमीन, उसकी उर्वरता, जंगल, जल, जमीन के नीचे दबी संपदा, हवा, इत्यादि। इस तरह हम देखते हैं कि मानव संसाधन और प्राकृतिक संसाधन दोनों मिल कर हमारे देश का निर्माण करते हैं। हमारी यह समझ बहुत पुराने समय से रही है। यहां तक कि वेदों में भी यही बात कही गई थी (अथर्ववेद 12.1.6)। विकास के पर्याय के रूप में जीडीपी दर, उच्च प्रौद्योगिकीय ‘विकास’ इत्यादि को तो अब प्रचारित किया जाने लगा है।

जब मैं विकास की बात करता हूं,तो उसे महज आर्थिक संदर्भ में नहीं,बल्कि उसके आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भी देखता हूं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मनुष्य को जीवन की बुनियादी सुविधाएं मिलनी ही चाहिए- भोजन,पानी, कपड़ा, आश्रय और शिक्षा- लेकिन ये चीजें एक संपूर्ण मनुष्य के रूप में उसके विकास की दिशा में सिर्फ प्रस्थान बिंदु हैं।

भोजन और पानी तो पशुओं को भी मिलतेहैं। लेकिन सभी मनुष्यों की  वैयक्तिकता  के उनके आध्यात्मिक, सांस्कृति और सामाजिक-राजनीतिक विकास के माध्यम से फलने-फूलने से ही हम देश के मानव संसाधनों कावास्तविक  विकास हासिल कर सकते हैं। आध्यात्मिकता से मेरा आशय धर्म नहीं है (हालांकि यह उसमें शामिल हो सकता है,यह निजी प्राथमिकताओं  पर निर्भर है) बल्कि उन मूल्यों का समुच्चय है जो परस्पर सम्मान और समझ के आधार पर लोगों के बीच सर्वश्रेष्ठ सहकारितापूर्ण संवाद की स्थिति बनने दे।

उद्योगों और विशाल कारोबारी घरानों के विकास के लिए जहां सरकार की एक दीर्घकालिक रणनीति है,वैसी ही रणनीति लोगों के विकास के लिए वह नहीं अपनाती। लोगों का विकास करने के क्रम में वह अल्पकालिक तरीके अपनाती है-गरीबी दूर करने के उपाय,जैसे कि यह अग्निशमन जैसा कोई काम हो। नीति में यह बदलाव चौथी योजना के बाद आया है और ग्रामीण विकास जैसे मदों के लिए आवंटित की जाने वाली राशि तेजी से घटती गई है।


हालांकि सरकार गरीबी खत्म करने के  उपायों पर भारी राशि खर्च करती है,लेकिन इससे कुछ भी टिकाऊ या ठोस पैदा नहीं होता। हजारों करोड़ इस ब्लैकहोल में चले जाते हैं और मामूली हिस्सा ही लोगों तक पहुंच पाता है। यहां मैं भ्रष्टाचार की तो बात ही नहीं कर रहा-वह दूसरा मसला है। मैं लोगों के कल्याण को लेकर अपनाए जाने वाले नजरिए की बात कर रहा हूं। क्या हमें लोगों को साल भर छिटपुट लाभ ही देते रहना चाहिए या फिर उनके लिए एक आधार भी तैयार करना चाहिए जिस पर खड़े होकर वे अपनी आजीविका कमा सकें और देश के लिए कुछ ठोस निर्मित कर सकें? असल मसला यही है।

दूसरा मसला भ्रष्टाचार का है,जो इन पोली योजनाओं को संक्रमित कर देता है। उदाहरण के लिए बहुप्रचारित नरेगा को ही लें जिसके लिए मौजूदा वर्ष के बजट में 40,000करोड़ दिए गए हैं। मणिशंकर अय्यर के मुताबिक त्रिपुरा में नरेगा के तहत कुल योग्य परिवारों में सिर्फ 36.6फीसदी परिवार ही जोड़े गए।

उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा 14फीसदी है। छत्तीसगढ़,झारखंड और बिहार में यह सिर्फ आठ फीसदी है जबकि उड़ीसा और उत्तराखंड में छह फीसदी से भी कम परिवार इसके दायरे में लाए गए। तो फिर सारा पैसा गया  कहां? विडंबना है कि योजना आयोग ने 2004 में खुद यह स्वीकार किया था कि सब्सिडीयुक्त 58 फीसदी खाद्यान्न बीपीएल परिवारों तक नहीं पहुंच पाया और 36 फीसदी की कालाबाजारी हुई।

दूसरी ओर हमारी विकास नीतियों ने ऐसे अमीरों को जन्म दिया है जिनमें शीर्ष सौ की संपत्ति 300अरब या भारत के जीडीपी का 25फीसदी है। भारत में अरबपतियों के बढऩे की दर दुनिया में सबसे ज्यादा रही है। 2009 में 3134 एक्जीक्यूटिव थे जो 50लाख सालाना से ज्यादा कमाते थे और हजार ऐसे थे जो सालाना एक करोड़ से ज्यादा वेतन पाते थे। इसमें काली कमाई शामिल नहीं है,जो जीडीपी के 40 से 50 फीसदी के बीच है। यह 25लाख करोड़ की भारी-भरकम राशि बड़े कारोबारी घरानों,नेताओं और अफसरों में बंट जाती है। इसके कुछ टुकड़े उन लाखों लोगों तक रिस कर नीचे पहुंचते हैं जो हमारे समाज के  समूचे नैतिक ताने-बाने को भ्रष्ट बना रहे हैं।

कहने का अर्थ यह है कि इस देश में जो थोड़ा-बहुत भी विकास हो रहा है,समाज के एक सूक्ष्म से हिस्से का ही ग्रास बन जा रहा है और इससे देश के निर्माण में कोई खास योगदान नहीं हो पा रहा है। असल समस्या इस देश की यही है, जिसका उपचार किए जाने की जरूरत है।

दैनिक भास्कर से साभार.


(नई दिल्ली में १८-१९ अक्टूबर को  आयोजित विकास विषयक दो दिवसीय सम्मलेन में पाठ के लिए तिहाड़ जेल से लेखक द्वारा भेजे गए पर्चे का संपादित अंश. लेखक प्रतिबंधित पार्टी सीपीआइ (माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य हैं. उन्हें दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर आतंकवाद निरोधक गतिविधि निवारक कानून (यूएपीए) के तहत आरोपित किया है.)


Justice for मां


यशवंत सिंह

गाजीपुर के एसएसपी को चिट्ठी

गाजीपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एल. रवि कुमार (फाइल फोटो)



Date: 2010/10/18, Subject: तीन महिलाओं को 12 घंटे तक थाने में बंधक बनाए रखने के मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने हेतु, To: spgzr@up.nic.in , Cc: dgp@up.nic.in  dgpolice@sify.com  adglo@up.nic.in , श्रीमान एल. रवि कुमार जी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश,मैं यशवंत सिंह आपसे मुखातिब हूं.दिल्ली में एक वेब मीडिया कंपनी में कार्यरत हूं.इस कंपनी के पोर्टल का नाम http://www.bhadas4media.com/  है.

इस मीडिया पोर्टल में मीडिया के अंदर के स्याह-सफेद को उदघाटित किया जाता है.मैं इस पोर्टल में सीईओ & एडिटर के पद पर कार्यरत हूं.इससे पहले मैं दैनिक जागरण और अमर उजाला में करीब छह छह वर्षों तक वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, लखनऊ आदि शहरों में छोटे-बड़े पदों पर कार्यरत रहा. जागरण ग्रुप के सेकेंड ब्रांड आई-नेक्स्ट का लांचिंग एडिटोरियल इंचार्ज रहा. मैं एक शिकायत दर्ज कराना चाहता हूं जो मेरे लिहाज से बहुत गंभीर प्रकरण है, मेरे मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ देने वाला घटनाक्रम है.

पिछले दिनों मुझे गाजीपुर जिले के नंदगंज थाने के अलीपुर बनगांवा गांव से सूचना मिली की आपके व पुलिस के अन्य उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्थानीय थाने की पुलिस ने मेरी मां यमुना सिंह,मेरी चाची रीता सिंह और मेरे चचेरे भाई की पत्नी सीमा सिंह को घर से जबरन उठा लिया.रात भर पुरुष थाने में बंधक बनाए रखा.दोपहर बाद तभी घर जाने दिया गया जब एक केस में नामजद मेरे चचेरे भाई ने थाने आकर सरेंडर कर दिया.

महिलाओं के सम्मान की बात माननीय मुख्यमंत्री मायावती जी भी करती हैं.इन दिनों एक महिला ही देश की राष्ट्रपति हैं.सुपर पावर सोनिया गांधी के इशारे पर केंद्र सरकार चल रही .और,मेरे खयाल से आप भी महिलाओं से संबंधित कानून को अच्छी तरह जानते हैं. बावजूद इसके, इन तीन महिलाओं को थाने में शाम से लेकर अगले दिन दोपहर तक बिठाये रखना न केवल शर्मनाक है बल्कि यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर धब्बा है.

मां व अन्य महिलाओं को थाने में बिठाए जाने की सूचना मिलते ही मैंने स्थानीय मीडियाकर्मियों से अनुरोध कर थाने में बैठी महिलाओं की तस्वीरें खिंचवाईं व वीडियो बनवाई. यह सब बंधक बनाए जाने के घटनाक्रम के सुबूत हैं. कुछ तस्वीरों व वीडियो को प्रमाण के रूप में यहां सलग्न कर रहा हूं.इस प्रकरण से संबंधित सूचनाएं,आलेख व खबरें http://www.bhadas4media.com/  पर प्रकाशित की गई हैं. आपसे अनुरोध है कि इन खबरों, प्रमाणों, तस्वीरों, वीडियो आदि के आधार पर मामले की जांच कराकर उन दोषी पुलिस अधिकारियों का पता लगवाएं जिनके निर्देश पर मेरी मां समेत चार महिलाओं को बंधक बनाकर थाने में रखा गया.



यही नहीं, अगले दिन स्पेशल आपरेशन ग्रुप (एसओजी) के लोगों ने बिना किसी नोटिस, चेतावनी और आग्रह के सादी वर्दी में सीधे मेरे गांव के पैतृक घर में घुसकर छोटे भाई के बेडरूम तक में चले गए और वहां से छोटे भाई की पत्नी से छीनाझपटी कर मोबाइल व अन्य सामान छीनने की कोशिश की. छोटे भाई व अन्य कई निर्दोष युवकों को थाने में देर रात तक रखा गया.इस मामले का सिर्फ इसलिए यहां उल्लेख कर रहा हूं कि मेरे परिवार के सभी सदस्यों को पुलिस से जानमाल का खतरा उत्पन्न हो गया है और जिस तरह की हरकत स्थानीय अधिकारी व पुलिस के लोग कर रहे हैं,उससे लग रहा है कि उनका लोकतंत्र व मानवीय मूल्यों में कोई भरोसा नहीं है.वे एक अराजक माफिया गिरोह की तरह संचालित हो रहे हैं और इसी अंदाज में आम जन से संबोधित-मुखातिब हो रहे हैं.

मैं इस शिकायती पत्र की प्रतिलिपित यूपी के डीजीपी समेत पुलिस के कई उच्चाधिकारियों को इसलिए प्रेषित कर रहा हूं,साथ ही मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग को भेज रहा हूं ताकि मेरे व मेरे परिवार के किसी भी सदस्य पर किसी किस्म का कोई प्रहार,हमला या गिरफ्तारी या गुमशुदगी हुई तो इसके लिए एकमात्र जिम्मेदार यूपी पुलिस होगी.

मुझे यह पत्र आपको, अर्थात गाजीपुर के पुलिस अधीक्षक रवि कुमार लोकू को लिखते हुए भी यह भय है कि कहीं मैं उसी से फरियाद तो नहीं कर रहा जिस पर पूरे साजिश का सूत्रधार होने का शक है. हालांकि आपके उर्फ रवि कुमार लोकू के बारे में मैंने जो जानकारियां इकट्ठी की हैं,उससे पता चलता है कि आप ईमानदार अफसरों में से माने जाते हैं और समाज व आम जन के प्रति काफी संवेदनशील हैं लेकिन जिस तरह की हरकत आपने व आपकी पुलिस ने की है, उससे मेरा आपके उपर अब दूर दूर तक भरोसा नहीं है.

लेकिन आप से मैं फरियाद इसलिए कर रहा हूं कि आप गाजीपुर जिले की जनता की जान-माल की हिफाजत के लिए जिम्मेदार पुलिस अधीक्षक की कुर्सी पर बिठाए गए हैं,सो मुंशी प्रेमचंद की 'पंच परमेश्वर'वाली कहानी पर भरोसा करते हुए ये शिकायती पत्र जांच कराने हेतु व दोषियों के खिलाफ मुकदमा लिखाने हेतु आपको प्रेषित कर रहा हूं.थाने के अंदर बंधक बनाई गई महिलाओं की तस्वीरें इस मेल के साथ अटैच हैं.वीडियो यूट्यूब पर अपलोड है जिसे देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं. या फिर लिंक के ठीक नीचे दिए गए वीडियो को प्ले कर देख सुन सकते हैं.

मामले की  विस्तृत जानकारी के लिए www.bhadhas4media.com  के इस लिंक को   http://bhadas4media.com/dukh-dard/6986-justice-for-mother-part1.html    देखें.