Feb 3, 2011

और एक आदिवासी राज्य की मांग !


मध्यप्रदेश में नौ लाख सदस्य संख्या का दावा करने वाली  पार्टी ने प्रस्तावित राज्य का एक नक्शा बना लिया है। नक्शे में राज्य के कुल चैबीस जिले 108 विधानसभा क्षेत्र और 13 लोकसभा क्षेत्र शामिल किये गये हैं...

चैतन्य भट्ट

मध्यप्रदेश को छत्तीगढ में विभाजित हुये ज्यादा वक्त नहीं बीता है लेकिन एक बार फिर मध्यप्रदेश से अलग पृथक गौंडवाना राज्य की मांग उठने लगी है...

आज से उन्नीस साल पहले गठित गौडवाना गणतंत्र पार्टी ने प्रदेश की राजनीति मे अपना एक अलग मुकाम बनाकर दूसरे प्रमुख दलों में घबराहट पैदा कर दी थी पर बीच में पार्टी में आई दरार और गौडवाना गणतंत्र पार्टी के ही एक बडे नेता द्वारा गौडवाना गणतंत्र सेना बनाने के बाद इसकी धार कुंद हो गई थी। पर बाद में इनके विलय ने एक बार फिर गौंडवाना की मांग को फुलफार्म में ला दिया है।


मध्यप्रदेश में नौ लाख सदस्य संख्या का दावा करने वाली यह पार्टी इसके लिये जनजागरण अभियान  शुरू कर दी है और अपने प्रस्तावित राज्य का एक नक्शा भी बना लिया है। नक्शे के अनुसार राज्य में कुल चैबीस जिले 108 विधानसभा क्षेत्र और 13 लोकसभा क्षेत्र शामिल किये गये हैं।

गौरतलब है कि आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में आदिवासियों के उत्थान के लिए सन् 1991में हीरासिंह मरकाम ने गौंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठन किया था। आदिवासियों के विकास का नारा बुलंद किया था इसलिये इसे उन इलाकों में अच्छी लोकप्रियता मिली जो आदवासी बाहुल्य जिले कहे जाते थे धीरे-धीरे ‘गौडवाना गणतंत्र पार्टी’ ने आदिवासियों के बीच अपनी ताकत बढानी शुरू की और इतनी ताकत पैदा कर ली कि उसके संस्थापक हीरासिंह मरकाम कोरबा के तानापार जो अब मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद छत्तीसगढ में है से मध्यावधि चुनाव जीत कर विधायक बन गये।

इस जीत से पार्टी को नया उत्साह मिला और 2003 के आम चुनाव में पार्टी के तीन विधायक प्रदेश की विधानसभा में पहुंचे  गये। पार्टी की ताकत बढने लगी तो उसके नेताओं के बीच महात्वाकांक्षायें भी उतनी ही तेजी  से पनपीं और पार्टी के राष्ट्रीय  उपाध्यक्ष गुलजार सिंह मरकाम ने अलग होकर गौंडवाना गणतंत्र सेना का गठन कर लिया। इसके कारण पिछले 2008 के विधानसभा चुनावों में पार्टी अपने अंदरूनी विवादों में इस कदर उलझ रही कि उसने चुनाव लड़ने का साहस ही नहीं कर सकी।
इसी साहस को जुटाने की कवायद में करीब डेढ साल पहले गौंडवाना गणतंत्र सेना का गौंडवाना गणतंत्र पार्टी में विलय हो गया। विलय के बाद फिर एक बार पार्टी ने पृथक गौंडवाना राज्य की मांग को पार्टी की केंद्रीय मांग के तौर पर स्थापित करना शुरू  कर दिया है।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केएस कुमरे का तर्क है कि ‘जब देश आजाद हुआ था तब विभिन्न राज्यों के पुर्नगठन के वक्त देश में बसने वाले लोगों की विभिन्न भाषा,बोलियों और उनकी संस्कृति को ध्यान में रखते हुये राज्यों का गठन किया गया। पंजाब, गोवा, बंगाल, गुजराती, महाराष्ट्र, हरियाणा, छत्तीसगढ़ से लेकर पूर्वोत्तर तक का गठन इसी आधार पर हुआ है।’कुमरे उदाहरण देते हैं कि ‘क्षेत्रफल की दृष्टि से केरल,छत्तीसगढ के बस्तर संभाग के बराबर है। फिर भी मलयाली भाषा और संस्कृति के मददेनजर इसे राज्य का दर्जा दिया गया.’

पृथक गौंडवाना राज्य के मद्देनजर प्रस्तावित राज्य का जो नक्शा तैयार किया है उसमें टीकमगढ, छतरपुर, सतना, रीवा, सीधी, पन्ना, सिंगरौली, सागर, दमोह, कटनी, उमरिया, शहडोल, जबलपुर रायसेन, नरसिंहपुर, अनूपपुर, डिंडोरी, मंडला, होशंगाबाद, छिंदवाडा, सिवनी, बालाघाट, बैतूल, और हरदा जिले शामिल किये हैं। अब देखना यह है गौंडवाना राज्य की मांग करने वाली यह पार्टी जनता को लामबंद कर पाती है या फिर बस चुनावी हथियार के तौर पर ही राज्य के मांग का उठाती रहती है।


राज एक्सप्रेस और पीपुल्स समाचार में संपादक रह चुके चैतन्य भट्ट फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहे हैं। वे तीस बरसों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।

बोगियों से टपकते खून के बीच बेरोजगार


देश के 2.50 लाख युवा  मात्र  416 पदों के मांगे गए आवेदन जमा करने 11 राज्यों से उत्तर प्रदेश के आइटीबीपी भर्ती केंद्र पहुंचे थे,जहाँ से लौटने के दौरान बीस छात्रों  की मौत हो गयी.छात्रों की इस मौत के लिए क्या कोई जिम्मेदार नहीं ....  

प्रतिभा कटियार

शाहजहांपुर के पास हिमगिरी एक्सप्रेस धधक रही थी.वही हिमगिरी एक्सप्रेस जिसकी छत से गिरकर खबरों की मानें तो अब तक 19छात्रों की मौत हुई है.खौफ, खतरे की आशंका, आधी-अधूरी जानकारियों के साथ घटनास्थल से बस जरा सी दूरी पर बिताये वो पांच घंटे कभी नहीं भूलूंगी.

खबरें मिल रही थीं. बरेली सुलग रहा था. इस शहर से जब-तब धुआं उठता रहता है इसलिए मानो सबको आदत सी थी. इस बार धुआं इतना गाढ़ा होगा किसी को अंदाजा नहीं था

रोजगार का सपना आंखों में लेकर आये छात्रों में से कइयों को नौकरी के बदले मौत मिली.ट्रेन की छत पर से लाशें बरस रही थीं. पूरी बोगी खून से लाल थी. मदद करने वाला कोई नहीं. अपने साथियों को यूं मरते देख बाकियों का खून खौल उठा.एसी बोगी से यात्रियों को उतारकर आग लगा दी गई. मातम, गुस्सा, निराशा, हताशा का वो खौफनाक मंजर. उफ!

भर्ती के लिए गए छात्रों के लौटने की  व्यवस्था

क्या कुसूर था उनका,जो मारे गये.क्या कुसूर था उनका,जिन्हें रोजगार के लिए बुलाकर लाठियों से पीटा गया. ये सब अभ्यर्थी भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी)की भर्ती के लिए आये थे.क्या कुसूर था उनका कि उन्हें नौकरी के बदले मौत मिली.

प्रशासन कहता है कि उसे अंदाजा नहीं था कि इतने लोग आ जायेंगे.यानी वाकई प्रशासन को अंदाजा नहीं था कि इस देश में बेरोजगारों की कितनी बड़ी तादाद है. 416 पदों के लिए 11 राज्यों से ढाई लाख अभ्यर्थी. उन्हें वाकई अंदाजा नहीं था कि इस देश में कितने सारे युवाओं के लिए नौकरी एक ख्वाब है, जिसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं. प्रशासन सचमुच कितना मासूम है.

लोगों का क्या है, वे तो मरते रहते हैं. इस देश की इतनी बड़ी आबादी में से कुछ लोग न सही. हमें ऐसे हादसों की आदत है.हम हादसों से जल्दी से उबर जाने का हुनर सीख चुके हैं.देखिये ना सब सामान्य हो रहा है.हादसे के बाद की सुबह यानी आज शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन इतना सामान्य था कि मानो कुछ हुआ ही न हो. 

इस हादसे के बाद रेल मंत्रालय, गृह मंत्रालय और यूपी सरकार  के बयानों के बाद  सोचती हूं दोष उन युवाओं का ही था शायद जिन्होंने अपनी आंखों में एक अदद नौकरी का ख्वाब बुना.जो ख्वाब जिसने जिंदगी ही छीन ली.ऐसा हादसा पहली बार नहीं हुआ है. जाहिर है आखिरी बार भी नहीं. हम अपनी गलतियों से कभी सबक नहीं लेते. हादसों को बहुत जल्दी भूल जाते हैं.

....ओह मानव कौल का इलहाम तो छूट ही गया, जिसे देखने के लिए मैं जा रही थी. सॉरी मानव, आपके इलहाम पर अव्यवस्था का यह नाटक भारी पड़ा इस बार.


लेखिका और पत्रकार प्रतिभा  कटियार ने यह प्रतिक्रिया घटनास्थल से लौटकरअपने  ब्लॉग  प्रतिभा  की  दुनिया  पर  लिखा है.