Jun 19, 2017

कहीं पार्टी का सफाया न कर दें 'आप के वॉलंटियर्स'

चूंकि योगेंदर यादव की तरह कुमार विश्वास को नेशनल कौंसिल के सदस्यों से नहीं निकलवा सकते, इसलिए ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिससे वो खुद पार्टी छोड़ दें....
दिल्ली से स्वतंत्र कुमार की रिपोर्ट
दिल्ली। आम आदमी पार्टी में कुमार विश्वास के विपक्ष में बने माहौल को देख सवाल उठ रहे हैं कि क्या पार्टी उन्हें निपटाने की तैयारी में है। सवाल यह भी कि चूंकि योगेंदर यादव की तरह कुमार विश्वास को नेशनल कौंसिल के सदस्यों से नहीं निकलवा सकते, इसलिए ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिससे वो खुद पार्टी छोड़ दें।

आप में आजकल सबसे ज्यादा किसी नेता की चर्चा है तो वो खुद को पहले कवि कहने वाले नेता कुमार विश्वास की है। सबसे पहले विधायक अमानतुल्ला ने कुमार पर भाजपा का एजेंट होने का आरोप लगाया। इसके बाद तो मानो कुमार के खिलाफ बोलने वाले पार्टी नेताओं की कतार सी लग गई। अब तो ऐसे लगने लगा है जो जितना कुमार के खिलाफ बोलेगा, उसे उतना ही निष्ठावान माना जायेगा।

आज इस कड़ी में एक नया नाम जुड़ गया है, वंदना सिंह। वंदना आप यूथ विंग की नेशनल इंचार्ज हैं। जैसा कि उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर अपना परिचय दिया है। आज वंदना ने एक के बाद एक 4 ट्वीट करके कुमार को सीधा टारगेट पर ले लिया।
एक ट्वीट में वंदना ने एक खबर को टैग करते हुए कहा कि एक नेता नेशनल कन्वेनर और 3 दिन में नया सीएम देने की बात कर रहा था अब क्या हुआ। दूसरे ट्वीट में वंदना ने कहा के एक बड़े भाई हैं जो रोज सुबह पार्टी बचाने के नाम पर पार्टी को गाली देते हैं।
तीसरे ट्वीट में वंदना ने कुमार को टैग करते हुए कहा कि आप रोज टीवी बाईट और इंटरव्यू में पार्टी से सवाल पूछते हो तो मेरे जैसे वालंटियर्स ट्वीटर पर भी आपसे सवाल नहीं पूछ सकता क्या?
आखिरी में वंदना ने और तीखा हमला करते हुए कहा कि जब अपने लड़ना तय कर लिया है तो सामने से लड़ो और आप जवाब दो। साथ ही वंदना ने कहा कि आपकी सोशल मीडिया मोदी सोशल मीडिया आर्मी की भाषा बोलती है।
इन सारे हमलों से एक बात पार्टी को अच्छे से समझ आ रही है कि नेशनल कौंसिल के जरिये कुमार को वैसे पार्टी से बाहर नहीं किया जा सकता, जैसे योगेंदर यादव को किया था। कुमार की वालंटियर्स के बीच अच्छी पकड़ है और बहुत सारे वालंटियर्स नेशनल कौंसिल के सदस्य भी हैं। योगेंदर की वालंटियर्स के बीच वैसी पकड़ नहीं थी इसलिए उन्हें नेशनल कौंसिल की मीटिंग में एक प्रस्ताव लेकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। लेकिन कुमार के केस में यह संभव नहीं है।
सूत्र बताते हैं कि पार्टी कुमार को ठिकाने लगाने के लिए नई रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी की ओर से ऐसे नेताओं के माध्यम से कुमार पर आक्रमण किया जा रहा है जो खुद को वालंटियर्स ज्यादा दिखाने की कोशिश करते हैं। इसलिए दीपक वाजपेयी हो या वंदना दोनों ने खुद को वालंटियर्स दिखाते हुए कुमार पर अटैक किया है।
दीपक वाजपेयी ने खुद को अपने ट्वीटर पर पार्टी का वालंटियर ही बताया है, जबकि वो पार्टी के राष्ट्रीय खजांची हैं। वहीं वंदना ने अपने एक ट्वीट में खुद को एक वालंटियर कहा है। दरअसल इस रणनीति की वजह है कि पार्टी दिखाना चाह रही है जिस कुमार को वालंटियर्स ही सबसे ज्यादा पसंद करते थे अब वो ही वालंटियर्स कुमार के खिलाफ बोल रहे हैं। जिससे पार्टी ये जनमत बना सके कि पार्टी के नेता ही नहीं, कार्यकर्ता भी कुमार को अब पार्टी में नहीं चाहते हैं।
वहीं दूसरी ओर कुमार भी बड़ी मजबूती से पार्टी में पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं। देखते हैं कि कुमार के पैर जमे रहेंगे या राज्यसभा से पहले ही न कुमार को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।

राष्ट्रपति बनाने की रबर स्टांप परंपरा कायम

मोदी को थी दलित राष्ट्रपति की खोज, हुई पूरी। दलित महिला राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू, दलित जाति से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय समाज कल्याण मंत्री थावर चंद गहलोत का नाम था चर्चा में....
बिहार के राज्यपाल और कानपुर वासी रामनाथ कोविंद होंगे एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार। सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं कौन हैं रामनाथ कोविंद, कहां से लाए गए यह रबर स्टांप।
पूर्व आइएएस अधिकारी कोविंद का राष्ट्रपति बनना लगभग तय। राष्ट्रपति पद के लिए कोविंद का नाम आते ही लोग खोजने लगे गूगल पर उनकी कोविंद की जाति।

अगर बने तो कोविंद होंगे देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति। इससे पहले दलित जाति से ताल्लुक रखने वाले के आर नारायणन रह चुके राष्ट्रपति।
उपराष्ट्रपति के नाम पर अभी कोई चर्चा नहीं है। पर संभावना है कि दलित राष्ट्रपति के नॉमिनेशन के बाद भाजपा उपराष्ट्रपति के लिए महिला सवर्ण नाम को प्राथमिकता देगी। माना जा रहा है दलित राष्ट्रपति के नॉमिनेशन के बाद मोदी सरकार ने राष्ट्रपति पद के दूसरे दावेदारों के मुंह पर जाबी लगा दी है।
मोदी को थी दलित राष्ट्रपति की खोज, हुई पूरी। दलित महिला राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू, दलित जाति से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय समाज कल्याण मंत्री थावर चंद गहलोत का नाम था चर्चा में। मीडिया ने मेट्रो मैन श्रीधरण के नाम पर भी लगाई थीं अटकलें।
बीजेपी ने एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का सोमवार को ऐलान कर दिया। दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बिहार के गवर्नर रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया गया है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कोविंद के नाम का ऐलान करते हुए कहा कि कोविंद को हमने इसलिए चुना है कि पार्टी गरीब समाज से ताल्लुक रखने वाले शख्स को राष्ट्रपति बनाने की तैयारी में थी।
कानपुर देहात में पैदा हुए कोविंद बीजेपी दलित मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं। यूपी से दो बार राज्यसभा गए हैं। पेशे से वकील कोविंद ऑल इंडिया कोली समाज के अध्यक्ष भी रहे हैं।

भाजपा सरकार ने की कृषि बजट में 17 फीसदी की कटौती

प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद प्रदेश में पहली बार किसी किसान के आत्महत्या की बात सामने आई, सवाल यह कि ऐसे हालात में किसान खुदकुशी न करें तो क्या करें...
देहरादून से अरविंद शेखर की रिपोर्ट
जब तन खटाकर भी खेती फायदे का सौदा न रह गई हो। खेती से अपने बच्चों-परिवार के भले के लिए लिया कर्ज किसान आत्मा पर बोझ बन जा रहा हो। ऋण देने वाली सरकारी संस्थाएं क्रूर सूदखोर महाजन की याद दिलाते हुए नोटिस पर नोटिस भेज रही हों। चुनावी वादे के बावजूद केंद्र और प्रदेश की सरकारें किसानों की कर्ज माफी से इनकार कर चुकी हों। ऐसे अंधेरे हालात में किसी के सामने दो रास्ते होते हैं या तो वह हालात या व्यवस्था से लड़ने का रास्ता चुने या नाउम्मीदी में मौत को गले लगा ले।

बेरीनाग के सरतोला के किसान सुरेंद्र सिंह ने दूसरा रास्ता चुना। जहर खाकर खुदकुशी कर ली। संभवत: प्रदेश में किसी अन्नदाता की कर्ज के कारण की गई यह पहली आत्महत्या है। सवाल यह है कि सरकार क्या इस घटना से जागेगी और अपनी नीतियों में सुधार करेगी और कृषि बजट में की गई कटौती पर पुनर्विचार करेगी। गौरतलब है कि उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने कृषि बजट में 17 फीसदी कटौती की भारी कटौती कर दी है, जबकि प्रदेश के किसान पहले से ही 11 हजार करोड़ के कर्जदार हैं। 
उत्त्तराखंड में भी दूसरे प्रदेशों की तरह किसान खुदकुशी की ओर बढ़े इसके हालात लंबे समय से बन रहे हैं। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि 2003 से 2013 यानी 10 साल में राज्य के किसानों पर बकाया कर्ज में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है।
2003 में 7.2 फीसद किसान की कर्ज के जाल में थे 2013 तक यह तादाद 38.27 फीसद पहुंच गई। देश के 11 पहाड़ी राज्यों में बकाया कर्ज वाले किसानों के औसत यानी 24.9 फीसद से यह कहीं ज्यादा है। इन हालात में किसान कहां जाएं।
प्रदेश में कुल कृषि क्षेत्र ही नहीं बुवाई वाला क्षेत्रफल भी लगातार घटता जा रहा है, जबकि एनएसएसओ के 70वें चक्र के सव्रेक्षण के मुताबिक राज्य की 59.9 फीसद परिवारों की आय का मुख्य स्रोत खेती है और केवल 0.6 फीसद आबादी ही ऐसी है जिसकी आय का अधिकांश हिस्सा कृषि से जुड़े कामों से नहीं आता।
कृषि वृद्धि दर भी 2013-14 में ऋणात्मक यानी - 2.19 फीसद हो गई थी जो 2015-16 में कुछ सुधरी और 4.19 हो गई। प्रदेश में 74 फीसद किसान सीमांत किसान है। जबकि 17 फीसद लघु, सात फीसद अर्ध मध्यम, दो फीसद मध्यम और बड़े किसान लगभग नगण्य हैं। सवाल यही नहीं है 2011 की जनगणना के मुताबिक प्रदेश में कुल कर्मकरों में से पहाड़ में 55.46 फीसद तो हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर यानी मैदान में 51.23 फीसद कृषि कर्मकर हैं।
पहाड़ की तो 93 फीसद किसान छोटी या बिखरी जोतों वाले हैं। 2005 और 2013 के यानी पांचवें व छठे आर्थिक सर्वेक्षण पर नजर डालें तो जहां कृषि से मिलने वाले रोजगार में 34.25 फीसद कमी आई है। वहीं कृषि विभाग के ही आंकड़े बताते हैं कि राज्य स्थापना के समय कृषि क्षेत्र 7.70 लाख हेक्टेयर था लेकिन 2015-16 में यह 0.72 हेक्टेयर घटकर 6.98 लाख हेक्टेयर ही रह गया। इतना ही नहीं प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में भी कृषि के योगदान में लगातार कमी आ रही है।
2004-05 के स्थिर मूल्यों पर राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का अंश जहां 16.60 फीसद था वह 2013-14 में घटकर करीब आधा यानी 8.94 फीसद ही रह गया। राज्य की आर्थिकी में भी कृषि व उससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान को भी देखें तो पिछले दस बरस में करीब 23 फीसद से घटकर महज 14 फीसद ही रह गया है।
पहाड़ में तो कुल कृषि क्षेत्र के महज नौ फीसद में ही खेती हो रही है और वह भी जंगली जानवरों के हमलों और सिंचाई की व्यवस्था न होने के चलते दिक्कत में है। ये ही वजहें है कि खेती किसानी को अलाभकारी सौदा मानते हुए किसान खेती छोड़ बेहतर जिंदगी की तलाश में कहीं और चले जा रहे हैं। एनएसएसओ के ही आंकड़े बताते हैं कि 2003 में जहां प्रदेश की 74.94 फीसद आबादी खेती पर निर्भर थी वहीं दस साल यानी 2013 तक वह घटकर 64.3 फीसद ही रह गई।
17 फीसद घटाया कृषि का बजट
कृषि संकट से जूझ रहे उत्तराखंड में प्रदेश सरकार ने कृषि का बजट 17 फीसद से अधिक घटा दिया है। 2016-17 में कृषि बजट 37476.89 लाख रुपये रखा गया था। मौजूदा सरकार ने 2017-18 के लिए 30971.46 लाख रुपये का प्राविधान रखा है। जो कि पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में लगभग 17.35 फीसद कम है। इस मसले पर जब कृषिमंत्री सुबोध उनियाल से संपर्क किया गया तो पहले को कहा गया कि कृषि मंत्री बैठक में व्यस्त हैं बाद में बात करा दी जाएगी मगर बाद में संपर्क करने पर फोन स्विच ऑफ मिला।
किसानों पर 10968 करोड़ का कर्ज
राज्य विधानसभा में वित्त व संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत की ओर से पेश आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 699094 किसानों ने 10968 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है। इस कर्ज का एक वर्ष का ब्याज ही 934. 32 करोड़ है। यह तो वह कर्ज है जो किसानों ने सरकारी बैंकों या सहकारी संस्थाओं से लिया है। सूदखोरों से लिए कर्ज के आंकड़े तो न जाने कितने होंगे। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली कह ही चुके हैं कि किसानों की कर्ज माफी में केंद्र मदद नहीं कर सकता।

ये खेल है सैन्य प्रोजेक्ट नहीं बंधु!

क्रिकेट में मिली हार की भरपाई कल ही भारत—पाक के बीच हुए हॉकी टूर्नामेंट में भारत को मिली जीत से करने की कोशिश जरूर की गई, जिसका कि कल तक कोई नामलेवा तक नहीं था....


जनज्वार दिल्ली। कल भारत—पाकिस्तान के बीच हुए क्रिकेट मैच में चैंपियनशिप पाकिस्तान ने जीती। मैच से पहले तक खेल को खेल तक न सीमित कर भारत की जीत को देशभक्ति से जोड़कर देखने वाला हमारा मीडिया पाकिस्तान की जीेत के बाद बगलें झांकता नजर आया। किसी भी अखबार की हैडिंग एक लाइन में यह नहीं बता पा रही है कि पाकिस्तान ने भारत से चैंपियनशिप जीती या भारत पर शानदार जीत दर्ज की।
आज के सभी प्रमुख अखबारों ने गोलमोल हैडिंग लगाई हुई है, कहीं से पाकिस्तान की जीत जैसा संदेश नहीं जाता। वहीं अगर कल मैच भारत ने जीता होता तो हमारे न्यूज चैनल के एंकर और प्रमुख समाचार पत्रों की हैडिंगें आग बरसाती प्रतीत होतीं। अखबारों के फ्रंट पेज उन्मादपूर्ण शीर्षकों से पटे होते तो न्यूज चैनल कहते कि भारत ने पाकिस्तान को हराकर सैनिकों की मौत का बदला लिया। भारत ने पाकिस्तान को रौंद डाला। गोया कि क्रिकेट खेल के मैदान में न होकर जंग में तब्दील हो गया होता। हां, इस हार की भरपाई हॉकी में मिली जीत से करने की कोशिश जरूर की गई, जिसका कि कल तक कोई नामलेवा तक नहीं था। कल तक हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी जो हाशिए की हैडिंग तक सिमटा हुआ था, पाकिस्तान से हॉकी में मिली जीत और क्रिकेट में मिली शिकस्त के बाद फ्रंट पर जगह पा गया। 

मगर इस मामले में सोशल मीडिया की तारीफ करनी होगी कि उसने क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत के बाद पाकिस्तानी टीम को बधाई दी और इसे देशभक्ति से जोड़ने की जमकर आलोचना की।
सतपाल सिंह अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं, 'खेलों की शुरुआत ही युद्ध के विरोध में हुई थी कुछ मूर्ख लोग इसे जंग बना देते हैं।'
पाकिस्तान की सीमा से लगे पंजाब जिसने आंतकवाद और विभाजन की सबसे ज्यादा पीड़ा झेली है और जहां हाल ही में एक सिख सैनिक का पाकिस्तानी सेना द्वारा गला काट लिया गया था, में कल के मैच के बाद खेल से संबंधित फेसबुक पोस्ट या तो मुख्यधारा की मीडिया को इसे जंग और देशभक्ति की पराकाष्ठा बताने के लिए जमकर लताड़ा गया है। वहीँ बहुत से लोगों ने बहुत गर्मजोशी से पाकिस्तान के बढ़िया खेल की न सिर्फ प्रशंसा और जीत पर ख़ुशी प्रकट की, बल्कि दोनों देशों के बीच खेल को अमन और दोस्ती का जरिया कहा।
हरमिंदर सिंह सिद्धू ने लिखा पाक बैटिंग देखकर मेरा भांजा बोला, "भारत पाकिस्तान एक हो जाए तो हम सुपर पावर हैं।"
वैभव सिंह ने लिखा है, उन चैनलों को माफी मांगनी चाहिए जिन्होंने मैच को सैन्य युद्ध की तरह प्रोजेक्ट किया था।' वहीं अजीत साहनी लिखते हैं, 'जिस तरह होली दिमाग़ की गंदगी निकलने की नाली की तरह काम करती है, उसी तरह भारत पाक क्रिकेट मैच के बहाने लोग मुस्लिम, कश्मीर और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कुंठा निकाल लेते हैं। चलो इसी बहाने बॉर्डर पर दोनों देशों के वीर जवानों का ख़ून थोड़ा कम बहता है।'
गौरतलब है कल मैच से पहले प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने पूरी तरह पाकिस्तान के खिलाफ सारा दिन न सिर्फ नफरत फैलाने का काम किया, बल्कि हर तरह से इसे देशभक्ति और दुश्मन के साथ युद्ध की तरह पेश किया। ये उन्माद इस हद तक फैलाया गया कि कुछ देशभक्त चैनलों के एंकर यहां तक कह गए पाकिस्तान को क्रिकेट मैच में हराकर सैनिकों की मौत का बदला लिया जाएगा। मैच से पहले तक तमाम भविष्यवक्ता चैनलों पर भविष्यवाणी करते नजर आए कि चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की विराट विजय होगी।