Jun 19, 2017

भाजपा सरकार ने की कृषि बजट में 17 फीसदी की कटौती

प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद प्रदेश में पहली बार किसी किसान के आत्महत्या की बात सामने आई, सवाल यह कि ऐसे हालात में किसान खुदकुशी न करें तो क्या करें...
देहरादून से अरविंद शेखर की रिपोर्ट
जब तन खटाकर भी खेती फायदे का सौदा न रह गई हो। खेती से अपने बच्चों-परिवार के भले के लिए लिया कर्ज किसान आत्मा पर बोझ बन जा रहा हो। ऋण देने वाली सरकारी संस्थाएं क्रूर सूदखोर महाजन की याद दिलाते हुए नोटिस पर नोटिस भेज रही हों। चुनावी वादे के बावजूद केंद्र और प्रदेश की सरकारें किसानों की कर्ज माफी से इनकार कर चुकी हों। ऐसे अंधेरे हालात में किसी के सामने दो रास्ते होते हैं या तो वह हालात या व्यवस्था से लड़ने का रास्ता चुने या नाउम्मीदी में मौत को गले लगा ले।

बेरीनाग के सरतोला के किसान सुरेंद्र सिंह ने दूसरा रास्ता चुना। जहर खाकर खुदकुशी कर ली। संभवत: प्रदेश में किसी अन्नदाता की कर्ज के कारण की गई यह पहली आत्महत्या है। सवाल यह है कि सरकार क्या इस घटना से जागेगी और अपनी नीतियों में सुधार करेगी और कृषि बजट में की गई कटौती पर पुनर्विचार करेगी। गौरतलब है कि उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने कृषि बजट में 17 फीसदी कटौती की भारी कटौती कर दी है, जबकि प्रदेश के किसान पहले से ही 11 हजार करोड़ के कर्जदार हैं। 
उत्त्तराखंड में भी दूसरे प्रदेशों की तरह किसान खुदकुशी की ओर बढ़े इसके हालात लंबे समय से बन रहे हैं। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि 2003 से 2013 यानी 10 साल में राज्य के किसानों पर बकाया कर्ज में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है।
2003 में 7.2 फीसद किसान की कर्ज के जाल में थे 2013 तक यह तादाद 38.27 फीसद पहुंच गई। देश के 11 पहाड़ी राज्यों में बकाया कर्ज वाले किसानों के औसत यानी 24.9 फीसद से यह कहीं ज्यादा है। इन हालात में किसान कहां जाएं।
प्रदेश में कुल कृषि क्षेत्र ही नहीं बुवाई वाला क्षेत्रफल भी लगातार घटता जा रहा है, जबकि एनएसएसओ के 70वें चक्र के सव्रेक्षण के मुताबिक राज्य की 59.9 फीसद परिवारों की आय का मुख्य स्रोत खेती है और केवल 0.6 फीसद आबादी ही ऐसी है जिसकी आय का अधिकांश हिस्सा कृषि से जुड़े कामों से नहीं आता।
कृषि वृद्धि दर भी 2013-14 में ऋणात्मक यानी - 2.19 फीसद हो गई थी जो 2015-16 में कुछ सुधरी और 4.19 हो गई। प्रदेश में 74 फीसद किसान सीमांत किसान है। जबकि 17 फीसद लघु, सात फीसद अर्ध मध्यम, दो फीसद मध्यम और बड़े किसान लगभग नगण्य हैं। सवाल यही नहीं है 2011 की जनगणना के मुताबिक प्रदेश में कुल कर्मकरों में से पहाड़ में 55.46 फीसद तो हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर यानी मैदान में 51.23 फीसद कृषि कर्मकर हैं।
पहाड़ की तो 93 फीसद किसान छोटी या बिखरी जोतों वाले हैं। 2005 और 2013 के यानी पांचवें व छठे आर्थिक सर्वेक्षण पर नजर डालें तो जहां कृषि से मिलने वाले रोजगार में 34.25 फीसद कमी आई है। वहीं कृषि विभाग के ही आंकड़े बताते हैं कि राज्य स्थापना के समय कृषि क्षेत्र 7.70 लाख हेक्टेयर था लेकिन 2015-16 में यह 0.72 हेक्टेयर घटकर 6.98 लाख हेक्टेयर ही रह गया। इतना ही नहीं प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में भी कृषि के योगदान में लगातार कमी आ रही है।
2004-05 के स्थिर मूल्यों पर राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का अंश जहां 16.60 फीसद था वह 2013-14 में घटकर करीब आधा यानी 8.94 फीसद ही रह गया। राज्य की आर्थिकी में भी कृषि व उससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान को भी देखें तो पिछले दस बरस में करीब 23 फीसद से घटकर महज 14 फीसद ही रह गया है।
पहाड़ में तो कुल कृषि क्षेत्र के महज नौ फीसद में ही खेती हो रही है और वह भी जंगली जानवरों के हमलों और सिंचाई की व्यवस्था न होने के चलते दिक्कत में है। ये ही वजहें है कि खेती किसानी को अलाभकारी सौदा मानते हुए किसान खेती छोड़ बेहतर जिंदगी की तलाश में कहीं और चले जा रहे हैं। एनएसएसओ के ही आंकड़े बताते हैं कि 2003 में जहां प्रदेश की 74.94 फीसद आबादी खेती पर निर्भर थी वहीं दस साल यानी 2013 तक वह घटकर 64.3 फीसद ही रह गई।
17 फीसद घटाया कृषि का बजट
कृषि संकट से जूझ रहे उत्तराखंड में प्रदेश सरकार ने कृषि का बजट 17 फीसद से अधिक घटा दिया है। 2016-17 में कृषि बजट 37476.89 लाख रुपये रखा गया था। मौजूदा सरकार ने 2017-18 के लिए 30971.46 लाख रुपये का प्राविधान रखा है। जो कि पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में लगभग 17.35 फीसद कम है। इस मसले पर जब कृषिमंत्री सुबोध उनियाल से संपर्क किया गया तो पहले को कहा गया कि कृषि मंत्री बैठक में व्यस्त हैं बाद में बात करा दी जाएगी मगर बाद में संपर्क करने पर फोन स्विच ऑफ मिला।
किसानों पर 10968 करोड़ का कर्ज
राज्य विधानसभा में वित्त व संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत की ओर से पेश आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 699094 किसानों ने 10968 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है। इस कर्ज का एक वर्ष का ब्याज ही 934. 32 करोड़ है। यह तो वह कर्ज है जो किसानों ने सरकारी बैंकों या सहकारी संस्थाओं से लिया है। सूदखोरों से लिए कर्ज के आंकड़े तो न जाने कितने होंगे। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली कह ही चुके हैं कि किसानों की कर्ज माफी में केंद्र मदद नहीं कर सकता।

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