Aug 1, 2011

पंजाब में किसानों का भयंकर दमन

पुलिस ने महिला कार्यकर्ताओं से कहा है की वे स्वयं आज शाम तक खुद थाने में आकर अपनी गिरफ्तारी दे दे वरना कल सुबह उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जायेगा...

हिमांशु कुमार


पंजाब से  लोक मोर्चा महासचिव श्री अमोलक सिंह जी ने जानकारी दी है कि पंजाब के गोविन्दपुरा गाँव में थर्मल पावर प्लांट लगाने के नाम पर किसानो की 880  एकड़   सिंचित भूमि को पंजाब सरकार अवैध तरीकों से बलपूर्वक लेने की कोशिश कर रही है !

पोना नामक कंपनी के लिए किसानो की इन ज़मीनों को लेने से पहले प्रशासन ने किसानो को कोई नोटिस नहीं दिया ! किसानो का आरोप है कि सत्ता दल के  नेताओं ने  पेओना नामक कंपनी के साथ  मिलीभगत कर के उनकी ज़मीन को कंपनी के नाम कर दिया है !

 इस वर्ष की 21 जून को कंपनी के लोग पंजाब के 6  जिलों से जमा किये गए बड़े पुलिस बल के साथ जब इस ज़मीन पर कांटेदार तार लगाने पहुंचे तो  उन्हें महिलाओं और किसानो के बड़े विरोध का सामना करना पड़ा ! 24  जुलाई को पुलिस ने इस गाँव पर हमला किया और घरों में सोये हुए 450  किसानो को ले जाकर  जेल में डाल दिया ! ये किसान आज भी जेल में ही बन्द हैं !

 पंजाब के 17  मजदूर किसान संगठनो ने इस अवैध भूमि अधिग्रहण और सरकारी दमन के विरोध में 2  अगस्त अर्थात कल ' गोविन्दपुरा चलो ' रैली की घोषणा की है परन्तु आज सुबह 4  बजे से ही पुलिस ने छापेमारी कर के इस आन्दोलनपंजाब में आज अपने घरों में सोये हुए १०० से ज्यादा किसानो को पुलिस ने  गिरफ्तार कर लिया है !

अवैध तरीके से किसानो की ज़मीनों को बड़े पैसे वालों को देने के खिलाफपंजाब के किसान कल पंजाब के मानसा जिले में गोविंदपुर में रैली करने वाले हैं ! किसानो की इस शांतीपूर्ण रैली को रोकने के लिए पंजाब सरकार ने आज सुबह किसान नेताओं को सुबह ४ बजे घरों में सोते समय ही पकड़ लिया है !

साथ ही पुलिस ने महिला कार्यकर्ताओं से कहा है की वे स्वयं आज शाम तक खुद थाने में आकर अपनी गिरफ्तारी दे दे वरना कल सुबह उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जायेगा ! पंजाब के किसान नेताओं ने आज बातचीत के दौरान बताया कि पंजाब में ऐसा दमन १९३१ के बाद अब हो रहा है ! उस समय भगत सिंह  द्वारा स्थापित कीर्ति पार्टी के जलसों से पहले भी कार्यकर्ताओं की इसी प्रकार अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तारी की जाती थी और महिलाओं को खुद थाने आ जाने के लिए कह दिया जाता था !

आज दिन भर पुलिस ने मानसा, भटिंडा, बरनाला , मोगा , मुक्तसर , अमृतसर, और गुरदासपुर जिलों में छापेमारी की और भारतीय किसान यूनियन और अन्य सहयोगी संगठनो  के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की है  !


दारुल उलूम की विरासत और वस्तानवी

दारूल-उलूम की गिनती नि:संदेह देश के उस सर्वप्रमुख इस्लामी संस्थान में की जाती है जिसने कि 1947में हुए भारत-पाकिस्तान विभाजन का विरोध करते हुए अखंड भारत के पक्ष में अपना मत व्यक्त किया था...

तनवीर जाफरी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के देवबंद कस्बे में स्थित दारुल-उलूम देवबंद पूरी दुनिया में इस्लामी शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। दारुल-उलूम देवबंद में केवल भारत के ही नहीं बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों के मुसलमानों के वे बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं जिन्हें उच्चस्तरीय एवं गहन इस्लामी शिक्षा प्राप्त करने की ज़रूरत महसूस होती है।

 यहां एक बात पुन:स्पष्ट करना ज़रूरी है कि हालांकि देवबंद एक कस्बे का नाम ज़रूर है। परंतु दारुल उलूम के देवबंद में स्थित होने की वजह से इस मदरसे से शिक्षा प्राप्त कर चुके इस्लामी स्कॉलर्स अथवा इनकी विचारधारा से जुड़े लोगों को भी देवबंदी कहकर संबोधित किया जाने लगा है। अर्थात इस्लाम तथा मुसलमानों के बताए गए कुल 73 फिरक़ों में देवबंदी मुसलमान भी एक वर्ग विशेष से संबंध रखने वाले मुसलमान कहे जाते हैं।

 इसमें कोई शक नहीं कि दारुल-उलूम देवबंद ने भारत सहित पूरी दुनिया के लाखों मुसलमानों को धार्मिक शिक्षा से नवाज़ा है। पूरे विश्व में लाखों इमाम,  पेश इमाम, क़ारी, हाफिज़, धर्मगुरु, धर्म प्रचारक तथा इस्लामी शिक्षक,दारुल-उलूम से शिक्षा पाकर अन्यत्र धार्मिक सेवाएं करते तथा अपने व अपने परिवार का पालन-पोषण करते देखे जा सकते हैं।

दारूल-उलूम की गिनती नि:संदेह देश के उस सर्वप्रमुख इस्लामी संस्थान में की जाती है जिसने कि 1947 में हुए भारत-पाकिस्तान विभाजन का विरोध करते हुए अखंड भारत के पक्ष में अपना मत व्यक्त किया था।वहीं दूसरी ओर इसी दारूल-उलूम पर कट्टरपंथी व रूढ़ीवादी इस्लामी शिक्षा देने तथा कट्टर इस्लामी स्कॉलर तैयार करने का भी इल्ज़ाम है। कहा तो यहां तक जाता है कि दुनिया में इस्लाम तथा जेहाद के नाम पर फैला आतंकवाद तथा इसमें शामिल गुमराह मुस्लिम युवक भी देवबंदी विचारधारा की धार्मिक शिक्षा से ही प्रभावित हैं।

दारूल-उलूम ने धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ तमाम ऐसे स्कॉलर भी तैयार किए जो देश की प्रशासनिक सेवाओं से लेकर अन्य उच्चस्तरीय सरकारी व गैर सरकारी सेवाओं में अपना योगदान देकर देश की सेवा में भी अपनी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं।

कभी-कभी अपने कई विवादित फतवों को लेकर भी दारुल-उलूम सुर्ख़ियों  में छाया रहता है। साथ ही साथ इसी दारुल-उलूम से इस्लाम के नाम पर फैले आतंकवाद के विरुद्ध भी विस्तृत फतवा जारी किया जा चुका है। भले ही पूरे देश व दुनिया के सभी मुसलमान अथवा सभी फिरकों के मुसलमान दारुल-उलूम की विचारधारा तथा उनके द्वारा दी जाने वाली इस्लामी शिक्षा से सहमति न रखते हों।

परंतु दुनिया के विशेषकर भारत के देवबंदी विचारधारा के मुसलमानों की बड़ी संख्या दारूल-उलूम के फतवों, दिशा निर्देशों तथा वहां चलने वाली धर्म संबंधी गतिविधियों से प्रभावित होती है। पिछले दिनों दारुल-उलूम देवबंद एक बार फिर उस समय पूरे देश के मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल रहा जबकि इस विश्वविद्यालय की संचालन समिति जिसे शूरा के नाम से जाना जाता है,ने अपने ही वाईस चांसलर मौलाना गुलाम वस्तानवी को उनके पद से हटा दिया।शूरा के कुल 14 सदस्यों में से 9 सदस्यों ने वस्तानवी को हटाए जाने के पक्ष में अपना मत दिया। जबकि 5 सदस्य ऐसे भी थे जिन्होंने गुलाम वस्तानवी को कुलपति के पद पर बने रहने के पक्ष में अपना मत व्यक्त किया।

 गुजरात मूल के मौलाना गुलाम वस्तानवी को अभी कुछ ही माह पूर्व दारूल-उलूम देवबंद का वाईस चांसलर नियुक्त किया गया था। अपनी नियुक्ति के फौरन बाद ही मौलाना वस्तानवी ने गुजरात के अति विवादित मुख्यमंत्री तथा गुजरात दंगों में हुए भीषण नरसंहार के लिए जि़म्मेदार समझे जाने वाले नरेंद्र मोदी की तारीफ में क़सीदे पढऩे शुरु कर दिए। इतना ही नहीं बल्कि वस्तानवी ने कुछ इस प्रकार का इज़हार-ए-ख्याल भी किया कि मुसलमानों को अब गुजरात दंगों से आगे भी देखना चाहिए।

उनकी बातों से ऐसा अंदाज़ा लगाया जाने लगा था कि मुसलमानों के सामूहिक नरसंहार के जि़म्मेदार समझे जाने वाले नरेंद्र मोदी को वे क्लीन चिट देना चाह रहे हैं तथा मुसलमानों से भी यह उम्मीद कर रहे हैं कि वे भी गुजरात दंगों को भूलकर गुजरात,देश तथा अपने समुदाय के विकास में शरीक हों। वस्तानवी के इस प्रकार के विवादित वक्तव्य के बाद दारूल-उलूम की मजलिस-ए-शूरा में,देवबंद से जुड़े लोगों में तथा विशेषकर मीडिया में ज़बरदस्त हंगामा खड़ा हो गया और वस्तानवी को फौरन बर्खास्त किए जाने की मांग उठने लगी।

वस्तानवी का मामला शूरा को सौंप दिया गया जिसने गत् दिनों आखिरकार  उन्हें अपदस्थ किए जाने के पक्ष में बहुमत से अपना फैसला सुनाया। मौलाना वस्तानवी के पद छोड़े जाने के बाद अब इस मुद्दे को लेकर देश में कई प्रकार के राजनैतिक समीकरण बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। स्वयं मौलाना वस्तानवी इस मुद्दे को गुजराती व गैर गुजराती मुसलमानों के बीच के विवाद के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। वे आरोप लगा रहे हैं कि दारूल-उलूम पर उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे राज्यों का दबदबा है और एक गुजराती व्यक्ति को पहली बार दारुल-उलूम का वाईस चांसलर होते हुए नहीं देख सके। 

 शूरा के सभी सदस्य वस्तानवी के इन आरोपों का खंडन कर रहे है. वस्तानवी के यह आरोप वैसे भी निराधर इसलिए प्रतीत होते हैं क्योंकि शूरा के जिन 5सदस्यों ने वस्तानवी के पक्ष में मतदान किया उनमें भी अधिकांश सदस्य उत्तर प्रदेश व बिहार के ही थे। राजनैतिक क्षेत्रों में इस बात की चर्चा है कि वस्तानवी अपने साथ हुए घटनाक्रम को गुजराती मुसलमानों का अपमान उसी तर्ज पर साबित करना चाह रहे हैं जैसे कि नरेंद्र मोदी स्वयं अपने ऊपर लगने वाले किसी आरोप को फौरन गुजराती समाज या गुजरातियों का अपमान बताने लगते हैं।

वस्तानवी वास्तव में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा के भी ज़बरदस्त पैरोकार हैं। वस्तानवी अपने निजी प्रयासों से गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक तमाम स्कूल,कॉलेज,महिला शिक्षा संस्थान,बी एड कॉलेज,आयुर्वैदिक संस्थान,आईटीआई,कई पुस्तकालय तथा जामिया अक्कलकुआ के नाम से एक विश्वविधालय स्तरीय संस्थान संचालित कर रहे हैं। जहां कुरान शरीफ की तालीम देने के लिए मौलाना ने सैकड़ों मदरसे स्थापित किए हैं उन्होंने कई मदरसों की सहायता भी की है। वे स्वयं भी विश्व का सबसे बड़ा कुरानी शिक्षा केंद्र चला रहे हैं।

गुलाम वस्तानवी जैसे शिक्षा उद्योग से जुड़े एक धनपति व्यक्ति के लिए दारूल-उलूम का कुलपति बनना या न बनना अथवा उस पद पर बने रहना या हट जाना कोई खास मायने नहीं रखता। परंतु इस पूरे प्रकरण में जिस प्रकार गुजरात दंगों,नरेंद्र मोदी, गुजरात राज्य के मुसलमानों,उत्तरप्रदेश-बिहार के दारुल-उलूम पर वर्चस्व तथा विशेषकर एक परिवार विशेष के दारूल-उलूम का वर्चस्व होने तथा मुसलमानों से गुजरात से आगे बढऩे की बात करने जैसी जो बातें जोड़ी जा रही हैं उनसे साफ ज़ाहिर हो रहा है कि राजनीति के महारथी लोग वस्तानवी प्रकरण को राजनीति का हथियार बनाना चाह रहे हैं।

जहां तक गुजरात से आगे की सोचने का प्रश्र है तो बेशक वस्तानवी का यह कहना सही है,परंतु इस विषय पर निर्णय करने का अधिकार भी कम से कम उन्हीं लोगों को पहले दिया जाना चाहिए जो स्वयं भुक्तभोगी हैं तथा आज तक गुजरात दंगों का दंश वे व उनके परिजन झेल रहे हैं। वस्तानवी अथवा किसी अन्य मुसलिम रहनुमा अथवा धर्मगुरु के आह्वान मात्र से ऐसा नहीं होने वाला। 


लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के टिप्पणीकार.





                                                                                    

प्रमोशन की रेस में जिंदगी से हारे सिपाही


सुरक्षा और सहायता के लिए बना पुलिस महकमा खुद कितना बीमार, ढीला, सुस्त और लाचार है ये तथ्य किसी से छिपा नहीं है। एकाध के अलावा किसी पुलिसकर्मी का फिजीकल फिटनेस से कोई नाता नहीं रहता है...

आशीष वशिष्ठ

प्रमोशन पाकर सबइंस्पेक्टर बनने के लिए होने वाली शारीरिक क्षमता परीक्षा (फिजिकल फिटनेस टेस्ट) उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों पर लगातार भारी पड़ रही है। राज्य के कई मंडलों में 20 जुलाई से चल रही इस परीक्षा में करीब 41 पुलिसकर्मी बेहोष हुए हैं और आजमगढ़ में हुई रेस के दौरान 37 वर्षीय पुलिसकर्मी अली सुजमा समेत चार पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है और कई की यादाश्त जा चुकी है।

 लंबे समय के बाद यूपी में सिपाही से दरोगा पद की पदोन्नती की प्रक्रिया चल रही है। यूपी में सब-इंस्पेक्टर के करीब 5380 पद खाली हैं। इस पद पर प्रमोशन के लिए पिछले मार्च में कराए गए लिखित परीक्षा में 3892 कैंडिडेट पास घोषित किए गए थे। इन्हीं कैंडिडेटों का फिजिकली फिटनेस टेस्ट के तहत 10 किलोमीटर दौड़ की परीक्षा मेरठ, आजमगढ़, कानपुर और सीतापुर पुलिस सेंटरों में 20 जुलाई से चल रही है, जिसमें अब तक 1470 कैंडिडेटों ने दौड़ परीक्षा पास कर चुके हैं।

पुलिसकर्मियों के लगातार बेहोष होने और मौत की घटनाओं की परवाह किये बिना मौत की दौड़ बदस्तूर जारी है। राज्य के स्पेशल डीजीपी बृजलाल ने यूपी के पुलिसकर्मियों से स्पष्ट किया है कि यदि वे अपने को फिजिकली फिट नहीं महसूस कर रहे हैं, तो वे प्रमोशन रेस में हिस्सा नहीं लें। बृजलाल ने माना कि कई जवान मोटापा-ब्लडप्रेशर एवं मधुमेह जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं, तभी इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं। स्पेशल डीजीपी का कहना है कि जिंदगी ज्यादा महत्वपूर्ण है, पहले फिट हों, तभी प्रमोशन की रेस के बारे में सोचें। उनके अनुसार फिजिकल फिटनेस दौड़ यूपी में रोकी नहीं जाएगी। फिट सिपाही ही सब-इंस्पेक्टर बनने का पात्र होगा।

गौरतलब है कि देषभर में राज्य पुलिस के जवान अल्प साधनों और संसाधनों और अस्त-व्यस्त दिनचर्या के साथ जीवन यापन करते हैं। किसी भी राज्य में पुलिसकर्मियों के काम के घंटे निर्धारित नहीं हैं। वहीं पुलिसकर्मियों की कमी भी बड़ा मुद्दा है। आंकड़ों पर गौर करें तो देष में 1 लाख की आबादी के अनुपात में 142 पुलिसकर्मी तैनात है जोकि विष्व के तमाम छोटे-बड़े मुल्कों के मुकाबले काफी कम है।

संविधान के अनुच्छेद सात के अंर्तगत ‘पुलिस’ और ‘लॉ एण्ड ऑर्डर’ राज्य सूची का विषय है। नागरिकों की सुरक्षा और सहायता के लिए बना पुलिस महकमा खुद कितना बीमार, ढीला, सुस्त और लाचार है ये तथ्य किसी से छिपा नहीं है। बेसिक ट्रेनिंग के बाद एकाध के अलावा किसी पुलिसकर्मी का फिजीकल फिटनेस से कोई नाता नहीं रहता है। ऊंचे पदों पर आसीन पुलिस अफसरों के लिए तो राष्ट्रीय स्तर पर ट्रेनिंग और स्पेषल कोर्सेज की व्यवस्था का प्रावधान है लेकिन महकमे के मेरूदण्ड सिपाही से लेकर इंसपेक्टर तक के लिए ट्रेनिंग का खास इंतजाम नहीं है।

अधिकतर पुलिसवाले चौबीस घंटे डयूटी पर ही रहते है। उनके खाने, पीने और आराम का कोई निष्चित समय नहीं है। और ये बात समझ से परे है कि कोई व्यक्ति बिना खाये-पिये और आराम किये चौबीस घंटे पूरी ईमानदारी, निष्ठा और सर्तकता से डयूटी कर सकता है ? वहीं अनियमित दिनचर्या से फिजिकल फिटनेस और ष्षारीरीक क्षमता का क्षय होना स्वाभाविक है। सेना और केन्द्रीय सुरक्षा बलों के जवान सारा साल फिजिकल फिटनिस और ड्रिल से जुड़े रहते हैं। लेकिन राज्य पुलिस के जवानों और अफसरों को वीआईपी डयूटी, थाना, कोर्ट कचहरी और वसूली से ही फुर्सत नहीं मिलती तो वो भला फिजीकल फिटनेस पर क्या ध्यान देंगे।

पुलिस महकमे के सुधार और पुलिस कर्मियों को बेहतर सुविधाएं दिलाने की गरज से कई आयोग और दर्जनों सिफारिशें  सरकारी फाइलों में दबी पड़ी है। ये कड़वी सच्चाई है कि थानो में बिजली, पानी, टायलेट, स्टेषनरी और तमाम दूसरी सुविधाओं का सर्वथा अभाव ही रहता है। महकमे से जितना बजट किसी थाने को मिलता है उससे तीन बंडल पेपर खरीद पाना भी बडी बात है। जिन पुलिसकर्मियों के भरोसे लाखों लोगों की जान और माल की सुरक्षा की अहम् जिम्मेदारी है जब वो ही अनफिट और बीमार होंगे तो आम आदमी किसके सहारे खुद को सुरक्षित महसूस करेगा।