खुदाई के लिए अभिसप्त शहर दिल्ली का यह आम दृश्य है.सरकार के मुताबिक ये सब विकास के लिए हो रहा है और विकास राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के लिए.शहर की सहूलियत और सुविधाओं के मार्फ़त खेलों के आयोजन का तो इतिहास रहा है,मगर दिल्ली को पहले ऐसे शहर कि ख्याति मिलेगी जो खेलों के मार्फ़त बदली है, विकसित हुई है.हो यह रहा है कि यहाँ नागरिकों का ख्याल कर खेल और आयोजन के इंतजामात नहीं किये जा रहे बल्कि खेलों के हिसाब से लोगों के नागरिक अधिकार तय हो रहे हैं.
इस बारे में समाजशात्री आशीष नंदी ने एक साक्षात्कार में कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं -'हमारे यहां एक तरफ राष्ट्र मंडल खेलों की तैयारियां चल रही हैं और दूसरी तरफ उतनी ही तेजी से झोपड़पट्टियों और गरीब बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है या पहले ही उजाड़ दिया गया है। मेरे लिए ये सब झकझोर देने वाली घटनाएं भी हैं। मैं सोचता हूं,यह कैसा देश है जहां दूसरों के स्वागत के लिए अपने लोगों को तबाह किया जा रहा है। न्यूयार्क, लंदन, शिकागो जैसी जगहों में भी स्लम हैं और हार्लेम तो दुनिया की मुख्य स्लम बस्तियों में से एक है। गौर करने वाली बात है कि अभी हाल ही में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का दफ्तर स्लम की तरफ बनाया गया है। लेकिन क्या हमारा कोई अदना-सा सांसद भी ऐसी किसी बस्ती की तरफ रहना पसंद करेगा। जाहिर है,हमारा शासक वर्ग सिर्फ स्लम को ही नहीं ऐसी हर समस्या को,जिसको वह नहीं चाहता है,भुला देना चाहता है नहीं तो ढंक देना चाहता है। यह हिंदुस्तानी शासक वर्ग की कार्यशैली की सामान्य आदत है कि जिसे वह नहीं चाहता है,मुख्य सामाजिक दायरे से उठाकर फेंक देता है।
आइये इस हालात को हम फोटोग्राफर आरबी यादव की नज़रों से देखें -
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