दो माएं और बीच में अदालत. मामला एक बेटी का. दोनों माँ का दावा, बेटी उनकी है. जाहिर है होगी तो किसी एक की ही.इस जिरह में बीत गए सात साल और अंत में अदालत ने जो फैसला दिया, उसने एक माँ से बेटी को अलग कर दिया. फ़िल्मी लगने वाली इस कहानी के पीछे का सच, समाज और अदालत दोनों के लिए सवाल छोड़ जाता है....
चैतन्य भट्ट
‘मुझे बचा लो मम्मी, मुझे अपने से दूर मत करो, मैं कहीं जाना नही चाहती, मैं आपके साथ ही रहूंगी'- जबलपुर के जिला अदालत परिसर में मासूम वंशिका की आवाज हर उस इंसान को द्रवित कर रही थी जो उस वक्त वहां मौजूद था.सात साल की वंशिका बार-बार वकीलों और पुलिस के हाथों से छूटकर उसे पालने वाली मां आशा पिल्ले की गोद में आ गिरती थी,पर देश की सबसे बड़ी अदालत का आदेश उसे जन्म देने वाली मां के पक्ष में था इसलिये पुलिसकर्मी और अधिवक्ता भी मजबूर थे.उन्हें आदेश मिला था कि वे वंशिका को उसको जन्म देने वाली मां के हाथों में सौप दें.
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कोर्ट परिसर में बिलखती आशा पिल्लै |
पुलिस की मदद से जब वंशिका को तबस्सुम की गोद में डाला गया, तब उसे सात साल तक अपने सीने से लगाकर रखने वाली और उसका लालन पोषण करने वाली आशा पिल्ले और उसके पति रवि पिल्र्ले की आँखों से आसुंओं की अविरल धारा बह निकली. आशा पिल्ले तो अदालत परिसर में ही बेहोश हो गई.
सात साल की वंशिका की यह कहानी किसी फिल्मी कथानक से कम नहीं है.मानवीय भावनाओं से लबरेज दो माँओं के बीच फंसी वंशिका को तो इस बात का इल्म ही नहीं था कि उसे जन्म देने वाली कोई और है और उसे पालने वाली कोई और.उसने तो जबसे होश संभाला था, खुद को आशा पिल्ले की गोद में ही पाया था. वह उसकी मां थी. जो उस पर रात-दिन अपनी ममता लुटाती रहती थी.पर वक्त ने सात साल बाद ऐसा पलटा खाया कि वंशिका को अपनी उस मां के पास जाना पड़ा जो उसे जन्म देने के बाद लावारिस हालात में उत्तर प्रदेश के जालौन के एक अस्पताल में छोडकर न जाने कहां चली गई थी.
उरई की रहने वाली तबस्सुम का विवाह उस्मान मंसूरी के साथ हुआ था. विवाह के चार महीने बाद ही उस्मान मंसूरी की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. उस वक्त तबस्सुम के पेट में अपने पति की निशानी पल रही थी.चूंकि विवाह के चार महीने बाद ही उसका पति उसे इस दुनिया में अकेला छोडकर चला गया था. इसलिये उसकी मानसिक दशा गड़बड़ा गई. इस बीच तबस्सुम के दिन पूर हो गये और उसे उरई के डॉ. गुप्ता के अस्पताल में उसके किसी परिचित ने भरती करवा दिया,जहां तबस्सुम ने एक बच्ची को जन्म दिया.
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ऐसी थी वंशिका फोटो - सतन सिंह |
बच्ची को जन्म देने के दो-चार दिन बाद ही वह अचानक अस्पताल से न जाने कहां चली गई.एक नवजात शिशु को अस्पताल में कैसे रखा जाये, इस बात की चिन्ता डा. गुप्ता को थी. तभी उन्हें याद आया कि उनके एक परिचित मनोज गुप्ता ने उनसे कहा था कि उनके जबलपुर में रहने वाले मित्र रवि पिल्ले और उनकी पत्नी आशा पिल्ले विवाह के सत्रह साल बाद भी संतान का मुंह नहीं देख पाये हैं. यदि उनकी निगाह में कोई बच्चा हो जिसे वे गोद ले सकें, तो उन्हें सूचना दे देना.
डॉ.गुप्ता ने इस बात की सूचना मनोज गुप्ता को दी कि एक नवजात बच्ची उनके अस्पताल में है जिसकी मां उसे छोडकर चली गई है. यदि उनके मित्र उसे गोद लेना चाहें तो जालौन आकर ले जायें. मनोज गुप्ता ने यह खबर जब जबलपुर के यादगार चौक में रहने वाले रवि पिल्ले को दी तो वे और उनकी पत्नी आशा पिल्ले खुशी से झूम उठे.उसी रात वे दोनों जालौन के लिये रवाना हो गये और उस बच्ची को लेकर जबलपुर आ गये. उस वक्त यह बच्ची मात्र एक महीने की थी.
पिल्ले दम्पति को संतान की बेहद लालसा थी, अतः उन्होंने उस पर अपना पूरा प्यार लुटा दिया. वे उसे अपने कलेजे से लगाकर रखते. इसका नाम भी उन्होंने रखा ‘वंशिका.’आशा रात रातभर जागकर उसकी सेवा करती, रूई के फोहे से उसे दूध पिलाती.अपनी पत्नी के चेहरे पर खुशी देखकर रवि पिल्ले को भी संतोष होता.
समय के साथ बच्ची बढ़ती गई, उसे उन्होंने स्कूल में भरती करवा दिया.वंशिका सुबह स्कूल जाती और जब तक वापस नही लौट आती आशा दरवाजे पर बैठी उसकी राह तकती रहती.पर उसे पता नहीं था कि उसकी इस खुशी पर ग्रहण लगने वाला है.वंशिका को गोद लेने के चार साल बाद 28 जून 2008 को एक महिला पुलिसकर्मी के साथ पिल्ले दम्पति के घर आई और उसने कहा ‘‘मेरा नाम तबस्सुम है. मैं उरई की रहने वाली हूं, आप लोग जिस बच्ची को लेकर आये हैं वह मेरी बच्ची है. मैं उसे वापस लेने आई हूं.’’
इतना सुनते ही पिल्ले दम्पति के पैरों तले की जमीन खिसक गई. उन्हें सपने में भी इस बात कर अंदाजा नही था कि चार साल बाद ऐसी कोई परिस्थिति पैदा हो जायेगी.पुलिसकर्मी ने उन्हें बताया कि तबस्सुम ने जबलपुर एसडीएम की अदालत में धारा 97 के तहत एक आवेदन लगाया है, जिसमें उसने कहा है कि पिल्ले दम्पति उसकी बच्ची को चुराकर ले आये हैं. एसडीएम ने तबस्सुम के आवदेन पर कार्यवाही करते हुये आदेश पारित किया है कि वंशिका को उसकी मां तबस्सुम की अभिरक्षा में सौप दिया जाये.
इस आदेश के खिलाफ पिल्ले दम्पति ने जिला न्यायालय में एक अरजी लगाई. जिला न्यायालय ने एसडीएम कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुये निर्देश दिये कि वंशिका को पिल्ले दम्पति की अभिरक्षा में ही रहने दिया जाये.
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अंशिका को पैदा करने वाली मां तबस्सुम : जीत की ख़ुशी! फोटो- सतन सिंह |
मगर तबस्सुम ने हार नहीं मानी और मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर आरोप लगाया कि पिल्ले दम्पति में उसकी बेटी को अवैध रूप से अपने पास रखा हुआ है. जबकि वह उसकी मां है और उसने वंशिका को जन्म दिया है.
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इस याचिका को स्वीकार करते हुये मामले की सुनवाई शुरू की.तबस्सुम की ओर से उनके अधिवक्ता संजय अग्रवाल ने न्यायालय को बताया कि बच्ची पर सबसे बडा और पहला हक उसे जन्म देने वाली मां का है. अब वह मानसिक रूप से स्वस्थ है तथा अपनी बच्ची का भरण पोषण कर सकती है,जबकि पिल्ले दम्पति की ओर से उनके अधिवक्ता जयंत नीखरा ने तर्क देते हुये कहा कि पिल्ले दम्पति बच्ची का लालन पोषण बेहतर तरीके से कर रहे हैं.उन्होंने कहा कि तबस्सुम के पास रोजगार को कोई साधन नहीं है और वह बच्ची की देखरेख नहीं कर पायेगी.
चूंकि मामला बेहद संवदेनशील था, इसलिए न्यायमूर्ति द्वय दीपक मिश्रा और आरके गुप्ता ने कैमरा प्रोसीडिंग का सहारा लिया. इस प्रक्रिया के तहत उन्होंने पहले वंशिका और तबस्सुम को अपने चेम्बर में बुलाकर वंशिका से कहा, ‘ये तुम्हारी मां है तुम्हे इसके साथ जाना होगा.’यह सुनते ही वंशिका रोने लगी.तब न्यायमूर्तियों ने आशा को अपने चेम्बर में बुलाया और वंशिका से पूछा,‘क्या तुम इसके साथ रहना चाहती हो.’यह सुनते ही वंशिका दौड़कर आशा पिल्ले की गोद में जाकर छिप गई.
एक मासूम बच्ची की इच्छा जानते हुये न्यायमूर्ति गण ने अपने आदेश में कहा कि यह प्रमाणित नहीं होता कि रवि पिल्ले और आशा पिल्ले ने वंशिका को अवैध रूप से अपने पास रखा हुआ है इसलिये बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का कोई आधार नहीं बनता.बालिका जन्म के बाद से पिल्ले दम्पति के पास है. उसका लालन पोषण अच्छी तरह से हो रहा है. वह स्कूल जा रही है.
पर न्यायालय केवल यह स्थापित कर रहा है कि बच्ची अवैधानिक रूप से नहीं रखी गई है, लेकिन बच्ची के पालन पोषण का अधिकार और दायित्व का प्रश्न किसी सक्षम न्यायालय में ही निर्णित होगा. उच्च न्यायालय के इस निर्णय से तबस्सुम की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकर स्वतः ही खारिज हो गई तथा वंशिका रवि पिल्ले की ही अभिरक्षा में बनी रही.
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पिल्लै दंपति और अंशिका : बिछड़ने से पहले फोटो- सतन सिंह |
उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ तबस्सुम ने उच्चतम न्यायालय में विशेष अवकाश याचिका दायर की और नवंबर 2009 में उच्चतम न्यायालय ने पिल्ले दम्पति को नोटिस जारी किये.मामले की सुनवाई 17 फरवरी को जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस अशोक गांगुली की खंडपीठ ने की.
सुनवाई के दौरान तबस्सुम ने बताया कि उसे आशंका है कि उसे उसकी बच्ची नही दी जायेगी. दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद अदालत ने उसकी अंतरिम राहत की अर्जी स्वीकार करते हुये वंशिका को तबस्सुम की अभिरक्षा में सुपुर्द करने के आदेश जारी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. यह आदेश शाम को फैक्स के जरिये मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय पहुंचा. इसके तारतम्य में दोनों ही प़क्षों को 18 फरवरी को जिला न्यायालय में बुलाया गया,जहां वंशिका को तबस्सुम के हवाले कर दिया गया.अदालती आदेश में यह भी कहा गया कि पुलिस तबस्सुम और वंशिका को पूरी सुरक्षा दे. जालोन एसपी को भी ये निर्देश दिये गये हैं कि वे तबस्सुम और वंशिका की पूरी हिफाजत करें.
अदालती आदेश के बाद अपनी बेटी को उरई ले जाने वाली तबस्सुम ने इस संवाददाता से कहा कि 'मुझे न्याय पर पूरा भरोसा था. अपनी कोख से जन्मी बच्ची को पाने के लिये मुझे इतनी लम्बी लडाई लड़नी पड़ी. खुदा करे ऐसा किसी और मां के साथ न हो.'
दूसरी तरफ वंशिका से बिछड़ने के बाद आशा पिल्ले कहती है,'मैंने तबस्सुम से उसकी बच्ची छीनी नहीं थी, वह उसे छोडकर चली गई थी. सात साल मैंने उसे अपने कलेजे से लगाकर रखा. मैंने उसे किन नाजों से पाला है यह मेरा दिल ही जानता है. मुझे हर पल वंशिका की याद सतायेगी. मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ में नही आता. मैंने भले ही उसे जन्म नहीं दिया, पर मैं भी एक औरत हूं और वंशिका पर मैंने अपनी पूरी ममता लुटाई है.
राज एक्सप्रेस और पीपुल्स समाचार में संपादक रह चुके चैतन्य भट्ट फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहे हैं। वे तीस बरसों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।