Mar 29, 2017

गुजरात में इंजीनियरिंग के 80 प्रतिशत छात्र बेरोजगार

71 हजार इंजीनियरिंग की सीटों में से 27 हजार पर नहीं ले रहा कोई छात्र एडमिशन

देश भर में विकास का डंका पीटने वाले प्रधानमंत्री मोदी के गृहराज्य गुजरात में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले युवाओं की बेकारी का आंकड़ा हतप्रभ कर देने वाला है। आॅल इंडिया कॉउंसिल फॉर टे​क्नीकल एजुकेशन 'एआइसीटीई' के अनुसार गुजरात में इंजीनियरिंग पढ़ने वाले 80 प्रतिशत छात्र नौकरी पाने से वंचित रहे जाते हैं, सिर्फ 20 फीसदी छात्रों को ही नौकरी मिल पाती है। 



टाइम्स आॅफ इंडिया में छपी हरिता दवे की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में इंजीनियरिंग पढ़ रहे छात्रों में सबसे बुरा हाल सिविल इंजीनियरों के प्लेसमेंट का है। इनका सिर्फ 5 फीसदी ही प्लेसमेंट हो पाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह हालत इसलिए है कि पढ़ाई, कार्स और काम में बहुत फर्क है।

एआइसीटीई के 2015—2016 के आंकड़ों के अनुसार कम्प्यूटर साइंस में 11 हजार 190 छात्र पास हुए लेकिन 3 हजार 407 को केवल काम मिला। उसी तरह मैकेनिकल इंजीनियरिंग में 17 हजार 28 छात्र उत्तीर्ण हुए और 4 हजार 524 को नौकरी मिल पाई। 

डिग्री लेकर कैंपस से बाहर निकलने वाले ज्यादातर छात्रों को पता ही नहीं कि उनकी डिग्री का असल मतलब क्या है? गुजरात चैंबर आॅफ कॉमर्स एंड इं​डस्ट्री के अध्यक्ष विपिन पटेल छात्रों की बेकारी के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं। उनका कहना है कि सरकार रिटायर्ड अधिकारियों को 15 लाख देकर नौकरियों पर रख रही है, लेकिन युवा डि​​ग्रीधारी युवा बेकारी फांक रहे हैं।'   

इस आंकड़े पर संदेह उठाने वालों का कहना है कि छात्रों को रोजगार केवल कैंपस में ही नहीं मिलता बल्कि वह बाहर भी रोजगार करते हैं और कुछ नौकरियां नहीं करते। लेकिन एआइसीटीई इन आंकड़ों को अपने स्रोत में शामिल नहीं करती है,  जिससे बेकारी की भयावहता बड़ी दिखती है।

पंडितों और ईश्वर की शरण में ​क्रांतिकारी गायक गदर




वामपंथी सांस्कृतिक आंदोलन के 'लाल सितारा' का मंदिर—मंदिर घुटना टेकना बताता है कि आंदोलन में निराशा गहरे पैठ चुकी है...

जनज्वार। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सम​र्थक कहे जाने वाले सांस्कृतिक संगठन जन नाट्य मंडली के संस्थापक क्रांतिकारी गायक गदर आजकल मंदिर—मंदिर घूम रहे हैं। वे भगवान से अच्छी बारिश और लोगों के दुःख दूर करने की मनौती मांग रहे हैं। वे छात्रों को वेद पढ़ने और विवेकानंद के रास्ते पर चलने का उपदेश दे रहे हैं और जगह जगह अपने नए गुरु मंदिरों में पुजारी के आगे झोली फैलाकर ब्राह्मणवाद के एक सच्चे हिन्दू कार्यकर्ता बनने के लिए आशीर्वाद मांग रहे हैं।

पिछले 5 दशकों से हजारों वामपंथी और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्रोत रहे 67 वर्षीय क्रांतिकारी गायक गदर का वामपंथी आंदोलनों से मोहभंग की खबरें तो कुछ वर्ष पुरानी हैं लेकिन मंदिर—मंदिर मत्था टेकने की जानकारी नई है। हालांकि दिसंबर में भी ऐसी खबरें आई थी जिसमें कहा गया था कि वह जगह—जगह पंडितों के साथ बैठकर पूजा—पाठ कर रहे हैं।

खबरों के मुताबिक वह पिछले हफ्ते भोंगरी जिले के यदाद्रि मंदिर गए और भगवान लक्ष्मीनरसिम्हा की आरती उतारने के बाद उन्होंने मंदिर के पुजारी से आशीर्वाद लिया। इससे पहले जनवरी महीने में उन्होंने पालाकुरथी में प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर में भगवान शिव की भजनों के साथ पूजा की। इससे पहले वे सिद्दिपेट जिले में कोमुरावेल्ली मल्लाना मंदिर भी जा चुके हैं और लोगों को भगवान शिव के भजन सुना चुके हैं।

आंदोलनकारियों और वामपंथी कैडरों के बीच क्रांतिकारी गीतों और व्यवस्था विरोधी सांस्कृतिक आंदोलन के अगुआ माने जाने वाले गदर का यह व्यक्तित्व परिवर्तन बहस का विषय बना हुआ है।

कैडरो और वामपंथ समर्थकों  में सवाल यह भी है कि  जिस ब्राह्मणवाद, पुरोहितगिरी, सामंतवाद  और ईश्वरीय अवधारणा के खिलाफ सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा करने में गदर ने अपना जीवन लगाया, उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर कौन सी निराशा उन्हें मंदिरों और पुरोहितों के चौखट तक ले गयी ?