जनमुक्ति सेना के कमांडरों के बैठक में अधिकांश ने प्रचंड के फैसले को आत्मसमर्पण कहा और पार्टी के उपाध्यक्ष किरण ने १८ सूत्रीय विरोध पत्र प्रस्तुत किया,जिसमें भारतीय गुप्तचर संस्थान (RAW) से प्रचंड के सम्बन्ध बनाने का भी उल्लेख है...
विष्णु शर्मा
नेपाल की माओवादी पार्टी के अंदर विवाद लगातार तेज होता जा रहा है. अब वहां की माओवादी पार्टी एक संयुक्त इकाई कम और तीन गुटों का नीतिगत (टेक्टिकल) गठबंधन अधिक दिखाई पड़ती है. प्रचंड के लाइन के खिलाफ कभी बाबुराम और कभी किरण ‘नोट ऑफ डीसेंट’ लिखते हैं. इसीलिए पार्टी ने निर्णय लिया है कि तीनों धड़े अपने अपने समर्थकों की मीटिंग कर सकते है, उन्हें अपने विचार से अवगत करा सकते है. अब स्थति यह है कि गुटों की बैठक पार्टी की बैठक से अधिक महत्वपूर्ण हो गई है. कई बार तो इन बैठकों के कारण पार्टी की महत्वपूर्ण बैठक भी रद्द हो जा रही हैं.
लाइन के इस संघर्ष में बाबुराम और किरण के गुट लगातार मजबूत हो रहे है और प्रचंड का प्रभाव कमजोर होता जा रहा है. अपनी साख को बचाने के लिए प्रचंड को पार्टी के अंदर ऐसे बहुत से समझौते करने पड़ रहे हैं, जिनकी पहले कल्पना तक नहीं की जा सकती थी. कभी बाबुराम को भारत समर्थक कहने वाले घोर प्रचंड समर्थक भी आज बाबुराम को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखने से नहीं झिझक रहे है.
एनेकपा के अध्यक्ष प्रचंड और उपाध्यक्ष किरण : सिर्फ असहमति |
फिर भी पार्टी को बचा पाना मुश्किल होता जा रहा है. किरण ने जिस तरह से खुद की लाइन को प्रस्तुत किया है उसमें समझौते की गुंजाईश नहीं दिखती. हाँ किरण की एक कमजोरी जरुर है कि प्रचंड को समझौतावादी मानने के बावजूद पार्टी के भीतर बने रहने की उनकी कार्यशैली है, जिसपर अभी से प्रश्न उठने लगे है.आगामी दिनों में किरण पर पार्टी से अलग होने का जबरदस्त दवाब बनेगा. यदि तब भी वह पार्टी में बने रहते है तो संभव है की दूसरी पीढ़ी के नेता अपने लिए नया रास्ता तलाशें. एक दौर में उनके साथ रहे मातृका यादव ने अभी हाल में अपने एक साक्षात्कार में उन्हें ‘गोलचक्करवादी’ बताया था. यदि किरण कोई ठोस निर्णय नहीं लेते तो मातृका की बात की पुष्टि करते नज़र आयेंगे.
प्रचंड पर लगे आरोप '18 विचलन ' के दस्तावेज जनज्वार के पास हैं , प्रस्तुत है उनमें से कुछेक
- राजनीतिक स्तर पर प्रचंड दक्षिणपंथी सुधारवाद और राष्ट्रीय आत्मसमर्पणवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं
- प्रचंड भारतीय गुप्तचर संस्थान (RAW) के सीधे संपर्क में हैं
- प्रचंड धन, ताकत और अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के लिए नैतिक और अनैतिक क्रियाकलाप कर सकने की प्रवत्ति रखते हैं
- अन्य संसदीय पार्टियों के साथ समझौता कर ऐसा संविधान बनाने की मंजूरी दे दी है जो रूप और सार में घोर प्रतिक्रियावादी है
- प्रचंड ने जानबूझ कर पार्टी में आर्थिक हिसाब को कभी होने नहीं दिया और अपने निजी हितों के लिए संसाधनों का इस्तेमाल किया हैं
- प्रचंड के भीतर फासिस्ट प्रवृत्ति का विकास हुआ है
हालाँकि किरण के समर्थक पूर्व माओवादी नेता मातृका की बात से सहमत नहीं है. उनका मानना है कि जल्दबाजी में पार्टी से अलग होना गलत होगा.पार्टी में रहकर प्रचंड की लाइन को सरेआम करना सही नीति है. और जहाँ तक पार्टीका सवाल है वह किसी एक की बपौती नहीं है. समर्थकों के तर्कों से स्पष्ट है कि किरण के पास भी अभी क्रांति की कोई ठोस योजना नहीं है और इसलिए पार्टी में रहकर प्रचंड-बाबुराम की लाइन का विरोध करना उन्हें ठीक लगता है. लेकिन उनके करीबी कुछ नेता मानते है कि जितना लंबा समय वे पार्टी में रहेंगे उतना ही प्रचंड मजबूत होंगे.
जबकि मौजूदा समय में प्रचंड की अपनी कोई लाइन नहीं है, बल्कि वे कभी बाबुराम और कभी किरण के समर्थन में खुद को खड़ा करते है.पार्टी का बहुसंख्यक हिस्सा उन्हें अपने नेता के रूप में नहीं देखता. हाल में जनमुक्ति सेना के कमांडरों की बैठक में अधिकांश ने प्रचंड के फैसले को आत्मसमर्पण कह कर आलोचना की थी. साथ ही किरण ने अपने समर्थकों के बीच ‘प्रचंड के 18 विचलन’ नाम से एक दस्तावेज़ बांटा है. इस दस्तावेज़ के दुसरे बिन्दु में लिखा है कि ‘राजनीतिक स्तर पर दहाल दक्षिणपंथी सुधारवाद और राष्ट्रीय आत्मसमर्पणवाद का प्रतिनिधित्व करते है’. इसी दस्तावेज़ में कहा गया है कि प्रचंड भारतीय गुप्तचर संस्थान (RAW) के सीधे संपर्क में है, जिसका साफ़ मतलब है कि प्रचंड और RAW के बीच संबंध हैं.
पार्टी संगठन के स्तर पर इस दस्तावेज़ के 18वे बिंदु में कहा गया है कि ‘प्रचंड धन, ताकत और अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के लिए नैतिक और अनैतिक क्रियाकलाप कर सकने की प्रवत्ति रखते है. और इसी के चलते उन्होंने अन्य संसदीय पार्टियों के साथ समझौता कर ऐसा संविधान बनाने की मंजूरी दे दी है जो रूप और सार में घोर प्रतिक्रियावादी है.’ आगे दस्तावेज़ कहता है कि प्रचंड ने जानबूझ कर पार्टी मेंआर्थिक हिसाब को कभी होने नहीं दिया और अपने निजी हितों के लिए संसाधनों का इस्तेमाल किया है. दस्तावेज़ में एक जगह कहा गया है कि प्रचंड के भीतर फासिस्ट प्रवत्ति का विकास हुआ है.
इस विवाद के बीच 15 जून 2011को होने वाली स्थाई समिति की बैठक ‘तैयारी की कमी’ का कारण बता कर रद्द कर दी गई.कयास लगाया जा रहा है कि प्रचंड ने ऐसा आलोचना के डर से किया. उन्हें इस बात का आभास हो गया है कि पार्टी के साथ अब जनसेना में भी उनकी लाइन के विरोध में स्वर तेज होते जा रहे हैं. आगे वे अपने बचाव में क्या तर्क देंगे यह देखना जरूरी होगा.आज तक उन्होंने खुद को क्रांति के अगुवा के बतौर और बाबुराम को संशोधनवादी और किरणको अतिवामपंथी के रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत किया है.
क्रांति की लाइन को न छोड़ने के चलते ही अब तक लोग उन्हें एक समझदार नेता मानते आये है. एक ऐसा नेता जो कभी दक्षिणपंथी और कभी वामपंथी लाइन लेते हुए भी क्रांति को हमेशा केंद्र में रखता है. यदि अबकी बार उनके तर्क बहुसंख्यक कार्यकर्ताओं को क्रांति की भावना के खिलाफ नज़रआते है तो उनकी प्रासंगिकता पर भी सवाल उठ सकता है.