Apr 4, 2011

पुख्ता साक्ष्य हैं अग्निवेश के माओवादी होने के



गृहमंत्री ननकीराम कंवर कहते हैं - हम भी मानते थे कि वो सामाजिक कार्यकर्ता हैं। संत के रूप में रहते हैं। भगवा वस्त्र पहनते हैं। पर संत के रूप में अग्निवेश माओवादी निकले...

सुदीप त्रिपाठी

रायपुर.सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश की एक सीडी सामने आई है,जिसमें उन्हें लाल सलाम..लाल सलाम नारे लगाते हुए दिखाया गया है। सीडी में स्वामी माओवाद के नारे भी लगा रहे हैं।

यह सीडी 11 जनवरी को जगदलपुर के करियामेटा के पास जंगलों के बीच माओवादियों की उस जन अदालत का है, जिसमें पांच अपहृत जवानों को 11 जनवरी को रिहा किया गया था।

गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने सीडी मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह को सौंप दी है। संकेत हैं कि अब इस सीडी में मिले तथ्यों की समीक्षा की जाएगी। आला अफसरों व विधि विशेषज्ञों को परीक्षण का जिम्मा दिया गया है। स्वामी अग्निवेश पीयूसीएल की पदाधिकारी कविता श्रीवास्तव के साथ पिछले दिनों बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र गए थे।


उसी समय सीडी तैयार की गई है। इसमें ग्रामीणों की सभा में स्वामी अग्निवेश पीयूसीएल के नेताओं के साथ भीड़ के बीचों-बीच खड़े हैं। सभा में भारत सेना वापस जाओ के नारे लगाए जा रहे हैं और अग्निवेश उनके सुर में सुर मिलाते नजर आ रहे हैं।

स्वामी अग्निवेश की छवि सामाजिक कार्यकर्ता की है। पिछले महीने नक्सलियों ने पांच जवानों का अपहरण कर लिया था। जवानों को छ़ुड़ाने के लिए अग्निवेश ने मध्यस्थता की थी।

शासन ने जवानों की जिंदगी को ध्यान में रखकर उनका प्रस्ताव स्वीकार किया था। उसके बाद स्वामी अग्निवेश ने उन जवानों को नक्सलियों से छुड़ाकर लाया था। सीडी जारी होने के बाद पूरे मामले में नए सिरे से बात उठ रही है।


सीडी में स्वामी ने यह कहा

हमारे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी के जो नेता हैं,कॉमरेड नीति और तमाम हमारे जवान, उनको लाल सलाम करेंगे। ठीक है। फिर उन्होंने कहा-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी..लाल सलाम .लाल सलाम। इस लाइन को उन्होंने दोहराया। उनके पीछे एक महिला भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जिंदाबाद के नारे लगाते हुए भारत सेना वापस जाओ बोली।

संत समझते थे, माओवादी निकले

स्वामी अग्निवेश को सीडी में माओवाद के नारे लगाते देखकर गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने कहा कि हम भी मानते थे कि वो सामाजिक कार्यकर्ता हैं। संत के रूप में रहते हैं। भगवा वस्त्र पहनते हैं। पर संत के रूप में अग्निवेश माओवादी निकले। लाल सलाम जिंदाबाद.. ये उनका नारा है।

कंवर ने फिर कहा कि नक्सलियों ने रणनीति में बदलाव किया है। इसमें वो अपहरण करो और छोड़ो की नीति अपना रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अग्निवेश को माध्यम बनाया।

अपहरण की दो घटनाएं हुई हैं। दोनों में अग्निवेश सामने आए हैं। मैं पहले से कह रहा हूं, लेकिन अब तक मेरी बातों को तवज्जो नहीं दी गई। ये सोची-समझी रणनीति है। नक्सली यह प्रचारित करना चाहते हैं कि हम लोगों को नहीं सताते।

इसी योजना के मुताबिक उन्होंने अपहरण किया। उसके बाद अपहर्ताओं को छ़ुड़ाने के लिए वहां अग्निवेश गए। ताड़मेटला में हमारी फोर्स नक्सलियों पर हावी हुई तो साजिश रचकर एसएसपी कल्लूरी के खिलाफ वातावरण तैयार किया।

हमने उनका ट्रांसफर किया है। लेकिन अब मैं गृहमंत्री होने की हैसियत से कहता हूं कि उनकी कहीं भी गलती नहीं है।

दैनिक भास्कर से साभार

खेल को खेल ही रहने दो


क्रिकेट कहीं  अन्य भारतीय खेलों को आऊट तो नहीं कर रहा है?बाजार उन्हीं खेलों को प्रोत्साहित क्यों कर रहा है जहाँ पैसे व व्यवसाय की संभावना अधिक है ?खेल का क्षेत्र हमारी संस्कृति का क्षेत्र है...

कौशल किशोर

इतिहास अपने को दोहराता है। ऐसा ही हुआ है। 1983के बाद 2011, हम फिर क्रिकेट विश्व चैम्पियन बने। यह एक बड़ी उपलब्धि है। जो हमारे गुरू थे,जिन्होंने हमें गुलाम बनाया और यह खेल सिखाया, उन्हें बहुत पीछे छोड़ दूसरी बार हमने यह जीत हासिल की है। यह ऐसी जीत है जो मन को रोमांचित कर दे। हमारे खिलाड़ी निःसन्देह बधाई के पात्र हैं। हम जोश से भरे हैं। लेकिन ऐसा जोश भी ठीक नहीं जिसमें हम होश खो दें।

हम खेल का भरपूर आनन्द उठायें, जीत पर खुशियाँ मनायें, खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करें, एक दूसरे को बधाइयाँ दें पर यह भी जरूरी है कि खेल से जुड़े मुद्दों पर चर्चा भी हो। खेल में प्रतिभा को स्थान मिले पैसे को नहीं। हम इस पर भी विचार करें कि कारपोरेट पूँजी और बाजार कैसे हमारे खेल में घुस रहा है,खेल व खिलाड़ी को कैसे अपनी कमाई और व्यवसाय का माध्यम बना रहा है। फिर अन्य खेलों की दुर्दशा क्यों ?

हाकी जिसमें हम विश्व चैम्पियन थे,उसमें हम इतना पीछे क्यों ?क्रिकेट कही अन्य भारतीय खेलों को आऊट तो नहीं कर रहा है?बाजार उन्हीं खेलों को प्रोत्साहित क्यों कर रहा है जहाँ पैसे व व्यवसाय की संभावना अधिक है ?खेल का क्षेत्र हमारी संस्कृति का क्षेत्र है। पर हमने क्या देखा ? राजनीति व भ्रष्टाचार। मंत्री व मंत्रालय से लेकर तमाम खेल समितियाँ भ्रष्टाचार में डूबी इुईं। आई पी एल और कामनवेल्थ गेम में क्या हुआ,सबके सामने है। इससे दुनिया में हमारी क्या छवि बनी ?

एक और बात,यह खेल है युद्ध नहीं। जहाँ क्रिकेट हुआ वह मैदान है,रणक्षेत्र नहीं। पर खेल की भावना युद्ध की भावना में बदल दिया जाय और हमारे राष्ट्रवाद पर अन्धराष्ट्रवाद की मानसिकता हावी हो जाये तो फिर इस भावना व मानसिकता पर जरूर विचार किया जाना चाहिए। मीडिया के रोल पर भी बात होनी चाहिए।

‘फतह पाकिस्तान’, ‘लंका दहन’, ‘रावण दहन’ आखिरकार यह कैसी पत्रकारिता है? प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक मीडिया सब जगह जैसे खेल नहीं उन्माद बोल रहा है और पूरे देश को उन्मादी बनाने पर तुला हो। कहते हैं खेल प्रेम व भाईचारा बढ़ाता है,दूरियाँ खत्म कर एक दूसरे को करीब लाता है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आये। श्रीलंका के राष्ट्रपति आये। पड़ोसी मुल्कों से तमाम लोग आये। खेल हुआ। हम जीते। पर जो उन्माद पैदा किया गया उससे कौन विजयी हुआ?खेल जीता या पूँजी व बाजार ? किसको खाद पानी मिला खेल की निर्मल भावना को या संघी मानसिकता को? ये सवाल या इस तरह की बातें जश्न के माहौल में जरूर अटपटी सी लग रही होंगी। पर यही मौका है जिस पर चर्चा की जा सकती है, गलत प्रवृतियों पर चोट की जा सकती है।




समय की बर्बादी है न्यायिक जाँच की मांग


परिस्थितिजन्य साक्ष्य की मजबूत कड़ी इतने पुख्ता ढंग से अपराधकर्मियों की ओर इशारा कर रही हो तो फिर न्यायिक जांच की जरूरत क्या है। न्यायिक जांच अगर की ही जानी है तो इस बात की होनी चाहिए कि उन ग्रामीणों का कितना नुकसान हुआ...

रंजीत वर्मा

दांतेवाड़ा के तीन गांवों तीमापुरम, मोरपल्ली और ताड़मेटला में घुसकर 327 पुलिस के जवानों ने 11 से 16 मार्च के बीच जम कर तांडव मचाते हुए 300 घरों को फूंक दिया। महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर बदसलूकी की और कम से कम तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया। सरकार चुप रही कुछ इस तरह की किसी को कानों कान खबर भी नहीं लगने दी। लेकिन 23मार्च को हिंदू अखबार के माध्यम से यह खबर दुनिया को लग गयी।


सरकार में थोड़ी बेचैनी दिखी लेकिन तब भी वह चुप रही। शायद यह सोचकर कि मामला कुछ दिनों में खुद ठंडा हो जाएगा। लेकिन वहां स्वामी अग्निवेश पहुंच गए। और जब वे राहत सामग्री लेकर मोरपल्ली गांव की ओर जा रहे थे तो रास्ते में उन पर प्राणघातक हमला कर दिया गया। स्वामी अग्निवेश के कथनानुसार हमला करने वाले हठ्ठे कठ्ठे गैर आदिवासी लोग थे और वे गालियां देते कह रहे थे कि जब माओवादियों ने आदिवासियों को जिंदा जलाया था तब ये लोग कहां थे,जब चिंतलनार में 76 जवानों की हत्या माओवादियों द्वारा की गयी थी तब ये लोग कहां थे।

आश्चर्य है यही बातें स्वामी अग्निवेश को उन गांवों में निकलने से पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह ने भी कही थी साथ ही चेताया था कि वे वहां नहीं जाएं क्योंकि लोग गुस्से में हैं। क्या इन बातों से रमण सिंह की यह नाराजगी जाहिर नहीं होती है कि माओवादियों के जुल्म के समय तो आप लोग खामोश रहते हैं और जब पुलिस कुछ घरों को जलाती है या महिलाओं के साथ बलात्कार वगैरह कुछ करती है या कुछ लोगों की महज हत्या कर देती है तो आप लोग राहत सामग्री लिए दौड़े चले आते हैं।

यानी कि क्या वे यह नहीं कहना चाह रहे हैं कि जिस तरह माओवादियों द्वारा किये जाने वाले हमले के समय चुप रहते हैं उसी तरह पुलिस ज्यादतियों के समय भी आप चुप रहें। क्या इस तरह वे यह स्वीकार नहीं कर रहे कि इन तीन गांवों को नेस्तनाबूद करने का काम उनकी पुलिस ने ही किया है। ज्ञात हो कि हमला करने वालों ने अंडे भी फेंके थे।

जरा सोचिये कि जिन आदिवासियों को दो समय पेटभर भात भी नसीब नहीं होता है, वे अंडे कहां से लाए फेंकने के लिए। जाहिर है ये अंडे प्रशासन द्वारा गुंडों को मुहैया कराये गए होंगे। अंडे फेंकने वालों में क्या वही गुंडे नहीं थे जो बाद में घातक हमले पर उतर आए थे। वे सब क्या सलवा जुड़ूम के कैंपों में तैयार किये गए गुंडे नहीं थे?आखिर यूं ही नहीं दांतेवाड़ा के कलक्टर और एसपी को हटाया नहीं गया है।

इन सारी घटनाओं पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग केंद्रिय गृह सचिव, छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव और वहां के पुलिस महानिदेशक को नोटिस भेज पूरी घटना का ब्योरा मांग रहा है। स्वामी अग्निवेश ने सर्वोच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत न्यायाधीश से पूरे मामले की न्यायिक जांच कराये जाने की मांग कर रहे हैं। राष्ट्रपति तक को उन्होंने इस बाबत खत लिख डाला है। जहिर है छत्तीसगढ़ सरकार इस मामले में खुद को फंसा हुआ महसूस कर रही है।

वहां के राज्य गृह मंत्री ननकी राम कंवर सदन में बयान दे रहे हैं कि माओवादियों ने इस कांड को अंजाम दिया है। उन्होंने ही आग लगायी उन्होंने ही तीन लोगों की हत्या की। उनके बयान पर सदन में हंगामा मच जाता है। सभी लोग इस कांड के लिए मुख्यमंत्री को जवाबदेह मान रहे हैं। गृहमंत्री के बयान पर कोई यकीन नहीं कर रहा। फिर भी यह समझना किसी के लिए मुश्किल नहीं रहा कि जब गृहमंत्री ऐसा कह रहे हैं तो छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक मानवाधिकार को क्या रिपोर्ट देंगे। सच पूछा जाए तो न्यायिक जांच की मांग भी समय बर्बाद करने जैसा है।

जब परिस्थितिजन्य साक्ष्य की मजबूत कड़ी इतने पुख्ता ढंग से अपराधकर्मियों की ओर इशारा कर रही हो तो फिर न्यायिक जांच की जरूरत क्या है। न्यायिक जांच अगर की ही जानी है तो इस बात की होनी चाहिए कि उन ग्रामीणों का कितना नुकसान हुआ और यह कि जब उनके अनाज जला दिये गए हों और उनके पास खाने को कुछ भी नहीं हो तो ऐसी परिस्थिति में राहत सामग्री लेकर जा रहे स्वामी अग्निवेश को रोककर उन्हें भूखे मर जाने को छोड़ देने के पीछे सरकार के जो हिंसक इरादे काम कर रहे हैं क्या उसके बाद भी इस सरकार को संवैधानिक रूप से बने रहने का हक है।

अब तो वहां से भूखों मरने की खबर भी आने लगी है। और इस खबर पर जब सर्वोच्च न्यायालय ने अपने दो आयुक्तों एनसी सक्सेना और हर्ष मंदर को कहा कि वे वहां जाएं और स्थिति का जायजा लेकर कोर्ट को रिपोर्ट सौंपें तो अदालत में उपस्थित छत्तीसगढ़ के वकील उछल पड़े, उन्होंने कहा कि वहां भूख से कोई मौत नहीं हुई है। अखबारों में जो खबरें आ रही है वे गलत हैं और उस पर कोर्ट को संज्ञान लेने की जरूरत नहीं है।


गनीमत कि कोर्ट ने उनकी नहीं सुनी लेकिन सरकार की मंशा देखिए वह सर्वोच्च न्यायालय को रोकना चाहती है वहां किसी को भेजने से, घटनास्थल पर जाने से वह पत्रकारों को रोकती है, सामाजिक कार्यकर्ताओं को पीटती है और सदन में झूठा बयान देती है,गरीब आदिवासी की जमीन हड़पने के लिए इस तरह खून खराबे पर उतर जाती है क्या ऐसी सरकार को बने रहने देना चाहिए। वे विकास दर दिखाते हैं लेकिन इसके पीछे जो हत्याएं हो रही है उसका कौन हिसाब देगा।

गृहमंत्री ननकी राम सीडी लेकर घूम रहे हैं जिसमें अग्निवेश को लाल सलाम का नारा लगाते दिखाया गया है और कहते फिर रहे हैं कि देखिये यह आदमी तो माओवादी निकला,इसे हम लोग स्वामी समझ रहे थे। वह कुछ इस तरह ये बातें कह रहे हैं मानो माओवादी होना काफी है मारे जाने के लिए। इस पर शोर क्यों। यह तो वैदिक हिंसा की तरह है जो हिंसा नहीं होती। कार्पोरेट घरानों के चाटुकारों ने सत्ता की बागडोर अपने होथों में ले ली है अगर उनसे जल्द ही बागडोर नहीं छीनी गयी तो समझिये कि आगे आने वाले दिन और भी भयानक होंगे और भी प्राण सुखाने वाले।



विधि मामलों के टिप्पणीकार और लेखक.कविता को जनता के बीच ले जाने के प्रबल समर्थक और दिल्ली में शुरू हुई कविता यात्रा के संयोजक.उनसे verma.ranjeet@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है