Apr 17, 2010

जहां गुंडे भी विधायक हैं


अजय प्रकाश

‘चाचा हमार विधायक हउवें ना घबराइब हो, ए डब्बल चोटी वाली तहके टांग ले जाइब हो’- भारतीय राजनीति को जनता किस रूप में समझती है,भोजपुरी भाषी क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय यह गीत इसकी एक बानगी भर है। 

राजनीति में अपराध के बढ़े शेयर का न तो इससे बेहतर विश्लेषण हो सकता है और न ही इससे बड़ा तिरस्कार। अभी हालत यह है कि देश के सबसे बड़ी आबादी और विधानसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश के 40प्रतिशत से अधिक विधायक अपराधी हैं। जिनमें से ज्यादातर हत्या,बलात्कार, गैंगवार, फिरौती, राहजनी, उठाईगीर जैसे कई अपराधों में नामजद, सजायाफ्ता, नहीं तो भगोड़ा घोषित हैं।

कोलसला विधायक अजय राय :  गुंडा एक्ट के तहत गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस
                                                                                                 फोटो- वाराणसी व्यू ब्लॉग  
ऐसे जनप्रतिनिधि जनता की भलाई कितना करते हैं, वह तो आंकड़ों में फंसकर फाइलों में दफ्न हो जाता है मगर इनकी गुंडई का असर लोगों में दिन-रात रहता है। सिर्फ मार्च महीने में प्रदेश के 6विधायकों श्रीपति आजाद,दीप नारायण सिंह, सुल्तान बेग, विजय कुमार मिश्रा, अजय राय और यशपाल रावत पर हत्या, हत्या का प्रयास, वाहन चोरी गैंग और अपहरण के मुकदमें दर्ज हुए हैं। समाजवादी पार्टी के महाराजगंज सदर के विधायक श्रीपती आजाद ने रामपुर बुजुर्ग गांव की एक विधवा महिला सावित्री देवी को सिर्फ इसलिए जला दिया कि वह अब उन्हें पसंद नहीं कर रही थी। वहीं संत रविदास नगर जिले के ग्यानपुर के सपा विधायक विजय कुमार मिश्रा वाहन चोर गैंग के नेता निकले तो बरेली जिले के कंवर क्षेत्र के सपा विधायक के खिलाफ चोर गैंग के सरगना होने का मुकदमा दर्ज हुआ।

वाराणसी के कोलासला क्षेत्र के विधायक अजय राय ने भानू प्रताप सिंह नाम के बीज व्यापारी को एक संपत्ति विवाद में 25 मार्च को जिंदा जला दिया। पुराने आपराधिक रिकॉर्ड वाले अजय राय 2007 चुनाव से पहले भाजपा में थे,चुनाव के वक्त सपा ने समर्थन दिया और फिलहाल कांगे्रसी कार्यकर्ताओं ने,गुंडा एक्ट में उन्हें गिरफ्तार किये जाने के बाद वाराणसी में खूब हंगामा किया। बाहुबली अजय राय प्रदेश के इकलौते नेता नहीं हैं जो अपराध की राजनीति के बदौलत प्रदेश की हर बड़ी पार्टी में रसूख रखते हैं। इस तरह के नेताओं की भरमार है जो पार्टियों में बेहतर राजनीति की पैरोकारी करने वालों को हाशिये पर डाल देते हैं और शीर्ष  नेताओं की क्षत्रछाया में मलाई मारते हैं। मुख्तार अंसारी, राजा भैया, अमरमणि त्रिपाठी, हरिशंकर तिवारी, अतिक अहमद, गुड्डु पंडित, डीपी यादव, अखिलेश सिंह जैसे नेता इस राजनीति के स्थापित नाम हैं।

उत्तर प्रदेश की मौजूदा विधानसभा में ‘जिसकी जितनी भागीदारी, उनके उतने हैं अपराधी’ वाली बात है। पिछले 2007के विधानसभा चुनावों में दलितों-ब्राम्हणों के गठजोड़ से ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली बसपा के 206 प्रतिनिधि हैं जिनमें से 71 पर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का मुकदमा दर्ज है। जबकि प्रदेश को संभालने वाले कैबिनेट के मंत्रियों में अपराधिक छवि वाले कितने हैं उसका अंदाजा बुंदेलखंड क्षेत्र से आने वाले उन पांच  मंत्रियों से लगाया जा सकता है जिनमें से एक भी ऐसा नहीं है, जिस पर कि आपराधिक मुकदमा नहीं है। भाजपा से बसपा में आये और मौजुदा सरकार में लघु उद्योग मंत्री बने बादशाह सिंह पर लगभग डेढ़ दर्जन मुकदमें दर्ज हैं।

ऐसा भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपराधियों की भरमार एकाएक हो गयी है। पिछली विधानसभा में तो आधे से अधिक 403 में से 207 जनप्रतिनिधियों पर संगीन मुकदमें दर्ज थे जिसमें सर्वाधिक संख्या 84 सपा विधायकों की थी। वैसे भी सपा के बारे में राजनीतिक विश्लेषकों की आम राय रही है कि जब वह सत्ता में होती है तो अराजकता बढ़ जाती है। याद होगा कि मुलायम सिंह ने राजनीति में अपराधियों की बढ़ती तादाद के मद्देनजर मैनपुरी में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘अपराधियों को राजनीतिक तंत्र से खदेड़ने की जरूरत है और चाहिए कि असमाजिक तत्वों को जगह न दें। इसकी शुरूआत में अपनी पार्टी से करने जा रहा हूं।’प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की यह चिंता काबिले तारिफ थी लेकिन खालिश भाषण साबित हुई। मौजूदा विधानसभा में उनकी पार्टी के 97विधायकों में से 48 यानी आधे असमाजिक और आपरधिक टैग वाले हैं।

राजनीतिक सुचिता और शुद्धता पर सर्वाधिक शोर मचाने वाली पार्टी भाजपा के शाहाहाबाद क्षेत्र के विधायक कांशीराम दिवाकर पर बरेली के एक व्यापारी नरेंद्र सिंह ने हत्या और वसूली का मुकदमा दर्ज कराया है। प्रदेश में लगातार जनाधार खो रही भाजपा को आखिरकार अब आपराधिक राजनीति की वही राह चुननी पड़ी है,जिसका सिद्धांतों में ही सही वह विरोध करती रही है। इस बार विधानसभा में भाजपा के मात्र 50 विधायक ही पहुंच सकें हैं जिसमें से 19 अपराधियों की बिरादरी से आते हैं। अब कांग्रेस को देखें तो उत्तर  प्रदेश में उसके सबसे कम गुंडा विधायक हैं कि  सबसे कम 20 विधायक हैं।

प्रदेश की 403 सीटों वाली विधानसभा में 160 से उपर माफियाओं और अपराधियों की भागीदारी में जनता से जुड़े मुद्दे किस कदर हाशिये पर जाते हैं उसकी एक बानगी मौजूदा विधानसभा के चले सत्र को देखकर समझा जा सकता है। पूरे सत्र में एक सप्ताह भी सदन नहीं चला और न ही जनता से सीधे जुड़े किसी मसले पर चर्चा हो सकी। सवाल है कि जिस सत्र को कमसे कम साल में तीन महीने चलना चाहिए वह एक सप्ताह भी नहीं चलता है और विपक्ष इस पर विरोध की खानापूर्ति कर चुप्पी साध लेता है।