लोगों का आप से मोहभंग शुरू हो गया है और लोग फिर से उन्हीं पार्टियों की तरफ़ लौटने लगे हैं जिनकी अकर्ण्यमनता और भ्रष्टाचार से तंग आकर उन्होंने केजरीवाल को विकल्प के रूप अपनाया था।
पीयूष पंत, वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली की राजौरी गार्डन विधान सभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी की हुयी करारी हार से दिल्ली में पार्टी के भविष्य को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। जो पार्टी दो साल पहले ही विधान सभा की 70 में से 67 सीटें जीत कर सत्ता में आई थी उसके प्रत्याशी द्वारा अपनी ज़मानत राशि गवां बैठना कोई छोटी-मोटी बात नहीं कही जा सकती।
आखिरकार 2015 में जिस पार्टी को इसी चुनाव क्षेत्र में 46.55 फीसदी वोट मिले थे उपचुनाव में उसे केवल 13.12 फीसद वोट से ही संतुष्ट होना पड़ा है। निसंदेह आप की लोकप्रियता में ये भारी गिरावट है कुछ उसी तरह की जैसी शेयर बाज़ार में गिरावट आती है जब निवेशक का विश्वास डोलने लगता है। तो क्या दिल्ली की जनता का आम आदमी पार्टी से मोहभंग होने लगा है ?
अगर गोवा के चुनाव में पार्टी का खराब प्रदर्शन और पंजाब के चुनाव में तमाम दावों के बावजूद मात्र 22 सीटों में जीत हासिल करने को भी पार्टी के भविष्य का आकलन करने के लिए शुमार किया जाय तो क्या यह कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी का शिराज अब बिखर रहा है ?
जहां तक राजौरी गार्डन उप-चुनाव में पार्टी को मिली शिकस्त का सवाल है तो वोट प्रतिशत में आयी भारी गिरावट तो यही संकेत दे रही है कि धीरे-धीरे अब दिल्ली के लोगों का आप से मोहभंग शुरू हो गया है और लोग फिर से उन्हीं पार्टियों की तरफ़ लौटने लगे हैं जिनकी अकर्ण्यमनता और भ्रष्टाचार से तंग आकर उन्होंने आम आदमी पार्टी का विकल्प अपनाया था।
ग़ौर किया जाए तो कांग्रेस का जो वोट बैंक 2015 में पूरी तरह कांग्रेस का साथ छोड़ कर उम्मीदों भरी पार्टी आप के साथ चला गया था उसके एक बड़े हिस्से ने घर वापसी कर ली है। यही कारण है कि कांग्रेस का मत प्रतिशत 2015 के 12 फीसद से लम्बी छलांग लगाते हुए 33.23 फीसद पर जा पहुंचा। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी का मत प्रतिशत 38.04 से बढ़ कर 51.99 पर जा पहुंचा।
इसका मतलब है कि राजौरी गार्डन चुनाव क्षेत्र के उच्च, मध्यम वर्ग के और अल्पसंख्यक समुदाय के उन लोगों का, जो आम आदमी पार्टी की साफ़-सुथरी और ईमानदार वैकल्पिक राजनीति की परिकल्पना से आकर्षित हो कर आम आदमी पार्टी की अप्रत्याशित जीत का कारण बने थे, पार्टी से मोहभंग हो चुका है। लेकिन आप प्रत्याशी हरजीत सिंह संभवतः उस निचले तबके का दस हज़ार वोट हासिल करने में सफल रहे जो आम आदमी का कोर सपोर्टर है और जिसे आम आदमी की सरकार द्वारा बिजली और पानी में दी गयी सब्सिडी का सबसे अधिक फ़ायदा पहुंचा है।
हालांकि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उप चुनाव से पहले ही नगर पालिका चुनावों के सन्दर्भ में यह बात कह कर अमीरों को रिझाने की कोशिश की थी कि वे दिल्ली में प्रॉपर्टी टैक्स ख़त्म कर देंगे लेकिन उसका भी असर राजौरी गार्डन के अमीरों पर पड़ता नहीं दिखाई दिया जबकि इस चुनाव क्षेत्र में अमीर पंजाबी और सिक्ख बनियों की भरमार है।
संभवतः आप की हार का सबसे बड़ा कारण रहा पूर्व विधायक जर्नेल सिंह का दिल्ली छोड़ कर पंजाब के चुनाव में कूद पड़ना। पहले से ही विधायक के कार्यों से पूरी तरह संतुष्ट न रहने वाले मतदाताओं ने इसे अपना अपमान माना। कभी जिस तरह अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली के लोग भगोड़ा कहने लगे थे उसी तरह राजौरी गार्डन के लोग जर्नैल सिंह को भी भगोड़ा मानने लगे।
दूसरा बड़ा कारण रहा आप प्रत्याशी हरजीत सिंह का कद के स्तर पर भाजपा प्रत्याशी मजिंदर सिंह सिरसा के सामने नहीं टिक पाना। सिरसा दिल्ली के चुनावी परिदृश्य में पुराने खिलाड़ी हैं। वो मूलतः शिरोमणी अकाली दल के सदस्य हैं। वो 2008 में जंगपुरा से विधान सभा का चुनाव लड़ कर हार चुके हैं। 2013 में उन्होंने राजौरी गार्डन से विधान सभा का चुनाव लड़ा और जीता लेकिन 2015 के विधान सभा चुनाव में वो आप के जर्नैल सिंह से हार गए थे।
वैसे भी दिल्ली की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में शिरोमडी अकाली दल का दबदबा है जिसका अनुभव खुद केजरीवाल गुरूद्वारे के चुनाव लड़कर कर चुके हैं। दिल्ली के सिक्खों में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का खासा प्रभाव है। चूँकि सिरसा इस बार भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे इसलिए भाजपा वोट बैंक और अकाली दल वोट बैंक की मिली-जुली ताक़त ने उन्हें भारी जीत दिला दी।
ग़ौर किया जाए तो कांग्रेस का जो वोट बैंक 2015 में पूरी तरह कांग्रेस का साथ छोड़ कर उम्मीदों भरी पार्टी आप के साथ चला गया था उसके एक बड़े हिस्से ने घर वापसी कर ली है। यही कारण है कि कांग्रेस का मत प्रतिशत 2015 के 12 फीसद से लम्बी छलांग लगाते हुए 33.23 फीसद पर जा पहुंचा। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी का मत प्रतिशत 38.04 से बढ़ कर 51.99 पर जा पहुंचा।
इसका मतलब है कि राजौरी गार्डन चुनाव क्षेत्र के उच्च, मध्यम वर्ग के और अल्पसंख्यक समुदाय के उन लोगों का, जो आम आदमी पार्टी की साफ़-सुथरी और ईमानदार वैकल्पिक राजनीति की परिकल्पना से आकर्षित हो कर आम आदमी पार्टी की अप्रत्याशित जीत का कारण बने थे, पार्टी से मोहभंग हो चुका है। लेकिन आप प्रत्याशी हरजीत सिंह संभवतः उस निचले तबके का दस हज़ार वोट हासिल करने में सफल रहे जो आम आदमी का कोर सपोर्टर है और जिसे आम आदमी की सरकार द्वारा बिजली और पानी में दी गयी सब्सिडी का सबसे अधिक फ़ायदा पहुंचा है।
हालांकि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उप चुनाव से पहले ही नगर पालिका चुनावों के सन्दर्भ में यह बात कह कर अमीरों को रिझाने की कोशिश की थी कि वे दिल्ली में प्रॉपर्टी टैक्स ख़त्म कर देंगे लेकिन उसका भी असर राजौरी गार्डन के अमीरों पर पड़ता नहीं दिखाई दिया जबकि इस चुनाव क्षेत्र में अमीर पंजाबी और सिक्ख बनियों की भरमार है।
संभवतः आप की हार का सबसे बड़ा कारण रहा पूर्व विधायक जर्नेल सिंह का दिल्ली छोड़ कर पंजाब के चुनाव में कूद पड़ना। पहले से ही विधायक के कार्यों से पूरी तरह संतुष्ट न रहने वाले मतदाताओं ने इसे अपना अपमान माना। कभी जिस तरह अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली के लोग भगोड़ा कहने लगे थे उसी तरह राजौरी गार्डन के लोग जर्नैल सिंह को भी भगोड़ा मानने लगे।
दूसरा बड़ा कारण रहा आप प्रत्याशी हरजीत सिंह का कद के स्तर पर भाजपा प्रत्याशी मजिंदर सिंह सिरसा के सामने नहीं टिक पाना। सिरसा दिल्ली के चुनावी परिदृश्य में पुराने खिलाड़ी हैं। वो मूलतः शिरोमणी अकाली दल के सदस्य हैं। वो 2008 में जंगपुरा से विधान सभा का चुनाव लड़ कर हार चुके हैं। 2013 में उन्होंने राजौरी गार्डन से विधान सभा का चुनाव लड़ा और जीता लेकिन 2015 के विधान सभा चुनाव में वो आप के जर्नैल सिंह से हार गए थे।
वैसे भी दिल्ली की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में शिरोमडी अकाली दल का दबदबा है जिसका अनुभव खुद केजरीवाल गुरूद्वारे के चुनाव लड़कर कर चुके हैं। दिल्ली के सिक्खों में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का खासा प्रभाव है। चूँकि सिरसा इस बार भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे इसलिए भाजपा वोट बैंक और अकाली दल वोट बैंक की मिली-जुली ताक़त ने उन्हें भारी जीत दिला दी।
तो क्या यह मान लिया जाय कि उप चुनाव में हुई आम आदमी पार्टी की हार दिल्ली के नगर निगम चुनाव में भी उसकी हार का सबब बनेंगे ? ज़रूरी नहीं है कि ऐसा हो। विधान सभा उप-चुनाव में मुद्दे दूसरे थे और नगर पालिका चुनाव में मुद्दे कुछ दूसरे हैं।
विधान सभा उप-चुनाव में आप के लिए नकारात्मक वोट पड़ा लेकिन नगर पालिका चुनावों में भारतीय जनता पार्टी नकारात्मक वोट का शिकार हो सकती है क्योंकि पिछले दस सालों से वहां इसकी सत्ता रही है जिसका अनुभव लोगों के लिए बहुत सुखद नहीं रहा है।
आप के लिए तो यह पहला चुनाव होगा। कुछ समय पहले नगर पालिका के लिए हुए उप-चुनावों में आम आदमी पार्टी ने खासी जीत हासिल की थी। वैसे भी नगर पालिकाओं के कई वार्डों में आम आदमी पार्टी के कोर वोटरों की बहुतायत है जिन्हें बिजली, पानी की सब्सिडी और सरकारी स्कूलों में की गयी बेहतरी का खासा फायदा पहुंचा है।
ऊपर से अरविन्द केजरीवाल ने दूर की कौड़ी ला कर दिल्ली में रहने वाले किरायदारों को अलग बिजली मीटर की व्यवस्था कर बिजली और पानी की सब्सिडी का पूरा फायदा पहुंचाने का वायदा किया है। ग़ौरतलब है कि दिल्ली में बिहार और उत्तर प्रदेश से आये ऐसे हज़ारों विद्यार्थी और कामगार किराए के मकानों में रहते हैं जिनसे मकान मालिक बिजली और पानी का अनाप-शनाप दाम वसूलते हैं।
(editorjanjwar@gmail.com)