Apr 14, 2017

गाल बजाने की बजाय केजरीवाल करें आत्मावलोकन

लोगों का आप से मोहभंग शुरू हो गया है और लोग फिर से उन्हीं पार्टियों की तरफ़ लौटने लगे हैं जिनकी अकर्ण्यमनता और भ्रष्टाचार से तंग आकर उन्होंने केजरीवाल को विकल्प के रूप अपनाया था।        
                                                                                                     
पीयूष पंत, वरिष्ठ पत्रकार

दिल्ली की राजौरी गार्डन विधान सभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी की हुयी करारी हार से  दिल्ली में पार्टी के भविष्य को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गयी है।  जो पार्टी दो साल पहले ही विधान सभा की 70 में से 67 सीटें जीत कर सत्ता में आई थी उसके प्रत्याशी द्वारा अपनी ज़मानत राशि गवां बैठना कोई छोटी-मोटी बात नहीं कही जा सकती।

आखिरकार 2015 में जिस पार्टी को इसी चुनाव क्षेत्र में 46.55 फीसदी वोट मिले थे उपचुनाव में उसे केवल 13.12  फीसद वोट से ही संतुष्ट होना पड़ा है। निसंदेह आप की लोकप्रियता में ये भारी गिरावट है कुछ उसी तरह की जैसी शेयर बाज़ार में गिरावट आती है जब निवेशक का विश्वास डोलने लगता है। तो क्या दिल्ली की जनता का आम आदमी पार्टी से मोहभंग होने लगा है ?

अगर गोवा के चुनाव में पार्टी का खराब प्रदर्शन और पंजाब के चुनाव में तमाम दावों के बावजूद मात्र 22 सीटों में जीत हासिल करने को भी पार्टी के भविष्य का आकलन करने के लिए शुमार किया जाय तो क्या यह कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी का शिराज अब बिखर रहा है ?
जहां तक राजौरी गार्डन उप-चुनाव में पार्टी को मिली शिकस्त का सवाल है तो वोट प्रतिशत में आयी भारी गिरावट तो यही संकेत दे रही है कि धीरे-धीरे अब दिल्ली के लोगों का आप से मोहभंग शुरू हो गया है और लोग फिर से उन्हीं पार्टियों की तरफ़ लौटने लगे हैं जिनकी अकर्ण्यमनता और भ्रष्टाचार से तंग आकर उन्होंने आम आदमी पार्टी का विकल्प अपनाया था।

ग़ौर किया जाए तो कांग्रेस का जो वोट बैंक 2015 में पूरी तरह कांग्रेस का साथ छोड़ कर उम्मीदों भरी पार्टी आप के साथ चला गया था उसके एक बड़े हिस्से ने घर वापसी कर ली है।  यही कारण है कि कांग्रेस का मत प्रतिशत 2015 के 12 फीसद से लम्बी छलांग लगाते हुए 33.23 फीसद पर जा पहुंचा।  इसी तरह भारतीय जनता पार्टी का मत प्रतिशत 38.04 से बढ़ कर 51.99 पर जा पहुंचा।

इसका मतलब है कि राजौरी गार्डन चुनाव क्षेत्र के उच्च, मध्यम वर्ग के और अल्पसंख्यक समुदाय के उन लोगों का, जो आम आदमी पार्टी की साफ़-सुथरी और ईमानदार वैकल्पिक राजनीति की परिकल्पना से आकर्षित हो कर आम आदमी पार्टी की अप्रत्याशित जीत का कारण बने थे, पार्टी से मोहभंग हो चुका है। लेकिन आप प्रत्याशी हरजीत सिंह संभवतः उस निचले तबके का दस हज़ार वोट हासिल करने में सफल रहे जो आम आदमी का कोर सपोर्टर है और जिसे आम आदमी की सरकार द्वारा बिजली और पानी में दी गयी सब्सिडी का सबसे अधिक फ़ायदा पहुंचा है।

हालांकि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उप चुनाव से पहले ही नगर पालिका चुनावों के सन्दर्भ में यह बात कह कर अमीरों को रिझाने की कोशिश की थी कि वे दिल्ली में प्रॉपर्टी टैक्स ख़त्म कर देंगे लेकिन उसका भी असर राजौरी गार्डन के अमीरों पर पड़ता नहीं दिखाई दिया जबकि इस चुनाव क्षेत्र में अमीर पंजाबी और सिक्ख बनियों की भरमार है।

संभवतः आप की हार का सबसे बड़ा कारण रहा पूर्व विधायक जर्नेल सिंह का दिल्ली छोड़ कर पंजाब के चुनाव में कूद पड़ना। पहले से ही विधायक के कार्यों से पूरी तरह संतुष्ट न रहने वाले मतदाताओं ने इसे अपना अपमान माना। कभी जिस तरह अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली के लोग भगोड़ा कहने लगे थे उसी तरह राजौरी गार्डन के लोग जर्नैल सिंह को भी भगोड़ा मानने लगे।

दूसरा बड़ा कारण रहा आप प्रत्याशी हरजीत सिंह का कद के स्तर  पर भाजपा प्रत्याशी मजिंदर सिंह सिरसा के सामने नहीं टिक पाना। सिरसा दिल्ली के चुनावी परिदृश्य में पुराने खिलाड़ी हैं। वो मूलतः शिरोमणी अकाली दल के सदस्य हैं। वो 2008 में जंगपुरा से विधान सभा का चुनाव लड़ कर हार चुके हैं। 2013 में उन्होंने राजौरी गार्डन से विधान सभा का चुनाव लड़ा और जीता लेकिन 2015 के विधान सभा चुनाव में वो आप के जर्नैल  सिंह से हार गए थे।

वैसे भी दिल्ली की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में शिरोमडी अकाली दल का दबदबा है जिसका अनुभव खुद केजरीवाल गुरूद्वारे के चुनाव लड़कर कर चुके हैं। दिल्ली के सिक्खों में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का खासा प्रभाव है। चूँकि सिरसा इस बार भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे इसलिए भाजपा वोट बैंक और अकाली दल वोट बैंक की मिली-जुली ताक़त ने उन्हें भारी जीत दिला दी।


तो क्या यह मान लिया जाय कि उप चुनाव में हुई आम आदमी पार्टी की हार दिल्ली के नगर निगम चुनाव में भी उसकी हार का सबब बनेंगे ? ज़रूरी नहीं है कि ऐसा हो। विधान सभा उप-चुनाव में मुद्दे दूसरे थे और नगर पालिका चुनाव में मुद्दे कुछ दूसरे हैं।

विधान सभा उप-चुनाव में आप के लिए नकारात्मक वोट पड़ा लेकिन नगर पालिका चुनावों में भारतीय जनता पार्टी नकारात्मक वोट का शिकार हो सकती है क्योंकि पिछले दस सालों से वहां इसकी सत्ता रही है जिसका अनुभव लोगों के लिए बहुत सुखद नहीं रहा है।

आप के लिए तो यह पहला चुनाव होगा। कुछ समय पहले नगर पालिका के लिए हुए उप-चुनावों में आम आदमी पार्टी ने खासी जीत हासिल की थी। वैसे भी नगर पालिकाओं के कई वार्डों में आम आदमी पार्टी के कोर वोटरों की बहुतायत है जिन्हें बिजली, पानी की सब्सिडी और सरकारी स्कूलों में की गयी बेहतरी का खासा फायदा पहुंचा है।

ऊपर से अरविन्द केजरीवाल ने दूर की कौड़ी ला कर दिल्ली में रहने वाले किरायदारों को अलग बिजली मीटर की व्यवस्था कर बिजली और पानी की सब्सिडी का पूरा फायदा पहुंचाने का वायदा किया है।  ग़ौरतलब है कि दिल्ली में बिहार और उत्तर प्रदेश से आये ऐसे हज़ारों विद्यार्थी और कामगार किराए के मकानों में रहते हैं जिनसे मकान मालिक बिजली और पानी का अनाप-शनाप दाम वसूलते हैं।
(editorjanjwar@gmail.com)

आंबेडकर ने लिखा है गो मांस खाते थे हिंदू



पिछले वर्ष आज के ही दिन 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के अवसर पर बीबीसी हिंदी में यह लेख छपा था जिसमें मोदी जी के आदर्श बाबा साहब आंबेडकर ने गोमांस सेवन के बारे मेें बताया है...  

भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माताओं में से एक डॉक्टर बीआर अंबेडकर अच्छे शोधकर्ता भी थे. उन्होंने गोमांस खाने के संबंध में एक निबंध लिखा था, 'क्या हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया?'

यह निबंध उनकी किताब, 'अछूतः कौन थे और वे अछूत क्यों बने?' में है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर शम्सुल इस्लाम ने इस निबंध को संपादित कर इसके कुछ हिस्से बीबीसी हिंदी के पाठकों के लिए उपलब्ध करवाए हैं.

'पवित्र है इसलिए खाओ'

अपने इस लेख में अंबेडकर हिंदुओं के इस दावे को चुनौती देते हैं कि हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया और गाय को हमेशा पवित्र माना है और उसे अघन्य (जिसे मारा नहीं जा सकता) की श्रेणी में रखा है.

अंबेडकर ने प्राचीन काल में हिंदुओं के गोमांस खाने की बात को साबित करने के लिए हिन्दू और बौद्ध धर्मग्रंथों का सहारा लिया.

उनके मुताबिक, "गाय को पवित्र माने जाने से पहले गाय को मारा जाता था. उन्होंने हिन्दू धर्मशास्त्रों के विख्यात विद्वान पीवी काणे का हवाला दिया. काणे ने लिखा है, ऐसा नहीं है कि वैदिक काल में गाय पवित्र नहीं थी, लेकिन उसकी पवित्रता के कारण ही बाजसनेई संहिता में कहा गया कि गोमांस को खाया जाना चाहिए." (मराठी में धर्म शास्त्र विचार, पृष्ठ-180).

अंबेडकर ने लिखा है, "ऋगवेद काल के आर्य खाने के लिए गाय को मारा करते थे, जो खुद ऋगवेद से ही स्पष्ट है."

ऋगवेद में (10. 86.14) में इंद्र कहते हैं, "उन्होंने एक बार 5 से ज़्यादा बैल पकाए'. ऋगवेद (10. 91.14) कहता है कि अग्नि के लिए घोड़े, बैल, सांड, बांझ गायों और भेड़ों की बलि दी गई. ऋगवेद (10. 72.6) से ऐसा लगता है कि गाय को तलवार या कुल्हाड़ी से मारा जाता था."

'अतिथि यानि गाय का हत्यारा'

अंबेडकर ने वैदिक ऋचाओं का हवाला दिया है जिनमें बलि देने के लिए गाय और सांड में से चुनने को कहा गया है.

अंबेडकर ने लिखा "तैत्रीय ब्राह्मण में बताई गई कामयेष्टियों में न सिर्फ़ बैल और गाय की बलि का उल्लेख है बल्कि यह भी बताया गया है कि किस देवता को किस तरह के बैल या गाय की बलि दी जानी चाहिए."

वो लिखते हैं, "विष्णु को बलि चढ़ाने के लिए बौना बैल, वृत्रासुर के संहारक के रूप में इंद्र को लटकते सींग वाले और माथे पर चमक वाले सांड, पुशन के लिए काली गाय, रुद्र के लिए लाल गाय आदि."

"तैत्रीय ब्राह्मण में एक और बलि का उल्लेख है जिसे पंचस्रदीय-सेवा बताया गया है. इसका सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, पांच साल के बगैर कूबड़ वाले 17 बौने बैलों का बलिदान और जितनी चाहें उतनी तीन साल की बौनी बछियों का बलिदान."

अंबेडकर ने जिन वैदिक ग्रंथों का उल्लेख किया है उनके अनुसार मधुपर्क नाम का एक व्यंजन इन लोगों को अवश्य दिया जाना चाहिए- (1) ऋत्विज या बलि देने वाले ब्राह्मण (2) आचार्य-शिक्षक (3) दूल्हे (4) राजा (5) स्नातक और (6) मेज़बान को प्रिय कोई भी व्यक्ति.

कुछ लोग इस सूची में अतिथि को भी जोड़ते हैं.

मधुपर्क में "मांस, और वह भी गाय के मांस होता था. मेहमानों के लिए गाय को मारा जाना इस हद तक बढ़ गया था कि मेहमानों को 'गोघ्न' कहा जाने लगा था, जिसका अर्थ है गाय का हत्यारा."
'सब खाते थे गोमांस'

इस शोध के आधार पर अंबेडकर ने लिखा कि एक समय हिंदू गायों को मारा करते थे और गोमांस खाया करते थे जो बौद्ध सूत्रों में दिए गए यज्ञ के ब्यौरों से साफ़ है.

अंबेडकर ने लिखा है, "कुतादंत सुत्त से एक रेखाचित्र तैयार किया जा सकता है जिसमें गौतम बुद्ध एक ब्राह्मण कुतादंत से जानवरों की बलि न देने की प्रार्थना करते हैं."

अंबेडकर ने बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय(111. .1-9) के उस अंश का हवाला भी दिया है जिसमें कौशल के राजा पसेंडी के यज्ञ का ब्यौरा मिलता है.

संयुक्त निकाय में लिखा है, "पांच सौ सांड, पांच सौ बछड़े और कई बछियों, बकरियों और भेड़ों को बलि के लिए खंभे की ओर ले जाया गया."

अंत में अंबेडकर लिखते हैं, "इस सुबूत के साथ कोई संदेह नहीं कर सकता कि एक समय ऐसा था जब हिंदू, जिनमें ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनों थे, न सिर्फ़ मांस बल्कि गोमांस भी खाते थे."