Mar 2, 2011

बलात्कार के पांच वर्ष


राबिया शादी के लिए राजी न थी.तब साहिल खत्री ने अपने सिर पर कांच का गिलास मारा और खुद को चोट पहुंचाकर वकीलों और सब इंस्पेक्टर प्रहलाद सिंह ने जान से मारने का हमला करने के झूठे केस में राबिया को बंद कराने की धमकी दी...


जागृति महिला समिति.   उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के निम्न मध्यवर्गीय परिवार की राबिया.जीवन में कुछ बनने और अपने परिवार को आर्थिक स्तर पर मजबूत बनाने के सपने लिए वह दिल्ली आई. 2002में अपने शहर से बारहवीं कक्षा पास करने के बाद उसने   कम्प्यूटर ट्रैनिंग, सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर आदि की ट्रैनिंग लेती रही कि वह कुछ बेहतर कर सके. 
   
कुछ बेहतर बनने का सपना उसे   जनवरी 2005 में दिल्ली के आया. राबिया फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करना चाहती थी. लेकिन फैशन डिजाइनिंग का सेशन जून/जुलाई से शुरू होना था। इसी बीच राबिया की नजर एक हिंदी अखबार के टेली कालर के जॉब के विज्ञापन पर पड़ी। इस जॉब के सिलसिले में उसे प्रीतमपुरा के टूईन टॉवर में साजन इंटर प्राइजेज में मिलना था। राबिया ने 21फरवरी को इंटरव्यू दिया और इंटरव्यू में पास होने के बाद काम करने लगी।

उसे प्रोपराइटर सुरेंद्र बिज उर्फ साहिल खत्री ने कोई भी नियुक्ति पत्र या करारनामा नहीं दिया। राबिया 4500रुपये पर नौकरी करने लगी। दो माह काम करने पर प्रोपराइटर उर्फ मालिक ने उसे मात्र तीन हजार रुपये वेतन दिया। तब राबिया ने अपना पूरा वेतन मांगा और दफ्तर तक आने-जाने का खर्च का ब्यौरा दिया और कहा कि इतने कम पर काम नहीं कर पायेगी.  

ऐसे में राबिया ने नौकरी छोड़ने को कहा. तो प्रोपराइटर ने राबिया को रहने के लिए जगह आफर की और कहा जबतक सैलरी  नहीं बढती इसी में रहो. राबिया  20 अप्रैल 2005 को प्रोपराइटर द्वारा दिये गये फ्लोर सी-27, ओम अपार्टमेंट 33 /77, पंजाबी बाग में अपने सामान के साथ शिफ्ट कर लिया, जहाँ उसे एक लड़की के साथ फ्लैट शेयर करना था. 


वहीं से 18-19साल की राबिया के जीवन की बर्बादी शुरू  हुई.  राबिया के वहां रहने के दूसरे ही दिन साहिल खत्री उर्फ सुरेंद्र विज, उसके लड़के अक्षय खत्री, भांजे कपिल ढल, साहिल खत्री के दोस्त रोमी ने राबिया के साथ वहां रह रही लड़की की मदद से बलात्कार किया। राबिया को आफिस जाने से रोककर उसी फ्लोर पर कैद कर लिया गया। यहां तक की टॉयलेट भी चाकू दिखाकर ले जाया जाता था। वहां रह रही लड़की से राबिया को पता चला कि वह भी उसकी शिकार थी और  किस्मत से समझौता कर चुकी थी।

राबिया को पता चला कि यह घर प्रोपराइटर के वकील दोस्त एमके अरोड़ा का है और इसे इसी काम के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उसके बाद हर रोज नये आदमी आते रहे और राबिया के साथ बलात्कार करते रहे. आनेवालों में कई पुलिस वाले और वकील भी आते, जो  प्रोपराइटर के दोस्त थे और उसके काले धंधे में शामिल थे। प्रोपराइटर के कई काले धंधे हैं । वह कहीं मैजिक गु्रप चलाता था,कहीं प्रोपर्टी पर कब्जा करता था,कहीं लाखों का माल लेकर  चेक देता था, जिसमें पैसा ही नहीं होता था। सारे चेक बाउंस होते थे। उसके ऊपर पुलिस अफसर और वकील साथी काले धंधे को संरक्षण देकर भारी रकम कमाते थे।

राबिया को सख्त पहरे में रखा जाता था। राबिया उनके चंगुल से भागना चाहती थी,लेकिन इतने बड़े आपराधिक गैंग से निकल पाना संभव नहीं था। हालाँकि गैंग समझ चुका था कि राबिया किसी तरह भाग जाना चाहती थी. इसलिए उससे कई ब्लैंक पेपर साइन कराये गये। वकील एमके अरोड़ा, वकील नवीन सिंघला और सब इंस्पेक्टर प्रहलाद सिंह ने  साहिल खत्री के साथ साजिश रची कि इस लड़की के साथ साहिल खत्री शादी कर ले।

राबिया शादी के लिए राजी न थी.तब साहिल खत्री ने अपने सिर पर कांच का गिलास मारा और खुद को चोट पहुंचाकर वकीलों और सब इंस्पेक्टर प्रहलाद सिंह ने जान से मारने का हमला करने के झूठे केस में राबिया को बंद कराने की धमकी देकर शादी करने को मजबूर किया। कहीं भी शोर-शराबा करने पर जान से खत्म करने की धमकी देकर आर्य समाज मंदिर यमुना बाजार ले जाया गया। वहां राबिया का धर्म परिवर्तन कराकर उसके साथ तीन बच्चों के पिता लगभग 45वर्षीय साहिल खत्री ने पहली पत्नी को तलाक दिये बगैर विवाह किया।

मंदिर में दिये गये शपथपत्र में उसने खुद को अविवाहित लिखा और अपने अपने निवास स्थान और पते का कोई सबूत नहीं दिया। लिहाजा मंदिर ने कोई छानबीन किये बगैर यह गैरकानूनी विवाह करा दिया। चाकू की नोक पर वकील एमके अरोड़ा के मकान पर विवाह के बाद कैद करके हर रोज उसके बलात्कार का सिलसिला जारी रहा। राबिया के माता-पिता और भाई उसको ढूंढ़ते-ढूंढ़ते थक गये, फिर मरा जानकर खामोश हो गये। अपराधी साहिल खत्री ने तब तक रहने के कई स्थान बदल डाले थे।

अठारह जुलाई 2007को गैंग से मुक्त होने के लिए छटपटा रही राबिया ने मौका मिलते ही अपने भाई को बताया कि वह यहां कैद है, उसे मुक्त करा लें। भाई बहन के बताये पते पर मोतीनगर उसे मुक्त कराने गया, तो साहिल खत्री ने 100 नंबर पर पुलिस को फोन करके 14 लाख रुपये एवं गहनों की चोरी का आरोप लगाया और कहा कि राबिया के किसी सगे-संबंधी ने चोरी की है।

यह सब मोतीनगर के थानाध्यक्ष एवं सब इंस्पेक्टर प्रहलाद सिंह और वकील एमके अरोड़ा की मिलीभगत से किया गया। राबिया और उसके भाई को थाना मोतीनगर में थानाध्यक्ष एवं एमके अरोड़ा और सब इंस्पेक्टर प्रहलाद सिंह ने बुरी तरह पीटा। राबिया के भाई से यह कहलवा लिया गया कि वह फिर कभी राबिया को लेने दोबारा नहीं आयेगा। इसके बाद 14 लाख रुपये और गहनों की चोरी की कोई एफआईआर दर्ज नहीं करायी गयी।

राबिया बार-बार अपना पीछा छुड़ाने के जितने प्रयास करती,उतना ही अपराधी गैंग उसे फंसा रहा था। उसके वोटर आईडी, बैंक खाते, पैन कार्ड आदि बनवाये गये। आपराधिक मुकदमों में जमानत के लिए राबिया के आईडी प्रूफ का इस्तेमाल उसे डरा-धमकाकर कर लिया जाता था। राबिया ने अपने लिये कभी कोई आईडी इस्तेमाल नहीं की।

इतना ही नहीं राबिया ने आज तक न तो अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनाया और न ही उसे बाइक चलानी आती है। फिर भी साहिल खत्री ने DL4SBM0947 नंबर की करिज्मा मोटर साइकिल राबिया के नाम से 26 अगस्त 2008 को खरीदी। इसकी पेमेंट बलात्कारी कपिल ढल से साहिल खत्री ने उसके एटीएम कार्ड से करायी। मोटर साइकिल राबिया के नाम से इसलिये खरीदी गयी कि वह साहिल खत्री के आपराधिक मुकदमे राबिया से जमानत करा सके। दूसरा राबिया भाग न सके। जबकि राबिया के नाम से खरीदी गयी मोटर साइकिल अक्षय खत्री इस्तेमाल करता था।

राबिया ने एक बार फिर साहिल खत्री द्वारा जबरन यौन शोषण करने-कराने की शिकायत अपने भाई के माध्यम से 5 जनवरी 2009 को थाना मोतीनगर में दर्ज करायी, मगर फिर से साहिल खत्री एवं उसके पुलिस अफसर दोस्तों ने मोटर साइकिल चोरी के दूसरे केस में उसे फंसाने की कोशिश की। उसके बाद डरा-धमकाकर कहलवा लिया कि राबिया साहिल खत्री को छोड़कर कहीं नहीं जायेगी। लेकिन इस बार राबिया एक लड़की की मदद से भागने में कामयाब हो गयी।

वह अपने घर इसलिए नहीं गयी कि घरवालों को पुलिस वाले और साहिल खत्री तंग न करे। राबिया नाम बदलकर पहले उस लड़की की मदद से मुंबई गयी,फिर उदयपुर में नारायण सेवा संस्थान गयी। साहिल खत्री ने पुलिस,वकीलों और बदमाश दोस्तों के साथ साजिश रचकर मोतीनगर थाने में दिनांक 06-01-2009 को चोरी का मुकदमा दर्ज करा दिया। कंपलेंट के आधार पर सब इंस्पेक्टर प्रहलाद सिंह ने झूठी छानबीन की रिपोर्ट तैयार करके दिनांक 18-05-2009 को एफआईआर नंबर 199 /09 राबिया एवं उसके भाइयों के खिलाफ दर्ज करा दी। उसके भाइयों को मुजफ्फरनगर जाकर गिरफ्तार कर लिया गया।

इतना ही नहीं पुलिसवाले राबिया के घर से बहुमूल्य सामान उठा लाये। सामान कहीं दर्ज नहीं किया गया, उसे पुलिसवाले हजम कर गये। राबिया से कहा गया कि ‘तेरा भाई जेल में बंद है, तू वापस आयेगी तभी छुड़वाया जायेगा।’ राबिया वापस आयी। उसने झूठे मुकदमे का विरोध किया तो उसे भी पकड़ लिया गया।

बाद में मजबूर होकर राबिया ने फिर से साहिल खत्री के साथ रहने का समझौता कर लिया। राबिया की जमानत बलात्कारी साहिल खत्री ने करा दी और कोर्ट में बाइक का पैसा जमा कराने को कहकर राबिया को साथ ले गया। फिर घर बदल लिया। दूसरे इलाके में राबिया ने साहिल खत्री द्वारा की जा रही ज्यादतियों का विरोध फिर शुरू कर दिया तो कोर्ट में मोटर साइकिल की रकम की किस्त जमा कराना बंद कर दिया गया।

राबिया को तारीख पर पेश नहीं होने दिया गया। अदालत से वारंट जारी करा दिया और साहिल खत्री उसे अपनी कैद में रखता रहा। उसे धमकी देता रहा कि जिस दिन तूने भागने की कोशिश की, तुझे गिरफ्तार करा दूंगा। कोर्ट के गैर जमानती वारंटों पर पुलिस राबिया को गिरफ्तार नहीं कर रही थी। यह जानते हुए भी कि साहिल खत्री के साथ रह रही है। साहिल खत्री राबिया को अपने हर अपराध में इस्तेमाल करता था।

राबिया को अक्टूबर 2010 में जागृति महिला समिति के बारे में पता चला। उसने 07-10-2010 को अपनी शिकायत अर्जी थाना विकासपुरी में दी। डीजीपी वेस्ट से लेकर दिल्ली पुलिस आयुक्त एवं संयुक्त आयुक्त विजिलेंस तक उसने शिकायत की,लेकिन उसकी शिकायतों पर कोई तहकीकात नहीं की गयी। राबिया ने उस पर अत्याचार और यौन शोषण कराने वाले सभी पुलिस अफसरों,वकीलों और आपराधिक तत्वों के खिलाफ शिकायत की जिसमें उसने साहिल खत्री के बेटे अक्षय खत्री, भांजे कपिल ढल, भतीजे एवं दोस्तों के दाम दिये।

पुलिस के सभी वरिष्ठ अफसरों तक ने राबिया की शिकायतों को अनदेखा कर दिया। ताज्जुब की बात है कि औरतों की सुरक्षा का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस के क्षेत्रीय एसीपी एवं डीसीपी ने मोटर साइकिल के झूठे केस पर अपनी मोहर लगाकर कोर्ट में दाखिल कराने की मंजूरी दे दी। यही नहीं अभियोजन विभाग के वकील ने भी मिलीभगत से चालान पास कर दिया और राबिया को जेल भेजने की ठान ली।

जागृति महिला समिति के जरिये 21-10-2010को राबिया की जमानत बड़ी मुश्किल से करायी, पर वह आपराधिक गैंग के खिलाफ वह पुलिस के आला अफसरों को लगातार अर्जियां भेज रही थी इसलिए दिनांक 03-11-2010 को राबिया का सामान आपराधिक गैंग ने चोरी कर लिया। मात्र पहने हुए कपड़ों में राबिया जागृति महिला समिति की शरण में पहुंची।

राबिया फिर से काम की तलाश में थी और  अपनी किसी सहेली के घर पर रह रही थी। दूसरी ओर समिति की मदद से अन्याय और अपराध के खिलाफ लड़ रही थी,जिसकी भनक पुलिसवालों को थी। राबिया और उसके भाई को फिर से झूठे मुकदमे में फंसाने की साजिश साहिल खत्री,अक्षय खत्री, प्रतीक खत्री, निति खत्री, साहिल खत्री के साथ पुलिस के अफसर और वकीलों जोरों से कर रहे थे।

 दिनांक 09-01-2011को गहरी साजिश के तहत साहिल खत्री ने खुद पर गोली चलाकर कातिलाना हमले के मुकदमे में राबिया और उसके भाई को फंसाने की नीयत से पुलिस एवं वकीलों की मिलीभगत से अपनी बाजू पर गोली मार ली। लेकिन गोली उसके हृदय पर लग गयी,साहिल खत्री मर गया। राबिया के निर्दोष भाई और राबिया को पुलिस ने पकड़ लिया। 10-01-2011को पुलिस ने राबिया और उसके भाई को गैरकानूनी तरीके से थर्ड डिग्री की मार लगायी। गैर कानूनी ढंग से इन्हें दिनांक 19-01-2011 को रात तक थाने में रखा।

समिति ने क्षेत्रीय डीसीपी नॉर्थवेस्ट को 14पेज का पत्र लिखा। तब कहीं साहिल खत्री के गैंग के कुछ व्यक्तियों, उसके बेटों और दोस्तों को पुलिस ने पकड़ा। इन लोगों ने अपना अपराध कबूल कर लिया। पूरी प्लानिंग के तहत साजिश रची गयी थी-राबिया और उसके भाई को झूठे केस में फंसाने की। लेकिन अपराधियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया तो पुलिस ने उन्हें भी छोड़ दिया।

राबिया की शिकायत पर आज तक कोई कार्रवाई तो दूर,सुनवाई तक नहीं की गयी। यह है हमारी पुलिस, पुलिस प्रशासन, प्रोसिक्यूशन और अदालतें। 18-23 वर्ष तक की उम्र में पांच सालों तक राबिया के जीवन की और उसके परिवार को बर्बाद  करने वाले अपराधी आजाद घूम रहे हैं और फाइलें  अदालतों में धूल चाट रही हैं।



जरूरी हैं क्षेत्रीय दल

भारत में दो प्रमुख पार्टियां हैं-कांग्रेस और  भाजपा। दोनों निजीकरण और उदारीकरण के प्रति प्रतिबद्ध हैं,और देश की मिट्टी, हवा और पानी तक बेच देने से गुरे़ज नहीं करती हैं...  

मदन कश्यप

आंध्र प्रदेश में फिल्म अभिनेता चिरंजीवी की पार्टी प्रजा देशम् के कांग्रेस में विलय से कांग्रेस पार्टी भले ही मजबूत हुई हो,हमारा संसदीय लोकतंत्र तो कम़जोर ही हुआ है। एक ब़डे राज्य में तीसरे दल की संभावना खत्म हो गयी है।

लोकतंत्र की म़जबूती के लिए राज्यों में तीसरे दलों का और केंद्रीय स्तर पर तीसरे मोर्चे का म़जबूत होना और रहना जरूरी है। दो दलीय प्रणाली हमेशा ही लोकतंत्र को सीमित करती है और वैसी परिस्थिति में जनतंत्र सत्ता  के दलालों के हाथों में पूरी तरह चला जाता है। अमेरिका और ब्रिटेन सहित यूरोप के कई प्रमुख देशो में ऐसा हो भी चुका है।

दो दलीय प्रणाली में सत्ता परिवर्तन का कोई मायने-मतलब नहीं रह गया है। अमेरिका में राष्ट्रपति चाहे डेमोक्रेट हो अथवा रिपब्लिकन हालात में कोई खास बदलाव नहीं आता है। वही हालत ब्रिटेन में कंजरवेटिव और लेबर पार्टी की है। ऐसी स्थिति में दोनों पार्टियां एक ही वर्ग के हित में काम करती हैं और अदल-बदल कर सत्ता में आती रहती हैं। इनमें कोई गुणात्मक अंतर नहीं होता और उनके आर्थिक हित भी समान होते हैं।

फ़र्क सि़र्फ समाज के कुछ तबकों, कुछ इलाकों और भाषाई समूहों को अपेक्षाकृत कम या ़ज्यादा तवज्जो देने का होता है और इसके अंतर के चलते ऊपरी तौर पर कुछ राजनीतिक गतिशीलता दिखलाई देती है, मगर ब़डे पूंजीपतियों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, निगमों और औद्योगिक  घरानों को कोई ़फ़र्क नहीं प़डता। ब़डे औद्योगिक देशों में तो स्थिति पहले से ही ऐसी थी,मगर सोवियत संघ के विघटन और भूमंडलीकरण की नयी अर्थनीति के लागू होने के बाद तो अमेरिका के इशारे पर पूरी दुनिया में प्रतिपक्ष की भूमिका समाप्त करने की कोशिश की जा रही है।


ढिंढोरा भले ही पीटा गया कि पश्चिमी शैली का उदारवादी लोकतंत्र अब दुनिया की अंतिम शासन व्यवस्था है और इतिहास का अंत हो चुका है, मगर सच तो यह है कि पूरी दुनिया में तानाशाही को ब़ढावा दिया गया और राष्ट्रवाद के आधार को कम़जोर किया गया। यह अलग से विचारणीय विषय है। फिलहाल तो सि़र्फ इस तथ्य पर ध्यान देने की जरूरत है कि उस भूमंडलीकरण के बाद ही सांप्रदायिकता का उभार हुआ और शासकवर्ग की दूसरी पार्टी के रूप में भाजपा का उदय हुआ। कांग्रेस की वास्तविक प्रतिपक्षी पार्टियां कमजोर होती हुई कुछ राज्यों तक सिमट गयीं।
अब भारत में दो प्रमुख पार्टियां हैं-कांग्रेस और  भाजपा। दोनों अमेरिकापरस्त हैं। दोनों निजीकरण और उदारीकरण के प्रति प्रतिबद्ध हैं, और देश की मिट्टी, हवा और पानी तक बेच देने से गुरे़ज नहीं करती हैं। फिर उन्हें एक-दूसरे का प्रतिपक्ष कैसे कहा जा सकता है?दरअसल यह दूसरा पक्ष है, विपक्ष नहीं सत्ता बदलने से परिवर्तन होता है,प्रगति नहीं। यही है उत्तर  आधुनिकता। कांग्रेस और भाजपा में जो अंतर दिखाई देता है,वह महज भुलावा है। भाजपा का राष्ट्रवाद और कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता एक जैसा ही छद्म है। खूबी यह है कि दोनों एक-दूसरे पर छद्म का आरोप लगाते हैं।

भारत जैसे बहुभाषी, बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक देश में दो दलीय पद्धति लागू करना संभव नहीं है, क्योंकि औपनिवेशिक दासता से मुक्ति के लिए चले संघर्षों के दौरान जो राष्ट्रवाद पनप रहा था और जिसका शुरुआती लाभ कांग्रेस को मिला था,उसकी हवा अब निकल चुकी है। ऐसी स्थिति में इलाकाई और तबकाई आकांक्षाओं को पहचान देने वाली छोटी-छोटी पार्टियों के व़जूद को मिटाया नहीं जा सकता।
तब अमेरिकापरस्त ता़कतों ने एक नया रास्ता निकाला। उन्होंने भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व में दो गठबंधन यानी दो गिरोह बनवा दिये-एनडीए और यूपीए। अर्थात अमेरिकी साम्राज्यवाद और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विरुद्ध बनी छोटी पार्टियों के तीसरे मोर्चे के हथियार का ही अपने पक्ष में इस्तेमाल कर लिया। इन दोनों गिरोहों में अभूतपूर्व आंतरिक एकता है और ये नकली प्रतिपक्ष बनकर जनता को गुमराह करने में सक्षम हैं। धु्रवीकरण इतना म़जबूत है कि प्रांतीय स्तर पर तो किसी तीसरे विकल्प की स्थिति ही नहीं बनती है।

केवल उŸार प्रदेश में बसपा और सत्ता के अलावा कांग्रेस और भाजपा भी तीसरा-चौथा कोण बनाने में कुछ हद तक सक्षम है,बाकी सभी राज्यों में केवल दो ही पार्टियां या गठबंधन हैं। यानी मूल्यों की ल़डाई खत्म हो चुकी है,केवल जीत और हार का मसला सामने है। फिर भी अधिकांश राज्यों में पहले अथवा दूसरे नंबर पर कोई न कोई क्षेत्रीय अथवा वामपंथी पार्टी है। उत्तर  प्रदेश में तो सत्ता और मुख्य प्रतिपक्ष- दोनों की जगहों पर बसपा और सपा जैसी पार्टियां हैं।

वैसे तो ये क्षेत्रीय पार्टियां भी कभी न कभी सत्ता के किसी न किसी गठबंधन में शामिल हो चुकी हैं,लेकिन इन्होंने हमेशा ही तीसरे मोर्चे के विकल्प को खुला रखा है। आज भी वामदल,बसपा, तेलगुदेशम, अन्नाद्रमुक, बीजद आदि जैसी पार्टियां सत्ता के दोनों गिरोहों से बाहर हैं, जबकि जद यू, अकाली दल, नेका, अगप, राजद, आदि जैसी पार्टियां कभी भी गठबंधन तो़डकर तीसरे मोर्चे में आ सकती हैं। भाजपा का स्वाभाविक  मित्र तो केवल शिवसेना और कांग्रेस का राकांपा है।

ऐसे में हमारा लोकतंत्र तभी मुकम्मिल होगा जब राजग जैसा नकली प्रतिपक्ष समाप्त होगा और उसकी जगह अमेरिका और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लूट के दृढ विरोधी के रूप में मजबूत तीसरा मोर्चा उभरकर आएगा। दो गिरोहीय ध्रुवीकरण के इस कठिन राजनीतिक समय में चिरंजीव ने आंध्र विधानसभा में म़जबूती दिखलायी थी और किसी वैचारिक प्रतिबद्धता के न होने के बाव़जूद उनकी उपस्थिति मात्र से तीसरे विकल्प के सिद्धात को बल मिल रहा था।

अब उनके अवसरवाद ने लोकतंत्र के विस्तार और वास्तविक प्रतिपक्ष के निर्माण की प्रक्रिया को कुछ तो चोट पहुंचायी है। अगर हम लोकतंत्र को बचाना चाहते हैं तो कांग्रेस और भाजपा की नूराकुश्ती से ध्यान हटाकर तीसरे विकल्प को म़जबूत करना जरूरी है।


हिंदी के वरिष्ठ कवि. कविताओं में  जनपक्षीय झुकाव के लिए चर्चित. फिलहाल हिंदी पत्रिका  'द पब्लिक एजेंडा' के साहित्य संपादक.