Jun 28, 2011

बंद चाय बागानों को चलाएगी सरकार


चाय बागानों में 50 हजार से ज्यादा आदिवासी श्रमिक परिवारों  के पास जीविका का कोई साधन उपलब्ध नहीं है. रोटी और भोजन की बात तो दूर इन बंद चाय बगानो में पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है...

राजन कुमार 

पश्चिम बंगाल की नवनिर्वाचित सरकार ने राज्य के आदिवासियों के प्रति अपनी विशेष चिंता प्रदर्शित करते हुए आदिवासियों की खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए सुलभ मूल्य पर चावल की आपूर्ति हेतु 156 करोड़ रूपयों की राशि आवंटित करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने  उत्तर बंगाल के 16 बंद चाय बागानों  को लेकर  खाद्य मंत्री ज्योति प्रिय मलिक को विशेष रूप से निर्देष दिया है कि वे आगामी 30जून के अंदर उत्तर बंगाल के बंद चाय बगानों का दौरा करके सरकार को रिपोर्ट पेश करें।

सरकार द्वारा आवंटित उपरोक्त राशि के तहत बीपीएल एवं अन्नपूर्णा और अन्त्योदय कार्डधारियों को दो रूपया प्रति किलो के दर से चावल उपलब्ध किया जायेगा एवं इस उद्देश्य से अगले तीन माह के लिए 1 लाख 22 हजार 256 मैट्रिक टन चावल खरीदा जायेगा। उधर केन्द्र सरकार द्वारा उसी अनुपात में फुड कार्पोरेशन ऑफ  इण्डिया द्वारा चावल की आपूर्ति करने की घोषणा की गयी है। 16बंद चाय बागानों  के बारे में उपलब्ध जानकारी पर वर्तमान सरकार को भरोसा नहीं  है क्योंकि  ये सूचना पूर्ववर्ती सरकार द्वारा संकलित की गयी थी।

इनमें  से 15चाय बगान जलपाईगुड़ी जिले में  और एक चाय बगान दार्जलिंग जिले में है। एक मोटे अनुमान के साथ इन चाय बगानो में 50 हजार से ज्यादा आदिवासी श्रमिक परिवार के पास जीविका का कोई साधन उपलब्ध नहीं है. रोटी और भोजन की बात तो दूर इन बंद चाय बगानो में पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है,ना ही परिवारों को आवासीय सुविधा या बिजली उपलब्ध है। अत: मुख्यमंत्री ने बंद चाय बागानो की दुरावस्था पर आवश्यक कदम उठाने का निर्णाय लेकर सराहनीय कार्य किया है।

प्रश्न उठता है कि उपरोक्त 16चाय बागान क्यों  बंद हैं और इनकी विषय में राज्य सरकार के श्रम विभाग द्वारा आज तक क्या कार्रवाई की गयी है। क्या कारण है कि चाय बगान के मालिकों द्वारा जब कभी भी चाय बगान में ताला बंदी की घोषणा कर दी जाती है यह ताला बंदी का नोटिस चिपकाकर चाय बगान के मालिक या मैनेजर रात के अंधेरे मे चाय बगान छोड़ कर भाग जाते हैं और चाय बागान के मजदूरों के वेतन,राशन, पानी, बिजली, दवा, के लिए किसी तरह की व्यवस्था नही की जाती है।

बंद चाय बागानों के बारे में राज्य सरकार को ठोस एवं कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। ठोस कानूनी कार्रवाई द्वारा चाय बागान मालिकों को सतर्क कर देने की आवश्यकता है कि वे मनमाने ढंग से चाय बागान बंद करके न भाग सके। बंद चाय बागानों को अविलम्ब खुलवाने की दिशा में भी राज्य सरकार को आवश्यक कानूनी एवं शासकीय कार्रवाई करने की आवश्यकता है। नवनिर्वाचित सरकार के सामने बंद चाय बागान एक चुनौती हैं  जो उद्योगों के विषय में सरकार नीति और कार्यक्रम को उजागर करेंगी।

उसी तरह जंगल महल में पश्चिम मिदनापुर जिला के 13 ब्लाक और बाकुड़ा जिले के 5 ब्लाक एवं संपूर्ण पुरूलिया जिला में जनसंख्या पर गौर किया जाये तो यह भी आदिवासियों की जनसंख्या 35प्रतिशत से ज्यादा है और इनके साथ है कुर्मी महतो सम्प्रदाय के लोग जिनकी संख्या 30प्रतिशत है। कुर्मी महतो एवं आदिवासी की भाषा एवं संस्कृति में एक रूपता है। इनकी भाषा संथाल, मुण्डारी , कुर्माली , कुड़ुख इत्यादी है। उल्लेखनीय है कि 1935 तक कुर्मी महतो समुदाय भी अनुसूचित जनजाति में शामिल था। सरकारी अवहेलना के कारण जंगल महल का यह कुर्मी महतो एवं आदिवासी समुदाय आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा रह गया। नई सरकार ने जंगल महल के आदिवासियों के विकास के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करके उनका ध्यान रखा।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जातियों,जनजातियों पिछडे वर्गों ,अल्पसंख्यकों , महिलाओं आदि के उन अधिकारी की बहाल करने का जिक्र नहीं   है, जिनमें एक के बाद एक सरकार घेर तिरस्कार का रवैया अपनाए रही। यहां तक कि उपेक्षित वर्गों की सत्ता में आनुपातिक हिस्सेदारी देने वाले संवैधानिक प्रावधानों की भी ठीक से लागू नही किया गया। जिसका फलस्वरूप आज भी सरकारी नौकरियों मे 2006-07की कार्मिक विभाग की रिपोर्ट के अनुसार श्रेणी एक और दो में अनुसूचित जातियो का प्रतिशत 11.9 और 13.7 ( कुल 16 .00 ) की तुलना में अनुसूचित जातियों को 4.3 और 4.5 (7.5 की तुलना में ) रहा है।

इन उपेक्षित वर्गों की समस्याओं का आकलन केवल राशन कार्ड,बीपीएल कार्ड, एवं मनरेगा, योजनाओं के संन्दर्भ में होता है। इस का उद्देश्य इन उपेक्षित वर्गों को भीखमंगेपन के स्तर पर रोजाना 20 रूपयें) किसी तरह जिंदा रखना है। इन हालातों के बीच अगर नयी सरकार इन तबकों और क्षेत्र के लिए कुछ करती है तो बेहतर होगा.



उभरते हुए लेखक और ब्लॉग संचालक.







पेट्रोलियम की महंगाई रोकने के सुझाव


जब सरकार रसोई-गैस,डीजल,केरोसिन और पेट्रोल की कीमतें बढाने के मामले में इन कम्पनियों की ओर से हस्तक्षेप कर सकती है तो इन कम्पनियों के खर्चों को नियन्त्रित करने के लिये हस्तक्षेप क्यों नहीं करती...

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

सरकार जब भी रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाती है, सरकार की ओर से हर बार रटे-रटाये दो तर्क प्रस्तुत करके देश के लोगों को चुप करवाने का प्रयास किया जाता है.पहला तो यह कि कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव बढ गये हैं,जो सरकार के नियन्त्रण में नहीं है. दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों को भारी घाटा हो रहा है,इसलिये रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाना सरकार की मजबूरी है.


उसके बाद राष्ट्रीय मीडिया की ओर से हर बार सरकार को बताया जाता है कि यदि सरकार अपने करों को कम कर दे तो रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढने के बजाय घट भी सकती हैं और आंकड़ों के जरिये यह सिद्ध करने का भी प्रयास किया जाता है कि रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों को कुल मिलाकर घाटे के बजाय मुनाफा ही हो रहा है, फिर कीमतें बढाने की कहॉं पर जरूरत है.

मीडिया और जागरूक लोगों की ओर से उठाये जाने वाले इन तर्कसंगत सवालों पर सरकार तनिक भी ध्यान नहीं देती है और थोड़े-थोड़े से अन्तराल पर रसोई-गैस,डीजल,केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें लगातार और बेखौफ बढाती ही जा रही है,जिससे आम गरीब लोगों की कमर टूट चुकी है.राजनैतिक दल भी औपचारिक विरोध करके चुप हो जाते हैं.

दूसरी तरफ लोगों में सरकार के इस अत्याचार का संगठित होकर प्रतिकार करने की क्षमता नहीं है.मध्यम एवं उच्च वर्ग जो हर प्रकार से प्रतिकार करने में सक्षम है,वह एक-दो दिन चिल्लाचोट करके चुप हो जाता है.ऐसे में आम-अभावग्रस्त लोगों को इस दिशा में कुछ समाधानकारी मुद्दों को लेकर सड़क पर आने की जरूरत है.कारण कि रसोई गैस एवं केरोसिन की कुल खपत का करीब 40 प्रतिशत व्यावसायिक उपयोग हो रहा है, जिसके लिये मूलत: इनकी कालाबाजारी जिम्मेदार है, जिसमें सरकार के अफसर भी शामिल हैं.

जाहिर इसकी सजा कालाबाजारी में शामिल माफियाओं-अफसरों को होनीचाहिए,जबकि डीजल, रसोई गैस एवं केरोसिन की कीमतें बढ़ाकर जनता पर सरकार अत्याचार कर रही है.रसोई-गैस,डीजल, केरोसिन   और पेट्रोल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों के कर्मचारियों और अफसरों को जिस प्रकार की सुविधा और वेतन दिया जा रहा है,वह उनकी कार्यक्षमता से कई गुना अधिक है,जिसका भार अन्नत:देश की जनता पर ही पड़ता है, जब सरकार रसोई-गैस,डीजल, केरोसिन और पेट्रोल की कीमतें बढाने के मामले में इन कम्पनियों की ओर से हस्तक्षेप कर सकती है तो इन कम्पनियों के खर्चों को नियन्त्रित करने के लिये हस्तक्षेप क्यों नहीं करती है?

जब भी इस बारे में सरकार के नियन्त्रण की बात की जाती है तो सरकार इसे कम्पनियों का आन्तरिक मामला कहकर पल्ला झाड़ लेती है,जबकि कम्पनियों द्वारा अर्जित धन की बर्बादी के कारण होने वाले घाटे की पूर्ति के लिये सरकार रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाने के लिये इन कम्पनियों की ओर से जनता पर भार बढाने में कभी भी संकोच नहीं करती है



प्रेसपालिका अख़बार के संपादक और भ्रष्टाचार व् अत्याचार अन्वेषण संस्थान के अध्यक्ष.