Jun 28, 2011

पेट्रोलियम की महंगाई रोकने के सुझाव


जब सरकार रसोई-गैस,डीजल,केरोसिन और पेट्रोल की कीमतें बढाने के मामले में इन कम्पनियों की ओर से हस्तक्षेप कर सकती है तो इन कम्पनियों के खर्चों को नियन्त्रित करने के लिये हस्तक्षेप क्यों नहीं करती...

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

सरकार जब भी रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाती है, सरकार की ओर से हर बार रटे-रटाये दो तर्क प्रस्तुत करके देश के लोगों को चुप करवाने का प्रयास किया जाता है.पहला तो यह कि कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव बढ गये हैं,जो सरकार के नियन्त्रण में नहीं है. दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों को भारी घाटा हो रहा है,इसलिये रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाना सरकार की मजबूरी है.


उसके बाद राष्ट्रीय मीडिया की ओर से हर बार सरकार को बताया जाता है कि यदि सरकार अपने करों को कम कर दे तो रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढने के बजाय घट भी सकती हैं और आंकड़ों के जरिये यह सिद्ध करने का भी प्रयास किया जाता है कि रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों को कुल मिलाकर घाटे के बजाय मुनाफा ही हो रहा है, फिर कीमतें बढाने की कहॉं पर जरूरत है.

मीडिया और जागरूक लोगों की ओर से उठाये जाने वाले इन तर्कसंगत सवालों पर सरकार तनिक भी ध्यान नहीं देती है और थोड़े-थोड़े से अन्तराल पर रसोई-गैस,डीजल,केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें लगातार और बेखौफ बढाती ही जा रही है,जिससे आम गरीब लोगों की कमर टूट चुकी है.राजनैतिक दल भी औपचारिक विरोध करके चुप हो जाते हैं.

दूसरी तरफ लोगों में सरकार के इस अत्याचार का संगठित होकर प्रतिकार करने की क्षमता नहीं है.मध्यम एवं उच्च वर्ग जो हर प्रकार से प्रतिकार करने में सक्षम है,वह एक-दो दिन चिल्लाचोट करके चुप हो जाता है.ऐसे में आम-अभावग्रस्त लोगों को इस दिशा में कुछ समाधानकारी मुद्दों को लेकर सड़क पर आने की जरूरत है.कारण कि रसोई गैस एवं केरोसिन की कुल खपत का करीब 40 प्रतिशत व्यावसायिक उपयोग हो रहा है, जिसके लिये मूलत: इनकी कालाबाजारी जिम्मेदार है, जिसमें सरकार के अफसर भी शामिल हैं.

जाहिर इसकी सजा कालाबाजारी में शामिल माफियाओं-अफसरों को होनीचाहिए,जबकि डीजल, रसोई गैस एवं केरोसिन की कीमतें बढ़ाकर जनता पर सरकार अत्याचार कर रही है.रसोई-गैस,डीजल, केरोसिन   और पेट्रोल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों के कर्मचारियों और अफसरों को जिस प्रकार की सुविधा और वेतन दिया जा रहा है,वह उनकी कार्यक्षमता से कई गुना अधिक है,जिसका भार अन्नत:देश की जनता पर ही पड़ता है, जब सरकार रसोई-गैस,डीजल, केरोसिन और पेट्रोल की कीमतें बढाने के मामले में इन कम्पनियों की ओर से हस्तक्षेप कर सकती है तो इन कम्पनियों के खर्चों को नियन्त्रित करने के लिये हस्तक्षेप क्यों नहीं करती है?

जब भी इस बारे में सरकार के नियन्त्रण की बात की जाती है तो सरकार इसे कम्पनियों का आन्तरिक मामला कहकर पल्ला झाड़ लेती है,जबकि कम्पनियों द्वारा अर्जित धन की बर्बादी के कारण होने वाले घाटे की पूर्ति के लिये सरकार रसोई-गैस, डीजल, केरोसीन और पेट्रोल की कीमतें बढाने के लिये इन कम्पनियों की ओर से जनता पर भार बढाने में कभी भी संकोच नहीं करती है



प्रेसपालिका अख़बार के संपादक और भ्रष्टाचार व् अत्याचार अन्वेषण संस्थान के अध्यक्ष.
 
 
 

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