मोतियाबिंद से त्रस्त गरीबों को क्या पता था कि जिन आंखों की रोशनी पाने की उम्मीद में वे डॉक्टरों के यहां जा रहे हैं, वे डॉक्टर उनकी आंखें ही छीन लेंगे और वे अपराधी भी नहीं माने जायेंगे...
चैतन्य भट्ट
मध्य प्रदेश के मंडला जिले के पच्चीस आदिवासी अपनी आँखें डाक्टरों की लापरवाही के कारण गंवा चुके हैं। आदिवासियों को डाक्टरों की लापरवाही का उस समय शिकार होना पड़ा जब वे ‘योगीराज चेरिटेबल ट्रस्ट’ के निःशुल्क मोतियाबिन्द आपरेशन कैंप में इलाज के लिए आये थे। डॉक्टरों ने आदिवासी मरीजों को भरमाने के लिए मोतियाबिंद ग्रस्त आखों को निकाल पत्थर की आँखे लगा दी थीं।
जबलपुर से करीब सौ किलोमीटर दूर मंडला में पिछले वर्ष 11सितंबर को योगीराज चैरिटेबल ट्रस्ट ने मोतियाबिंद कैंप लगाया था। दूर-दराज से आपरेशन के लिए आये गरीबों में वह पचीस आदिवासी भी थे जो मोतियाबिंद की वजह से जिंदगी ठीक से नहीं जी पा रहे थे। अपनी आँखों से पहले की तरह दुनिया देख सकें की उम्मीद में डाक्टरों के दर पर आये आदिवासियों को क्या पता था कि जिंदगी में बची बाकी रोशनी भी वे गवां बैठेंगे।
डॉक्टरों की देन : पत्थर की आंख दिखाता एक पीड़ित |
दूसरी तरफ रसूखदारों की सरपरस्तरी में चल रहे योगीराज चेरिटेबल ट्रस्ट अस्पताल का बाल बांका भी नहीं हुआ है। घटना के चार महीने बाद भी अस्पताल ने एक धेले का मुआवजा नहीं दिया है। घटना के बाद मंडला के जिला कलेक्टर ने अस्पताल को यह निर्देश दिये थे कि वे हर पीड़ित मरीज को तीस तीस हजार रूपये बतौर मुआवजा दे और पेंशन के रूप में हर महिने पांच-पाचं सौ रूपये भी अस्पताल प्रबंधन अदा करे।
आँखें गँवा चुके आदिवासी और उनके परिजन मुआवजे की आस में हर उस दरवाजे जा रहे है जहां से उन्हें न्याय की उम्मीद है। लेकिन राज्य की भाजपा सरकार, जिला प्रशासन, सीएमओ से लेकर योगीराज चेरिटेबल ट्रस्ट तक के अधिकारियों के कानों में जूं नही रेंग रही है। इतना ही नहीं जबलपुर के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम, जिन्हें घटना की जांच का जिम्मा सौंपा गया था, उन्होंने भी आपरेशन करने वाले दोषी डाक्टरों को ‘क्लीनचिट’ देकर पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिडका है।
गौरतलब है कि गरीब और आदिवासी इलाका होने के कारण जैसे ही लोगों को पता चला कि निःशुल्क मोतियाबिन्द आपरेशन कैंप लगा है तो धनाभाव के कारण निजी चिकित्सालयों में इलाज न करा पाने वाले मरीजों का तांता लग गया। मामला गरीबों का होने के कारण अस्पताल प्रबंधन ने भी खूब लापरवाही बरती और इतने बड़े कैंप का आयोजन बगैर स्वास्थ्यअधिकारियों के इजाजत के ही कर डाला।
आसपास के गांवों झिरिया,बनिया तारा,मलवा खेहरी से तीस मरीज मुफ्त आपरेशन का प्रलोभन देकर लाये गये। मरीजों में महिलायें और पुरूष दोनों शामिल थे,जिनका आपरेशन अस्पताल के डाक्टरों ने बाहर से आये डाक्टरों के साथ किया। दो दिन बाद मरीजों के आंखों की पट्टियां खोलकर उनकी जांच के बाद उन्हें अपने अपने घरों को जाने के लिये कह दिया गया. मुफ्त में हुए आपरेशन की खुशी में डूबे इन आदिवासियों को इसके बाद के परिणामों के बारे में कोई कल्पना ही नहीं थी। मरीजों को क्या पता था कि जिन आँखों में वे रोशनी की आस कर रहे है वे बहुत जल्दी पथरा जाने वाली हैं।
आपरेशन का एक सप्ताह ही बीता था और मरीजों की आखों में पानी और मवाद आना शुरू हो गया। पीडितों ने अस्पताल से सम्पर्क किया तो उन्हें अस्पताल बुलवाया गया। डाक्टरों ने दुबारा आपरेशन किया, लेकिन डॉक्टरी लापरवाही के कारण इन्फेक्शन इतना ज्यादा हो गया था कि उसका इलाज कर पाना डाक्टरों के बस का नहीं रह गया।
ऐसे में उन शातिर डाक्टरों ने अपना गुनाह छुपाने के लिए गरीब और अप़ढ़ आदिवासियों की संक्रमित आंखें निकाल पत्थर की आंखें लगा दीं.अस्पताल की ओर से डाक्टर परवेज खान ने भी स्वीकार किया कि ‘संक्रमण ज्यादा था इसलिए आंख निकालने के अलावा कोई दूसर उपाय नहीं था। अगर ऐसा नहीं होता तो स्वस्थ आंख भी खराब हो सकती थी।’
एक असली आखों की जगह पत्थर की आंखे लगा देने की बात सामने आई तो जिला कलेक्टर केके खरे ने अस्पताल प्रबंधन को आदेश दिया कि वह पीड़ितों को तीस हजार रूपये मुआवजा और पांच सौ रूपये मासिक पेंशन दे। इसके साथ जिला प्रशासन ने जबलपुर मेडिकल कालेज के एसोसिऐट प्रोफेसर डॉ. परवेज सिददीकी, डॉ. पवन अग्रवाल, नेत्र विशेषज्ञ डॉ. हितेश अग्रवाल के अलावा जिला चिकित्सालय मंडला के नेत्र विशेषज्ञ डॉ. तरूण अहिरवार की जांच के लिएक उच्चस्तरीय टीम बनाई गयी।
आंख की जगह पत्थर लगाकर भरमाया |
विशेषज्ञ टीम ने अपनी रिपोर्ट कहा कि घटना के डेढ़ महीने बाद हुई की जांच में इन्फेक्शन का कोई ठोस कारण बता पाना संभव नहीं है। जाहिर है इस रिपोर्ट के बाद दोषी डॉक्टरों को क्लीनचिट मिलनी ही थी और वह मिल भी गयी। उसके बाद योगीराज चेरिटेबल ट्रस्ट अस्पताल के हौसले बुलंद हो गये और उसने कलेक्टर के मुआवजे वाले आदेश को धता बताते हुये मुआवजे के आदेश को अनसुना कर दिया।
अपनी आंख गंवा चुकी ग्राम झिरिया की रहने वाली रेवती बाई मोंगरे अपनी व्यथा सुनाते कहती हैं,‘मैं अपनी आखों का आपरेशन ही नहीं करवाना चाहती थीं,पर अस्पताल के लोगों की बातों में आकर मैंने आपरेशन करवा लिया.मुझे उन्हें नहीं मालूम था कि आँखें ठीक होना तो दूर रोशनी और दोनों आँखें ही चली जायेंगी.
कहीं से न्याय मिलता न देख आदिवासियों ने न्यायालय में गुहार लगायी है। आदिवासियों की ओर से मंडला के स्थानीय अधिवक्ता हमीद खान, विजय जंघेल और उनके सहयोगियों की मदद से एक परिवाद दायर किया है, जिसमें उन्होंने पीड़ितों के लिए तीन लाख रूपये मुआवजे की मांग की है।
राज एक्सप्रेस और पीपुल्स समाचार में संपादक रह चुके चैतन्य भट्ट फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहे हैं। वे तीस बरसों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।