Aug 26, 2010

आजाद की हत्या को साबित करती है ये रिपोर्ट



एफआईआर में 20 माओवादियों का जिक्र है, जबकि पुलिस को मुठभेड़स्थल से केवल दो ही किट बैग और दो ही हथियार मिले हैं.क्या बाकी के माओवादी अपने सामान समेत भाग गए थे.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)के प्रवक्ता चेरुकुरी राजकुमार ऊर्फ आजाद और दिल्ली के स्वतंत्र पत्रकार हेमचंद्र पांडेय की कथित मुठभेड़ में हुई मौत की जाँच के लिए कोआर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट आर्गेनाइजेशन (सीडीआरओ) ने एक फैक्ट फाइंडिग कमेटी का गठन किया था. इसमें दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमित भादुड़ी,सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण,राजस्थान की मानवाधिकार कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव, लेखक-पत्रकार गौतम नवलखा, वकील क्रांति चैतन्य और डी. सुरेश कुमार, चौधरी सुधाकर राव और डी. वेंकेटेश्वरालू शामिल थे. 

इस कमेटी ने आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले के वेंकाडी मंडल में स्थित घटनास्थल का 20 और 21 अगस्त 2010 को दौरा किया. इस दौरान इस कमेटी ने स्थानीय ग्रामीणों, पुलिस और पत्रकारों से बातचीत कर तथ्य जुटाए और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जांच-पड़ताल की. एक और दो जुलाई की रात हुई इस कथित मुठभेड़ की प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) संख्या 40/2010 वंकाडी पुलिस थाने में दर्ज है. अंग्रेजी में लिखी गई इस एफआईआर को थाना प्रभारी मंसूर अहमद ने दो जुलाई की सुबह साढ़े नौ बजे दर्ज कराया था. इसमें जो बातें कहीं गई हैं, वे इस प्रकार हैं..

चेरुकुरी राजकुमार उर्फ़ आजाद: मुठभेड़ नहीं हत्या 
1- स्पेशल इंटेलिजेंस पुलिस ने यह सूचना दी कि 20 माओवादियों का एक दल महाराष्ट्र से आंध्र प्रदेश में दाखिल हुआ है और वह जंगल की ओर बढ़ रहा है.
2- इस सूचना पर विशेष पुलिस बल के साथ आदिलाबाद पुलिस रात में देखने में सहायक उपकरणों के साथ इन माओवादियों की तलाश में निकली. पुलिस ने उन्हें तारकीपल्ली और वेल्गी की जंगली पहाड़ी के बीच खोज लिया.
3- रोके जाने पर माओवादियों ने पुलिस पार्टी पर फायरिंग शुरु कर दी. पुलिस ने भी आत्मरक्षा में गोलीबारी की. यह गोलीबारी करीब 30 मिनट तक चली. गोलीबारी रुकने के बाद पुलिस पहाड़ी पर चढ़ी और रात भर वहीं रुकी रही. अगली सुबह तलाशी में पुलिस ने दो अज्ञात शव पाए. इनमें से एक करीब 50 साल का था जिसके पास एके-47 राइफल थी और दूसरा 30 साल का था जो सैंडल पहने हुए था. उसके पास 9 एमएम की पिस्तौल थी.

अब पुलिस की इस कहानी से कई सवाल उठ खड़े होते हैं -

क- महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की सीमा पर फैले सैकड़ों किलोमीटर के जंगल में पुलिस ने कैसे माओवादियों का पता लगा लिया?
- पुलिस ने इस जगह की योजना क्यों बनाई, जबकि कई ग्रामीणों ने हमें साफ-साफ बताया कि इस इलाके में पिछले कुछ सालों से कोई माओवादी गतिविधि नहीं हो रही है.
- रात में 11 बजे से 11.30 बजे तक गोली चलने के बाद भी क्यों कोई पुलिसवाला घायल नहीं हुआ और क्यों केवल आजाद और हेमचंद्र पांडेय ही मारे गए?
-एफआईआर में 20 माओवादियों का जिक्र है, जबकि पुलिस को मुठभेड़स्थल से केवल दो ही किट बैग और दो ही हथियार मिले हैं. क्या बाकी के माओवादी अपने सामान समेत भाग गए थे.
ड.- अगर आजाद 20 माओवादियों के एक दल के साथ चल रहे थे तो निश्चित रूप से उन्हें वर्दी में होना चाहिए था न की सामान्य कपड़ो में.
- अगर पुलिस सुबह साढ़े नौ बजे एफआईआर के दर्ज होने तक मृतकों की पहचान से अनजान थी तो इलेक्ट्रानिक मीडिया ने दो जुलाई की सुबह छह बजे ही यह कैसे प्रसारित कर दिया कि आजाद एक मुठभेड़ में मारे गए हैं? कुछ अन्य इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी उनके मौत की घोषणा कर दी थी. इससे यह साफ पता चलता है कि पुलिस को यह पता था कि उसने किसे मारा है.

छ- आजाद की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी पुलिस की कहानी पर सवाल उठाती है. रिपोर्ट से पता चलता है कि गोली उनके सीने में दूसरी पसली के पास से घुसी थी. इससे जलने का गहरा निशाना बन गया था. गोली लगने की जगह पर जलने का निशान इस बात की ओर इशारा करता है कि गोली बहुत नजदीक से चलाई गई है (एक फुट से अधिक दूरी से नहीं). गोली निकलने का घाव 9वीं और दसवीं अंतर कशेरूका के बीच है. इसकी गहराई नौ इंच है. इसका मतलब यह हुआ कि गोली सीने के ऊपरी भाग से घुसी और निचले हिस्से से होती हुई निकल गई. इससे पुलिस के इस बयान पर संदेह होता है कि माओवादी पहाड़ी पर थे और पुलिस नीचे.

4- यह सबको पता है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय स्वामी अग्निवेश के माध्यम से सीपीआई (माओवादी) से बातचीत की संभावनाए तलाश रहा था और वह व्यक्ति जिसके माध्यम से स्वामी अग्निवेश सीपीआई (माओवादी) से बात कर रहे थे वह चेरुकुरी राजकुमार ऊर्फ आजाद थे.

5- इन परिस्थितियों में हुई यह कथित मुठभेड़ कई महत्वपूर्ण सवाल उठाती है -

क - आंध्र प्रदेश पुलिस की स्पेशल ब्रांच केंद्रीय गृह मंत्रालय की जानकारी के बिना माओवादियों से मुकाबला और आजाद की हत्या कैसे कर सकती है, जबकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने माओवादियों के खिलाफ संयुक्त अभियान का नेतृत्व करने के बारे में कह रखा है.

ख - कई बार मांग करने के बाद भी केंद्रीय गृह मंत्रालय इस मुठभेड़ की स्वतंत्र जांच में दिलचस्पी क्यों नहीं ले रहा है?
ग - अगर केंद्रीय गृह मंत्रालय बातचीत के लिए गंभीर है तो केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम को सीपीआई (माओवादी) की ओर से वार्ता में प्रमुख भूमिका निभाने वाले व्यक्ति की मौत पर चिंता जतानी चाहिए थी. संसद में दी गई उनकी यह सफाई कि जांच कराना राज्य सरकार का मामला है, को नहीं माना जा सकता है क्योंकि आंध्र प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार है इसलिए केंद्रीय गृहमंत्री की इस मामले की जांच की मांग
को वह अस्वीकार नहीं कर सकती है.

केंद्र सरकार के पास जांच आयोग अधिनियम-1952 के तहत किसी भी मामले की जांच कराने का अधिकार है.

पत्रकार हेमचन्द्र : गुनाह पूछती  पत्नी बबिता 
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1- इस हत्या जिसने शांति प्रक्रिया को ही विफल कर दिया, इसके महत्व को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि सरकार एक उच्च स्तरीय स्वतंत्र जांच दल का गठन करे जिसका अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट की ओर से नामित सुप्रीम कोर्ट का कोई सेवानिवृत्त या वर्तमान न्यायाधीश होना चाहिए.
2- आजाद और हेमचंद्र पांडेय की हत्या करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होना चाहिए और इस मामले की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देशों के मुताबिक स्वतंत्र जांच होनी चाहिए.