Dec 22, 2010

कवि निकानोर पार्रा सान्दोवाल


कवि और अनुवादक नीलाभ ने अपने ब्लॉग 'नीलाभ का मोर्चा '  पर जानकारी दी है कि वे देश-विदेश के जाने-माने कवियों की रचनाओं के लगातार अनुवाद पेश करेंगे.इसी कड़ी में पढ़िए चीले के कवि  निकानोर पार्रा सान्दोवाल की कविता...


युवा कवि

चाहे जैसा लिखो,
जो भी शैली तुम्हें पसन्द हो, अपना लो
बहुत ज़्यादा ख़ून बह चुका है
पुल के नीचे से
यह मानते रहने के लिए
कि सिर्फ़ एक ही रास्ता सही है
कविता में हर बात की इजाज़त है
शर्त बस यही है
तुम्हें बेहतर बनाना है कोरे पन्ने को

नामों का परिवर्तन

साहित्य-प्रेमियों को
मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।
मैं कुछ चीज़ों के नाम बदलने जा रहा हूँ।
मेरी मान्यता यह है :
कवि अपने क़ौल का सच्चा नहीं
अगर वह चीज़ों के नाम नहीं बदलता।

क्या कारण है कि सूरज को
हमेशा सूरज ही कहा जाता रहा है ?
मैं कहता हूँ कि उसे
एक डग में चालीस कोस नापते जूतों वाली
बिल्ली कहा जाय।

मेरे जूते ताबूतों जैसे लगते हैं ?
तो जान लीजिए कि आज के बाद
जूतों को ताबूत कहा जायेगा।

बता दीजिए, सूचित कर दीजिए,
प्रकाशित कर दीजिए इसे -
कि जूतों का नाम बदल दिया गया है :
अब से उन्हें ताबूत कहा जायेगा।

ख़ैर, रात तो ख़ासी लम्बी है।
अपना सम्मान करने वाले हर मूर्ख के पास
उसका एक अपना शब्द-कोश तो होना ही चाहिए

और इससे पहले कि मैं भूल जाऊँ
ईश्वर को भी तो अपना नाम बदलवाना पड़ेगा
हर कोई उसे जो नाम देना चाहे दे दे
यह एक निजी समस्या है।

रोलर कोस्टर

आधी सदी तक
कविता
गम्भीर मूर्खों का स्वर्ग थी
जब तक कि मैंने आ कर
अपना रोलर कोस्टर नहीं बनाया
सवार हो जाओ अगर तुम्हारा जी चाहे
लेकिन अगर तुम नाक और मुंह
फोड़वा कर उतरो
तो मेरी ज़िम्मेदारी नहीं है

मेरा प्रस्ताव है कि बैठक स्थगित कर दी जाय

देवियो और सज्जनो
मेरे पास सिर्फ़ एक सवाल है:
क्या हम सूर्य की सन्तान हैं या धरती की ?
क्योंकि अगर हम केवल धरती हैं
तो मुझे इस फ़िल्म की शूटिंग
जारी रखने में कोई तुक नहीं नज़र आता।
मेरा प्रस्ताव है कि बैठक स्थगित कर दी जाय।

रस्में

हर बार
जब मैं लौटता हूँ अपने देश
लम्बी यात्राओं के बाद
सबसे पहले मैं
उन लोगों के बारे में पूछता हूँ
जो दिवंगत हो गये हैं:
महज़ मौत की सरल-सी क्रिया से
सभी लोग नायक हैं
और नायक ही हमारे शिक्षक हैं
फिर मैं पूछता हूँ
घायलों के बारे में।
इसके बाद ही,
जब यह छोटी-सी रस्म पूरी हो जाती है
मैं माँग करता हूँ जीवन के अपने अधिकार की :
खाता हूँ, पीता हूँ, आराम करता हूँ
आँखें मूँदता हूँ ताकि और भी साफ़ देख सकूं
और गाता हूँ मैं विद्वेष-भरे स्वर में
इस सदी के आरम्भिक दिनों का कोई गीत

अधूरा प्रेमी

एक नव विवाहित जोड़ा
आ कर रुकता है एक क़ब्र के पास
वधू मातमी सफ़ेद लिबास में लिपटी है
उनके देखे बिना उन पर नज़र रखने के लिए
मैं एक खम्भे के पीछे छिप जाता हूँ
गहरी उदासी में डूब कर जब वधू
अपने पिता की कब्र से घास साफ़ करती है
उसका अधूरा प्रेमी बड़ी तन्मयता से
पत्रिका पढ़ता रहता है

घड़ियाँ

सान्तियागो, चिली में
दिन बेहद लम्बे होते हैं :
एक दिन में अनेक सदियाँ
खच्चरों पर सवार
सागर-सिवार के फेरी वालों की तरह
तुम उबासी लेते हो -
फिर-फिर उबासी लेते हो

लेकिन हफ़्ते बहुत छोटे होते हैं
महीने सरपट गुज़रते हैं
और वर्षों ने तो जैसे पंख उगा लिये हैं

कविता मेरे साथ ख़त्म होती है

मैं किसी चीज़ को ख़त्म नहीं कर रहा
मुझे इस बारे में कोई भ्रम नहीं है
मैं कविताएँ रचते रहना चाहता था
लेकिन प्रेरणा ही चुक गयी।

कविता पूरी तरह खरी उतरी
मेरा ही चाल-चलन बहुत ख़राब रहा
यह कहने से मुझे क्या फ़ायदा है
कि मैं खरा उतरा
और कविता ने बुरा आचरण किया
जब सभी जानते हैं दोष मेरा है ?
मूर्ख बस इसी लायक होता है
कविता पूरी तरह खरी उतरी है
मैंने ही बहुत बुरा आचरण किया
कविता मेरे साथ ख़त्म होती है।

अनजान औरत को लिखे गये पत्र

जब बरसों बीत जायें, जब कई साल
बीत जायें और हवा
तुम्हारी और मेरी आत्मा के बीच
खाई खोद चुकी हो, जब कई बरस
गुज़र जायें और मैं
महज़ वह आदमी रह जाऊँ
जिसने प्यार किया,
जो केवल एक क्षण के लिए
तुम्हारे होंटों पर टिका,

वह बेचारा आदमी
जो बाग़ों में टहलते-टहलते
थक गया हो
जब तुम कहाँ होगी?
कहाँ होगी तुम
ओ मेरे चुम्बनों की बेटी।
_____________________________________


निकानोर पार्रा सान्दोवाल का जन्म 5सितम्बर 1914को चीले (दक्षिण अमेरिका ) के शहर चिलैन के पास सान फ़ैबिअन दे अलीचो नामक स्थान में हुआ. वे कवि के साथ-साथ गणितज्ञ भी हैं.लातीनी अमेरिका में वे बहुत प्रसिद्ध हैं और जाने-माने काव्य आन्दोलन "ऐण्टी पोएट्री"के जनक हैं जिसका आधुनिक लातीनी अमेरिकी  ही नहीं,अमेरिकी  और यूरोपीय कविता पर गहरा असर पड़ा है.उनकी कविता का सारा उद्देश्य व्यर्थ के अलन्करणों से कविता को मुक्त करके पाठक को सम्बोधित करना है,जिसका मतलब है कि उनकी कविता अधिक देसी प्रभावों से युक्त है.उनका पहला ही कविता संग्रह "पोएमास ई ऐण्टीपोएमास" अब लातीनी अमेरिकी साहित्य का एक गौरव ग्रन्थ बन चुका है.

दलितों पर अत्याचार


पिछड़े-दलितों के साथ हो रही सामाजिक गैरबराबरी उत्तराखंड में कभी मुकम्मिल सवाल के तौर पर सामने नहीं आ सकी। न ही वहां होने वाली ज्यादतियां दूसरे राज्यों की तरह मुद्दा बन पाती हैं। इसे आंकड़ों में नहीं, घटनाओं के जरिये बता रहे हैं...

राजा राम विद्यार्थी

आदमी को अपने ढंग से जीने का अधिकार है और यह अधिकार वहां तक है,जब तक वह दूसरों के जीने के ढंग में दखल नहीं करता। अगर वह दखल करता है,तो उसके लिए कानून-व्यवस्था है परन्तु कानून-व्यवस्था भी आज या तो कुछ लोगों के हाथ की कठपुतली है,या औने-पौने दामों में बिकने वाली वस्तु हो गयी है। खासकर उत्तर-भारत में तो कानून-व्यवस्था दबंगो की रखैल बनकर रह गयी है। वर्ष 1985से लेकर 2005तक घटी कुछ ऐसी घटनाओं का ब्योरा मैं उत्तराखंड से दे रहा हूं जिसमें मैं खुद किसी न किसी तरह से शामिल रहा।

पहली घटना नैनीताल जिले के कोस्याकुटोली तहसील,विकासखण्ड बेतालघाट,पट्टी मल्ला कोस्यां का एक गांव है चड्यूला। चड्यूला गांव में एक परिवार ब्राह्मण तथा एक परिवार शिल्पकार रहता है। शेष पूरा का पूरा गांव ठाकुरों का है। ब्राह्मण और शिल्पकार परिवार यहां के लोगों ने अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए बसाया है,ताकि ब्राह्मण विशेष आयोजनों में पूजा-पाठ आदि करेगा और, एक परिवार शिल्पकार जो की ठाकुरों का सारा काम लुहार, बढ़ई, दर्जी आदि जितने भी शिल्प हैं उन सबको करेगा। इस कारण यहां निवास करने वाला शिल्पकार परिवार सारे शिल्पों में पारंगत रहता है।

चड्यूला गांव एक दुर्गम पहाड़ी पर बसा है। कोसी नदी के किनारे होते हुए भी इस गांव से कोसी दो किलोमीटर गहराई में है। चड्यूला से कोसी तक जाना सहज आसान नहीं है। गांव में मात्र प्राइमरी स्कूल है। इण्टर कालेज यहां से 10किमी की दूरी पर बेतालघाट में है, जो कि पहले नहीं था। इसलिए यहां शिक्षा का स्तर काफी गिरा हुआ है। पूरे गांव में हाईस्कूल या इण्टर पास शायद खोजने पर ही मिलेगा।


चड्यूला में जो शिल्पकार परिवार है कभी इस परिवार में दो भाई हुआ करते थे। बड़ा भाई गंगाराम और छोटा भाई दयाल राम। गंगाराम गांव के लोगों का सभी काम करता था और दयाल राम भी मेहनत-मजदूरी करता था। गंगाराम जहां अपना मेहनताना मांगने में झिझकता था वहीं दयालराम अपने मेहनताना मांगने के लिए लड़-मरने को तैयार रहता था। प्रकृति ने दयालराम को स्वस्थ और मजबूत देह प्रदान की थी। चार आदमी मिलकर भी उसका बालबांका नहीं कर सकते थे।

इस कारण सवर्णों को एक दलित के हाथ से पिटना नागवार गुजरता था। अगर कोई भी सवर्ण उससे या उसके भाई से अन्याय करने की सोचता तो वह उससे भिड़ जाता और ठाकुरों को मुंह की खानी पड़ती। उसके शरीर की बलिष्ठता एवं सुन्दरता से कई सवर्ण स्त्रियां उसकी आशक्त हो गयी थी। जिस कारण चड्यूला के ठाकुरों ने उसकी हत्या की योजना बना ली। लेकिन परेशानी इस बात की थी कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?क्योंकि कोई भी सवर्ण ठाकुर या ब्राह्मण उसके बाहुबल के आगे नहीं टिकता था।

इसलिए सभी सवर्णों ने मिलकर उसके घर को चारों और से घेर लिया। दो तगड़े सवर्ण लड़कों ने उसे बाहर से ललकारा कई सारे सवर्ण उसके मकान की छत,जो कि पाथरों (पत्थरों से ढंकी)गयी थी,के ऊपर चढ़ गये। दयालराम की दो पत्नियां थी। एक गोठ (ग्राउण्ड फ्लोर)में रहती थी,दूसरी अन्दर (फर्स्ट फ्लोर)में रहती थी। दयालराम उनकी ललकार सुनकर बाहर जाने को तत्पर होने लगा तो पत्नियों ने उसे रोका भी,लेकिन बार-बार के ललकारने पर वह बाहर आकर उनसे भिड़ गया।

सारे ठाकुर उसे पत्थरों से कुचल-कुचल कर मार डालते हैं। यह घटना शाम के समय घटती है। दयालराम मर जाता है और हत्यारे वहां से फरार हो जाते हैं। रात के नौ बजे करीब उसकी पत्नी जो कि गोठ में रहती थी,अपने दो बच्चों को लेकर चड्यूला से लगभग 25कि0मी0दूर मामले ही जानकारी देने पटवारी चौकी जो कि गरमपानी में थी, वहां को निकल पड़ती है। रात के 12 बजे वह गरमपानी पहुंच कर पटवारी चौकी में  अपने पति की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराती है।

चड्यूला से गरमपानी तक का रास्ता बीहड़,जंगल से होकर जाता है और पहाड़ में भूत-प्रेत का अंधविश्वास भी चरम पर होता है। जंगली हिंसक जानवर भी होते हैं, उन सब से निडर होकर या यूं कहें पति के हत्यारों को सजा दिलाने का जज्बा उसे इतनी रात में चड्यूला से गरम पानी तक ले आया। किन्तु पुलिस-प्रशासन तथा न्याय-विभाग ने दयालराम के हत्यारों को सजा देने की बजाय चन्द रुपियों में ही छोड़ दिया। आज भी दयालराम के हत्यारे बेखौफ घूम रहे है तथा बेतालघाट क्षेत्र के दलित शिल्पकार आज भी उस गांव में जाने से डरते हैं।

बेतालघाट क्षेत्र में जातिवाद चरम पर है। सवर्णों की दबंगई से यहां के दलित शिल्पकार परेशान रहते हैं। बेतालघाट के ही नजदीकी ग्राम अमेल में 1991में हुई हीरालाल सुनार के लड़के की शादी में प्याऊ से पानी खुद पी लेने के कारण पूरी बारात को लाठी-डण्डों से सवर्णों द्वारा पीटा गया था जिसमें अधिकांश बाराती लहूलुहान हो गये थे। उसकी कोई भी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई थी। जिस कारण सवर्ण दबंगों के हौसले हमेशा ही बुलंद रहने लगे हैं। 1993में अमेल के ही मोतीराम की लड़की माधवी की शादी में भी बारातियों की खूब जमकर पिटाई की गयी थी। जिसमें से एक बाराती का सिर फोड़ दिया गया था। उसके सिर पर 10टांके लगे थे। इसमें भी भयाक्रान्त शिल्पकारों के द्वारा कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी थी।


उत्तराखण्ड के रहने वाले राजाराम विद्यार्थी दलित चिंतक और साहित्यकार है। लेखों,कहानियों और कविताओं के माध्यम से दलितों-पिछड़ों से जुड़े विषयों को उठाते है।