पिछड़े-दलितों के साथ हो रही सामाजिक गैरबराबरी उत्तराखंड में कभी मुकम्मिल सवाल के तौर पर सामने नहीं आ सकी। न ही वहां होने वाली ज्यादतियां दूसरे राज्यों की तरह मुद्दा बन पाती हैं। इसे आंकड़ों में नहीं, घटनाओं के जरिये बता रहे हैं...
राजा राम विद्यार्थी
आदमी को अपने ढंग से जीने का अधिकार है और यह अधिकार वहां तक है,जब तक वह दूसरों के जीने के ढंग में दखल नहीं करता। अगर वह दखल करता है,तो उसके लिए कानून-व्यवस्था है परन्तु कानून-व्यवस्था भी आज या तो कुछ लोगों के हाथ की कठपुतली है,या औने-पौने दामों में बिकने वाली वस्तु हो गयी है। खासकर उत्तर-भारत में तो कानून-व्यवस्था दबंगो की रखैल बनकर रह गयी है। वर्ष 1985से लेकर 2005तक घटी कुछ ऐसी घटनाओं का ब्योरा मैं उत्तराखंड से दे रहा हूं जिसमें मैं खुद किसी न किसी तरह से शामिल रहा।
पहली घटना नैनीताल जिले के कोस्याकुटोली तहसील,विकासखण्ड बेतालघाट,पट्टी मल्ला कोस्यां का एक गांव है चड्यूला। चड्यूला गांव में एक परिवार ब्राह्मण तथा एक परिवार शिल्पकार रहता है। शेष पूरा का पूरा गांव ठाकुरों का है। ब्राह्मण और शिल्पकार परिवार यहां के लोगों ने अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए बसाया है,ताकि ब्राह्मण विशेष आयोजनों में पूजा-पाठ आदि करेगा और, एक परिवार शिल्पकार जो की ठाकुरों का सारा काम लुहार, बढ़ई, दर्जी आदि जितने भी शिल्प हैं उन सबको करेगा। इस कारण यहां निवास करने वाला शिल्पकार परिवार सारे शिल्पों में पारंगत रहता है।
चड्यूला गांव एक दुर्गम पहाड़ी पर बसा है। कोसी नदी के किनारे होते हुए भी इस गांव से कोसी दो किलोमीटर गहराई में है। चड्यूला से कोसी तक जाना सहज आसान नहीं है। गांव में मात्र प्राइमरी स्कूल है। इण्टर कालेज यहां से 10किमी की दूरी पर बेतालघाट में है, जो कि पहले नहीं था। इसलिए यहां शिक्षा का स्तर काफी गिरा हुआ है। पूरे गांव में हाईस्कूल या इण्टर पास शायद खोजने पर ही मिलेगा।
चड्यूला में जो शिल्पकार परिवार है कभी इस परिवार में दो भाई हुआ करते थे। बड़ा भाई गंगाराम और छोटा भाई दयाल राम। गंगाराम गांव के लोगों का सभी काम करता था और दयाल राम भी मेहनत-मजदूरी करता था। गंगाराम जहां अपना मेहनताना मांगने में झिझकता था वहीं दयालराम अपने मेहनताना मांगने के लिए लड़-मरने को तैयार रहता था। प्रकृति ने दयालराम को स्वस्थ और मजबूत देह प्रदान की थी। चार आदमी मिलकर भी उसका बालबांका नहीं कर सकते थे।
इस कारण सवर्णों को एक दलित के हाथ से पिटना नागवार गुजरता था। अगर कोई भी सवर्ण उससे या उसके भाई से अन्याय करने की सोचता तो वह उससे भिड़ जाता और ठाकुरों को मुंह की खानी पड़ती। उसके शरीर की बलिष्ठता एवं सुन्दरता से कई सवर्ण स्त्रियां उसकी आशक्त हो गयी थी। जिस कारण चड्यूला के ठाकुरों ने उसकी हत्या की योजना बना ली। लेकिन परेशानी इस बात की थी कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?क्योंकि कोई भी सवर्ण ठाकुर या ब्राह्मण उसके बाहुबल के आगे नहीं टिकता था।
इसलिए सभी सवर्णों ने मिलकर उसके घर को चारों और से घेर लिया। दो तगड़े सवर्ण लड़कों ने उसे बाहर से ललकारा कई सारे सवर्ण उसके मकान की छत,जो कि पाथरों (पत्थरों से ढंकी)गयी थी,के ऊपर चढ़ गये। दयालराम की दो पत्नियां थी। एक गोठ (ग्राउण्ड फ्लोर)में रहती थी,दूसरी अन्दर (फर्स्ट फ्लोर)में रहती थी। दयालराम उनकी ललकार सुनकर बाहर जाने को तत्पर होने लगा तो पत्नियों ने उसे रोका भी,लेकिन बार-बार के ललकारने पर वह बाहर आकर उनसे भिड़ गया।
सारे ठाकुर उसे पत्थरों से कुचल-कुचल कर मार डालते हैं। यह घटना शाम के समय घटती है। दयालराम मर जाता है और हत्यारे वहां से फरार हो जाते हैं। रात के नौ बजे करीब उसकी पत्नी जो कि गोठ में रहती थी,अपने दो बच्चों को लेकर चड्यूला से लगभग 25कि0मी0दूर मामले ही जानकारी देने पटवारी चौकी जो कि गरमपानी में थी, वहां को निकल पड़ती है। रात के 12 बजे वह गरमपानी पहुंच कर पटवारी चौकी में अपने पति की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराती है।
चड्यूला से गरमपानी तक का रास्ता बीहड़,जंगल से होकर जाता है और पहाड़ में भूत-प्रेत का अंधविश्वास भी चरम पर होता है। जंगली हिंसक जानवर भी होते हैं, उन सब से निडर होकर या यूं कहें पति के हत्यारों को सजा दिलाने का जज्बा उसे इतनी रात में चड्यूला से गरम पानी तक ले आया। किन्तु पुलिस-प्रशासन तथा न्याय-विभाग ने दयालराम के हत्यारों को सजा देने की बजाय चन्द रुपियों में ही छोड़ दिया। आज भी दयालराम के हत्यारे बेखौफ घूम रहे है तथा बेतालघाट क्षेत्र के दलित शिल्पकार आज भी उस गांव में जाने से डरते हैं।
बेतालघाट क्षेत्र में जातिवाद चरम पर है। सवर्णों की दबंगई से यहां के दलित शिल्पकार परेशान रहते हैं। बेतालघाट के ही नजदीकी ग्राम अमेल में 1991में हुई हीरालाल सुनार के लड़के की शादी में प्याऊ से पानी खुद पी लेने के कारण पूरी बारात को लाठी-डण्डों से सवर्णों द्वारा पीटा गया था जिसमें अधिकांश बाराती लहूलुहान हो गये थे। उसकी कोई भी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई थी। जिस कारण सवर्ण दबंगों के हौसले हमेशा ही बुलंद रहने लगे हैं। 1993में अमेल के ही मोतीराम की लड़की माधवी की शादी में भी बारातियों की खूब जमकर पिटाई की गयी थी। जिसमें से एक बाराती का सिर फोड़ दिया गया था। उसके सिर पर 10टांके लगे थे। इसमें भी भयाक्रान्त शिल्पकारों के द्वारा कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी थी।
उत्तराखण्ड के रहने वाले राजाराम विद्यार्थी दलित चिंतक और साहित्यकार है। लेखों,कहानियों और कविताओं के माध्यम से दलितों-पिछड़ों से जुड़े विषयों को उठाते है।
behada jaroori lekh.rajaram ji lekhan se lagta hai ki vah jiya hua sach likh rahe hain jo aamtaur par sahri lekhkon men yah birle hi dekhne ko muilta hai.
ReplyDeleteउत्तरखंड में यह हालात शर्मनाक है. अब जरूरी है कि मायावती का उद्भव वहां भी हो तभी इन अत्याचारों की एक राजनितिक अभिव्यक्ति हो पायेगी.
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