कवि और अनुवादक नीलाभ ने अपने ब्लॉग 'नीलाभ का मोर्चा ' पर जानकारी दी है कि वे देश-विदेश के जाने-माने कवियों की रचनाओं के लगातार अनुवाद पेश करेंगे.इसी कड़ी में पढ़िए चीले के कवि निकानोर पार्रा सान्दोवाल की कविता...
चाहे जैसा लिखो,
जो भी शैली तुम्हें पसन्द हो, अपना लो
बहुत ज़्यादा ख़ून बह चुका है
पुल के नीचे से
यह मानते रहने के लिए
कि सिर्फ़ एक ही रास्ता सही है
कविता में हर बात की इजाज़त है
शर्त बस यही है
तुम्हें बेहतर बनाना है कोरे पन्ने को
नामों का परिवर्तन
साहित्य-प्रेमियों को
मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।
मैं कुछ चीज़ों के नाम बदलने जा रहा हूँ।
मेरी मान्यता यह है :
कवि अपने क़ौल का सच्चा नहीं
अगर वह चीज़ों के नाम नहीं बदलता।
क्या कारण है कि सूरज को
हमेशा सूरज ही कहा जाता रहा है ?
मैं कहता हूँ कि उसे
एक डग में चालीस कोस नापते जूतों वाली
बिल्ली कहा जाय।
मेरे जूते ताबूतों जैसे लगते हैं ?
तो जान लीजिए कि आज के बाद
जूतों को ताबूत कहा जायेगा।
बता दीजिए, सूचित कर दीजिए,
प्रकाशित कर दीजिए इसे -
कि जूतों का नाम बदल दिया गया है :
अब से उन्हें ताबूत कहा जायेगा।
ख़ैर, रात तो ख़ासी लम्बी है।
अपना सम्मान करने वाले हर मूर्ख के पास
उसका एक अपना शब्द-कोश तो होना ही चाहिए
और इससे पहले कि मैं भूल जाऊँ
ईश्वर को भी तो अपना नाम बदलवाना पड़ेगा
हर कोई उसे जो नाम देना चाहे दे दे
यह एक निजी समस्या है।
रोलर कोस्टर
आधी सदी तक
कविता
गम्भीर मूर्खों का स्वर्ग थी
जब तक कि मैंने आ कर
अपना रोलर कोस्टर नहीं बनाया
सवार हो जाओ अगर तुम्हारा जी चाहे
लेकिन अगर तुम नाक और मुंह
फोड़वा कर उतरो
तो मेरी ज़िम्मेदारी नहीं है
मेरा प्रस्ताव है कि बैठक स्थगित कर दी जाय
देवियो और सज्जनो
मेरे पास सिर्फ़ एक सवाल है:
क्या हम सूर्य की सन्तान हैं या धरती की ?
क्योंकि अगर हम केवल धरती हैं
तो मुझे इस फ़िल्म की शूटिंग
जारी रखने में कोई तुक नहीं नज़र आता।
मेरा प्रस्ताव है कि बैठक स्थगित कर दी जाय।
रस्में
हर बार
जब मैं लौटता हूँ अपने देश
लम्बी यात्राओं के बाद
सबसे पहले मैं
उन लोगों के बारे में पूछता हूँ
जो दिवंगत हो गये हैं:
महज़ मौत की सरल-सी क्रिया से
सभी लोग नायक हैं
और नायक ही हमारे शिक्षक हैं
फिर मैं पूछता हूँ
घायलों के बारे में।
इसके बाद ही,
जब यह छोटी-सी रस्म पूरी हो जाती है
मैं माँग करता हूँ जीवन के अपने अधिकार की :
खाता हूँ, पीता हूँ, आराम करता हूँ
आँखें मूँदता हूँ ताकि और भी साफ़ देख सकूं
और गाता हूँ मैं विद्वेष-भरे स्वर में
इस सदी के आरम्भिक दिनों का कोई गीत
अधूरा प्रेमी
एक नव विवाहित जोड़ा
आ कर रुकता है एक क़ब्र के पास
वधू मातमी सफ़ेद लिबास में लिपटी है
उनके देखे बिना उन पर नज़र रखने के लिए
मैं एक खम्भे के पीछे छिप जाता हूँ
गहरी उदासी में डूब कर जब वधू
अपने पिता की कब्र से घास साफ़ करती है
उसका अधूरा प्रेमी बड़ी तन्मयता से
पत्रिका पढ़ता रहता है
घड़ियाँ
सान्तियागो, चिली में
दिन बेहद लम्बे होते हैं :
एक दिन में अनेक सदियाँ
खच्चरों पर सवार
सागर-सिवार के फेरी वालों की तरह
तुम उबासी लेते हो -
फिर-फिर उबासी लेते हो
लेकिन हफ़्ते बहुत छोटे होते हैं
महीने सरपट गुज़रते हैं
और वर्षों ने तो जैसे पंख उगा लिये हैं
कविता मेरे साथ ख़त्म होती है
मैं किसी चीज़ को ख़त्म नहीं कर रहा
मुझे इस बारे में कोई भ्रम नहीं है
मैं कविताएँ रचते रहना चाहता था
लेकिन प्रेरणा ही चुक गयी।
कविता पूरी तरह खरी उतरी
मेरा ही चाल-चलन बहुत ख़राब रहा
यह कहने से मुझे क्या फ़ायदा है
कि मैं खरा उतरा
और कविता ने बुरा आचरण किया
जब सभी जानते हैं दोष मेरा है ?
मूर्ख बस इसी लायक होता है
कविता पूरी तरह खरी उतरी है
मैंने ही बहुत बुरा आचरण किया
कविता मेरे साथ ख़त्म होती है।
अनजान औरत को लिखे गये पत्र
जब बरसों बीत जायें, जब कई साल
बीत जायें और हवा
तुम्हारी और मेरी आत्मा के बीच
खाई खोद चुकी हो, जब कई बरस
गुज़र जायें और मैं
महज़ वह आदमी रह जाऊँ
जिसने प्यार किया,
जो केवल एक क्षण के लिए
तुम्हारे होंटों पर टिका,
वह बेचारा आदमी
जो बाग़ों में टहलते-टहलते
थक गया हो
जब तुम कहाँ होगी?
कहाँ होगी तुम
ओ मेरे चुम्बनों की बेटी।
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निकानोर पार्रा सान्दोवाल का जन्म 5सितम्बर 1914को चीले (दक्षिण अमेरिका ) के शहर चिलैन के पास सान फ़ैबिअन दे अलीचो नामक स्थान में हुआ. वे कवि के साथ-साथ गणितज्ञ भी हैं.लातीनी अमेरिका में वे बहुत प्रसिद्ध हैं और जाने-माने काव्य आन्दोलन "ऐण्टी पोएट्री"के जनक हैं जिसका आधुनिक लातीनी अमेरिकी ही नहीं,अमेरिकी और यूरोपीय कविता पर गहरा असर पड़ा है.उनकी कविता का सारा उद्देश्य व्यर्थ के अलन्करणों से कविता को मुक्त करके पाठक को सम्बोधित करना है,जिसका मतलब है कि उनकी कविता अधिक देसी प्रभावों से युक्त है.उनका पहला ही कविता संग्रह "पोएमास ई ऐण्टीपोएमास" अब लातीनी अमेरिकी साहित्य का एक गौरव ग्रन्थ बन चुका है.
क्या कारण है कि सूरज को
ReplyDeleteहमेशा सूरज ही कहा जाता रहा है ?
मैं कहता हूँ कि उसे
एक डग में चालीस कोस नापते जूतों वाली
बिल्ली कहा जाय।
अद्भुत पंक्तियाँ. नीलाभ जी को बहुत-बहुत बधाई इस बड़े काम को शुरू करने के लिए.