Dec 24, 2010

राजा आज सीबीआइ से क्या कहेंगे !

विकास के नाम पर कॉरपोरेट को मुनाफा पहुंचा कर   मंत्रालय की उपलब्धि बताने के अलावे कोई दूसरा रास्ता मनमोहन इकनॉमिक्‍स में नहीं है।

पुण्य प्रसून बाजपेयी


सीबीआई के दरबार में ए.राजा आज (शुक्रवार)पेश होंगे। पूछताछ में ईडी और इन्कम टैक्स के अधिकारी समेत गृह मंत्रालय और आईबी के अधिकारी भी मौजूद होंगे। चूंकि छापों के बाद नौकरशाहों और कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया से पूछताछ में यह सवाल खुल कर सामने आया है कि 2जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस जिन्हें बांटे गये उनके जरिये अफ्रीका, नार्वें, रुस, मलेशिया और यूएई के कंपनियों से तार जुडे। और हवाला रैकेट के जरिये ही करोड़ों के वारे-न्यारे महज छह महीने से एक साल के भीतर कर दिये गये।

जाहिर है ऐसे में सीबीआई उस सिरे को ही पकड़ना चाहेगी कि कहीं पूर्व टेलीकॉम मंत्री की भूमिका लाईसेंस के जरिये हवाला रैकेट में तो कुछ नहीं थी। क्योंकि यही सिरा राजा की गिरफ्तारी करवा सकता है और सीबीआई 90दिनों में ऐसी चार्जशीट दाखिल कर सकती है जिसमें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला प्रधानमंत्री के हद से बाहर निकल कर सीधे हवाला रैकेट से जुड़ता दिखायी दे। और समूची जांच की दिशा ही देशी-बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उस खेल को पकड़ने में लग जाये जो देश में आर्थिक सुधार के साथ मनमोहन इकनॉमिक्‍स के जरिये विदेशी पूंजी की आवाजाही से शुरू हुआ।

लेकिन ए.राजा अगर स्पेक्ट्रम घोटाले के तार कॉरपोरेट संघर्ष की मुनाफाखोरी से जोड़कर उसमें राजनीति का तडका लगा देते हैं,तब क्या होगा। क्या तब यह सवाल खड़ा होगा कि टाटा या मुकेश अंबानी के लिये जो रास्ता नीरा राडिया मंत्रालयो में घूम-घूम कर बना रही थी उसके सामानांतर सुनील मित्तल या अनिल अंबानी के लिये कोई रास्ता बन नहीं पा रहा था।


इसलिये स्पेक्ट्रम का खेल बिगड़ा। और अगर स्पेक्ट्रम लाइसेंस के जरिये किसी कॉरपोरेट घराने को लाभ हुआ तो, जिसे घाटा हुआ उसने अदालत का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया। या फिर किसी भी कंपनी ने 2007-2009के दौर में अदालत जाकर यह सवाल क्यों खड़ा नहीं किया कि जिन कंपनियों ने कभी टेलीकॉम के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया उन्‍हें स्‍पेक्‍ट्रम का आबंटन क्‍यों किया गया। फिर कैसे लाख टके में कंपनी बना कर एक झटके में करोड़ों का वारे-न्यारे स्पेक्ट्रम लाइसेंस पाते ही कर लिया। असल में अर्थव्यवस्था के सामने सरकार कैसे नतमस्तक होती चली गयी है। और कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे में ही देश की चकाचौंध या देश की बदहाली सिमटती जा रही है। यह भी सरकार की आर्थिक नीतियों से ही समझा जा सकता है जिसके दायरे में राजा या राडिया महज प्यादे नजर आते हैं।

अगर राडिया देश के लिये खतरनाक है जैसा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने बताया है ,तो इसका जबाब कौन देगा कि जिन कंपनियों के लिये राडिया काम कर रही थी उनके मुनाफे के आधारों को क्या ईडी टोटलने की स्थिति में है। मुश्किल है। यह मुश्किल क्यों है इसे समझने से पहले जरा सरकार और कॉरपोरेट के संबंधों को समझना भी जरुरी है।

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी खुद कहते है कि वह अंबानी बंधुओं को आज से नहीं बचपन से जानते हैं। यानी राजीव गांधी के दौर में जब धीरुभाई अंबानी मुश्किल में थे तब प्रणव मुखर्जी की कितनी करीबी धीरुभाई अंबानी से थी यह कांग्रेस की राजनीति का खुला पन्ना है। लेकिन नयी परिस्थिति में देश के तेल-गैस मंत्री मुरली देवडा मुकेश अंबानी के कितने करीबी हैं और देश के गृहमंत्री पी. चिदबरंम अनिल अंबानी से कितने करीबी हैं यह भी राजनीतिक गलियारे में किसी से छुपा नहीं है।

दस  जनपथ से अनिल अंबानी की दूरी भी किसी से छुपी नहीं है और अनिल अंबानी के मुनाफे के लिये मुलायम सिंह ने समाजवादी राजनीति को कैसे हाशिये पर ढकेल दिया यह भी किसी से छुपा नहीं है। लेकिन मनमोहन की इकनॉमी में जब संसदीय राजनीति ही हाशिये पर है तो फिर सरकार से ऊपर कॉरपोरेट हो इससे इंकार कैसे किया जा सकता है।

हो सकता है ए.राजा सीबीआई को खुल्लम-खुल्ला यही कह दें कि सुनील मित्तल और अनिल आंबानी की लॉबी स्पेक्ट्रम लाईसेंस में नहीं चली इसलिये उन्हें बली का बकरा बनाया जा रहा है। या फिर सरकार में जब कामकाज का तरीका ही जब यही बना दिया गया है कि लॉबिस्टों के जरिये कॉरपोरेट काम करें और लॉबिस्टों को कॉरपोरेट का नुमाइंदा मानकर सरकार नीतियों को अमल में लाये,क्योंकि हर कॉरपोरेट से मंत्रियों के तार जुड़े हैं तो सीबीआई क्या करेगी। 

मनमोहन इकनॉमिक्‍स में तो नीरा राडिया सरीखे लॉबिस्टो को भी बकायदा मंत्रालयों में काम करने का लाइसेंस दिया जाता है। और 2008 में जब पहली बार नीरा राडिया को ब्लैकलिस्ट में डाला गया तो उस वक्त कुल 74 लॉबिस्ट काम कर रहे थे जिसमें ब्लैक लिस्ट के नाम में सिर्फ नीरा राडिया नहीं बल्कि 28 दूसरे लॉबिस्टो के भी नाम थे।

यह भी हो सकता है राजा सरकार के अलग अलग मंत्रालयों की उस पूरी भूमिका को लेकर चर्चा छेड़ दें कि कैसे मुंबई एयरपोर्ट के लिये अनिल अंबानी का नाम भी शॉर्टलिस्ट किया गया था,लेकिन आखिरी प्रक्रिया में इसे सुब्बीरामी रेड्डे के बेटे जीवीके रेड्डी को दे दिया गया। हो सकता है ए.राजा ऊर्जा मंत्रालय के जरिये बांटे जा रहे थर्मल पावर प्रोजेक्ट का कच्चा-चिट्टा देकर सवाल खडा करें कि लाइसेंस देने के लिये घूसखोरी तो एक कानूनी प्रक्रिया है। जैसे एनटीपीसी ने बीएचईएल को छत्तीसगढ़ में कितनी रकम लेकर पावर प्रोजेक्ट लगाने की इजाजत दी। और जो सवाल सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर उठाये हैं कि आखिर राष्ट्रीयकृत बैंकों ने भी कैसे स्पेक्ट्रम लाईसेंस के नाम पर टटपूंजिया कंपनियों को 10-10हजार करोड़ रुपये लोन दे दिये।

हो सकता है ए.राजा सीबीआई को वह पूरी प्रक्रिया ही समझाने लगें कि कैसे विकास के नाम पर देश में अब कॉरपोरेट घराने ऐसे-ऐसे प्रोजेक्ट पर सरकार से हरी झंडी ले चुके हैं जिनका कोई बेंच मार्क ही किसी को पता नहीं है। जैसे दस साल पहले पावर प्रोजेक्ट लगाने के नाम पर सरकार से लाईसेंस लेकर बैकों से कितनी भी उधारी ले ली जाती थी और पावर प्रोजेक्ट का लाईसेंस पाने वाली कंपनी का अपना टर्नओवर चंद लाख का होता था।

लेकिन देश में बिजली चाहिये और बिना उसके विकास अधूरा है तो ऊर्जा मंत्री की उपलब्धि भी जब यह होती कि उसके जरिये कितने पावर प्रोजेक्ट आ सकते है तो फिर लेन-देन कितने का हो रहा है। बैंक कितना लोन किस एवज में दे रहा है,इसकी ठौर तो आज भी नहीं ली जाती है। अब सरकार की तरफ से सिर्फ इतना ही किया गया है कि पावर प्रोजेक्ट लगाने वाली कंपनी से पूछा जा रहा है कि वह प्रति यूनिट बिजली बेचेगी कितने में। जिसका आश्वासन आज भी कोई पावर प्रोजेक्ट कंपनी नहीं दे रही है।

हो सकता है राजा स्पेक्ट्रम लाइसेंस के बंटवारे के दौर में एसईजेड के लाइसेंस के बंदर बांट का किस्सा भी छेड़ दें और बताने लगें कि कैसे राडिया एसईजेड को लेकर भी किस-किस कॉरपोरट के लिये किस-किस मंत्रालय में घूम-घूम कर लॉबिग कर रही थी। और कैसे निखिल गांधी जब सबसे पहले एसईजेड के प्रपोजल के साथ सरकार के दरवाजे पर पहुंचे थे,तो मुकेश अंबानी ने उस प्रपोजल को ही रुकवा कर सात सौ करोड़ में निखिल गांधी से एसईजेड का ब्लू-प्रिंट ही खरीद लिया था।

यानी कब,कैसे किस-किस कॉरपोरेट घराने की तूती सरकार और मंत्री से गठजोड कर चलती रही है और विकास के नाम पर कॉरपोरेट को मुनाफा पहुंचा कर मंत्रालय की उपलब्धि बताने के अलावे कोई दूसरा रास्ता भी मनमोहन इकनॉमिक्‍स में नहीं है। क्योंकि नार्थ-साउथ ब्‍लॉक के बीच दुनिया की सबसे खूबसूरत रायसीना हिल्स पर अगर रेड कारपेट किसी के लिये बिछी है तो वह कॉरपोरेट के लिये।

तो आज ए.राजा सीबीआई से पूछताछ में क्या कहेंगे जानना सभी यही चाहेगें। लेकिन हो सकता है कि सरकार ना चाहे कि राजा बहकें और फिर  सीबीआई राजा को पूछताछ के साथ गिरफ्तार कर फिलहाल 90दिनो के लिये स्पेक्ट्रम घोटाले का केस लाक कर दें। तो इंतजार कीजिये।


पुण्य प्रसून बाजपेयी ज़ी न्यूज़ में प्राइम टाइम एंकर और सम्पादक हैं। प्रसून देश के इकलौते ऐसे पत्रकार हैं,जिन्हें टीवी पत्रकारिता में बेहतरीन कार्य के लिए वर्ष २००५ का ‘इंडियन एक्सप्रेस गोयनका अवार्ड फ़ॉर एक्सिलेंस’और प्रिंट मीडिया में बेहतरीन रिपोर्ट के लिए 2007का रामनाथ गोयनका अवॉर्ड मिला। उनसे punyaprasun@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.यह लेख उनके ब्लॉग http://prasunbajpai.itzmyblog.com  से साभार लिया जा रहा है.

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