झारखंड की गिरीडिह अदालत ने हाल ही में चिलखारी हत्याकांड मामले में जिन चार लोगों को फांसी की सजा मुकर्रर की है,उनमें राज्य के लोक कलाकार जीतन मरांडी भी हैं। जीतन मरांडी क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा (आरडीएफ)के सदस्य हैं। आरडीएफ के सचिव राजकिशोर और साईंबाबा की ओर से जीतन मरांडी की गिरफ्तारी पर जारी प्रेस विज्ञप्ती...
लोक कलाकार जीतन मरांडी को गिरडीह की निचली अदालत ने चिलखारी केस में दोषी करार देकर फांसी की सजा दे दी। 27 अक्तुबर 2007 को चिलखारी में झारखंड़ के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे की अनुप मरांड़ी सहित 19 लोगों की गोली लगने से मौत हुई थी। इस केस में जीतन मरांडी को जानबुझ कर फंसाया गया है क्योंकि एक जन कलाकार के रूप में जीतन मरांडी अपने संगठन झारखंड एभेन और क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा के जरिए राज्य की जनविरोधी नीतियों और दमनात्मक कार्यवाहियों की खिलाफत करता था।
वह विस्थापन, कारपोरेट लूट और राजकीय दमन के खिलाफत गीतों, नाटकों और लेखन के माध्यम से कर रहा था। सार्वजनिक मंचों पर इन गीतों के माध्यम से वह जन जागरूकता फैलाने के कारण सरकार की जनविरोधी की खिलाफत के कारण जीतन मरांडी कई बार जेल गया है। उसके ललकारते स्वर को रोकने के लिए इस बार उसे चिलखारी केस में फंसा दिया क्योंकि उसने प्रभात खबर में तीन कड़ियों में छपे लेख में झारखंड़ के नक्सलवादी आन्दोलन के कारणों को खंगालते हुएराज्य की जनविरोधी भूमिका और जनता के नक्सलवादियों से लगाव का खुलासा किया था। 5 अप्रैल 2008 को इस लेख की अन्तिम कड़ी छपते ही उसे रांची पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया जब वह रातू रोड़ में विस्थापन विरोधी जनविकास आन्दोलन की राज्य परिषद् की बैठक के बाद अपने घर लौट रहा था।
जीतन मरांडी पर सरकार ने पहले राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया जिसमें आरोप लगाया कि 1 अक्तुबर 2007को रांची में राज्यपाल भवन की समक्ष हुई राजनैतिक बंदी रिहाई रैली में उसने सरकार के खिलाफ उकसाउ भाषण दिया था। इसके बाद उसपर मानों केस लादने का सिलसिला सा शुरू कर दिया गया। चिलखारी केस के अलावा थाना गांव के दो केस,पीरटांड थाने में एक केस और तिसरी थाने में दो केस भी उस पर लाद दिए।
गौरतलब है कि पीरटांड और तिसरी थाने में दर्ज केस के दौरान तो जीतन मरांडी अलग-अलग केसों के सिलसिले में जेल में था। इससे सरकार की जीतन की आवाज को चुप कराने की मंशा को साफ हो जाती है। चिलखारी केस में भी पुलिस अधिकारियों ने पहले जीतन मरांडी के होने की सम्भावना से इन्कार किया था। चिलखारी घटना की रिपोर्ट करते हुए प्रभात खबर अखबार ने जीतन मरांडी को आरोपी ठहराते हुए उसकी तस्वीर प्रथम पृष्ठ पर छाप दी थी। बाद में प्रभात खबर के सम्पादक ने जीतन मरांडी से इस गलती की सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी थी।
उसी दौरान पुलिस उच्चाधिकारियों ने भी बयान दिया था कि चिलखारी केस का आरोपी जीतन मरांडी सांस्कृतिककर्मी जीतन मरांडी नहीं है बल्कि माओवादी कमांडर जीतन मरांडी है। परन्तु बाद में पुलिस ने सांस्कृतिक जीतन मरांडी और माओवादी कमांडर जीतन मरांडी दोनों को ही चिलखारी घटना में आरोपी बना दिया। सांस्कृतिक जीतन मरांडी को घटना में आरोपी बनाने के लिए तीन नए गवाहों को शामिल कर लिया। इस तरह जीतन मरांडी को फंसाने की साजिश रची गई।
चौबीस मार्च 2009 को जीतन मरांडी को चिलखारी केस की सैशन कोर्ट की पेशी में लाया गया था। जब जीतन मरांडी सैशन हाजत में अन्य बन्दियों के साथ बैठा था तो एक आदमी,जो खुद को गिरिडीह टाउन थाना प्रभारी बता रहा था,उससे आकर मिला और बाद में चला गया। बाद में सिपाही ने जीतन को जबरन अकेले ही सैशन हाजत से बाहर निकाला और उसे सैशन कोर्ट में ले गया। सैशन हाजत से निकलते ही गिरिडीह टाउन थाना प्रभारी ने वहां खड़े लोगों को कहा कि यह जीतन मरांडी है,इसे पहचान लो। बाद में सभी लोग जीतन के पीछे-पीछे सैशन कोर्ट तक गए। सैशन कोर्ट में जीतन मरांडी को बगैर हाजिरी के दस्तखत करवाए ही वापिस लौटाने की कोशिश की जिसपर जीतन मरांडी ने ऐतराज भी जताया।
दरअसल पुलिस ने केस जिन गवाहों को जीतन मरांडी की पहचान करवा दी थी, उन्होनें ही बाद में जीतन मरांडी के घटना स्थल पर मौजूद होने की गवाही दी। जीतन मरांडी ने उपरोक्त घटना के बारे में न्यायालय को अवगत भी करवाया था।
गौरतलब है कि इन गवाहों में चिलखारी केस के मृतकों के परिवार का एक भी सदस्य नहीं हैं। सभी बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के कार्यकर्ता हैं। इन्ही गवाहों के बयान के आधार पर निचली अदालत ने जीतन मरांडी को फांसी की सजा दे दी। जीतन मरांडी की सजा भारत के अपराधिक न्याय प्रणाली के सरकार और पुलिस की कठपुतली होने का पर्दाफाश करती है जो सरकार के विचार से असहमत लोगों को,अन्याय के खिलाफ और जनहित में आवाज उठाने वाले लोगों को खासकर भारत के सर्वाधिक शोषित और उत्पीड़ित आदिवासीयों,दलितों,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को फांसी की सजा देती है।
चिलखारी केस में फांसी की सजा पाने वाले जीतन मरांडी,मनोज रजवार,छत्रापति मंड़ल और अनिल राम भी आदिवासी,दलित और पिछड़े जातियों के अत्यन्त गरीब परिवारों से हैं। न्यायिक प्रक्रिया और आपराधिक न्याय प्रणाली के दुरूपयोग कर जीतन मरांडी को दिलवाई गई फांसी की सजा दिलवाने के केस भारत में कोई नई बात नहीं है। इससे पहले आंध्र प्रदेश के क्रान्तिकारी नेता किस्ता गौड़ और भूमैया को भी फांसी की सजा दी गई थी। बारा केस में पांच लोगों को फांसी की सजा दे दी।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश भगवती ने माना है कि ‘कई बार पुलिस गवाहों को तैयार करती है ताकि पुलिस की विचार को सही प्रमाणित किया जा सके।’इसी केस में उच्चतम न्यायालय ने प्रावधान किया था कि फांसी की सजा ‘दुर्लभतम से दुर्लभ' केस में दी जाए। इस निर्णय के बावजूद भारत की न्यायायिक प्रणाली में मौत की सजा रेवडियों की तरह बांटी जा रही है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2006 से 2007 के दौरान कम से कम 140 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी। विश्व के 139 देश फांसी की सजा समाप्त कर चुके हैं। परन्तु विश्व के सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने का दावा करने वाली सरकार फांसी की सजा को खत्म करने को तैयार नहीं है क्योंकि वह फांसी की सजा का सर्वाधिक प्रयोग आन्दोलनकारियों और समाज परिवर्तन का सपना देखने वाले लोगों की आवाज चुप कराने के लिए करती है ताकि वह शोषण और लूट कायम करने के लिए बनाई जा रही नीतियों को बगैर विरोध के लागू कर सके।
क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा मांग करता है कि जीतन मरांडी सहित अन्य लोगों की फांसी की सजा तुरन्त रद्द की जाए तथा उन्हें बाइज्जत बरी किया जाए। जीतन मंराड़ी के खिलाफ साजिश करने वाले राजनैतिज्ञों,पुलिस अधिकारियों को सजा दी जाए। फांसी की सजा खत्म किया जाए। मोर्चा सभी प्रबुद्ध लोगों, जनतांत्रिक संगठनों से अपील करता है कि जीतन को न्याय दिलाने की लड़ाई को तेज करने के लिए एकजुट हो।