रवीन्द्रनाथ ठाकुर के 150वें जन्मवर्ष पर तोता-कहानी का मंचन
सौ बरसों से भी पहले की लिखी रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कहानी में ये ज़रूर जोड़ा गया कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने शिक्षा व्यवस्था की इस विसंगति पर प्रहार करके ही नहीं छोड़ दिया बल्कि सही में शिक्षा कैसी होनी चाहिए, ये विश्वभारती और शांतिनिकेतन की स्थापना करके बताया...
विनीत तिवारी
उन्मुक्त, स्वच्छंद उड़ने वाला तोता सोने के पिंजरे के पीछे किताबों के ढेर में दब जाता है। राजा कुछ समय बाद निरीक्षण कर देखता है कि अब तोता टें-टें-टें नहीं करता, उड़ने के लिए फड़फड़ाता नहीं, तो वो सोचता है कि ज्ञान ने इसे सभ्य व सुसंस्कृत बना दिया है लेकिन हक़ीक़त ये होती है कि तोता कुछ सीखा नहीं होता। उल्टे वो सब भूल गया होता है जो उसे पहले आता था - प्रकृति से प्रेम, आकाश में उड़ान, अपनी जुबान, जो भी उसका अपना सहज था, वो सब।
सौ बरसों से भी पहले की लिखी रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कहानी में ये ज़रूर जोड़ा गया कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने शिक्षा व्यवस्था की इस विसंगति पर प्रहार करके ही नहीं छोड़ दिया बल्कि सही में शिक्षा कैसी होनी चाहिए, ये विश्वभारती और शांतिनिकेतन की स्थापना करके बताया। नाटक के हिस्से के तौर पर शांतिनिकेतन के बारे में जानकारी देने में नाटक की पकड़ ढीली पड़ने का रिस्क था लेकिन पोस्टरों और कविता के माध्यम का खूबसूरत इस्तेमाल करते हुए तथा दर्शकों में वैकल्पिक शिक्षा को जानने की उत्सुकता के पलों को समझते हुए ये हिस्सा भी काफी रोचक रहा।
पढ़ते हैं बच्चे जहाँ पेड़ों के नीचे
गिलहरी भी उनकी कक्षा में बैठ जाती है पीछे
आम की कैरी टपकती है उत्पल के सर पर
टीचर के पीछे उड़ती है तितली फरफर
ऐसी शिक्षा में लगता है बच्चों का मन
कहते हैं उस जगह को शांतिनिकेतन।
14 जून 2011 को हुए इस नाटक का निर्देशन सारिका श्रीवास्तव ने किया। पटकथा लेखन एवं निर्देशन में डॉ. जया मेहता एवं विनीत तिवारी ने सहयोग किया। संगीत दिया अभिनय करने वाले बच्चों में से ही एक राज ने। नाटक में सूत्रधार जैसी भूमिका में बोलती क़िताब बनकर आयी महिमा, नाटक के मुक्ष्य क़िरदार तोते की भूमिका में पीयूष ने और तोते को पढ़ाने वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति के प्रकाण्ड विद्वानों की भूमिका में अमन, खुशी और सुनीता को काफी सराहना मिली। गुलरेज़, सुलभा, रुचिता, शारदा मोरे, अरविंद बौरासी, अशोक दुबे, प्रमोद बागड़ी, आस्था तिवारी, विनीता हेमनानी ने मंच के पीछे की जिम्मेदारियाँ निभाईं।
शिविर के दौरान ही रोशन नायर ने एक तरफ़ बच्चों को डान्स करना और शरीर के अंगों की हिचक खोलना सिखाया तो दूसरी तरफ परमाणु ऊर्जा, फुकुशिमा, चेर्नोबिल और जैतापुर जैसे मसलों को आसान तरह से बच्चों की उत्सुकताओं में शरीक कर दिया। दिल्ली से आये प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक ने बच्चों को 21 मई 2011 को बगैर चित्रकारी सीखे बड़े ही आसान और सरल तरीके से पोस्टर बनाने सिखाये, जिसमें बच्चों ने बहुत सारे पोस्टर बनाये।
उसके पूर्व 20 अप्रैल को जैतापुर व चेर्नोबिल के संबंध में बच्चों को जानकारी दी गई जिसके आधार पर उन्होंने परमाणु विनाश के विषय पर अनेक पोस्टर बनाये।पंखुरी मिश्रा ने बच्चों एवं उनके अभिभावकों को शिक्षा अधिकार अधिनियम की जानकारी दी और बच्चों के भविष्य के लिए इस कानून का इस्तेमाल करने की अपील की। अशोक दुबे ने बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए याद्दाश्त बढ़ाने एवं आवाज़ में भाव-प्रवणता लाने के व्यायाम बताए और इस रंगशाला को ”मस्ती के मस्तानों की पाठशाला“ का नाम दिया। बच्चों के शिविर के दौरान बनाये गए पोस्टर भी इस मौक़े पर प्रदर्शित भी किये गए।
नवीन माध्यमिक शासकीय विद्यालय, मोतीलाल की चाल के हेडमास्टर श्री ओ.पी.मोहनिया और श्री चंद्रप्रकाश महावर, प्रभारी, जनशिक्षा केंद्र, नेहरू नगर ने इस कार्यशाला हेतु विद्यालय का हॉल उपलब्ध करवा कर सहयोग प्रदान किया।कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कॉमरेड पेरीन दाजी व इकाई अध्यक्ष श्री विजय दलाल ने शिविर के सफल संचालन के लिए बच्चों और सारिका को बधाई दी और सभी बच्चों को इप्टा के शिविर के प्रमाण-पत्र वितरित किये।
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