न छुट्टी मिलती है न सैलरी, गर्भपात होने पर भी नहीं देते आराम का मौका, काम नहीं करने पर सेना अधिकारी और परिजन करते हैं पिटाई
संबंधित अधिकारियों समेत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजी गयी शिकायत, पर नहीं हो रही है सुनवाई, संगठन ने की अब हाईकार्ट जाने की तैयारी.....
सेनाधिकारियों के यहां काम करे बंधुआ मजदूर, 143 ने जमा किया एफिडेविट |
जनज्वार। आर्मी फोर्स ऑफिसर्स के घरों में बेगारी करते-करते मजदूर परिवारों की तीन पीढ़ियां गुजर गईं। एडवांस के रूप में मिलता है मजदूरों को केवल एक कमरा। मजदूर काम नहीं कर पाते तो उनके बच्चों से लिया जाता था जबरन काम। पहले अंग्रेजों के घरों में की गुलामी फिर हिंदुस्तानी ऑफिसरों के बने गुलाम।
नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ़ बोंडेड लेबर ने दिल्ली के इंडिया गेट के समीप बसे प्रिंसेस पार्क में लगभग 3 एकड़ की जमीन पर बने 205 टूटे—फूटे घरों जिन्हें सर्वेंट रूम कहा जाता है, के मजदूरों से बात की तब पता चला की दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों से आर्मी अफसरों के घरों में कई दशकों से गुलामी (बंधुआ मजदूरी) करवाई जा रही है। गुलाम मजदूरों की संख्या 143 है।
काम करने वाले मजदूर बताते हैं कि आर्मी अफसरों के ऑफिस और घरों में इन मजदूरों से गुलामों की तरह काम कराया जाता है। मजदूर यहां घरेलू कामगार, सफाई मजदूर, माली और धोबी के रूप में काम करते हैं।
हर परिवार का एक मेंबर अफसरों की गुलामी करता जिसे बेगारी कहते हैं, जबकि संविधान के आर्टिकल 23 में बेगारी एक गैरक़ानूनी अपराध है। काम के बदले मजदूरो को कोई भी दाम (वेतन, मजदूरी, तनख्वाह) नहीं मिलता है। मजदूरों के पास दिल्ली में रहने को घर न होने व गरीबी की वजह से मजदूर, मालिक और मेस कमेटी के चंगुल में फंसे हैं। इन मजदूरों की गुलामी का इतिहास आजादी के 2 साल पहले शुरू ही शुरू हो गया था।
आजादी से पहले 1945 में कुछ दलित लोगों से प्रिंसेस पार्क में ही चौकीदारी का काम करवाया जाता था। गुलामी के शिकार हुए इन मजदूरों ने बताया की किसी समय में प्रिंसेस पार्क अंग्रेजों के घोड़े का अस्तबल हुआ करता था. धीरे-धीरे मजदूर काम की तलाश में आते गए और प्रिंसेस पार्क की मेस कमेटी के जाल में फंसते गए और बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम, 1976 के पारित होने पर भी उन्हें आजादी नहीं मिली।
लाजू (बदला हुआ नाम) नामक एक महिला ने बताया की उसका जन्म ही गुलामी की चार दीवारों में हुआ। पहले उसने अपने नाना को फिर माता-पिता और अपने पड़ोस के कई लोगों को गुलामी करते हुए देखा है। अपनी बंधुआ बनने की कहानी कहते हुए लाजू कहती है, 'माँ की एवज में आये दिन मालिकों के घर बंधुआ मजदूरी करते करते—करते बचपन में ही घरेलु कामगार बन गई।
लाजू गुलामी में ही ब्याही गई। पहली गुलामी मालिक और दूसरी गुलामी पति की करनी पड़ी। बंधुआ मजदूरी की शिकार लाजू तब फूट-फूट के रोने लगती है वह बताती है, 'गर्भपात के समय में भी मालिक और उनकी पत्नी ने मुझ पर रहम नहीं किया। पहले घर का पूरा काम कराया फिर उसे बड़ी मुश्किल से दवा लेने जाने दिया। कई बार मालिकों से परेशान होकर आत्महत्या का भी प्रयास किया।'
तीन पीढ़ियों से रह रहे हैं इस हालत में, इस एक छत के भरोसे |
रेखा देवी (बदला हुआ नाम) के अनुसार वो एक एक सफाई कामगार है। रेखा की सास ने जिंदगीभर गुलामी करके अपनी बहू को विरासत में ये गुलामी की नौकरी दे दी। जब बेगारी का ठीकरा रेखा के सर फोड़ा गया तो उसने एक बार काम का मेहनताना मांगने की हिम्मत की, किन्तु उसको मेस कमेटी की ओर से मिली धमकी ने फिर से उसे उस उदास मौसम की तरफ धकेल दिया जहाँ दास बनकर ही जीना था।
रेखा के मुताबिक, मालिकों द्वारा बताए काम को पूरा न करने और रेस्ट कर सो जाने की स्थिति में मालिकों द्वारा उसे इतना पीटा गया कि उसका हाथ ही टूट गया। मेस कमेटी ने रेखा की कोई सहायता नहीं की, उल्टा रेखा को ही पुलिस कार्रवाही से यह कहके रोक लिया की तुम्हारे घर पर ताला लगाने जा रहे है।
रेखा कहती हैं, एक छत की मज़बूरी गुलामी में जीने को मजबूर करती रही। आज भी रेखा एक गुलाम की भांति मेस कमेटी के आदेश पर सफाई के काम को कर रही है।
कपड़े धुलाई का काम करने वाली अनुमति देवी बताती हैं, हम मजदूर बाद में हैं, पहले मजबूर है और यही हमारी गुलामी का प्रमुख कारण है। हमारी पीढ़ियां गुजर गईं सेना मालिकों की गुलामी करते-करते।
अनुमति उम्मीद जताते हुए कहती हैं, 'प्रधानमंत्री ने जब सबको आवास देने की बात की तो एकाएक हमें लगा की हमें जब घर मिल जायेगा तो शायद उस दिन हमारी मुक्ति होगी, लेकिन वो दिन आज तक नहीं आया। पता नहीं कौन सी योजना है जिससे बेघर और गरीबों को घर मिलता है।'
अनुमति देवी सेना अधिकारियों के कपड़े धोते और प्रेस करते करते बूढी हो चुकी हैं। अनुमति कहती हैं, 'पहले पति कमा के मेरा पेट भरता था अब बेटा भरता है। मैं आज भी बेगारिन हूँ और इन अमीरों की सेवा करती हूं। यदि पेट भरने के लिए मालिकों के भरोसे रह जाते तो अब तक भूख से मर जाते। हमें हमारे काम का आज तक कोई दाम नहीं मिला। एक टूटी छत देकर हमसे हमारी मज़बूरी का फायदा उठाकर काम लिया गया। अगर हमारे काम का हमें भी दाम मिलता तो आज हमारा भी महल जैसा घर बन गया होत।'
गौरतलब है कि हाल ही में रक्षा मंत्रालय की ओर से एक फरमान जारी कर बंधुआ मजदूरों को उनके घर खाली करवाकर उनको भगाया जा रहा है।
मोनिका नामक कामगार ने बताया कि प्रिंसेस पार्क में म्यूजियम बनने जा रहा है। मोनिका पूछती हैं, 'जिन्दा इंसानों को उजाड़कर सरकार शहीदों की याद में म्यूजियम बना रही है। यही है हम मजबूर कामगारों के जिंदगी की कीमत और यही है हमारे लिए सामाजिक न्याय।'
नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ़ बोंडेड लेबर के संयोजक ने बताया कि उन्होंने ईमेल करके उपायुक्त और चाणक्यपुरी उपखंड अधिकारी को शिकायत पत्र भेजा है और बंधुआ मजदूरों के मुक्ति एवं पुनर्वास की मांग की है। किन्तु प्रशासन की कान पर जूँ तक नहीं रेंगी। गोराना ने शिकायत की एक प्रति राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी भेजी है।
देखें वीडियो :
शरमनाक.
ReplyDeletevishvaas nhi hota aaj ke time me bhi ye sab hai.
ReplyDeleteJustice for bonded labourers..Please support to Bonded labourers for social justice.
ReplyDeleteYe adhuri information hai
Delete203 servant quarter hai
14 servent quarter Shopkeepers ko bhi rehne Ke liye diye Gaye .
189 bandhua majdur hai .
Kripya sahi information dijiye
46 kamgaro ko bhi ginti main lijiye
Ye Sab logo ne bhi 143 kamgaro ki tarah gulami ki hai .
Humble request
Ye adhuri information hai
ReplyDelete203 servant quarter hai
14 servent quarter Shopkeepers ko bhi rehne Ke liye diye Gaye .
189 bandhua majdur hai .
Kripya sahi information dijiye
46 kamgaro ko bhi ginti main lijiye
Ye Sab logo ne bhi 143 kamgaro ki tarah gulami ki hai .
भयावह! केवल इसलिए नहीं की सेना द्वारा किया जा रहा है यह ज्यादती, बल्कि यदि सही रिपोर्ट है तो, यह सामान्य मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है, बल्कि वहशिपना है! सामंतवादी शोषण भी शर्मा जाये!
ReplyDeleteभारतीय सेना इसका जवाब अवश्य दें. कुछ भी सच्चाई हो तो इन बंधुआ मजदूरों को मुक्ति दिलाएं! भारत सरकार से संघर्षरत सैनिक, जो #OROP के लिए तकरीबन 2 वर्षों से लड़ रहे हैं, ऐसा बर्ताव दुसरे शोषित इंसान से ऐसा नहीं कर सकते! सुधारें खुद को!
Modi ji kabhi aisi news b sun Lia kro
ReplyDeletePls i requested to all support us and share our this article everywhere u have any link
ReplyDeletebcoz hum modi ji k against nahi h but jab humara desh ek taraf SAB KA SAATH SABKA VIKAS ki baat karta h to fir humare aur humare childrens k vikas me rok kyo
They wants only justice for thier livelihoods/ children education / Jobs / security / basic fundamental rights / treatments of older ones at their nearby , they should be compensated .
ReplyDeleteHi guys my self vijay kumar ( J.D) pls i request to all we dont want to go any where from new delhi bcoz our childrens school is near by so pls think about our childrens education they are our future .
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