पिछले 15 वर्षों से बकाये के लिए मजदूर—किसान 4 दिनों से दे रहे थे धरना, दो ने किया आत्मदाह का प्रयास और एक को लगी गोली, दर्जनों हुए घायल और सरकार गांधी के सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर पड़ोस में मना रही थी महोत्सव...
बिहार की राजधानी पटना से करीब 155 किमी दूर पूर्वी चंपारण से 1917 में महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की शुरुआत की थी। यह उनका पहला अहिंसात्मक आंदोलन था। कल गांधी की उसी धरती पर किसान और मजदूर पुलिस की लाठियां, गोलियां खाते रहे, औरतें और बच्चे दौड़ा—दौड़ाकर मारे जाते रहे, लेकिन गांधी के सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर उत्सव मना रही सरकार और उसके मुखिया के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
मोतिहारी शुगर मिल लेबर यूनियन पिछले चार दिनों से 15 वर्षों से मिल पर बकाया भुगतान के लिए धरना—प्रदर्शन कर रहे थे। इस मुद्दे पर सरकार की बेपरवाही से तंग दो मजदूर नेताओं नरेश श्रीवास्तव और सूरज बैठा ने खुद पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा ली। ये दोनों मजदूर नेता 60—70 फीसदी तक जल चुके हैं और फिलहाल पटना मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए कल से भर्ती हैं।
गौरतलब है कि कल 10 अप्रैल, 2017 को गांधीजी के पोते गोपाल गांधी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों ही चंपारण शताब्दी समारोह के दौरान ज्ञानभवन में उस वक्त मौजूद थे, जब मजदूर और किसान पुलिसिया ज्यादती के शिकार हो रहे थे। इस दौरान एक को लगी गोली और 24 लोग घायल हो गए।
गौरतलब है कि जिस मामले को लेकर पिछले कई दिन से मजदूर—किसान धरना—प्रदर्शन कर रहे थे वह मामला 15 साल पुराना है। 2002 में मोतिहारी शुगर मिल बंद हो गई थी। तभी से मजदूरों का पैसा फैक्टरी में बकाया है, वहीं किसानों के 18 करोड़ रुपए कंपनी मालिकों से सरकार नहीं दिलवा पायी है।
संयोग से भारत के कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह भी इसी क्षेत्र से सांसद हैं और यहां के किसानों का ही इतना बुरा हाल है। ऐसे में नेता चाहे गांधी को याद कर लें या सुभाष चंद्र बोस को पर उनके मूल्यों पर कितना चल पाते हैं यह घटना साबित करने के लिए काफी है।
बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है.
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