महिला लेखिकाओं के बारे में कुलपति वीएन राय ने अभद्रता से लबलबाती जो टिप्पणी की थी उस पर मैत्रयी पुष्पा की प्रतिक्रिया 'वीएन राय से बड़ा लफंगा नहीं देखा' आने के बाद अब युवा लेखिका विपिन चौधरी की टिप्पणी
विपिन चौधरी
इतना शोर क्यों है? एक पुरूष ने माहिलाओं को गाली ही तो दी है.यह तो लगभग हर झल्लाये पुरूष के मुंह से सुना जा सकता है.किसी भी महिला के चरित्र पर ऊँगली उठाना पुरूष के लिये सबसे सरल काम है। तो ऐसा क्या कह दिया विभूती नारायण राय ने। उन्होंने बस इतना किया है कि अपना नकाब खुद ही उतार दिया और अपने ही पैरों से चल कर उस पंक्ति में जा खडे हुए,जहाँ समाज के जड़ और पुरातनपंथी पुरूष खडे हैं.
विपिन चौधरी
इतना शोर क्यों है? एक पुरूष ने माहिलाओं को गाली ही तो दी है.यह तो लगभग हर झल्लाये पुरूष के मुंह से सुना जा सकता है.किसी भी महिला के चरित्र पर ऊँगली उठाना पुरूष के लिये सबसे सरल काम है। तो ऐसा क्या कह दिया विभूती नारायण राय ने। उन्होंने बस इतना किया है कि अपना नकाब खुद ही उतार दिया और अपने ही पैरों से चल कर उस पंक्ति में जा खडे हुए,जहाँ समाज के जड़ और पुरातनपंथी पुरूष खडे हैं.
विभूति पूर्व पुलिस अधिकारी हैं,एक विश्वविधालय के कुलपति हैं और सबसे बडी बात की वह तीन उपन्यास लिख कर साहित्यकारों की जमात में भी शामिल किये जा चुके है.इतना ही नहीं कई नामचीन पुरस्कारों के तमगे भी अपने सीने पर लगा चुके है. यानी दोहरी नहीं बल्कि उनकी समाज के प्रति तीन तरह से जिम्मेदारी बनती है।
बचपन में पढा था,विद्या विनय देती है और फल वाले वृक्ष व् शालीन इन्सान विनम्र होकर झुक जाते हैं। पर घोर दुनियादारी में उतरते ही पता चाला कि बचपन में पढे-पढाये सारे वाक्यों पर काफी पहले से पानी पड़ा हुआ है.विभूती नारायण सत्ता के नशे में है और पिछले काफी दिनों से यह नशा उनके सर चढ कर बोल रहा है और अब उसके मद में वे हिंदी लेखिकाओं को छिनाल कहने पर उतर आते है।
राह चलते किसी आदमी के मुँह से किसी महिला के प्रति अपमानजनक टिप्पणी सुनकर लोग जुते-चप्पल उतार लेते हैं. फिर एक कुलपति जब महिला के लिये अपशब्द कहता है तो उसे क्योंकर बख्श दिया जाऐ? क्या सिर्फ इसीलिये की वे ऊँची कुर्सी पर हैं या फिर उनकी पहुँच ऊपर तक है। इसी तरह से ऊँचे पायदान पर आसीन व्यक्तियों के प्रति हमारी सरकारें और न्यायालय तक नरम रहते हैं,जिसका फ़ायदा यह लोग उठाते हैं.ज़रा पिछले मामलों पर गौर करे तो पाएंगे की इन तथाकथित शालीन अपराधियों की सजा भी शालीन होती है.
महिलाएं जब अपने बारे में लिखती हैं तब वह इतनी जागरूक हो चुकी होती हैं कि वे जीवन के सच को समाज के सामने रख सकें.इसलिए वे साहस के साथ लिखती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो पुरुषों की करतूतों को सरेआम करती हैं,जिससे पुरूष तिलमिला उठता है। यदि कोई औरत इस तरह के वाकये लिखती है तो वह उसे शौकिया या सनसनी फैलाने के लिये नहीं लिखती। कहीं न कहीं वह आने वाले पीढी को जीवन के प्रति आगाह भी करती है। यहाँ मैं उन महिलाओं का जिक्र नहीं कर रही जो पुरूष को अपने आगे बढने के लिये इस्तेमाल करती हैं.सच तो यह है कि बिना प्रतिभा के कोई भी ज्यादा देर नहीं टिक सकता है, सबको अपनी बनाई राह पर ही चलना पड़ता है.
विभूति इस शब्द का इस्तेमाल कर समूची नारी जाति पर आरोप मढ़ते हैं.उन्होंने स्त्री पुरुष के संबंधो के संदर्भ में महिलाओं को छिनाल कहा.तो कोई उनसे पूछे की उनके साथ वाले पुरूषों के लिये वे शब्दकोश में से कौन सा शब्द चुनेंगें,आखिर बिस्तर पर महिला के साथ कोई न कोई तो होगा ही।
लेखिकाओं के हाथ में कलम रूपी औज़ार है जिस का इस्तेमाल करना वह सीख गयी हैं.सदियों पुरानी पुरूष सत्ता तले दबी हुई नारी जब लिखती है तो परत दर परत अपने को तराशती,तलाशती है.मगर जब बेवफाई की बात आती है तो ऊँगली महिला पर उठती है.
भारी अफ़सोस है की विभूति नारायण राय को ना विद्या विनय दे सकी,ना पुलिस का अनुशासन ही वे ढंग से सीख सके और ना ही कुलपति जैसी शालीन कुर्सी की गरिमा को वे अपने भीतर समाहित कर सके। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति,हिंदी में लिखने वाली लेखिकाओं का पूरी दुनिया में महिमामंडन कर रहे हैं, यह संदेश देते हुए कि हमारे हिंदी में लेखिकाओं का एक तबका ऐसा है जो बेवफाई करता है और उसे उजागर भी करती है.अपनी पहचान की कई महिलाओं के बारे में वे भीतरी तौर पर सब जानते होगें पर वे छिनाल नहीं है, छिनाल तो केवल हिंदी की लेखिकाऐं हैं मतलब ढका छुपा सब ठीक और सचाई प्रकट होने पर सब कुछ गलत।
कृष्णा सोबती जब अपने उपन्यास मित्रो -मरजानी में जब अपनी शारीरिक इच्छाओं को उजागर करने वाली लड़की की बात करती है तो उससे कोइ छिनाल नहीं कह सकता । साहित्य की एक गरिमा है उसी को ध्यान में रख कर लिखा-पढ़ा जाता है,उसी तरह साहित्य को समझने की भी एक व्यापक सोच है.पर जब सामंतवादी पुरुष नजरीये से विभूती नारायाण सोचते है तो पता लगता है की उनकी सोच का दायरा काफी तंग है.
जब हंस में कई पुरूषों ने अपनी बेवफाई उजागर की तो विभूती जी मौन क्यों रहे, तब क्यों नहीं पुरूषों की वफादरी पर उन्होनें ऊँगली ऊँठाई । अब तो उनके पुरे कार्यकाल पर संदेह होने लगा है। जिस तरह का माहौल उन्होनें अपने कुलपति बनने पर बनाया वह तो सबके सामने है ही और अब तो लगता है कि उनके ग्रहों की दशा ही गडबडा गयी है.
जब हंस में कई पुरूषों ने अपनी बेवफाई उजागर की तो विभूती जी मौन क्यों रहे, तब क्यों नहीं पुरूषों की वफादरी पर उन्होनें ऊँगली ऊँठाई । अब तो उनके पुरे कार्यकाल पर संदेह होने लगा है। जिस तरह का माहौल उन्होनें अपने कुलपति बनने पर बनाया वह तो सबके सामने है ही और अब तो लगता है कि उनके ग्रहों की दशा ही गडबडा गयी है.
नए ज्ञानोदय के प्रश्नगत साक्षात्कार के पूरे भाग को उद्धृत करें -
ReplyDeleteaap ka kary kar deeya hai.
ReplyDeletevipin ji aapne accha likha hai...badhai
ReplyDeleteaapne bilkul theek kaha hay.. par is tarha ki batein ek purush ke mun se sun kar khud ke purush hone par sharm aati hay... zara sochiye ki jab ye vyakti police mein rahe honge to is masikta ke sath mahilaon par ktine zulm kiye honge...
ReplyDeleterekhtey ke ek tumhi nahi ustaad gaalib ( gaalib nahi bibhuti )
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