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Jun 15, 2011

अनशनकारी संत की मौत से फिर खुली सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों की पोल


टीवी चैनल्स पर अपनी आभा बिखेरने के शौकीन कई संत तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, रामसेतु, गऊ व गंगा बचाओ जैसे आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाने वाली भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेता भी अपने वोट साधने के उद्देश्य से बाबा रामदेव के आगे-पीछे होते दिखाई दे रहे थे...

निर्मल रानी

स्वामी निगमानंद
हरिद्वार स्थित मातृ सदन के संत स्वामी निगमानंद गंगा नदी की रक्षा का संकल्प निभाते हुए इस दुनिया को अलविदा कह गए। मातृ सदन हरिद्वार स्थित संतों का वह आश्रम है जो समय -समय पर गंगा नदी की स्वच्छता व पवित्रता की खातिर और उसे प्रदूषण व पर्यावरण के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए समय-समय पर संघर्ष करता रहता है। मातृ सदन से जुड़े संत मीडिया प्रचारआर्थिक सहायता अथवा राजनैतिक सर्मथन के बिना ही गंगा नदी की स्वच्छता एवं निर्मलता को बरकरार रखने के अभियान में लगे रहते हैं।

यहां के संतों ने गंगा नदी में हो रहे अवैध खनन को रोकने का संकल्प लिया है। जो लोग गत दो तीन दशकों से हरिद्वार, ऋषिकेश तथा गंगा के आसपास के किनारे के क्षेत्रों से इत्तेफाक रखते हैं वे जानते होंगे कि कुछ समय पहले तक गंगा नदी के दोनों ओर स्टोन क्रशर माफिया ने अपने अनगिनत क्रशर लगा रखे थे। यह क्रशर गंगा नदी में बह कर आने वाले तथा नदी के किनारे के पत्थरों को तोड़-पीस कर अपना व्यापार चला रहे थे।

परिणामस्वरूप ऐसे सभी क्षेत्रों में हर समय आकाश में धूल मिट्टी उड़ा करती थी तथा अवैध खनन के कारण गंगा नदी भी अपने प्राकृतिक स्वरूप से अलग होने लगी थी। यह मातृ सदन के संतों के संघर्ष का ही परिणाम था कि उन्होंने अनशन,धरना तथा आमरण अनशन तक करके सरकार व न्यायालय का ध्यान बार-बार इस ओर आकर्षित किया। इसके परिणामस्वरूप तमाम स्टोन क्रेशर बन्द भी कर दिए गए।
लेकिन कुछ ऊंची पहुंच रखने वाले क्रशर मालिक अभी भी अवैध खनन का अपना धंधा जारी रखे हुए थे। इन्हीं क्रशर को बंद कराने के लिए मातृ सदन के संत निगमानंद ने 2008 में आमरण अनशन किया था। 73 दिनों के इस आमरण अनशन के कारण वे उस समय भी कोमा में चले गए थे। उसी समय से उनका शरीर काफी कमज़ोर हो गया था तथा शरीर के कई भीतरी अंगों ने काम करना या तो बंद कर दिया था या कम कर दिया था। लेकिन मानसिक रूप से वे चेतन दिखाई देते थे। अपनी इस अस्वस्थता के बावजूद गंगा रक्षा अभियान का उनका संकल्प बिल्कुल पुख्ता था। 

वर्ष 2008 के अनशन के बाद भी जब गंगा को प्रदूषित करने व क्षति पहुंचाने वाले कई क्रेशर बंद नहीं हुए तो 19 फरवरी 2011 से वे अपनी अस्वस्थता के बावजूद पुन: अनशन पर बैठ गए। उनके जीवन का यह अंतिम गंगा बचाओ आमरण अनशन 27अप्रैल को उस समय समाप्त कराया गया जब उत्तराखंड राज्य की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अनशन के 68वें दिन हुई संत निगमानंद की इस गिरफ्तारी का कारण राज्य सरकार द्वारा उनकी जान व स्वास्थ की रक्षा करना बताया गया और उन्हें स्वास्थ लाभ के लिए हरिद्वार के जि़ला अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब यहां भी उनका स्वास्थय नहीं सुधरा तब उन्हें देहरादून के जौली ग्रांट स्थित हिमालयन इंस्टिच्यूट हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया। यहां वे 2 मई 2011 से पुन: कोमा में चले गए। इसी के साथ-साथ उनकी चेतना भी जाती रही।
अस्पताल द्वारा उनके स्वास्थ के संबंध में 4 मई को जारी की गई रिपोर्ट में चिकित्सकों द्वारा इस बात का भी खुलासा किया गया कि उनके शरीर में कुछ ज़हरीले पदार्थ पाए गए हैं। इस रिपोर्ट के बाद मातृ सदन के संतों व उनके समर्थकों को इस बात का संदेह होने लगा कि संत निगमानंद जैसे आमरण अनशनकारी को ज़हर देकर मारने का प्रयास किया जा रहा है। और आखिरकार आमरण अनशन के कारण शरीर में आई कमज़ोरी, चेतन अवस्था का चला जाना तथा शरीर में ज़हरीले पदार्थों का पाया जाना जैसे सिलसिलेवार घटनाक्रमों ने इस महान एवं समर्पित संत को 13 जून को हमसे छीन लिया। यह भी एक अजीब इत्तेफाक है कि संत निगमानंद का निधन जिस हिमालयन इंस्टिच्यूट हॉस्पिटल देहरादून में हुआ उसी अस्पताल में योग गुरु बाबा रामदेव भी अपने विवादित अनशन के परिणामस्वरूप आई कमज़ोरी के चलते भर्ती थे।

रामदेव के उसी अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान वहां तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों का तांता लगा हुआ था। टी वी चैनल्स पर अपनी आभा बिखेरने के शौकीन कई संत तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, रामसेतुगऊ व गंगा बचाओ जैसे आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाने वाली भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेता भी अपने वोट साधने के उद्देश्य से बाबा रामदेव के आगे-पीछे होते दिखाई दे रहे थे। इनमें से कोई भी साधु-संतकोई भी भाजपाई नेता अथवा उत्तराखंड सरकार का कोई भी प्रतिनिधि संत निगमानंद से मिलने व उन्हें देखने की तकलीफ उठाना नहीं चाह रहा था। 

संतों या नेताओं से क्या शिकवा किया जाए उन्हें देखने व उनकी आवाज़ को बुलंद करने के लिए तो वह मीडिया भी नहीं पहुंचा जोकि उसी अस्पताल के बाहर 24 घंटे डेरा डाले हुए था तथा बाबा रामदेव की सांसें व उनके पल्स रेट गिन रहा था। कुछ लोगों का तो यह भी आरोप है कि हिमालयन हॉस्पिटल में बाबा रामदेव जैसे वीआईपी एवं पांच सितारा अनशनकारी के भर्ती होने की वजह से ही पूरे अस्पताल का ध्यान रामदेव के स्वास्थय की देखभाल की ओर चला गया। इसी कारण तीमारदारी की अवहेलना का शिकार निगमानंद ने दम तोड़ दिया। उस अस्पताल में भर्ती और भी कई मरीज़ों व उनके परिजनों ने इस बात की शिकायत की कि रामदेव के वहां भर्ती होने के कारण उनके मरीज़ों की देखभाल ठीक ढंग से नहीं हो पा रही थी।
संत निगमानंद की मौत ने एक बार फिर कई प्रश्रों को जन्म दे दिया है। पहला सवाल तो यह कि हमारे देश में धर्म रक्षा,गऊ रक्षा, गंगा रक्षा तथा भारतीय राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा करने का दावा करने वाला एक विशेष संगठन तथा राजनैतिक दल जोकि स्वयं को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा प्रहरी बताता है उसके सदस्यों व प्रतिनिधियों ने गंगा रक्षा का संकल्प लेते हुए स्वयं इस प्रकार के आंदोलन क्यों नहीं किए? दूसरा सवाल यह है कि उत्तराखंड में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने गंगा की तथा पर्यावरण की रक्षा के निहित संतों की मांग को मानते हुए तत्काल उन स्टोन क्रेशर तथा खदानों में हो रहे अवैध खनन को बंद क्यों नहीं करायाऔर इन सबसे प्रमुख बात यह कि राज्य के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल बाबा रामदेव से मिलने जिस समय हिमालयन हॉस्पिटल पहुंचे उस समय भी संत निगमानंद उसी अस्पताल में भर्ती थे तथा अपनी जिन्दगी की अंतिम सांसें गिन रहे थे। 

मुख्यमंत्री निशंक ने रामदेव से तो मुलाकात की, परंतु उसी अस्पताल में भर्ती संत निगमानंद की उन्होंने कोई खबर ही नहीं ली। बात यहीं खत्म हो जाती तो भी गऩीमत था। लेकिन मुख्यमंत्री निशंक ने बाबा रामदेव से मिलने के बाद उनके स्वास्थय को लेकर एक झूठा बवंडर खड़ा करने की कोशिश की। उन्होंने यह तक कह डाला कि स्वामी रामदेव किसी भी समय कोमा में भी जा सकते हैं। उनका रक्तचाप भी बहुत अधिक ऊपर व बहुत अधिक नीचे जा रहा है। जबकि रामदेव की सेहत पर पल-पल नज़र रखने वाले चिकित्सकों ने साफ कर दिया था कि रामदेव के कोमा में जाने जैसी कोई समस्या नहीं है।
कितने आश्चर्य की बात है कि गंगा की रक्षा का संकल्प लिए हुए जो संत उसी अस्पताल में कोमा में जा चुका है तथा अचेत अवस्था में अपनी जिन्दगी की आखरी सांसे ले रहा है उस संत के स्वास्थय, उसके कोमा में जाने तथा उसके आमरण अनशन के कारणों की तो मुख्यमंत्री निशंक को इतनी भी परवाह नहीं कि वह उससे मिलने के लिए अपने बहुमूल्य समय में से कुछ पल निकाल सके। 

रामदेव जैसे राजनैतिक संत से मिलने के लिए तो मुख्यमंत्री हिमालयन अस्पताल तक जा पहुंचे लेकिन जो संत वास्तव में भारतीय संस्कृति का प्रतीक समझी जाने वाली गंगा नदी की रक्षा के संकल्प को लेकर अपनी जान की बाज़ी लगाए बैठा है उससे मिलने का उनके पास कोई समय नहींआखिर यह कैसा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और साधु-संतों की प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा व उनकी गरिमा की रक्षा की यह कैसी बातें?
स्वीर का दूसरा पहलू यह भी बताया जा रहा है कि उत्तराखंड का खनन मफीया प्रदेश की सरकार के साथ अपनी खुली सांठगांठ रखता है। बताया जा रहा है कि इस सांठगांठ के पीछे का कारण भ्रष्टाचार तथा मोटी रिश्वत है। और इसी भ्रष्टाचार के चलते सांस्कृतिक राष्ट्रवादगंगा रक्षा,साधुसंत सम्मान जैसे ढकोसलों और यहां तक कि गंगा को बचाने के लिए दी गई एक त्यागी संत की जान की कुर्बानी तक की अनदेखी कर दी गई। अब तो यह आम लोगों को ही सोचना होगा कि तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों का वास्तविक चेहरा क्या है और अपनी राजनैतिक ज़रूरतों के अनुसार जनता को वरगलाने के लिए समय-समय पर यह कैसा रूप धारण करते हैं।



लेखिका उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ हैं और सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर भी लिखती हैं.




Jun 13, 2011

‘ऐन्टीक’ वस्तुओं के नाम पर हो रहा ठगी का कारोबार

मोबाईल व इंटरनेट के माध्यम से ठगी करने वाला नेटवर्क तो इतना शातिर है कि किसी व्यक्ति से मिले बिना केवल फोन या ई-मेल के माध्यम से ही उसे केवल अपनी बातों से या अपनी झूठी कथा-कहानी सुनाकर अपने बैंक खाते में पैसे तक जमा करवा लेता है...

निर्मल रानी

ठगों द्वारा आम लोगों की जेब से पैसे निकलवाने के तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। कभी कोई ठग ज़मीन में दबे सोने और चांदी के प्राचीन सिक्के या अशरफी सस्ते दामों में बेचे जाने के नाम पर किसी लालची व्यक्ति को ठग लेता है तो कभी नोट दुगने करने की लालच में कोई व्यक्ति ठगी का शिकार हो जाता है। कभी कोई ठग लोगों के घरों में जाकर सोने-चांदी के ज़ेवरों की सफाई के बहाने किसी का ज़ेवर उड़ा ले जाते हैं तो कभी कोई तांत्रिक के वेष में किसी के घर के भीतर ज़मीन में दबा हुआ धन निकालने के बहाने किसी परिवार को ठग ले है।


आमतौर पर ठग उनको ही अपना निशाना बनाते हैं जो या तो अधिक लालची होते हैं या फिर बहुत जल्दी धनवान बनना चाहते हैं या कम से कम समय में अधिक से अधिक धन कमाने की इच्छा पाले होते हैं। ऐसे ही लोग आजकल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोबाईल फोन के माध्यम से चल रही ठगी का शिकार हो जाते हैं या फिर इंटरनेट व ई-मेल के माध्यम से ठगों द्वारा दी गई पुरस्कार तथा लाटरी का ईनाम निकलने जैसी झूठी सूचना के झांसे में आ जाते हैं।

मोबाईलऔर इंटरनेट के माध्यम से ठगी करने वाला नेटवर्क तो इतना शातिर है कि किसी व्यक्ति से मिले बिना केवल फोन या ई-मेल के माध्यम से ही उसे केवल अपनी बातों से या अपनी झूठी कहानी सुनाकर अपने बैंक खाते में पैसे तक जमा करवा लेता है!

हमारे देश में पिछले कई वर्षों से इसी प्रकार के ठगों का एक बहुत सक्रिय नेटवर्क विशेष रूप से हरियाणापंजाब,चंडीगढ़दिल्ली तथा राजस्थान के क्षेत्रों में काम कर रहा है। इससे जुड़े लोग कुछ गिनी-चुनी (ऐंटीक) वस्तुओं के नाम पर लोगों को ठगने का प्रयास करते हैं। प्राचीन वस्तुओं या एंटीक के नाम पर जिन वस्तुओं को खरीदने-बेचने के जाल में लोगों को फंसाया जाता है उनमें कई वस्तुएं तो ऐसी हैं जिनका जि़क्र या तो हमारे प्राचीन ग्रंथों या शास्त्रों में कहीं मिलता है या फिर उन वस्तुओं का कोई धार्मिक महत्व होता है।

वहीं ठगों द्वारा अपने शिकारको कुछ प्राचीन वस्तुएं ऐसी भी बताई जाती हैं जिनका जिक्र इतिहास में भी मिलता है। ठगों के यह नेटवर्क इन वस्तुओं को बहुमूल्य वस्तु बताकर इनकी कीमत करोड़ों में बताते हैं। तथाकथित ऐंटीक वस्तुओं के इस कारोबार में अधिकतर तो ऐसा सुना गया है कि ठगों द्वारा किसी शरीफ और भोले-भाले परंतु लालची व्यक्ति से किसी ऐंटीक वस्तु को दिखाए बिना ही पैसे ऐंठ लिए जाते हैं। यानी जिस प्राचीन वस्तु के नाम पर सौदे की बात की जाती है उसका कहीं दर्शन ही नहीं होते। सारी कहानी अगर और मगरमें उलझाकर शिकार व्यक्ति से पैसे ठग लिए जाते हैं।

आइएआपको कुछ ऐसी ही वस्तुओं से परिचित कराते हैं जिनके नाम पर आजकल ठग रोज़ नए मुर्गों की तलाश में फिर रहे हैं। भगवान कृष्ण का काल्पनिक चित्र तो सभी ने देखा है। यह भी भगवान श्री कृष्ण के उस चित्र में दिखाई देता है कि उनके मुकुट में एक मोरपंखी लगी हुई है। बस इसी मोरपंखी के नाम पर ठगों का एक बड़ा नेटवर्क इन दिनों लोगों से पैसे वसूल रहा है।

इस मोरपंखी नेटवर्क से जुड़े ठगों द्वारा यह बताया जा रहा है कि कृष्ण के मुकुट में जो पंख लगा था वही वास्तविक तथा एकमात्र पंख अमुक व्यक्ति के पास है। उसे देखने तथा उसका सौदा करने-कराने के नाम पर शुरुआती दौर में दस-बीस हज़ार या ठगी का शिकार होने वाले व्यक्ति की हैसियत के अनुसार इससे भी अधिक पैसे ऐंठ लिए जाते हैं।

इसके पश्चात उसे खरीदने वाले लोग भी, जो इसी नेटवर्क का हिस्सा हैं, बीच के व्यक्ति को करोड़ों में वही मोरपंखी खरीदने का आश्वासन दे देते हैं। अब बिचौलिए के रूप में सौदे में शरीक किए गए व्यक्ति को यह नज़र आने लगता है कि वह जल्दी ही दलाली के रूप में मोटी रकम कमाने वाला है। खरीददार पार्टी इस प्राचीन वस्तु को खरीदने के लिए कीमत तो करोड़ों में ज़रूर लगाती है लेकिन इसे खरीदने में जानबूझ कर आनाकानी करती है और केवल समय गुज़ारती है।

दूसरी तरफ इस तथाकथित प्राचीन वस्तु को बेचने वाला इसे जल्दी बेचने का दबाव डाल कर बिचौलिए बने व्यक्ति से बार-बार मनचाही रकम वसूलता रहता है। इस दौरान वह बिचौलिया बने व्यक्ति को यह भी धमकाता है कि यदि तुम्हारे ग्राहक ने इसे नहीं खरीदा तो हमारे पास और भी कई ग्राहक हैं जिनके हाथों हम इसे बेच देंगे। और तुम्हारे साथ चल रहा सौदा निरस्त हो जाएगा। इसी बहाने वह बिचौलिया बना कर फंसाए गए शिकार से यथासंभव रकम वसूल लेता है। और आखिरकार इसे खरीदने वाला अपनी ज़ुबान से मुकर जाता है। उधर बेचने वाला भी सौदे की समय सीमा पूरी हो जाने का बहाना बना कर अग्रिम भुगतान के रूप में आए पैसों को हज़म कर जाता है।

इसी मोरपंखी की महत्ता को बढ़ाने के लिए ठगों द्वारा स्वयंभू रूप से इसकी तमाम विशेषताएं भी निर्धारित की गई हैं। उदाहरण के तौर पर यह ठग बताते हैं कि इस मोरपंखी का प्रतिबिंब दर्पण में दिखाई नहीं देता। ठगों द्वारा इसकी दूसरी विशेषता यह बताई जाती है कि इस मोरपंखी की जड़ में द्रव्य पदार्थ भी भरा हुआ है जो भगवान कृष्ण के समय से अब तक उस मोरपंखी में कायम है। यह मोरपंखी बुलेटप्रूफ भी बताई जाती है,वग़ैरह-वग़ैरह।

इसी प्रकार की प्राचीन वस्तुओं के नाम पर ठगी करने वाले सौदागर गजमुक्ता नाम की किसी वस्तु का व्यापार करते हुए भी देखे जाते हैं। इसके विषय में भी इन ठगों द्वारा यह बताया जाता है कि गजमुक्ता हज़ारों हाथियों में से किसी एक हाथी के मस्तिष्क के भीतर से निकली हुई कोई विशेष सामग्री है। भगवान कृष्ण के मुकुट की कथित मोरपंखी की ही तरह गजमुक्ता नाम की वस्तु को भी विचित्रचमत्कारिक तथा धार्मिक सरोकारों से जुड़ी वस्तु बताकर तथा इसके नाम पर भी करोड़पति बनने का सपना दिखाकर लालची लोगों को ठगा जा रहा है।

ऐसे ही प्राचीन वस्तु (एंटीक) के नाम पर पिछले दिनों ठगी की एक घटना प्रकाश में आई। इतिहास में इस बात का जि़क्र है कि दारा शिकोह एक धर्मनिरपेक्ष विचारों का शासक था तथा हिंदू संस्कृति और धर्मग्रंथों से वह बहुत प्रभावित था। इतिहास के अनुसार दारा शिकोह ने महाभारत को फारसी लिपि में लिपिबद्ध कराया था। अब यह तो नहीं पता कि दारा शिकोह द्वारा तैयार कराई गई फारसी में लिपिबद्ध महाभारत वास्तव में इस समय किस स्थिति में, कहां और किसके कब्ज़े में है। लेकिन इतिहास में दर्ज इसी प्राचीन बहुमूल्य एवं ऐतिहासिक ग्रंथ के नाम पर ठगों का एक नेटवर्क आम लोगों को ठगता फिर रहा है।

इस तथाकथित प्राचीन ग्रंथ के खरीद-फरोख्त के झांसे में ज़्यादातर वही लोग आते हैं जो या तो इतिहास के उपरोक्त घटनाक्रम से परिचित हैं या साहित्यिक दिलचस्पी रखते हैं। साथ ही साथ उनके पास पैसा भी है व ऐसी प्राचीन पुस्तक को देखने व समझने का शौक़ भी। 

पिछले दिनों इत्तेफाक से मेरी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई, जिससे ठगों ने मात्र 25 हज़ार रुपये ठगने के बहाने उसे उस कथित प्राचीन ग्रंथ के दर्शन’ कराये। फारसी लिपि में हाथों से लिखा गया वह पूरा का पूरा ग्रंथ नि:संदेह किसी भी पढ़े-लिखे व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करने वाला था।

उसकी लिखाई, प्रत्येक पंक्ति के पीछे की विभिन्न रंगों की पृष्ठभूमि तथा उसमें स्वर्णयुक्त स्याही का किया गया प्रयोग निश्चित रूप से एक बार तो किसी भी पारखी व्यक्ति को भी यह सोचने के लिए मजबूर कर सकता है कि हो न हो यह वही महाभारत होगी जो दारा शिकोह ने फारसी में स्वयं लिखी है । लेकिन इस पुस्तक को भी ठगों ने मात्र दर्शनके लिए रखा हुआ है। दर्शनकरने में ही तमाम लोग अपनी आर्थिक गुंजाइश के अनुसार ठग लिए जाते हैं। इस पुस्तक के सौदे का भी अंत में वैसा ही हश्र होता है जैसाकि कथित मोरपंखी के सौदे में होता है। 

देश के पश्चिमी राज्यों में सक्रिय कथित ऐंटीक कारोबार के इस गिरोह से तमाम पढ़े-लिखे बुज़ुर्गज़मींदारराजनीतिज्ञ तथा समाज के तथाकथित प्रतिष्ठित लोग भी जुड़े हुए हैं। आम लोगों को एक बार सम्राट ठग नटवर लाल जी के उस महान एवं अकाट्य कथन को याद रखने की ज़रूरत है कि संसार में जब तक लालच जिन्दा है, तब तक ठग कभी भूखा नहीं मर सकता।लिहाज़ा आम लोग लालच से बचें तथा प्राचीन या एंटीक वस्तुओं के नाम पर फैले इस ठग नेटवर्क के झांसे में हरगिज़  न आएं।  


लेखिका उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ हैं और सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर भी लिखती हैं.