अखिलेन्द्र ने कहा कि कारपोरेट का हित और किसानों के भले के लिए लफ्फाजी एक साथ नही चल सकती। हरियाणा जिसका राहुल बार-बार जिक्र कर रहे है वहां भी किसानों के लिए कोई स्वर्गराज नहीं है और यह भी कि इस इलाके के सभी किसान विकास के लिए जमीन देना चाहते है सच नहीं है। क्योकि ग्रेटर नोएडा के दादरी, भट्टा पारसोल, अलीगढ़ के टप्पल, कृपालपुर, जहानगढ़, कनसेका, आगरा के एत्मादपुर, खंदौली, चौगान, छलेसर, गढ़ीरामी और मथुरा तक में कई किसान है जो किसी भी कीमत पर अपनी जीविका के साधन जमीन को नही देना चाहते है।
हाल ही में दिए अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट तक ने इस बात को माना है कि विकास के नाम पर ही किसानों को छला गया है। दरअसल 1894 के कानून में जनहित की स्पष्ट व्याख्या न होने से ही सरकारें किसानों को विकास के नाम पर ठगती रही है और यही काम हरियाणा में भी कांग्रेस की सरकार कर रही है। बिल्डरों और कारपोरेट घरानों के हितों के लिए किसानों को बर्बाद करने की कांग्रेस और मायावती की नीतियां एक ही है।
उन्होनें कहा कि 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को रद्द करने और नयी भूमि उपयोग नीति बनाने के सवाल पर जन संघर्ष मोर्चा, भारतीय किसान पार्टी समेत देष में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलनरत किसान संगठनों के प्रतिनिधि आगामी 8 अगस्त को दिल्ली में किसान सम्मेलन करेगें।
प्रिय संपादक,
ReplyDeleteहम यह स्पष्ट करना चाहते है कि चाहे राहुल नाटक ही करें लेकिन सच्चाई यह है कि कम से कम वे नाटक कर तो रहे है.
राजीव, उमाकांत, करण, श्रीराम