Jun 4, 2011

कांग्रेस का किसान प्रेम मध्यप्रदेश में क्यों नहीं ?

आन्दोलन चलता रहा, लेकिन प्रशासन किसान नेताओं से कोई बातचीत नही की गई। केवल अदानी कंपनी द्वारा किसान आन्दोलन के नेतृत्व को खरीदने की कोशिश किसानों का की गई...

 डॉ0 सुनीलम्

मध्य प्रदेश   के छिन्दवाडा जिले में जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर 22 मई की शाम साढ़े पांच बजे अदानी पॉवर प्रोजेक्ट लिमिटेड और पेंच पावर लिमिटेड के ठेकेदार गुंडों ने मुझपर हमला किया। हमला केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के इशारे पर हुआ। करीब पंद्रह की संख्या में पहुंचे कांग्रेसी नेता कमलनाथ के गुंडों  ने मेरी जीप को तोड़ दिया, लाठियों से मेरे दोनों हाथ भी तोड़ दिए और सिर में चोट आई। अदानी प्रोजेक्ट तथा पेंच परियोजना से प्रभावित हो रहे किसानों के आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे वकील आराधना भार्गव को पीटे जाने के चलते सिर में 10 टांके लगे तथा एक हाथ फैक्चर हो गया। यह हमला तब किया गया जब हम छिन्दवाड़ा जिले के भूलामोहगांव से 28 से 31 मई के बीच दोनों प्रोजेक्ट के विरोध में पद्यात्रा के कार्यक्रम को अंतिम रूप देकर लौट रहे थे।
अदानी ग्रुप चेयरमैन : मुनाफे के लिए सब कुछ  

हमले के बाद आराधना भार्गव ने पुलिस अधीक्षक छिंदवाडा को फोन कर हमला करने वालों तथा गाड़ियों के नम्बर की जानकारी दी, लेकिन मध्य प्रदेष पुलिस को 14 किलोमीटर की दूरी तय करने में ढाई घंटे का समय लगा। इसके बाद पुलिस ने हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज करने की बजाय धारा 323 के तहत साधारण मारपीट का मुकदमा दर्ज कर खानापूर्ती कर दी। इस बीच मैंने हमले के विरोध में दो दिनों तक छिन्दवाड़ा जिला चिकित्सालय में अनषन किया। अदानी के काम रोके जाने और हमलावरों पर कार्यवाही के प्रषासन से मिले आष्वासन के बाद मैंने ग्रामवासियों के हाथों अनषन तोड़ा और पदयात्रा के लिए वापस छिंदवाडा पहुंच गया। 28 से 31 मई की चिलचिलाती धूप में पदयात्रा की।

यात्रा के छिंदवाडा पहुंचने पर 5 हजार से अधिक किसान, जमीन बचाओ खेती बचाओ, रैली में शामिल हुए। डॉक्टर बीडी शर्मा, किशोर तिवारी तथा अन्य संगठनों  के नेताओ ने रैली को सम्बोधित किया तथा मुख्यमंत्री एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश  को जिलाधीश  के माध्यम से ज्ञापन सौंपा। आष्चर्यजनक तौर पर मध्य प्रदेश  के दोनों मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस की ओर से न तो इस घटना की निन्दा की गई न ही अदानी पावर प्रोजेक्ट लिमिटेट तथा पेंच पावर प्रोजेक्ट को लेकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। जबकि उत्तर प्रदेश कांग्रेस की ओर से राहुल बाबा तथा दिग्विजयसिंह मैदान में डटे हुए हैं तो भाजपा की ओर से राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र किसान यात्रा निकाल रहे है। ऐसे में साफ है कि दोनों पार्टियों की भूअधिग्रहण तथा औद्योगिकरण के सम्बन्ध में कोई एक राष्ट्रीय नीति नहीं है।

अदानी पावर प्रोजेक्ट लिमिटेट तथा पेंच पावर प्रोजेक्ट को लेकर मध्य प्रदेश  में शुरू हुए विरोध की जड़ें करीब 25 वर्श पुरानी हैं। मध्य प्रदेष बिजली बोर्ड (एमपीईबी) ने 1986-87 में 5 गांव के किसानों की जमीनें ढेड़ हजार रूपए के हिसाब से 10 हजार प्रति एकड़ की दर पर जमीनें अधिग्रहित कीं। किसानों के हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने, निषुल्क बिजली देने तथा पूरे मध्य प्रदेश  के किसानों को लागत मुल्य पर बिजली उपलब्ध कराने और 3 वर्ष में ताप विद्युत गृह निर्माण का वायदा, तत्कालिन कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विज सिंह की ओर से हुआ। लेकिन न तो थर्मल पावर बना न ही किसान परिवारों को रोजगार। जमीनें किसानों के पास ही रहीं और वे उसपर खेती करते रहे।

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अब मध्य प्रदेष सरकार ने किसानों से सहमति लिये बगैर ही उनकी जमीनें 13.50 लाख रूपए प्रति एकड़ की दर से अदानी और पेंच  पावर लिमिटेड कंपनी को बेच दी हैं। मगर किसान जमीन देने को तैयार नहीं हैं। जाहिर है किसानों ने भी कब्जा नहीं छोड़ा है। 6 नवम्बर 2010 को चौसरा में पर्यावरण मंत्रालय की ओर आयोजीत जनसुनवाई में किसानों ने किसी भी कीमत पर जमीन न देने तथा कब्जा नहीं छोड़ने का ऐलान किया। कुछ कांग्रेसी नेताओं ने बाहर के किसानों को लाकर जनसुनवाई की खानापूर्ति करनी चाही, लेकिन क्षेत्र के किसानों ने उन्हें खदेड़ दिया। खदेड़ देने के बाद पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने अदानी के कार्यालय में जनसुनवाई करने का नाटक किया, लेकिन उसे किसान मानने को तैयार नहीं हैं।

किसानों का आन्दोलन चलता रहा, लेकिन प्रषासन किसान नेताओं से कोई बातचीत नही की गई। केवल अदानी कंपनी द्वारा किसान आन्दोलन के नेतृत्व को खरीदने की कोषिष की गई। मुझसे भी अदानी के एक उच्च अधिकारी ने अलग-अलग तरीके से बिना समय लिए या जानकारी दिए, मुलाकात की और किसानों के साथ समझौता कराने के लिए 10 करोड़ रूपए देने की पेशकश की। शायद उसी दिन से अदानी ग्रुप  ने हमला कराने की योजना बनानी शुरू कर दी थी, जिसका क्रियान्वयन 22 मई को हुआ।

अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट के लिए पानी पेंच परियोजना के अन्तर्गत बन रहे दो बांधों से दिया जाने वाला है, जबकि 31 गांवो की जमीनांे का अधिग्रहण जनहित के बहाने किसानों को सिंचाई का पानी देने के उद्देष्य से किया जा रहा है। क्षेत्र के किसानों को यह तथ्य हाल ही में तब पता चला जब अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों ने फर्जी एफडीआर पर माचागोरा बांध निर्माण का ठेका लेने वाले एसके जैन का ठेका निरस्त कराया, जो अब अदानी ने अपनी हैदराबाद स्थित कम्पनी को दिलवा दिया है। नई परिस्थिति में पेंच परियोजना में अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों तथा अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट से अपनी जमीन वापस लेने की लड़ाई लड़ रहे किसानों में एकता बन गयी है। किसानों के लिए विरोध ही विकल्प तक कि समझ तक पहुंचाने में विषेशज्ञों की टीम से मिली जानकारियां महत्वपर्ण रहीं। हालांकि इस बीच अदानी कम्पनी द्वारा बिना पर्यावरण मंजूरी के बाऊण्ड्रीवाल बना ली गई, जमीनों पर कब्जा प्राप्त हुए जगह जगह पर गढ्ढे करा लिए गए। जिलाधीश के आष्वासन के बावजूद निर्माण कार्य जारी रहा और पर्यावरण मंत्रालय चुप रहा।

यानी अब किसानों  के सामने तीन विकल्प हैं ? किसान न्यायालय का दरवाजा खटखटायें और  उम्मीद करें कि जिस तरह दादरी में उच्च न्यायालय ने किसानों की जमीनें वापस करने के निर्देष दिए, वैसे ही निर्देष किसान न्यायालय के माध्यम से हासिल कर सकेंगे। दुसरे विकल्प के तौर पर किसान पर्यावरण मंत्रालय पर दबाव बनाकर किसी भी परिस्थिति में पावर प्लांट बनाने की अनुमति न देने तथा अब तक किए गए निर्माण कार्य को ध्वस्त करने का निर्देष मंत्री जयराम रमेष से कराने की कोशिश  कर सकते है ? और तीसरा विकल्प है कि वे स्वंय आगे बढ़कर अब तक किए गए निर्माण कार्या को खुद ध्वस्त कर दें और खेती करें।

तीसरे विकल्प में भीषण टकराव की स्थिति बन सकती है। अदानी के गुण्डे या पुलिस किसानों को लाठी या गोली की दम पर रोकने की कोषिष कर सकते हैं। बड़े पैमाने पर किसानों पर फर्जी मुकदमे लगाये जा सकते हैं और अदानी पर फना हो रहा प्रषासन किसान नेताओं की गिरफ्तारी भी कर सकता है।  कारण कि अदानी ने क्षेत्र के सभी दबंग परिवारों और नेताओं  प्रोजेक्ट के ठेकांे से जोड़कर उनके आर्थिक स्वार्थ पैदा कर दिए हैं।

लेकिन 31 मई को छिन्दवाड़ा खेती बचाओ जमीन बचाओ पदयात्रा में किसानों ने बडी संख्या में शामिल होकर यह तो साफ कर दिया है कि वे दबंगई से डरकर घर बैठने वाले नहीं है। 31 मई की सभा के दौरान किसानांे ने हाथ खडा कर अपनी जमीनो पर खेती करने तथा अदानी पावर प्रोजेक्ट रद्द करने की मांग को लेकर हजारों की संख्या में जेल भरो चलाने का ऐलान किया है। ऐसे में अगर सरकार समय रहते नहीं चेती तो किसानों को लड़ाई में जीत को ही अंतिम विकल्प के साथ संघर्ष हर रास्ता  अख्तियार करना पड़ेगा. 


समाजवादी पार्टी  नेता और  पूर्व विधायक. सामाजिक-राजनितिक आंदोलनों में भागीदारी का लम्बा सिलसिला. 






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